Tuesday, 2 December 2025

काशी तमिल संगमम् 4.0 : संस्कृति के संगम में सियासत की नई धारा

काशी तमिल संगमम् 4.0 : संस्कृति के संगम में सियासत की नई धारा

गंगा किनारे बसे काशी में जब नमो घाट पर तमिलनाडु के नादस्वर की धुन और बनारस घराने की तान एक साथ गूंजी, तो यह केवल एक सांस्कृतिक आयोजन का दृश्य नहीं था, यह भारत की हजारों वर्षों पुरानी आत्मा का पुनर्जागरण था। काशी तमिल संगमम् 4.0 ने उत्तर और दक्षिण के बीच सांस्कृतिक दूरी को मिटाते हुए यह साबित किया कि भारतीयता किसी भूगोल की देन नहीं, बल्कि साझा परंपराओं का अनंत प्रवाह है। इस बार का संगमम् सिर्फ आध्यात्मिक संवाद नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सांस्कृतिक - राजनीतिक रणनीति का भी अहम पड़ाव माना जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की काशी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सांस्कृतिक पुनर्जागरण नीति के संयुक्त प्रभाव ने इस आयोजन को केवल पर्यटन या कला का मंच नहीं रहने दिया, बल्कि इसेएक भारत - श्रेष्ठ भारतकी जीवंत प्रयोगशाला बना दिया है। तमिलनाडु से आए हजारों प्रतिनिधियों ने काशी में जिस अपनत्व और आध्यात्मिक एकात्मता को महसूस किया, वह भाजपा के लिए दक्षिण भारत में सांस्कृतिक आधार तैयार करने का अवसर भी बन गया है। काशी से उठी यह सांस्कृतिक धारा अब राजनीतिक भूगोल भी बदलने की क्षमता रखती है

                सुरेश गांधी

वाराणसी की दिसंबर की ठंड में गंगा किनारे के अस्सी, दशाश्वमेध, केदार और पंचगंगा घाटों पर एक अनोखी गर्माहट तैरती दिखाई देती है। यह गर्माहट बस सर्दी को मात देने वाली धूप की नहीं, बल्कि उन हजारों तमिल भाइयों-बहनों की थी, जो दूर दक्षिण से उमंग और उत्साह का संदेश लेकर काशी पहुंचे थे। नादस्वरम की गूँज और शहनाई की सुर-लहरियाँ आपस में गुथकर एक ऐसा संगीत रचतीं, जिसे देखकर लगता है, मानो स्वयं भारत अपने दोनों पंखों को फैलाकर उड़ने को तैयार हो। काशी तमिल संगमम् 4.0 केवल एक सांस्कृतिक महोत्सव नहीं; यह एक भावनात्मक पुनर्संपर्क, ऐतिहासिक पुनरुत्थान, राजनीतिक संदेश और सामाजिक समरसता का विराट अभियान है। इस बार का संस्करण कई मायनों में पहले से कहीं अधिक व्यापक, प्रभावी और दूरगामी है। यह आयोजन बताता है कि जब वाराणसी और तमिल सभ्यता जैसी दो प्राचीन नदियाँ मिलती हैं, तो भारत की आत्मा किस तरह नए सिरे से जाग उठती है।मतलब साफ है वाराणसी, जिसे बाबा विश्वनाथ की नगरी कहा जाता है, इन दिनों सिर्फ धर्म और अध्यात्म का केंद्र नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सांस्कृतिक कूटनीति का सबसे बड़ा प्रयोगशाला बन गया है। 

काशी तमिल संगमम् 4.0 का भव्य शुभारंभ नमो घाट पर उस समय हुआ, जब गंगा के किनारे शंख-ध्वनि, तिरुपुर के नादस्वर, बनारस घराने की तानें, तमिलनाडु के लोकनृत्य और पूर्वांचल-अवध की परंपराएं एक ही फ्रेम में सजी दिखाई दीं। लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती... यह आयोजन केवल संस्कृति नहीं है। यह राजनीतिक प्रतीकवाद भी है। यह भाजपा की दक्षिण विस्तार रणनीति का केंद्रीय स्तंभ भी है। यह मोदी योगी मॉडल का एक संयुक्त सांस्कृतिक परीक्षण भी है। और यह उत्तर - दक्षिण की वैचारिक दूरी को पाटने का एक योजनाबद्ध सांस्कृतिक सेतु भी है। काशी तमिल संगमम् ऐसे समय में आयोजित हो रहा है, जब केंद्र सरकार दक्षिण भारत, विशेषतः तमिलनाडु में अपने राजनीतिक विस्तार की सबसे बड़ी चुनौती से जूझ रही है। ऐसे में काशी का यह मंच भाजपा के लिए सिर्फ सांस्कृतिक आयोजन नहीं, बल्कि सियासत का सौम्य चेहरा, कनेक्टिव पॉलिटिक्स, सॉफ्ट हिंदुत्व और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का संयोजन बनकर सामने आता है।

हमें यह भूलना नहीं चाहिए कि तमिल सभ्यता और काशी के संबंध किसी आधुनिक सरकारी कार्यक्रम की देन नहीं, बल्कि हजारों वर्षों की तीर्थ परंपरा और दार्शनिक यात्राओं की विरासत हैं। तमिल संतों, थिरुवल्लुवर, महाकवि सुब्रह्मण्य भारती, अय्यर, अय्यंगार के लेखन में काशी कोकासीके रूप में मोक्षपुरी कहा गया है। तमिलनाडु के विशाल समुदाय ने काशी को अपना आत्मिक तीर्थ माना है। तिरुग्यान संबंदर, सुंदर मूर्ति नायनार और मणिक्कवाचकर, सभी ने काशी आने और यहां तप करने का वर्णन अपने ग्रंथों में किया है। तमिल संत परंपरा का प्रभाव काशी में अद्वैत वेदांत के उदय तक दिखाई देता है। आदिशंकराचार्य स्वयं काशी में दीक्षा और शैव-संवाद का अनुभव लेकर दक्षिण लौटे थे। मध्यकाल में तमिल व्यापारी और साधक काशी में टिकते थे, यहाँ से संस्कृत ज्ञान लेकर अपने प्रदेश में ले जाते थे। तमिल भाषा में काशी की महिमा पर अनेक श्रेष्ठ रचनाएँ मिलती हैं। आज का केटीएस उसी हजारों वर्षों की निरंतर नदी को आधुनिक पुल दे रहा है, यही इसकी वास्तविक गहराई है। ऐेसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा आरंभ किया गयाकाशी - तमिल संगमम्सिर्फ सांस्कृतिक उत्सव भर नहीं, बल्कि इतिहास के पन्नों से उठाया गया एक जीवंत संवाद है।

इस संवाद की चार बड़ी परतें : 1. आध्यात्मिक स्मृति : दो प्राचीन सभ्यताओं का मस्तिष्कीय जुड़ाव, 2. सांस्कृतिक धरोहर : नृत्य, संगीत, ग्रंथ, परंपराए, 3. ज्ञान परंपरा : शैक्षिक संस्थानों का आदान - प्रदान, 4. राष्ट्रीय - सांस्कृतिक पुनर्स्थापना : एक भारत - श्रेष्ठ भारतका ज़मीनी मॉडल. नमो घाट पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उद्घाटन भाषण में काशी की सार्वभौमिकता को रेखांकित करते हुए कहा, “काशी वह नगरी है जो कभी तमिलों के लिए अपरिचित नहीं रही। काशी और तमिलनाडु एक दूसरे की संस्कृति को सदियों से पोषित करते रहे हैं।योगी का यह बयान केवल सांस्कृतिक नहीं था। दरअसल, योगी सरकार उत्तर भारतीय विमर्श को दक्षिण भारत से जोड़ने का राजनीतिक सेतु बन रही है। संगमम् के माध्यम से योगी एक ओर काशी को राष्ट्रीय सांस्कृतिक राजधानी बनाने में लगे हैं, तो दूसरी ओर भाजपा दक्षिण भारत, विशेषकर तमिलनाडु में अपनी जड़ें मजबूत करने की ज़मीन तैयार कर रही है।

जब गंगा के तट पर तमिल कलाकारों नेथिरुकुरलकी पंक्तियों पर नृत्य किया और साथ ही बनारस के कलाकारों ने हर हर महादेव का घोष किया, तो यह दृश्य सिर्फ सांस्कृतिक नहीं था, यह सांस्कृतिक - राजनीतिक एकीकृत फ्रेम था। नमो घाट का दृश्य कुछ ऐसा था, अस्सी से लेकर दशाश्वमेध तक सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद, घाटों पर तमिल भाषा में स्वागत बैनर, पतित पावनी गंगा पर तिरुप्परंगुनर के स्तोत्रों की गूंज, बनारसी और तमिल व्यंजनों की संयुक्त झांकी, तमिल - ब्रह्मण परिवारों के समूह, काशीवासी पंडितों से संवाद, स्कूली बच्चों की सांस्कृतिक झांकियां, आईआईटी बीएचयू छात्रों द्वारा तकनीकी, सांस्कृतिक प्रेजेंटेशन, यह दृश्य दर्शाता है कि संगमम् अब केवल एक सरकारी आयोजन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सांस्कृतिक संस्मरण बन चुका है। तमिलनाडु में भाजपा अभी भी शहरी सीमाओं में सिमटी है। इस बार का आयोजन गति, दायरे और संदेश, तीनों ही स्तरों पर पहले से कहीं अधिक परिपक्व और प्रभावी है।

 1. “तमिल सीखें : तमील करपोम का राष्ट्रीय विस्तार : इस बार आयोजन का मुख्य केंद्र भाषा-आदान प्रदान है। आईआईटी बीएचयू, आईआईटी मद्रास और बीएचयू मिलकर उत्तर भारत में तमिल सीखने के नए कार्यक्रम शुरू कर रहे हैं। सांस्कृतिक प्रदर्शनी के जरिए देसी तमिल और काशी की नृसंसृति का मेल, नादस्वरम - तविल की संगति, भरतनाट्यम के मंचन, तमिल हस्तशिल्प की प्रदर्शनी, संगम साहित्य पर विचार गोष्ठियां, काशी ने पहली बार तमिल कला का ऐसा जीवंत रूप देखा। ऐसे में सांस्कृतिक आयोजनों के माध्यम से लोगों के दिलों में प्रवेश की रणनीति भाजपा की दीर्घकालिक योजना का हिस्सा है। इस आयोजन से भाजपा को पाँच बड़े लाभ :

1. तमिल हिन्दू भावनाओं में कनेक्टिव प्लग-इन : तमिल समुदाय धार्मिक - सांस्कृतिक आधार पर काशी से जुड़ाव महसूस करता है। यह जुड़ाव भाजपा को तमिलनाडु में ेसाफ्ट कलचरल इंट्री प्वाइंट देता है। 

2. द्रविड़ राजनीति के विरोधाभासों को चुनौती : द्रविड़ दल अक्सर उत्तर भारत और हिंदी - हिंदू प्रतीकवाद के प्रति नकारात्मक रवैया रखते हैं। संगमम् इस मिथक को तोड़ता है कि उत्तर भारतीय संस्कृति तमिल संस्कृति परथोपरही है।

 3. मोदी की दक्षिण स्वीकृति में वृद्धि : प्रधानमंत्री हमेशा से दक्षिण भारतीय भाषाओं और परंपराओं का सम्मान दिखाते रहे हैं। यह आयोजन उनकीराष्ट्रीय सांस्कृतिक नेतृत्वकी छवि को और मजबूत करता है। 

4. शिक्षा और अनुसंधान में उत्तर - दक्षिण एकता : आईआईटी मद्रास, आईआईटी बीएचयू, बीएचयू संस्कृत संकाय, अन्नामलाई विश्वविद्यालय, इन सभी के बीच नया शैक्षिक नेटवर्क भाजपा केज्ञान आधारित राष्ट्रवादको बढ़ावा देता है।

5. 2026 तमिलनाडु विधानसभा चुनाव और 2029 लोकसभा चुनाव की पृष्ठभूमि निर्माण : भाजपा दक्षिण में अपनी जड़ें मजबूत करने के लिए सांस्कृतिकदृसामुदायिक आधार तैयार कर रही है। काशी तमिल संगमम् इसका प्रभावी उपकरण साबित हो रहा है।

भारत की सबसे बड़ी चुनौती सांस्कृतिक बहुलता में एकता को बनाए रखना है। देश में अक्सर उत्तर बनाम दक्षिण की बहसें उठती रही हैं। भाषा, राजनीति, संस्कृति, हर स्तर पर टकराव की एक रेखा खिंचती रही है। लेकिन काशी तमिल संगमम् इस रेखा को मिटाकर संस्कृतियों के सह-अस्तित्व का जीवंत मॉडल बनाता है। एकता के छह प्रमुख स्तंभ : 1. भाषाई सम्मान : हिंदी - तमिल द्वैध के बीच सांस्कृतिक संवाद। 2. धार्मिक एकता : काशी विश्वनाथ से लेकर रामेश्वरम तक की दिव्य सांस्कृतिक श्रृंखला। 3. शिक्षण - अनुसंधान सेतु आईआईटी बीएचयू, बीएचयू, आईआईएम राज्य विश्वविद्यालयों द्वारा संयुक्त कार्यक्रम। 4. परिवारिक और सामाजिक जुड़ाव : तमिल परिवारों का काशी में स्वागत, विवाह, पर्यटन मॉडल। 5. पर्यटन और अर्थव्यवस्था : धर्म - पर्यटन कोराष्ट्रीय पर्यटन मॉडलबनाना। 6. सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की नई परिभाषा : भारतीयता को महिलाओं, युवाओं और आर्टिज़न समुदायों से जोड़ना। पिछले तीन संगमम् की तुलना में 4.0 की प्रभावशीलता अधिक मानी जा रही है। मुख्य उपलब्धियाँ : तमिलनाडु के 2100 से अधिक प्रतिनिधि काशी पहुंचेंगे. 200 से ज़्यादा सांस्कृतिक कार्यक्रम, शिक्षा, कला, अध्यात्म पर 48 विशेष सत्र, आईआईटी और बीएचयू के संयुक्त रिसर्च एमओयू, पर्यटन में अनुमानित 30 से 35 फीसदी वृद्धि, बनारस के हस्तशिल्प की करोड़ों की बिक्री. ये आंकड़े साबित करते हैं कि यह आयोजन केवल सांस्कृतिक नहीं, बल्कि आर्थिक - सामाजिक उत्थान का भी सेतु बन चुका है।

प्रधानमंत्री मोदी कीकाशी मॉडलऔर मुख्यमंत्री योगी कीधार्मिक - सांस्कृतिक पुनर्जागरण नीतिअब मिलकर काशी को राष्ट्रीय सांस्कृतिक राजधानी बना रही है। श्रीकाशी विश्वनाथ धाम, नमो घाट, गलियों का पुनर्स्थापन, हेरिटेज वॉक, स्मार्ट सिटी, गंगा फ्रंट, ये सब मिलकर काशी को 21वीं सदी की सांस्कृतिक धुरी बना रहे हैं। काशी तमिल संगमम् इसी धुरी का सबसे चमकीला आयोजन है। यह अलग बात है कि कुछ विपक्षी दल इसे भाजपा का सांस्कृतिक राजनीतिकरण बताते हैं। कुछ इसेराजनीतिक तमाशाकहते हैं। लेकिन यह आलोचना इसलिए कमजोर पड़ जाती है क्योंकि : तमिल समाज स्वयं इसे स्वीकार कर रहा है. आयोजन में कला, शिक्षा, अध्यात्म, पर्यटन, सबका प्रतिनिधित्व है. यह आयोजन गैर, राजनीतिक समुदायों पर आधारित है. वैसे भी काशी और तमिलनाडु का रिश्ता ऐतिहासिक है, नया नहीं. इसलिए आलोचना प्रभावी राजनीतिक विमर्श नहीं बन पा रही। मतलब साफ है काशी तमिल संगमम् 4.0 ने यह साबित किया है कि यदि राजनीतिक इच्छाशक्ति हो, तो संस्कृति किसी भी दूरी को पाट सकती है। यह आयोजन सिर्फ उत्तर और दक्षिण के बीच पुल नहीं बना रहा, बल्कि सांस्कृतिक आत्मविश्वास और राष्ट्रीय एकता का नया अध्याय भी लिख रहा है। गंगा के किनारे खड़े होकर जब तमिल मेहमानों ने कहा, “कासी हमारी भी है”, तो यह वाक्य किसी सांस्कृतिक संवाद का हिस्सा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय भावनाओं का घोष था।

काशी तमिल संगमम् 4.0 के साथ भारत एक बार फिर उसी दिशा में बढ़ रहा है, जहाँ संस्कृति राजनीति से ऊपर होती है, और संस्कृति ही राजनीति को मार्ग दिखाती है। तमिल प्रतिनिधियों ने कहा, “हमें यहाँ भाषा की नहीं, अपनत्व की जरूरत थी। काशी ने वह दिया।उत्तर भारतीयों ने कहा, “तमिल संस्कृति हमारे लिए अनजानी नहीं रही, लेकिन अब दिलों का रिश्ता बन गया।कई तमिल विद्यार्थियों ने कबूला कि उन्हें लगता था कि उत्तर भारत उनकी भाषा को सम्मान नहीं देता। लेकिन काशी के लोगों का स्वागत देख उनका दृष्टिकोण बदला। यह परिवर्तन किसी सरकारी आदेश से नहीं, बल्कि जन-भावनाओं से आया। कावेरि और गंगा दोनों केवल नदियाँ नहीं, बल्कि भारतीय चेतना की धमनियाँ हैं। जब दोनों का जल एक साथ आचमन में उठता है, तो केवल भौगोलिक दूरी ही नहीं, मानसिक दूरी भी मिटती है। कहा जा सकता है यह आयोजन भारत को याद दिलाता है कि विविधता हमारी शक्ति है, भाषाएँ हमारी धरोहर हैं, संस्कृतियाँ हमारी आत्मा हैं, इनसे मिलकर ही भारत वह बनता है, जिसे दुनियाआध्यात्मिक शक्तिकहती है। यह आयोजन एक संदेश देता है, तमिल और हिंदी केवल भाषाएँ नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता के दो सशक्त स्तंभ हैं। देश में सांस्कृतिक संवाद ही राजनीतिक मतभेदों को पिघलाने की असली ताकत रखता है। भारतीयता की परिभाषा किसी एक भाषा या भूखंड से नहीं, बल्कि सभी क्षेत्रों की भागीदारी से आकार लेती है। काशी और तमिलनाडु का यह संगम, भारतीय सभ्यता को आने वाले दशकों तक दिशा देगा।

 

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