Tuesday, 28 October 2025

प्रतिमा नहीं, भारत की आत्मा है, “स्टैच्यू ऑफ यूनिटी” गाती है एकता का स्वर

प्रतिमा नहीं, भारत की आत्मा है, “स्टैच्यू ऑफ यूनिटीगाती है एकता का स्वर

नर्मदा की शांत धाराओं के मध्य, केवडिया की गोद में खड़ी एक प्रतिमा, जो केवल पत्थर और धातु का ढांचा नहीं, बल्कि भारत की आत्मा का साक्षात् प्रतीक है। यह वही स्वरूप है जिसने कभी बिखरे हुए भारत को एक सूत्र में बांध दिया था। यह वही चेतना है जिसने रियासतों की दीवारें तोड़करएक भारतका सपना साकार किया। यह वही लौ है, जो अबस्टैच्यू ऑफ यूनिटीके रूप में अनंत काल तक प्रज्वलित रहेगी। 182 मीटर ऊँची यह मूर्ति जब सुबह के सूर्य को स्पर्श करती है, तो लगता है मानो स्वयं इतिहास अपने पुरोधा को प्रणाम कर रहा हो। नर्मदा की लहरें इसके चरणों से टकराती हैं, जैसे राष्ट्रमाता अपने पुत्र का आशीर्वाद ले रही हो। यह प्रतिमा केवल सरदार वल्लभभाई पटेल की स्मृति नहीं, बल्कि उस विचार का स्थापत्य है जो कहता है, “एकता ही भारत की पहचान है।आज जब विश्व भारत को नए आत्मविश्वास से देख रहा है, तब यह प्रतिमा उस अखंड भारत की गूंज बन चुकी है, जिसे सरदार ने अपने दृढ़ संकल्प और राजनीतिक कुशलता से गढ़ा था। यह केवल एक मूर्ति नहीं, बल्कि इतिहास, संस्कृति, और राष्ट्रभाव की मूर्त व्याख्या है, भारत की एकता की जीवित प्रतिज्ञा

सुरेश गांधी

अगर सरदार पटेल होते, तो भारत आज भी रियासतों का जाल होता, कि एक अखंड राष्ट्र।यह वाक्य केवल इतिहास का स्मरण नहीं, बल्कि भारतीय गणराज्य की आत्मा का उद्घोष है। इसी लौह संकल्प और राष्ट्रनिष्ठा की विराट स्मृति के रूप में 31 अक्तूबर 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के केवडिया मेंस्टैच्यू ऑफ यूनिटीका लोकार्पण किया। 182 मीटर ऊँची यह प्रतिमा विश्व की सबसे ऊँची मूर्ति है, पर यह केवल धातु और पत्थर का ढांचा नहीं। यह भारत की आत्मा का सजीव प्रतीक है। यह मूर्ति उस व्यक्ति की है जिसने विभाजन की वेदना के बीच भी देश की रियासतों को एक सूत्र में बांधने का असंभव कार्य कर दिखाया, सरदार वल्लभभाई पटेल।

यह प्रतिमा केवल सरदार का स्मारक नहीं, बल्कि उनके विचारों का प्रतीकात्मक शिल्प है। इसके हर पहलू मेंएकताका दर्शन छिपा है, ऊँचाई : 182 मीटर, गुजरात विधानसभा की 182 सीटों का प्रतीक। नर्मदा : जीवन, ऊर्जा और निरंतरता का स्रोत। धातुः जनता द्वारा दान किया गया लोहाकृजनसहभागिता का प्रतीक। दिशा : दक्षिण की ओर मुख, देश की एकता की ओर दृष्टि। वास्तु और स्थापत्य की दृष्टि से एक अजूबास्टैच्यू ऑफ यूनिटीका निर्माण चीन के मूर्तिकार झोउंग लियांग के निर्देशन में हुआ। इसमें 1,700 टन कांस्य (ब्रॉन्ज) और 1,850 टन इस्पात का प्रयोग हुआ। मूर्ति की आधारशिला 58 मीटर ऊँची है, और इसके अंदर एक आधुनिक संग्रहालय तथा प्रदर्शनी हॉल बनाया गया है, जहाँ सरदार पटेल के जीवन, आंदोलन और राष्ट्रनिर्माण की झलकियां प्रदर्शित हैं।

2020 में इसे शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के आठ अजूबों में शामिल किया गया। यह केवल स्थापत्य का सम्मान नहीं, बल्कि भारत की उस विचारधारा का वैश्विक सम्मान है जोविविधता में एकताको अपने जीवन दर्शन के रूप में मानती है। भारत की आज़ादी का संघर्ष जितना गांधी की अहिंसा से जुड़ा था, उतना ही पटेल की संगठनशीलता और दृढ़ इच्छाशक्ति से भी। उन्होंने भारत कोसंघीय ढांचे में एकात्म भारतके रूप में गढ़ा। जब 1947 में देश आज़ाद हुआ, तब 562 रियासतें अपने-अपने स्वार्थों और संधियों में बंटी थीं। कोई स्वतंत्र रहना चाहती थी, कोई पाकिस्तान में मिलना चाहती थी। ऐसे कठिन समय में लौहपुरुष ने दृढ़ता से कहा, “यह देश टुकड़ों में नहीं बँट सकता, यह एक रहेगा, अखंड रहेगा।उनकी यही लौ आज स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के रूप में साकार है।

नर्मदा के शांत जल के किनारे स्थित यह प्रतिमा, प्रकृति और पुरुषार्थ का अद्भुत संगम है। गुजरात के नर्मदा जिले के केवडिया में स्थित यह स्मारक केवल एक स्थापत्य चमत्कार नहीं, बल्कि एक संदेश है, “जो भारत को एक कर सकता है, उसकी प्रतिमा भी उतनी ही ऊँची होगी जितना उसका आदर्श।” 182 मीटर ऊँची यह मूर्ति स्वतंत्र भारत की ऊँचाई और आत्मगौरव का प्रतीक है। इसके निर्माण में लगभग 2,989 करोड़ रुपये की लागत आई। इसे लार्सन एंड टुब्रो (एल एंड टी) कंपनी ने चार साल में तैयार किया। इस स्मारक का लोकार्पण 31 अक्टूबर 2018 को हुआ, पटेल की जयंती के अवसर पर। आज का भारत अनेक चुनौतियों से जूझ रहा है, विचारों, भाषाओं, धर्मों और प्रदेशों की विविधता के बावजूद एकता की भावना को जीवित रखना किसी लौह इच्छाशक्ति से कम नहीं। पटेल ने कहा था, “राष्ट्र की शक्ति उसकी सीमाओं में नहीं, बल्कि उसकी एकता में है।आज जब देशसबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वासकी नीति पर अग्रसर है, तब पटेल का दर्शन और भी प्रासंगिक हो जाता है। उनका जीवन बताता है कि संगठन, अनुशासन और समर्पण ही राष्ट्र की रीढ़ हैं।

नर्मदा की लहरें इस प्रतिमा के चरणों से टकराती हैं, जैसे भारत की नदियाँ अपने पिता समान पुरुष को नमन करती हों। दिन के उजाले में जब सूर्य की किरणें सरदार की मूर्ति पर पड़ती हैं, तो वह आभा बताती है कि यह कोई निर्जीव आकृति नहीं, बल्कि जीवित प्रेरणा है। रात के अंधेरे में जब यह मूर्ति रोशनी से नहाई होती है, तो लगता है, भारत का भविष्य इसी आलोक में दमक रहा है। स्टैच्यू ऑफ यूनिटी केवल अतीत की स्मृति नहीं, बल्कि भविष्य के भारत का घोषणापत्र है। यह हमें सिखाती है कि विचार जब कर्म से जुड़ते हैं, तब राष्ट्र अमर हो जाता है। यह स्मारक कहता है,  भारत कोई भौगोलिक इकाई नहीं, बल्कि चेतना है, जो समय-समय पर ऐसे महापुरुषों के माध्यम से स्वयं को नये रूप में अभिव्यक्त करती है।” 31 अक्तूबर, सरदार पटेल की जयंती, अब केवल एक तिथि नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में हर भारतीय के हृदय में अंकित हो चुकी है।

हर वर्ष जब इस दिन देशभर मेंरन फॉर यूनिटीआयोजित होता है, तो यह केवल दौड़ नहीं, बल्कि एक संकल्प होता है, “भारत एक है, भारत अखंड रहेगा।नर्मदा के तट पर खड़ी यह विशाल प्रतिमा आने वाली पीढ़ियों को याद दिलाती रहेगी कि, “जिस व्यक्ति ने भारत को एक किया, वह अब अनंत काल तक इस धरती के हर अणु में जीवित रहेगा।नर्मदा की लहरें गुनगुनाती हैं, “वो लौहपुरुष नहीं, भारत की आत्मा हैं, जो आज भी हर दिल में बसते हैं। पत्थर नहीं, विचारों का जीवंत मंदिर हैं वो, जो हमें एकता की राह दिखाते हैं।स्टैच्यू ऑफ यूनिटी केवल एक प्रतिमा नहीं, यह उस विराट चेतना की मूर्त अभिव्यक्ति है, जो कहती है, “हम भारतीय हैं, और हमारी एकता ही हमारी सबसे बड़ी शक्ति है।

जनभागीदारी से गढ़ी एकता की मूर्ति

इस प्रतिमा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे केवल सरकारी परियोजना के रूप में नहीं, बल्कि जनभागीदारी के अभियान के रूप में देखा गया। देशभर के किसानों ने अपने खेतों के पुराने औज़ार, हल, दरांती और लोहा दान दिया। इन उपकरणों सेलोहा अभियानचला, और उसी धातु से गढ़ी गई लौहपुरुष की यह मूर्ति। यह उस भारत की पहचान है जहाँ राष्ट्रनिर्माण केवल नेताओं का नहीं, बल्कि जन-जन की आस्था और श्रम का परिणाम होता है। सरदार वल्लभभाई पटेल (31 अक्तूबर 1875 : 15 दिसंबर 1950) का जन्म गुजरात के नडियाद में हुआ था। वकालत से लेकर स्वतंत्रता आंदोलन तक, उन्होंने हर भूमिका में अनुशासन और राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखा। गांधीजी ने जब सत्याग्रह का बिगुल बजाया, तो पटेल ने उसेव्यवस्था और संगठन की रीढ़दी। खेड़ा और बारडोली के किसानों के आंदोलन से लेकर संविधान निर्माण तक, सरदार हर मोर्चे पर दृढ़ और निष्ठावान रहे। बारडोली सत्याग्रह के दौरान जब किसानों ने कर देने का निश्चय किया और अंग्रेज शासन ने दमन किया, तब पटेल ने जो नेतृत्व दिखाया, उससे ही उन्हेंसरदारकी उपाधि मिली।

भारत की एकता के शिल्पकार

आज़ादी के बाद जब भारत दो टुकड़ों में बँटा, तब पटेल ने 562 रियासतों का विलय कर भारत को एक सूत्र में बाँधा। हैदराबाद, जूनागढ़, कश्मीर, भोपाल, मणिपुर जैसी रियासतों के विलय में उनकी निर्णायक भूमिका रही। इतिहासकारों के शब्दों में, “अगर पटेल होते, तो भारत आज अफ्रीका के देशों की तरह असंख्य छोटे-छोटे राष्ट्रों में विभाजित होता।उन्होंने तर्क, दृढ़ता और कूटनीति सेअखंड भारतका निर्माण कियाकृवह भारत जो आज हमें संविधान, सीमाओं और संस्कृति के रूप में मिला है।

पर्यटन, रोजगार और विकास का केन्द्र

इस प्रतिमा के कारण केवडिया आजएकता नगरके रूप में विश्व पर्यटन मानचित्र पर उभर चुका है। यहां प्रति वर्ष लाखों पर्यटक आते हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था और रोजगार में क्रांतिकारी परिवर्तन आया है। एकता नगर में आधुनिक रेल स्टेशन, रोप-वे, टेंट सिटी, एकता नर्सरी, जंगल सफारी, बच्चों के लिए एडवेंचर पार्क औरएकता क्रूज़जैसी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। नर्मदा डैम और इसके आसपास के क्षेत्र को अबइको-टूरिज़्म हबके रूप में विकसित किया गया है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, “स्टैच्यू ऑफ यूनिटी केवल पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि प्रेरणा स्थल है, जहाँ आकर हर भारतीय अपने भीतर के सरदार को खोज सकता है।

विश्व में भारत की पहचान का प्रतीक

आज जब कोई विदेशी पर्यटकस्टैच्यू ऑफ यूनिटीदेखता है, तो उसे केवल एक मूर्ति नहीं दिखती, उसे भारत की आत्मा दिखाई देती है। जैसे स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी अमेरिका की स्वतंत्रता का प्रतीक है, वैसे ही स्टैच्यू ऑफ यूनिटी भारत की एकता, साहस और सामूहिक चेतना का प्रतीक बन चुकी है। भारत का यह स्मारक संदेश देता है किहमारी एकता हमारी शक्ति है, और हमारी संस्कृति हमारी पहचान।

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