एक दीया बलिदानियों के नाम
दीपों की
उजास
में
झलकी
वीरता
और
बलिदान
की
अमर
गाथा
सुरेश गांधी
धनतेरस की संध्या थी।
गंगा के घाटों से
लेकर गलियों तक, हर ओर
दीपों की टिमटिमाती रौशनी
से काशी जगमगा रही
थी। ऐसा प्रतीत हो
रहा था मानो स्वयं
माँ अन्नपूर्णा ने अपने करकमलों
से इस नगरी को
स्वर्ण आभा से आच्छादित
कर दिया हो। लेकिन
इसी चकाचौंध के बीच, पुलिस
लाइन्स का विस्तृत मैदान
उस शाम कुछ और
ही कह रहा था
वह केवल दीपों से
नहीं, बल्कि स्मृतियों और श्रद्धा से
आलोकित था।
वह दृश्य किसी मंदिर, तीर्थ या तपोभूमि से कम नहीं था। यहाँ दीप केवल जल नहीं रहे थे, वे बोल रहे थे, बलिदान की भाषा में, कर्तव्य की व्याख्या में, और राष्ट्रप्रेम की मौन गाथा में। दैनिक जागरण परिवार द्वारा आयोजित यह विशिष्ट कार्यक्रम “एक दीया बलिदानियों के नाम” केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि एक भावयात्रा थी—उन सपूतों की स्मृति की ओर जिन्होंने अपनी प्राणज्योति मातृभूमि की रक्षा में अर्पित कर दी।
दीपों के बीच उमड़ा राष्ट्रभाव
कार्यक्रम का शुभारंभ स्टाम्प
शुल्क एवं पंजीयन राज्य
मंत्री रवीन्द्र जायसवाल और आयुष मंत्री
डॉ. दयाशंकर मिश्र ‘दयालु’ ने दीप प्रज्वलन
से किया। दोनों मंत्रियों ने शहीदों की
तस्वीरों के समक्ष सिर
झुकाते हुए कहा “दीपावली
की सच्ची उजास तभी है,
जब हमारे भीतर कृतज्ञता की
लौ प्रज्वलित हो। हर दीप
जो आज जल रहा
है, वह किसी शहीद
की याद में, किसी
वीर माँ के गर्व
में, किसी विधवा के
मौन आँसुओं में टिमटिमा रहा
है।”
मंत्री दयाशंकर मिश्र ‘दयालु’ ने अपने संबोधन
में कहा, “शहीदों की आत्मा तभी
संतुष्ट होती है जब
हम उनके बलिदान को
जीवन का संस्कार बना
लें। दीपावली पर केवल घरों
को नहीं, बल्कि मन को भी
उजाला चाहिए—राष्ट्र के प्रति समर्पण
के उजाले से।”
शौर्य का उजास, अनुशासन का प्रतीक
पुलिस कमिश्नर मोहित अग्रवाल और उनकी टीम ने इस आयोजन को जिस शांति, अनुशासन और भव्यता के साथ संपन्न कराया, वह स्वयं में मिसाल थी। अपने प्रेरक संबोधन में उन्होंने आजादी की पहली लड़ाई से लेकर कारगिल के रणक्षेत्र तक फैली वीरता की गाथाओं को स्मरण करते हुए कहा “हर पीढ़ी में ऐसे सपूत जन्म लेते हैं जो अपने प्राण देकर भी देश की मिट्टी को अमर कर जाते हैं।
आज यह दीपोत्सव उनकी आत्मा के साथ संवाद का क्षण है।” उनके शब्दों के साथ जब सुरों में ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ और ‘वतन पर जो फिदा हो गए’ जैसे गीत गूंजे, तो मैदान की हवा में करुणा और गर्व का ऐसा संगम हुआ कि अनेक आँखें नम हो उठीं।प्रत्येक दीप में एक कहानी
उस शाम जब
एक साथ 1.51 लाख दीप प्रज्वलित
हुए, तो लगा मानो
आकाश झुककर धरती को प्रणाम
कर रहा हो। हर
लौ में किसी शहीद
का चेहरा उभर आया— कहीं
बर्फीली चौकी पर खड़ा
प्रहरी, कहीं नक्सली क्षेत्र
में डटा जवान, कहीं
ड्यूटी पर शहीद हुआ
एक सिपाही। हर दीप जैसे यह
कह रहा था— “हम
बुझाए नहीं गए, हम
तो उजास बनकर हर
दीपावली में लौट आते
हैं।” मैदान में खड़े शहीदों
के परिजन मौन थे, पर
उनके भीतर गर्व की
एक अग्नि जल रही थी।
मातृभूमि की सेवा में
अपने बेटे या पति
को खो देने का
दर्द भले असहनीय था,
लेकिन उस क्षण उन्होंने
महसूस किया कि उनका
बलिदान व्यर्थ नहीं गया—पूरा
राष्ट्र आज उनके साथ
दीप जला रहा है।
काशी की आत्मा में गूँजता शौर्य
दीपों की लहरों से
जब पुलिस लाइन का हर
कोना आलोकित हुआ, तो वह
केवल एक आयोजन नहीं
रहा—वह बन गया
काशी का नया इतिहास।
गंगा के तट से उठती
हवाओं ने मानो संदेश
दिया— “बलिदान का उजाला कभी
नहीं बुझता। वह हर दीप,
हर युग में जलता
है।” ‘एक दीया बलिदानियों
के नाम’ में वाराणसी
के सभी वर्गों की
भागीदारी ने यह भी
दिखा दिया कि यह
शहर केवल धर्म की
राजधानी नहीं, बल्कि राष्ट्रभाव की भी राजधानी
है। पुलिस लाइन मैदान सचमुच
उस शाम लघु भारत
बन गया—जहाँ हिंदू,
मुस्लिम, सिख, ईसाई—सभी
हाथों में एक ही
दीप थामे खड़े थे।
गौरवमयी उपस्थिति और जनश्रद्धा
कार्यक्रम में महापौर अशोक कुमार तिवारी, एमएलसी धर्मेंद्र राय, पद्मभूषण पं. देवी प्रसाद द्विवेदी, पद्मश्री डॉ. राजेश्वर आचार्य, पद्मश्री डॉ. रजनीकांत, पद्मश्री पं. शिवनाथ मिश्र, वाराणसी व्यापार मंडल के अध्यक्ष अजीत सिंह बग्गा. आईआईए के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष आर.के. चौधरी, अग्रवाल समाज के सभापति संतोष अग्रवाल, पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी एवं हजारों नागरिक उपस्थित रहे। हर किसी की आँखों में गर्व था, और होंठों पर एक ही संदेश—
“जय हिंद! दीपावली
की
सच्ची
रोशनी
इन्हीं
के
नाम।”
राष्ट्र की असली रोशनी
कार्यक्रम के समापन पर
दैनिक जागरण के संपादक संजय
मिश्र ने कहा— “राष्ट्र
की असली रोशनी बिजली
से नहीं, बलिदान और कर्तव्य की
ज्योति से होती है।
जब तक हमारे दीप
शहीदों की स्मृति में
जलते रहेंगे, तब तक यह
राष्ट्र अंधकार में नहीं डूब
सकता।” जैसे ही अंतिम
दीया प्रज्वलित हुआ, वाराणसी की
हवा में एक मौन
अनुभूति तैर गई। दीपों
की उस उजास में
शौर्य की छाया थी,
समर्पण की सुवास थी
और भीतर कहीं एक
संवाद गूँज रहा था—
“तुम्हारे बलिदान से ही हमारी
दीपावली पूर्ण है।”
सचमुच,
उस रात काशी ने
केवल दीप नहीं जलाए,
बल्कि
इतिहास के पन्नों पर
लिखा—
एक
दीया… हर उस शहीद
के नाम,
जिसकी
रोशनी से आज भी
भारत उजाला है।



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