झिलमिलाई काशी : श्रद्धा, उमंग और उल्लास से नहाई भोले की नगरी
विश्वनाथ धाम
में
हुई
महालक्ष्मी
आराधना,
घाटों
से
गलियों
तक
बिखरी
रौनक
सुरेश गांधी
वाराणसी। दीपों की रजनी में
आज काशी सचमुच “प्रकाश
की नगरी” बन गई। भगवान
भोलेनाथ की नगरी में
दीपावली का पर्व श्रद्धा,
उमंग और उल्लास के
संग मनाया गया। अमावस्या की
इस रात में जब
चारों ओर दीपों का
सागर लहरा रहा था,
तब ऐसा लग रहा
था मानो धरती ने
आकाश को उजास का
वंदन दिया हो। घर-आँगन, मंदिर-प्रांगण, घाट और गलियाँ—सब कुछ झिलमिला
उठा था।
सांझ ढलते ही
श्री काशी विश्वनाथ धाम
का प्रांगण दीपों की मृदुल ज्योति
से आलोकित हो उठा। श्रद्धालु
माता लक्ष्मी और भगवान कुबेर
की पूजा-अर्चना में
लीन थे। धाम में
विशेष रूप से लक्ष्मी
पूजन का आयोजन हुआ।
मंदिर परिसर में सत्यनारायण मंदिर
में महालक्ष्मी और गणपति की
षोडशोपचार पूजा के साथ
“राष्ट्र, समाज और विश्व
के कल्याण” की कामना की
गई। मुख्य कार्यपालक अधिकारी विश्वभूषण मिश्र ने सपरिवार शास्त्रीय
विधि से पूजन किया।
दीपों से सजी गलियाँ, घाटों पर झिलमिलाते उजास
गंगा तट से
लेकर दशाश्वमेध घाट तक दीपों
का समुद्र लहराता नजर आया। गंगा
पार रेती पर जलते
दीपों की पंक्तियाँ अपनी
झिलमिलाहट से अंधकार को
हराने का संदेश दे
रही थीं। घाटों पर
उमड़ी भीड़ ने “हर
हर महादेव” और “जय मां
गंगे” के जयघोष से
वातावरण को भक्ति रस
में डुबो दिया। शहर
के मंदिरों में भी दीपोत्सव
का वैभव चरम पर
था। हर ओर आकर्षक
झालरों और पुष्प सजावट
से देवालय दमक रहे थे।
युवाओं ने इस भव्य
दृश्य को अपने कैमरों
और मोबाइल में कैद किया।
ड्रोन से ली गई
झिलमिलाती काशी की छवियाँ
सोशल मीडिया पर भी खूब
वायरल होती रहीं।
व्यापार में समृद्धि की कामना — बही-खाता पूजन की रही परंपरा
दीपावली केवल घर-आँगन
का नहीं, बल्कि व्यापारिक नववर्ष का भी आरंभ
है। इस अवसर पर
शहर के व्यापारियों ने
परंपरागत बही-खाता, दवात,
कलम, गणेश-लक्ष्मी और
कुबेर की विधिवत पूजा
की। साथ ही आधुनिक
युग के प्रतीक—कंप्यूटर,
लैपटॉप और मोबाइल उपकरणों
का भी पूजन कर
नए व्यापारिक सत्र की शुभ
शुरुआत की। मान्यता है कि इस
दिन की गई बही-खाता पूजा से
पूरे वर्ष धन की
आवक बनी रहती है।
यही कारण रहा कि
सिगरा, लहुराबीर, गोदौलिया, मदनपुरा और लंका क्षेत्रों
के बाजारों में श्रद्धा और
भक्ति का अनूठा संगम
देखने को मिला।
रौनक से नहाई गलियाँ, रातभर रही भीड़
दीपावली की रात्रि में शहर के हर कोने में उल्लास का माहौल था। घरों के बाहर बच्चे पटाखों की चमक में मग्न थे तो महिलाएँ आरती की थाल लेकर लक्ष्मी के स्वागत में द्वार पर खड़ी थीं। वंदनवारों से सजे द्वार, पुष्पों से महकते आँगन और दीयों से दमकते छज्जे—हर दृश्य सौंदर्य का साकार रूप बन गया था। यातायात पुलिस ने चौक-चौराहों पर चौकसी बरतते हुए सुरक्षा व्यवस्था संभाली। मिठाई की दुकानों पर दिनभर भीड़ रही, वहीं आतिशबाजी ने रात को चकाचौंध बना दिया। विदेशी पर्यटक भी इस दृश्य के मोहपाश से बच न सके—घाटों की रोशनी और आतिशबाजी का हर पल उन्होंने अपने कैमरों में कैद किया।
प्रकाश पर्व में काशी का अनूठा दर्शन
काशी की दीपावली
केवल उत्सव नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव
है—जहाँ अंधकार पर
प्रकाश, अवसाद पर आशा, और
तामस पर तेज का
वर्चस्व स्थापित होता है। बाबा
विश्वनाथ के ज्योतिर्लिंग से
लेकर मां अन्नपूर्णा के
आँगन तक, हर दीप
इस बात का प्रतीक
था कि प्रकाश सदा
अंधकार को हराता है।
सनातन शास्त्रों के अनुसार स्वयं
भगवान शिव ने ब्रह्मांड
में प्रकाश का आरंभ “ज्योति
स्तंभ” के रूप में
किया। उसी दिव्य स्मृति
को जीवंत करती हुई काशी
की दीपावली, आज भी लोक
और परलोक के बीच उजास
की सेतु बनी हुई
है।
श्रद्धा से झिलमिलाता उजास
रात गहराई, पर काशी का उजास बढ़ता गया। गंगा की लहरों पर तैरते दीप जब एकाकार हुए, तो लगा मानो समूचा ब्रह्मांड शिव-लक्ष्मी की आराधना में लीन हो गया हो। इस दिव्य क्षण में हर काशीवासी की आँखों में केवल एक ही कामना थी — “मां लक्ष्मी, हर घर में सुख-समृद्धि और प्रकाश सदा बना रहे।”

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