‘नंदकिशोर रुंगटा हिंदू
भवन’
से
उठी
एक
नई
ज्योति
हिंदू एकता ही भारत की आत्मा का स्वभाव है : मिलिंद परांडे
हिंदू समाज
के
समक्ष
नई
चुनौतियां,
पर
चेतना
का
नवसूर्योदय
भी
सुरेश गांधी
वाराणसी. जहां गंगा प्रवाहित होती हैं, वहां धर्म की धारा भी सदैव जीवंत रहती है। इसी पावन काशी में शुक्रवार को विश्व हिंदू परिषद के नव-निर्मित कार्यालय ‘नंदकिशोर रुंगटा हिंदू भवन’ का लोकार्पण विधि-विधानपूर्वक सम्पन्न हुआ।
मंगलघोष, वेदमंत्र और पुष्पवर्षा के मध्य यह आयोजन केवल एक भवन का उद्घाटन नहीं, बल्कि हिंदू चेतना के एक नये अध्याय का उद्घोष प्रतीत हुआ।
यह केवल एक भवन नहीं, बल्कि हिंदू समाज की चेतना का केंद्र है। खास यह है कि काशी के इस नवनिर्मित “नंदकिशोर रुंगटा हिंदू भवन” से वह विचारधारा फूटती दिखी, जो कहती है, हम केवल इतिहास के उत्तराधिकारी नहीं, भविष्य के निर्माता हैं।
विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय महामंत्री (संगठन) मिलिंद परांडे ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
अपने ओजस्वी संबोधन में उन्होंने कहा, यह भवन केवल निवास का स्थान नहीं, बल्कि राष्ट्र और धर्म के प्रति समर्पण का केंद्र बनेगा। यह किसी व्यक्ति की संपत्ति नहीं, बल्कि समाज की साझी आस्था का प्रतीक है।इसकी व्यवस्थाएं हमारी नागरिक जिम्मेदारी हैं। उन्होंने कहा कि सैकड़ों वर्षों के उपरांत हिंदू धर्म और संस्कृति के लिए अनुकूल वातावरण बना है, किन्तु चुनौतियां अब भी विद्यमान हैं।
जो स्वयं को हिंदू-विरोधी मानते हैं, उनकी राजनीतिक शक्ति भले क्षीण हुई हो, परंतु वे अब समाज में भ्रम और हिंसा का वातावरण निर्माण कर रहे हैं। हमें अपने कर्म और आचरण से सिद्ध करना होगा कि हम हिंदू हैं, और यही हमारी पहचान है।हिंदू हिंदू से कैसे लड़े? प्रश्न जो आत्मचिंतन बन गया
नशे की साजिश हमारे संस्कारों पर प्रहार है
केंद्रीय महामंत्री ने सीमावर्ती देशों
से आ रहे ड्रग्स
के दुष्चक्र को राष्ट्र और
समाज के लिए घातक
बताया। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, म्यांमार और थाईलैंड से
हमारे किशोरों को लक्ष्य बनाकर
ड्रग्स भेजे जा रहे
हैं। एक वर्ष में
40 हजार करोड़ रुपये का
नशा पकड़ा गया है,
यह केवल अपराध नहीं,
बल्कि हमारे संस्कारों को नष्ट करने
की सुविचारित साजिश है। उन्होंने कहा
कि गौ-हत्या, धर्मांतरण
और मंदिर अधिग्रहण जैसी गतिविधियां हिंदू
समाज के अस्तित्व पर
आघात हैं। उन्होंने दृढ़
स्वर में कहा, हमें
धर्म और संस्कृति के
अपमान को कभी स्वीकार
नहीं करना चाहिए.
समाज का प्रबोधन ही सबसे बड़ा साधना-कार्य
परांडे जी ने सामाजिक समरसता, पर्यावरण और नागरिक कर्तव्यों पर भी बल देते हुए कहा कि अब समय आ गया है जब धर्म केवल मंदिर की परिधि में न रहकर समाज की जीवनशैली बने।
उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म का अर्थ केवल पूजा नहीं, बल्कि अनुशासन, सेवा और सजगता का जीवन है। इस दौरान उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में संगठन के उद्देश्यों, समाज की अपेक्षाओं और सांस्कृतिक चेतना पर खुला संवाद किया.








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