Wednesday, 3 December 2025

तमिल हो या काशी... हमारी संस्कृति एक ही धागे में पिरोई हुई है : पहले सत्र में गूंजा वक्तव्य

विविधता हमारी शक्ति है, भारतीयता हमारी पहचान” बीएचयू में संगमम् का संदेश

तमिल हो या काशी... हमारी संस्कृति एक ही धागे में पिरोई हुई है : पहले सत्र में गूंजा वक्तव्य 

एक भारत, श्रेष्ठ भारत कोई नारा नहीं, हमारी सभ्यतागत सच्चाई है : अमीश त्रिपाठी

भारती ने हमें सिखाया, डर नहीं... सिर्फ एकता का मार्ग चुनना है : महाकवि पर प्रेरक विचार

उत्तर और दक्षिण की दूरियाँ संवाद से नहीं, समझ से मिटती हैं : कुलपति प्रो. चतुर्वेदी

बीएचयू के पहले अकादमिक सत्र में महाकवि भरतियार की विरासत, सांस्कृतिक समानताओं और ज्ञान, परंपराओं की अखिल भारतीय एकता पर गूंजे स्वर

काशी तमिल संगमम के अंतर्गत केन्द्रीय ग्रंथालय में दुर्लभ तमिल पुस्तकों और साहित्य की विशेष प्रदर्शनी का उद्घाटन

सुरेश गांधी

वाराणसी. काशी तमिल संगमम् 4.0 ने बुधवार को काशी हिंदू विश्वविद्यालय में अपने पहले अकादमिक सत्र के साथ एक बार फिर उत्तर - दक्षिण की सांस्कृतिक सेतु - भूमि को जीवंत कर दिया। पं. ओंकारनाथ ठाकुर सभागार मेंतमिल कल्पना में काशी : महाकवि सुब्रमण्य भारती और उनकी विरासतविषय पर केंद्रित यह सत्र केवल एक शैक्षिक विमर्श नहीं था, बल्कि उस व्यापक भारतीय सभ्यता का आईना था, जिसमें विविधता और समानताएं मिलकर एकता का अनोखा रूप गढ़ती हैं।

मुख्य अतिथि लेखक एवं राजनयिक अमीश त्रिपाठी ने अपने संबोधन की शुरुआतमैं मां तमिल को नमन करता हूँकहकर की, और तत्काल पूरा सभागार भारतीयता की उस अनंत गूंज से भर उठा, जिसकी जड़ें तमिलनाडु से काशी तक फैली हैं। उन्होंनेवनक्कमऔरवंदेकी भाषायी समानता को रेखांकित करते हुए बताया कि भारतीय संस्कृति का वास्तविक सौंदर्य इसी भाषिक - धार्मिक विविधता के भीतर छिपी एकता में है। उनके वक्तव्य में वह गहरी संवेदना थी जो बताती है कि सभ्यतागत संवाद केवल सरकारों का कार्यक्रम नहीं, बल्कि जनता, जनार्दन की आत्मा में धड़कता एक भाव है। 

एनसीईआरटी के प्रो. आर. मेगनाथन ने महाकवि सुब्रमण्य भारती के जीवन और साहित्य में निहित राष्ट्रीय चेतना को अत्यंत प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया। भारती काअचमिल्लै, अचमिल्लैकेवल एक कविता नहीं, बल्कि साहस, करुणा और राष्ट्रभक्ति का घोष है। उन्होंने बताया कि भारती की लेखनी ने जाति, भाषा और भूगोल की सीमाओं से ऊपर उठकर भारत को एक अखंड सांस्कृतिक इकाई के रूप में स्थापित किया। तमिल सीखने को प्रोत्साहित करती केटीएस की थीमतमिल कर्कलामका उल्लेख कर उन्होंने शिक्षा जगत में भाषाई विनिमय को समय की जरूरत बताया।

बीएचयू के कुलपति प्रो. अजित कुमार चतुर्वेदी ने इस संगमम् को उत्तर - दक्षिण संवाद काजीवंत मंचबताते हुए कहा कि भारतीय पहचान विविधताओं के बीच समानताओं को पहचानने से और मजबूत होती है। रियलदृटाइम एआई अनुवाद उपकरणशब्दके प्रयोग का उल्लेख कर उन्होंने यह भी संकेत दिया कि सांस्कृतिक संवाद अब तकनीक के नए युग में प्रवेश कर चुका है, जहाँ भाषाई दूरी अब कोई बाधा नहीं रही। कला संकाय, भारत कला भवन और आईआईटी - बीएचयू में प्रतिनिधिमंडल का भ्रमण इस बात का प्रमाण था कि काशी तमिल संगमम् केवल विचार - विमर्श तक सीमित नहीं, बल्कि भारतीय कला, तकनीक और नवाचार की विविध परंपराओं से भी परिचय कराता है। तमिल छात्रों द्वारा भरतियार पर साझा किए गए संस्मरणों ने यह उजागर किया कि काशी ने इस महान कवि के चिंतन को किस प्रकार आकार दिया।

दरअसल, केटीएस 4.0 का यह सत्र आधुनिक भारत के उस सपने को साकार करता है जिसमें काशी रामेश्वरम से मिलती है, भरतियार महामना से संवाद करते हैं, और भारत एक ऐसे सांस्कृतिक पुल पर खड़ा दिखाई देता है जहाँ भाषा, लिपि, रंग, बोली सबके बावजूद भारतीयता का साझा संगीत गूंजता है। काशी तमिल संगमम् इसीलिए केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि भारत के हृदय में सदियों से धड़कती एकता - सूत्र की पुनर्पुष्टि है।

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