सिंदूरी प्रभा में झलका बजरंगबली का वैभव, नरक चतुर्दशी पर जलाए यम दीप
काशी में
पंचामृत
अभिषेक,
आकर्षक
झांकियों
और
जयकारों
से
गुंजायमान
रहे
हनुमान
मंदिर
सुरेश गांधी
वाराणसी। कार्तिक मास का कृष्ण पक्ष अपनी सांध्य बेला में जैसे ही चतुर्दशी पर पहुंचा, वैसे ही काशी की हवा भक्ति की सोंधी सुगंध से भर उठी। यह वही रात थी जिसे धर्मग्रंथों में हनुमान जन्मोत्सव और नरक चतुर्दशी दोनों के रूप में पूज्य माना गया है।
रविवार की यह पावन
रात्रि हनुमान भक्तों के लिए उत्सव
बन गई, संकटमोचन, महावीर
मंदिर अर्दलीबाजार, रोअनवा वीर बाबा, प्राचीन
हनुमान मंदिर पांडेपुर, सहित शहर के
सभी हनुमान मंदिरों में मध्यरात्रि तक
पंचामृत अभिषेक, सिंदूरी चोला धारण और
महा आरती का आयोजन
हुआ।
कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी का यह पर्व वास्तव में तीन भावों का संगम है, भक्ति में श्रद्धा, सौंदर्य में शुद्धता और दीपों में आशा। हनुमान जयंती के अवसर पर जहाँ सिंदूरी आभा ने भक्तिभाव को प्रज्ज्वलित किया, वहीं नरक चतुर्दशी ने यह संदेश दिया कि मनुष्य को अपने भीतर के अंधकार को भी उसी तरह जलाना चाहिए जैसे दीपक तमस को मिटाता है। काशी की गलियों में इस रात भक्ति, सौंदर्य और प्रकाश की यह त्रिवेणी बहती रही, हर घर से आती आरती की गूंज और दीपों की झिलमिलाहट यह बताती रही कि दिव्यता हमेशा अंधकार पर विजय पाती है।
पंचामृत अभिषेक और सिंदूरी शृंगार
मंदिरों के गर्भगृह में
आधी रात को “जय
हनुमान ज्ञान गुन सागर” के
स्वर गूंज उठे। बजरंगबली
का पंचामृत अभिषेक किया गया, दूध,
दही, घी, शहद और
शक्कर से स्नान कराकर
भक्तों ने उन्हें सिंदूरी
चोला पहनाया। नई पोशाकों से
सजे हनुमान मंदिरों में दीपों की
लौ टिमटिमा रही थी और
भक्तों की आंखों में
श्रद्धा की ज्योति। संकटमोचन
मंदिर में महंतजी के
सान्निध्य में सुंदरकांड का
अखंड पाठ हुआ, वहीं
पांडेपुर व भेलूपुर में
महिलाओं ने ‘जय बजरंगबली’
के जयकारों के बीच आरती
उतारी। रात्रि भर भक्तगण सुंदरकांड
और हनुमान चालीसा का पाठ करते
रहे।
झांकियों में झलकी रामभक्ति और पराक्रम की झलक
सिंहद्वारों से लेकर मंदिर
प्रांगण तक आकर्षक झांकियों
ने भक्तों का मन मोह
लिया। कहीं बाल हनुमान
की स्वर्णिम प्रतिमा, तो कहीं लंका
दहन का जीवंत चित्रण,
हर दृश्य में रामभक्ति और
पराक्रम का समावेश था।
मंदिरों में प्रसाद वितरण,
भोग आरती और भक्ति
संगीत का क्रम देर
रात तक चलता रहा।
नरक चतुर्दशी पर यम दीप का महत्व
इसी रात घर-आंगनों में ‘नरक चतुर्दशी’
का पर्व भी मनाया
गया। पौराणिक मान्यता है कि इस
दिन श्रीकृष्ण ने नरकासुर का
वध कर संसार को
भय और पाप से
मुक्त किया था। सुबह-सुबह लोगों ने
तिल तेल से स्नान
कर शरीर का अभ्यंग
किया, ताकि रोग और
पाप दोनों दूर रहें। शाम
को नगरवासियों ने घर के
द्वार पर ‘यम दीप’
जलाकर यमराज से दीर्घायु और
स्वास्थ्य की प्रार्थना की।
गलियों में दीपों की
कतारें सजीं, कूड़ा-कचरा हटाया
गया, ताकि जीवन से
नकारात्मकता भी उसी तरह
दूर हो जाए जैसे
कूड़ा दीपक की ज्योति
से जलकर नष्ट होता
है।
रूप चतुर्दशी और छोटी दिवाली की चमक
दिन में महिलाओं
ने रूप चतुर्दशी का
व्रत रखकर पारंपरिक श्रृंगार
किया। उन्होंने दीपक जलाए, आरती
उतारी और स्वर्ग सी
आभा में एक-दूसरे
को ‘सौंदर्य और सौभाग्य’ की
शुभकामनाएं दीं। बच्चों ने
फुलझड़ियां जलाकर छोटी दिवाली का
आनंद लिया। पूरा शहर रोशनी
और उल्लास से सराबोर रहा।



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