काशी में परंपरा बनाम विकास का बड़ा विवाद
सड़क पर अटकी रामलीला, ताजिया को मिली छूट
580 साल पुरानी लाटभैरव
रामलीला
फ्लाईओवर
बैरिकेडिंग
में
फंसी
मंचन का
हिस्सा
सड़क
पर,
आगे
निकलने
वाले
नक्कटैया
और
रामदल
जुलूस
से
मुहल्लेवाले
भी
चिंतित
विकास कार्यों
के
बीच
प्रशासन
पर
पक्षपात
का
आरोप
सुरेश गांधी
वाराणसी. बनारस में आस्था और विकास की टकराहट एक बार फिर सुर्खियों में है। या यूं कहे शहर में आस्था, परंपरा और विकास की टकराहट इस बार और गहरी हो गई है। लाटभैरव की 580 साल पुरानी रामलीला, जिसे काशी की सांस्कृतिक आत्मा कहा जाता है, बल्कि लगातार रामकथा का अमृत भी बरसा रही है. लेकिन इस बार निर्माणाधीन फ्लाईओवर की बैरिकेडिंग और संकरे मार्गों में फंस कर संकट में है। यही नहीं, लीला का एक बड़ा हिस्सा मजबूरन सड़क पर ही मंचित किया जा रहा है, जिससे न केवल श्रद्धालु बल्कि आसपास के मुहल्लेवासी भी परेशान हैं।
पारंपरिक मंचन स्थल तक
रास्ता बंद होने के
कारण इस बार रामलीला
का हिस्सा सड़क पर करना
पड़ रहा है। आयोजन
समिति के व्यास पंडित
दया शंकर त्रिपाठी कहते
हैं, “निर्माणाधीन ओवरब्रिज और बैरिकेडिंग के
कारण लीला का पारंपरिक
मार्ग पूरी तरह अवरुद्ध
है। सड़क पर मंचन
हमारी मजबूरी है, जबकि यह
भीड़ और सुरक्षा, दोनों
दृष्टि से जोखिम भरा
है।” आगे निकलने वाले
नक्कटैया और रामदल के
भव्य जुलूस से स्थानीय लोग
और भी चिंतित हैं।
तंग गलियों और निर्माण सामग्री
के ढेर के बीच
जुलूस के निकलने पर
हादसे का खतरा बढ़
रहा है। कई घरों
के लोग पहले ही
अपने दरवाजों के आगे अतिरिक्त
बैरिकेडिंग या लकड़ी के
सहारे लगाने को मजबूर हो
गए हैं।
दूसरों को छूट, रामलीला पर रोक
स्थानीय निवासियों का सबसे बड़ा
सवाल प्रशासन के दोहरे रवैये
पर है। मुहर्रम के
ताजिया जुलूस के लिए इसी
फ्लाईओवर की बैरिकेडिंग अस्थायी
तौर पर हटा दी
गई थी, लेकिन रामलीला
के लिए वैसी सुविधा
नहीं दी गई। “धर्मनिरपेक्षता
का मतलब बराबरी है,
पक्षपात नहीं,” आसपास के लोग कहते
हैं।
सदियों की धरोहर पर संकट
लाटभैरव की रामलीला 15वीं
शताब्दी से निर्बाध रूप
से चलती आ रही
है। यह केवल धार्मिक
आयोजन नहीं, बल्कि बनारस की साझा संस्कृति
और कला का अमिट
प्रतीक है। यहां श्रीराम,
लक्ष्मण और सीता की
झांकियों के साथ कथा
का मंचन काशी की
पहचान और सनातनी संस्कृति
का उत्सव है। हजारों श्रद्धालु
हर साल इस लीला
का इंतजार करते हैं। सड़क
पर मंचन और बाधित
मार्ग इस विरासत को
आहत करते हैं। वैकल्पिक
रास्ता न तो प्रशासन
ने सुझाया, न ही बैरिकेडिंग
हटाने की कोई पहल
हुई। सैकड़ों वर्षों की परंपरा को
यूं रोकना बेहद पीड़ादायक है।”
प्रशासन की कसौटी
काशी का गौरव
उसकी गंगा-जमुनी तहजीब
और संतुलन में है। विकास
कार्यों की आवश्यकता से
कोई इंकार नहीं, पर ऐसी परियोजनाओं
को धार्मिक आयोजनों के साथ समन्वय
में ही आगे बढ़ना
चाहिए। स्थानीय जन अपेक्षा कर
रहे हैं कि प्रशासन
तुरंत वैकल्पिक मार्ग, अतिरिक्त सुरक्षा और अस्थायी व्यवस्था
सुनिश्चित करे, ताकि नक्कोतैया
और रामदल जुलूस सहित संपूर्ण रामलीला
निर्विघ्न और सुरक्षित तरीके
से संपन्न हो सके। काशीवासियों
का कहना है “रामजी
को रास्ता दिखाने वाला नगर अपने
ही राम को सड़क
पर भटकने न दे, यही
हमारी संस्कृति का असली सम्मान
होगा।”
विकास कार्य बनाम आस्था
फ्लाईओवर निर्माण निश्चित रूप से शहर
की यातायात जरूरतों के लिए अहम
है, लेकिन सवाल उठता है
कि क्या विकास योजनाएं
परंपरा को कुचल कर
आगे बढ़ें? बनारस में हर धर्म
और पंथ के पर्व-त्योहार मिलजुल कर मनाए जाते
हैं। ऐसे में मुहर्रम
जुलूस के लिए बैरिकेडिंग
हटाने और रामलीला के
लिए नहीं हटाने पर
प्रशासन की नीयत पर
स्वाभाविक रूप से उंगली
उठ रही है। स्थानीय
नागरिकों का कहना है,
“हम विकास के खिलाफ नहीं
हैं, पर अपनी आस्था
की कीमत पर नहीं।
प्रशासन को सभी धार्मिक
आयोजनों के प्रति समान
दृष्टिकोण रखना चाहिए। यहां
तो ऐसा लगता है
जैसे सनातन परंपरा के प्रति उपेक्षा
हो रही है।”
नगर की साख दांव पर
काशी प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी का संसदीय क्षेत्र
है और गंगा-जमुनी
तहजीब का जीता-जागता
उदाहरण भी। यहां की
सांस्कृतिक धरोहर देश-दुनिया के
पर्यटकों को आकर्षित करती
है। यदि सदियों पुरानी
परंपराएं निर्माण कार्यों की भेंट चढ़ती
रहीं, तो शहर की
पहचान को गहरी चोट
पहुंचेगी।
प्रशासन से अपेक्षाएं
यह मामला महज
एक धार्मिक आयोजन का नहीं, बल्कि
काशी की अस्मिता और
संस्कृति का है। प्रशासन
को चाहिए कि वह विकास
और परंपरा के बीच संतुलन
साधते हुए तुरंत वैकल्पिक
मार्ग प्रदान करे या निर्माण
स्थल पर ऐसी व्यवस्था
बनाए कि रामलीला निर्विघ्न
संपन्न हो सके। क्योंकि
जिन श्रीराम ने मानवता को
धर्म, न्याय और संतुलन का
मार्ग दिखाया, उनकी लीला के
लिए अगर उनके ही
नगर में रास्ता बंद
हो, तो यह केवल
आस्था ही नहीं, समूचे
वाराणसी के गौरव का
प्रश्न है।


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