Sunday, 19 October 2025

स्वर्णिम आभा में डूबी काशी, आसमान में इंद्रधनुष, घर-आंगन में लक्ष्मी का वंदन

काशी बनी साक्षात्प्रकाशपुरी’, जहां हर दीप में झलकी आस्था की लौ

स्वर्णिम आभा में डूबी काशी, आसमान में इंद्रधनुष, घर-आंगन में लक्ष्मी का वंदन 

हर तरफ छाया रहा दीपों की अवली में आस्था का उजास, उल्लास का उत्सव

विश्वनाथ धाम से घाटों तक बिखरी रौशनी की लहर, मां अन्नपूर्णा ने दिया सुख-समृद्धि का वरदान

सज गया बनारस, निखर उठी भावनाओं की बुनावट

दीपावली सिर्फ रोशनी का नहीं, विचार और कृतज्ञता का भी पर्व है :

सुरेश गांधी

वाराणसी. संध्या का पहला तारा जैसे ही आसमान पर झिलमिलाया, काशी की धरती दीपों की स्वर्णिम लहरों में नहाने लगी। हर गली, हर घाट, हर आँगन से उठती दीयों की लौ मानो यह घोषणा कर रही थी, “अंधकार अब परास्त हुआ है, अब केवल प्रकाश का साम्राज्य है।नरक चतुर्दशी की इस अमावस पर जब चारों ओर उजाला फैला, तो लगा मानो स्वयं मां लक्ष्मी काशी की धरती पर उतर आई हों। धनतेरस की रौनक को पीछे छोड़ते हुए पूरा नगर श्रद्धा और उल्लास में डूबा रहा। घरों की देहरी पर दीपक झिलमिलाते रहे, आकाश में आतिशबाज़ी के फूल खिले, और गंगा की धार पर तैरते हजारों दीप मानो जीवन के अनंत प्रवाह का गीत गा रहे थे। 

दीपों में झिलमिलाया आस्था का आलोक

जैसे-जैसे रात गहराती गई, काशी की झिलमिलाहट और निखरती चली गई। बाबा विश्वनाथ का आंगन जब दीपों से आलोकित हुआ, तो वह दृश्य किसी अलौकिक स्वप्न से कम था। मंदिर की स्वर्णिम शिखरियों पर पड़ती दीयों की झिलमिलाहट ने उसे जैसे स्वयं ज्योतिर्लिंग का प्रतिरूप बना दिया। गंगा के घाटों पर दीपों की कतारें लहरों पर तैरती प्रतीत हुईं, कोई दीप किसी मणिकांचन पुष्प सा दमकता, तो कोई जल की लहरों से खेलता। गंगा पार की रेती पर भी श्रद्धालु परिवारों ने दीप जलाकर आस्था की वह अनन्त रेखा खींच दी, जो धरती से आकाश तक फैली दिखाई दे रही थी। हर घर में, हर प्रतिष्ठान में दीपों की पंक्तियां सजीं। सूने घरों के बाहर भी लोगों ने दीप प्रज्वलित किए, ताकि कोई कोना अंधकार में रहे। यही काशी का संस्कार है, जहाँ उजाला केवल रोशनी नहीं, बल्कि जीवन-दर्शन है।

उल्लास से गूंजा नगर, अमावस पर छाई ज्योति

बच्चों की हँसी, पटाखों की गूंज, मिठाइयों की खुशबू और सजावट की चमक ने इस रात को उत्सव की पराकाष्ठा तक पहुँचा दिया। मोहल्लों की गलियाँ भीड़ से भरी रहीं। लोगों के चेहरों पर दीयों की लौ झिलमिलाती रही और दिलों में एक अनकही प्रसन्नता तैरती रही। विदेशी पर्यटक भी इस, दृश्य को देखकर मुग्ध रह गए, कोई घाटों पर झुककर दीप जलाता, तो कोई कैमरे में इस अलौकिक क्षण को सहेजता नजर आया। शहर की गलियों में रंग-बिरंगी झालरें लहराती रहीं। युवाओं ने दीपों की पंक्तियों के बीच सेल्फियाँ लीं, बच्चों ने आतिशबाजी से आसमान को रंग दिया। सचमुच, इस रात का हर क्षण ऐसा था जैसे स्वयं वाराणसी किसी दिव्य कथा का अभिनय कर रही हो।

विश्वनाथ धाम में पूरे दिन छाया रहा उल्लास

इस बार दीपावली पर्व ने एक ऐतिहासिक क्षण देखा। श्री काशी विश्वनाथ धाम में पहली बार महालक्ष्मी और गणपति की शास्त्रीय पूजन परंपरा आरंभ की गई। शिवपुराण में वर्णित है कि ब्रह्मांड में ज्योति का उद्गम स्वयं महादेव के ज्योतिर्लिंग स्वरूप से हुआ था। उसी सनातन सिद्धांत के अनुरूप इस बार ज्योति पर्व का आयोजन धाम परिसर में भव्य दीप सज्जा और वैदिक विधान के साथ हुआ। मुख्य कार्यपालक अधिकारी विश्वभूषण मिश्र ने सपरिवार श्री सत्यनारायण मंदिर में महालक्ष्मी और गणपति की आराधना की। इस अनुष्ठान में सनातन समाज, राष्ट्र और समस्त मानवता की सुख-समृद्धि की कामना की गई। भगवान विश्वनाथ की षोडशोपचार आराधना और मां अन्नपूर्णा की विशेष पूजा के बाद भक्तों को प्रसाद वितरण किया गया। मंदिर परिसर का हर कोना दिव्यता से आलोकित था, और हर श्रद्धालु की आंखों में विश्वास की ज्योति झिलमिला रही थी।

प्रकाश और परंपरा का अनन्त संगम

काशी में दीप केवल मिट्टी का दीपक नहीं होता, वह संस्कृति की लौ है। यह लौ पीढ़ियों से जलती रही है, अंधकार से जूझने, असत्य से लड़ने और जीवन में सदैव उजाला फैलाने की प्रेरणा देती हुई। जब घाटों पर दीप तैरते हैं, तो लगता है जैसे हर एक दीप जीवन की किसी आशा का प्रतीक हो। कोई दीप किसी अधूरी इच्छा के साथ बहता है, तो कोई कृतज्ञता की भावना में लहरों के हवाले किया जाता है। यही काशी की आत्मा है, जो हर दीप में, हर लौ में, हर आहट में बसती है।

काशी बनी साक्षात्प्रकाशपुरी’, जहां हर दीप में झलकी आस्था की लौ

आकाश में चमकते पटाखों के फूल, धरती पर झिलमिलाते दीप, और गंगा की लहरों पर तैरते ज्योति-बिंदु, तीनों ने मिलकर ऐसा दृश्य रचा, जो केवल देखा नहीं, महसूस किया जा सकता था। हर घर की देहरी पर सजे वंदनवार, दरवाजों पर खिले कमल और प्रज्वलित दीपों की पंक्तियाँ, मानो स्वयं माँ लक्ष्मी का स्वागत कर रही थीं। इस उजास भरी रात में काशी केवल एक शहर नहीं रही, वहप्रकाश की नगरीबन गई। वह ज्योति जो बाबा विश्वनाथ के धाम से निकलकर हर हृदय तक पहुँची, हर आत्मा में आलोक भर गई। सच ही कहा गया हैजहाँ दीप जलता है, वहाँ अंधकार हारता है। और जहाँ काशी जगमगाती है, वहाँ सृष्टि मुस्कराती है।

धरती से गगन तक बिखरी श्रद्धा की झिलमिलाहट, खूब हुई खरीदारी 

विश्वनाथ धाम से लेकर गंगा पार तकः काशी ने अमावस की रात को दिया उजाले का अर्थकार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से आरंभ हुआ छः दिवसीय दीपोत्सव इस बार काशी में सचमुच अद्भुत दृश्य पेश कर रहा है। धनतेरस के बाद रविवार को भी सुबह से ही बाजारों में खरीदारी की ऐसी लहर उमड़ी कि हर गली और हर चौक उल्लास से भर गया। बरतन, आभूषण, वाहन, कपड़े, सजावट के सामान और इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएं, सबके दाम भले थोड़े बढ़े रहे पर ग्राहकों की रौनक ने हर कमी पूरी कर दी।  सोमवार को दीपावली पर काशी फिर एक बार स्वर्णाभ हो उठेगी। पुष्पमालाओं से सजे घर द्वारों पर मां लक्ष्मी के स्वागत की तैयारी पूरी है। शुभ मुहूर्त में मां लक्ष्मी का पूजन होगा और समृद्धि की कामना के साथ आकाश में रंगीन आतिशबाजी की छटा बिखरेगी। शाम ढलते ही जैसे ही शहर की बत्तियां जलीं, पूरा काशी एक जीवंत चित्र बन गया। पांडेयपुर, लहुराबीर, मदनपुरा, लंका से लेकर मैदागिन तक बाजार सतरंगी रोशनी से लिपटे नजर आए। कहीं तिरंगे रंगों की चमक तो कहीं गुलाबी-हरी थीम की झिलमिलाहट ने हर आगंतुक को थमा लिया। मंदिरों, घरों और प्रतिष्ठानों पर दीपों की पंक्तियाँ केवल प्रकाश नहीं, भावना का प्रतीक बनीं। काशी विश्वनाथ धाम, अन्नपूर्णा मंदिर और दुर्गा कुंड में दीपदान के दृश्य अलौकिक रहे। पर्यावरण-अनुकूल दीपों की मांग ने इस बार नई सजगता का संदेश भी दिया। खासकर महानगरों से आए डिजाइनों वाले पीतल और तांबे के बर्तन लोगों की पहली पसंद बने। बर्तन व्यापारी कर्माकर गुप्ता के शब्दों मेंअब संयुक्त परिवार छोटे हो गए हैं, इसलिए छोटे बर्तन बड़े चलन में हैं। हल्के वजन के नए सेट ही सबसे ज्यादा मांगे जा रहे हैं।

तमसो मा ज्योतिर्गमय, अंधकार से प्रकाश की ओर

दीपावली के दार्शनिक अर्थ को समझना भी आवश्यक है। प्राचीन ऋषियों ने कहा था, “द्वीप नारस्यते ध्यातं धनं रोमयं प्राछत्यया, कल्याणं भावति एव दीपः ज्योतिर्मयः।प्रकाश जीवन की ऊर्जा है, प्रेरणा है, आत्मसाक्षात्कार का मार्ग है। जब हम बाहरी दीपों के साथ भीतर भी चेतना का दीप जलाते हैं, तभी सच्ची दीपावली मनाते हैं। यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि उजाला सिर्फ़ घर नहीं, मन में भी होना चाहिए।

बाजारों में खूब बिके पटाखे

इस बार बाजारों मेंमोर पंख’, ‘झूमर ड्रोन’, ‘बटरफ्लाईऔरचुनमुन अनारजैसे नए पटाखे खूब पसंद किए जा रहे हैं। दामों में 20 प्रतिशत वृद्धि के बावजूद ग्राहकों का उत्साह कम नहीं। शहर के हर कोने से एक ही भाव उठ रहा है, “अंधकार मिटे, उजाला फैले, हर हृदय में दीप जले।

दीपों की पंक्ति में छिपा है जीवन का संदेश

दीपावली केवल त्योहार नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति का वैज्ञानिक सत्य भी है। जैसे अनेक दीप मिलकर एक प्रकाश कुंज बनाते हैं, वैसे ही मनुष्य की निरंतर साधना उसे उस परम चेतन से जोड़ देती है जो संपूर्ण ब्रह्मांड का संचालन कर रही है। और यही कारण है कि हर दीपावली पर काशी कहती है, “तमसो मा ज्योतिर्गमयहे प्रभु! हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो।

 

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