जब ग्रह बदलते हैं दिशा, तब जीवन मांगता है विराम
सूर्य जब अपनी ज्योति को धीमा कर धनु राशि में प्रवेश करता है, तब भारतीय पंचांग एक विशिष्ट विराम की घोषणा करता है, खरमास। यह विराम केवल ग्रह-नक्षत्रों का परिवर्तन नहीं, बल्कि जीवन की गति को थामकर आत्मा की ओर मोड़ देने वाला पवित्र काल है। 16 दिसंबर दोपहर 1ः24 बजे से आरंभ होने वाला यह एक महीना विवाह, गृह-प्रवेश, संपत्ति क्रय जैसे सभी मांगलिक कार्यों को रोककर मनुष्य को भीतर की शांति की ओर लौटने का निमंत्रण देता है। और शुरू होगा पुण्य, तप और संयम का पवित्र काल. जी हां, सूर्योदय की थमी लय में छिपा एक महीना, जो जीवन को तप, दान, श्रद्धा और अनुशासन से जोड़ता है. पुराणों में इसे भगवान नारायण की आराधना का मास कहा गया है, जिसमें तप, जप, दान और सेवा के माध्यम से मन और कर्म दोनों को शुद्ध करने का अवसर निहित है। काशी से मिथिला तक, देवालयों की घंटियां और भक्तों के मंत्र इसी काल को आध्यात्मिकता का सबसे सुंदर मौसम बना देते हैं। जब 14 जनवरी की रात सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेंगे, तब एक बार फिर ग्रहों की शुभता जाग उठेगी और मांगलिक कार्यों का सिलसिला पुनः आरंभ होगा। परंतु उससे पहले यह एक महीना हमें यह स्मरण कराता है कि जीवन की दौड़ में ठहरना भी उतना ही आवश्यक है, जितना आगे बढ़ना
सुरेश गांधी
भारतीय पंचांग का संसार अनोखा
है। ऋतुओं, ग्रहों, नक्षत्रों, तिथियों और त्योहारों की
ऐसी सजीव लय संसार
की किसी अन्य सभ्यता
में देखने को नहीं मिलती।
इसी लय का एक
सबसे महत्वपूर्ण, किंतु उतना ही रहस्यमय
अध्याय है, खरमास। एक
ऐसा मास, जब सूर्य
अपनी गति को धनु
राशि में प्रवेश के
साथ एक विशिष्ट अवस्था
में ला देता है
और पूरा समाज अपनी
चहल-पहल पर विराम
लगाकर आस्था, तप, दान और
पूजा की ओर लौट
आता है। इस वर्ष
यह पवित्र अवधि 16 दिसंबर (मंगलवार) दोपहर 1ः24 बजे से
आरंभ हो रही है,
जब सूर्य धनु राशि में
प्रवेश करेंगे। इसके साथ ही
विवाह सहित सभी मांगलिक
कार्य स्थगित हो जाएंगे और
नारायण-आराधना, सेवा, जप, दान और
संयम का एकमासीय अध्याय
प्रारंभ होगा। यह अवधि 14 जनवरी
2026 रात 9ः19 बजे समाप्त
होगी, जब सूर्य मकर
राशि में प्रवेश कर
मकर संक्रांति के साथ शुभता
का द्वार फिर खोलेंगे।
नारायण के तप का पावन समय
दान, सेवा और करुणा का मास
खरमास को दान मास
भी कहा गया है।
शास्त्र कहते हैं कि
इस काल में दान
का फल सामान्य दिनों
की तुलना में अनेक गुना
अधिक मिलता है। सबसे लोकप्रिय
दान : अन्न दान, वस्त्र
दान, गौ-सेवा, कन्या
भोज, तिल-गुड़ दान,
नारायण सेवा, ब्राह्मण भोजन, फल-फूल अर्पण.
दक्षिण भारत में इस
काल को दान-धर्म
का सबसे प्रभावी समय
माना जाता है।
लोक-जीवन और भारतीय संस्कृति की संवेदना
भारत के ग्रामीण
और लोक परिवेश में
खरमास का उत्सव अद्भुत
होता है। कई प्रदेशों
में इसे, ‘धनु माह’, ‘साहस
माह’, ‘खरमास व्रत’, ‘माल मास’, के
नाम से जाना जाता
है। इस दौरान, किसान
अपने खेतों की उर्वरता के
लिए सूर्य-पूजन करते हैं।
महिलाएं व्रत रखती हैं,
घर-परिवार की समृद्धि के
लिए जप करती हैं।
गंगा घाटों पर विशेष आरती
होती है। मंदिरों में
विशेष शयन-भोग और
मालिक-सेवा की व्यवस्था
होती है। वाराणसी, वृंदावन,
उज्जैन, पुरी, हरिद्वार और दक्षिण के
विष्णु मंदिरों में इस दौरान
विशेष अनुष्ठान होते हैं।
गंगातट पर आध्यात्मिक राग
वाराणसी में खरमास का
दृश्य अद्वितीय होता है। काशी
के घाटों पर साधना, जप
और स्नान बढ़ जाता है।
संकटमोचन मंदिर, श्रीकाशी विश्वनाथ धाम, अन्नपूर्णा मंदिर
और दुर्गाकुंड मंदिर में दान-पुण्य
की भीड़ रहती है।
कई भिक्षुओं और संन्यासियों के
लिए यह चातुर्मास के
समापन के बाद तप
का पुनः आरंभ माना
जाता है। कहते हैं
कि काशी में जो
तप खरमास में किया जाता
है, वह मनुष्य के
जीवन के दुष्कर्मों को
पिघला देता है।
मकर संक्रांति और उत्तरायण की शुभता
जब सूर्य 14 जनवरी
की रात धनु से
निकलकर मकर राशि में
प्रवेश करेंगे, उसी क्षण खरमास
का समापन होगा। सूर्य उत्तरायण होंगे, शुभता का नया द्वार
खुलेगा, विवाह, गृहप्रवेश, नवीन व्यापार प्रारंभ
होंगे, मकर संक्रांति का
पुण्यकाल पूरे दिन रहेगा,
तिल-गुड़, खिचड़ी, उड़द
दान से पुण्य-वृद्धि
मानी जाएगी. उत्तरायण को देवताओं का
दिन कहा गया है,
इसलिए यह काल शुभ
माना जाता है।
विवाह मुहूर्त की बहार : खरमास के बाद का शुभ समय
बनारसी पंचांग के अनुसार : फरवरी
: 4 से 26 तक शुभ तिथियों
की बहार, मार्च : 2 से 14 तक विवाह योग्य
तिथियां, मिथिला पंचांग के अनुसार : जनवरी
: 29, फरवरी : 5, 6, 8,
15, 19, 20, 22, 25, 26 मार्च
: 4, 9, 11, 13. यह संकेत है कि खरमास
के शांत और तप-पूर्ण माह के बाद
समाज एक बार फिर
सुख, आनंद और उत्सव
के रंगों में लौट आएगा।
विज्ञान और परंपरा : खरमास की गूढ़ संगति
आधुनिक विज्ञान भी यह स्वीकार
करता है कि सूर्य
की स्थितियां मौसम और ऊर्जा
पर प्रभाव डालती हैं। शीत ऋतु
में मानव शरीर की
उष्मा और रोग-प्रतिरोधक
क्षमता कमजोर रहती है। इस
समय भारी आयोजनों और
यात्राओं से बचना स्वास्थ्य
के लिए भी बेहतर
होता है। इसलिए खरमास
को केवल धार्मिक नियम
कहना उचित नहीं; यह
प्रकृति और मानव जीवन
की समरसता की वैज्ञानिक परंपरा
भी है।
तप का एकांत, ईश्वर की निकटता
खरमास केवल तिथियों का
क्रम नहीं; यह आत्मा की
यात्रा है, जहां शोर
थक जाता है और
मौन बोलने लगता है। भक्ति
का संवाद बढ़ता है मन
का कोलाहल दूर होता है.
संबंधों में धैर्य आता
है. कर्तव्य का भाव जागता
है. ईश्वर की ओर झुकाव
बढ़ता है. गोस्वामी तुलसीदास
ने लिखा है, “सूर्योदय
से पहले का अंधकार
सबसे गहरा होता है,
और उसी में ईश्वर
सबसे निकट होता है।”
खरमास वही काल है,
जहां मनुष्य अपने भीतर के
सूर्य को पुनः प्रज्वलित
करता है।
बदल रही हैं धारणाएं?
बदलते समय में कई
परिवार विवाह अथवा मांगलिक कार्यों
के लिए पंचांग की
अनदेखी करते हैं, परंतु
रोचक बात है कि
आज भी भारतीय समाज
का विशाल हिस्सा परंपरा के इस नियम
को मानता है। खरमास की
लोकप्रियता बढ़ने के कारण,
डिजिटल पंचांग, ऑनलाइन ज्योतिषीय सलाह, आधुनिक युवा वर्ग का
सांस्कृतिक लगाव, विवाह उद्योग का बढ़ता आकार,
इन सभी ने भी
इस पवित्र अवधारणा को आधुनिक संदर्भ
में अधिक प्रतिष्ठित बना
दिया है।
जीवन की गति को विराम का संस्कार
खरमास कोई प्रतिबंध नहीं,
यह जीवन को विराम
देने का संस्कार है।
जब संसार भाग रहा होता
है, तो यह मास
मनुष्य को ठहरकर देखने
की कला सिखाता है,
अपने भीतर, अपने परिवार में,
अपने ईश्वर में। 16 दिसंबर से शुरू हो
रहा यह काल हमारे
अंतर्मन को पुनर्जीवित करने
वाला एक सुंदर और
पवित्र अध्याय है। जब 14 जनवरी
की रात सूर्य मकर
में प्रवेश करेंगे, तब जीवन फिर
चहल-पहल से भर
उठेगा, परंतु उससे पहले यह
एक महीना हमें याद दिलाए
कि “शुभता केवल कार्यों में
नहीं, शुभता पहले मन में
जन्म लेती है।”





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