Thursday, 22 February 2018

इन्वेस्टर्स समिट के सहारे 2019 जीतने की रणनीति

इन्वेस्टर्स समिट के सहारे 2019 जीतने की रणनीति
दरअसल, विकास कीगंगाबहाने का ख्वाब संजोए सरकार के सामने अब भी विकास का गला तर करने की ही चुनौती बनी हुई है। यही वजह है कि लोकसभा चुनाव की आहट के बाद सरकार ने वादों से ज्यादा बुनियादी जरूरतों पर फोकस कर रही है। इन्वेस्टर्स समिट में मोदी ने जिस अंदाज में अपनी बात रखी और योगी के कामकाजों की सराहना की, उसके तार 2019 के सियासी फलक से जुड़ने लगे हैं। सरकार रोजगार के साथ-साथ अयोध्या, मथुरा, काशी से लेकर गाय गोरक्ष तक को प्रमुखता दे रही है। केंद्र और यूपी दोनों जगह ही भाजपा की सरकार है, ऐसे में अड़चनों का भी सवाल नहीं उठता। जनता अब नतीजों के इतजार में है। 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी का भविष्य काफी हद तक गांवों में जगमग बल्ब पंखों पर निर्भर करेगा। योजना जमीन तक पहुंची तो यकीनन चुनावों में फायदा होगा। कहा जा सकता है अगले साल लोकसभा चुनाव हैं। योगी सरकार के लिए बड़ा इम्तेहान है
सुरेश गांधी
साल 2019 के लोकसभा चुनावों का देश को बड़ा इंतजार है। प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता के सहारे भाजपा 2014 की तुलना में सत्ता बचाने में कितनी होगी? क्या राहुल की अध्यक्षता में कांग्रेस अपने सबसे खराब चुनाव-परिणाम को सुधार सकेगी? विपक्षी दल अंततः भाजपा-विरोधी मोर्चा बनाकर भाजपा को सत्ता से दूर रख पायेंगे? क्षेत्रीय दलों की राजनीति का क्या भविष्य होगा? इनमें से कुछ का जवाब या कम-से-कम उसका बड़ा संकेत 2018 में मिलने वाला है। इस पूरे वर्ष हम आठ राज्य विधानसभाओं के चुनाव देखेंगे. जिन राज्यों के चुनाव नतीजे अगले वर्ष के लोकसभा चुनाव का पूर्वालोकन करायेंगे, उनमें कुछ में भाजपा और कांग्रेस की सीधी टक्कर होगी, तो कुछ में क्षेत्रीय दलों की जनता पर पकड़ की परीक्षा होगी। जातीय-धार्मिक समीकरणों का खुला चुनावी खेल भी दिखायी देगा। मध्यवर्गीय जातियों से लेकर जनजातियों तक का राष्ट्रीय-प्रांतीय रुख सामने आयेगा। एक तरह से इस वर्ष होनेवाले विधानसभा चुनाव पूरे देश के चुनावी परिदृश्य का नमूना होंगे। ऐसे में इन्वेस्टर्स समिट मिशन 2019 में प्रदेश की सभी 80 सीटों पर फतह के संकल्प के साथ बढ़ रही भाजपा की तकदीर तय करेगी। समिट के सहारे भाजपा अपने उन वादों को पूरा करने की कोशिश करेगी, जिन्हें गिनाकर वह प्रदेश में सत्ता पाई थी। इसमें प्रदेश में उद्योगों की स्थापना और रोजगार का सृजन प्रमुख रहा। सरकार और भाजपा दोनों का दावा है कि इन्वेस्टर्स समिट के साथ ही प्रदेश में औद्योगिक विकास तेज होगा।
इसी दावे को गति देने के लिए मोदी ने यूपी को थ्री सी का मंत्र दिया है। जिसमें पहला सी है क्राइम कंट्रोल दूसरा करेंसी और तीसरा क्रेडिबिलिटी। इन्हीं तीन सी के सहारे यूपी में बीजेपी 2019 का चुनाव जीतने की रणनीति बना रही है। यूपी की योगी सरकार ने देश भर के निवेशकों का बड़ा सम्मेलन किया। इस सम्मेलन में देश भर के उद्योगपति पहुंचे थे। सबने करोड़ों रुपये निवेश करने का भरोसा दिया। इसी भरोसे का 2019 के चुनाव से सीधा रिश्ता है। पिछले साल तक यूपी में गुंडाराज बड़ा चुनावी मुद्दा हुआ करता था लेकिन योगी राज में एनकाउंटर की झड़ी लग गई और अपराधी हाथ जोड़कर जान की भीख मांगते घूम रहे हैं। अगले चुनाव में बीजेपी इसे भुनाएगी और यही पीएम मोदी और योगी का थ्री सी प्लान है। कहा जा सकता है योगी सरकार बनने के बाद उत्तर प्रदेश में हिन्दुत्व और विकास के एजेंडे को धार मिली है। अयोध्या, काशी और मथुरा को उत्तर प्रदेश के हिन्दुत्व राजनीति की धुरी माना जाता है। यही वजह है कि मोदी की यूपी पर खास नजर है। दरअसल, इसे 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। मोदी खुद कहते हैं कि यूपी ने ही उन्हें प्रधानमंत्री बनाया। कई मौकों पर उन्होंने यूपी का गोद लिया बेटा बनकर तकदीर बदलने का भरोसा भी दिया है। इन्वेस्टर्स समिट में मोदी ने जिस अंदाज में अपनी बात रखी उससे तार 2019 के सियासी फलक से जुड़ने लगे हैं।
बेशक, जब परिवर्तन होता है तो परिवर्तन दिखने लगता है। यूपी में अब परिवर्तन दिखने लगा है। इसके लिए योगी और उनकी टीम बधाई की पात्र हैं। पहले ये सब कुछ भय और असुरक्षा के माहौल की वजह से नहीं हो सका। प्रदेश को हताशा और निराशा के माहौल से निकाल कर उम्मीद की किरण जगाने का काम योगी सरकार ने किया है। यूपी इन्वेस्टर्स समिट के मंच से मोदी सरकार ने अपना एजेंडा साफ कर दिया है। यानि जब 2019 के चुनाव में बीजेपी उतरेगी तो इस छवि को भुनाने की कोशिश करेगी। अब गुंडागर्दी पर लगाम लगने का नतीजा ये हुआ है कि प्रदेश में निवेश का माहौल बन रहा है यानी करेंसी की कमी नहीं रहने वाली है। मतलब साफ है मोदी और सीएम योगी की क्रेडिबिलिटी यानी विश्वसनीयता, एनकाउंटर के जरिये क्राइम कंट्रोल और निवेश के जरिये लोगों की जेब में पैसा भरकर बीजेपी 2019 का चुनाव जीतने की तैयारी कर रही है। मोदी ने मंत्र भी दिया कि पोटेंशियल, पॉलिसी, प्लानिंग, परफॉर्मेंस से ही प्रोग्रेस आती है। यूपी में सुपरहिट परफॉर्मेंस देने के लिए योगी जी, उनकी टीम और प्रदेश की जनता तैयार है। क्योंकि किसी भी विकास के लिये सुरक्षा, इंफ्रास्ट्रक्चर, का माहौल होना चाहिये। यूपी सरकार ने इन 11 महीनों में कानून का राज स्थापित किया है।
इसके अलावा मोदी-योगी ने उन सेक्टरों पर बात की जो प्रदेश को मजबूत बनाने के लिए जरूरी हैं। साथ ही उद्योगों को रोजगार से जोड़कर भविष्य की संभावनाओं को रखा कि सरकार तीन साल में चालीस ला

रोजगार पैदा करने जा रही है। यह उनके जोश का ही परिचायक था कि उन्होंने कहा-जो एमओयू साइन हुए हैं, उसकी मॉनीटरिंग वह खुद करेंगे। विकास के प्रमुख क्षेत्र मसलन एग्रो और फूड प्रोसेसिंग, डेयरी, हैण्डलूम एण्ड टेक्सटाइल, एमएसएमई, आइटीध्आइटीईएस एंड स्टार्टअप, इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग, फिल्म, टूरिज्म, सिविल एविएशन और रिन्यूएबिल एनर्जी उनके फोकस सेक्टर थे। इसके साथ ही बुनियादी सुविधाओं बिजली, सड़कें, परिवहन, सिंचाई और कानून व्यवस्था को केंद्र में लाकर उन्होंने उद्योगपतियों को भी भरोसा दिलाया कि उनका निवेश सही जगह है। कानपुर, मेरठ एवं आगरा में मेट्रो रेल सेवा की डीपीआर तैयार की जा चुकी है। वाराणसी, इलाहाबाद, गोरखपुर एवं झांसी की मेट्रो परियोजनाओं के लिए भी उन्होंने उम्मीदें जताई। किसानों को भरोसा दी गयी कि सरकार उनके लिए ही है। दावा किया गया कि खेत से लेकर बाजार तक पहुंचने में खराब होने वाले फसल और फल, सब्जियों की भरपाई के लिए सरकार संकल्पित हैं। मतलब साफ है राजधानी में पहली बार हो रही इन्वेस्टर्स समिट ने सिर्फ निवेश पर ही जोर नहीं दिया है, बल्कि अलग-अलग सेक्टरों में विकास की संभावनाओं के व्यावहारिक पक्ष को परखने की भी कोशिश की है। समिट के पहले दिन पंद्रह सत्र आयोजित किए गए, जिसमें सिर्फ उद्यमी शामिल थे, बल्कि राज्य सरकार और केंद्र सरकार का पक्ष रखने वाले मंत्री और शासन के वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल हुए। इन सत्रों में समिट के कंट्री पार्टनर देशों की प्रमुख कंपनियां और वहां के वरिष्ठ अधिकारियों ने अपनी विशेषज्ञता से अवगत कराया। इसके साथ ही समिट में आए डेलीगेट्स की शंकाओं का समाधान भी किया। कुल मिलाकर पहले दिन काफी सकारात्मक वार्तालाप के बीच सुखद योजनाओं की परिकल्पना साकार रूप लेती नजर आई।
लेकिन यह सब तक संभव हो पाएगा, जब बीजेपीमिशन 2019‘ की कामयाबी के लिए इन दावों की कसौटी पर खरा उतरेगी। इस चुनौती का सामना करते हुए सरकार निवेशकों से किए गए करारों को धरातल पर उतारने में सफल हो जाती है तो फिर 2019 के चुनावों में भाजपा को विपक्ष पर हमला करने का कारगर हथियार मिल जाएगा। विपक्ष के पास उसे घेरने का कोई मौका नहीं मिलेगा। वह जनता को विश्वास दिलाने की कोशिश करेगी कि उसने 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश के विकास का वादा पूरा कर दिखाया। तब कहीं जाकर इन्वेस्टर्स समिट 2019 के लोकसभा चुनाव में सकारात्मक परिणाम देने योग्य होगी। वैसे भी आबादी और संसाधनों के लिहाज से यूपी देश का सबसे विकसित राज्य है। लेकिन उपेक्षा के चलते विकास की दौड़ में यूपी सारे राज्य के मुकाबले पिछड़ता गया। ऐसे मेंइनवेस्टर्स समिटतरक्की की दिशा में पहला कदम हो सकती है। समिट के पहले ही दिन अभी तक जो ब्योरा मिला है और जो माहौल दिखाई दिया है, उससे एक बड़ी उम्मीद तो बंधती ही है। देश और दुनिया भर के बड़े उद्योगपतियों का एक साथ एक मंच पर पूरी तैयारी के साथ जमा होना, और एक के बाद एक 4.28 लाख करोड़ रुपये के 1,045 एमओयू पर दस्तखत होना यह बताता है कि यह सिर्फ राज्य सरकार का एक औपचारिक प्रयास भर नहीं है, बल्कि देश-दुनिया के उद्योगपति इसमें खासी दिलचस्पी ले रहे हैं। इसके साथ ही मंच पर प्रधानमंत्री की मौजूदगी भी इस बात का आश्वासन थी कि भारत सरकार भी उत्तर प्रदेश के इस प्रयास को गंभीरता से ले रही है।
दरअसल, विकास कीगंगाबहाने का ख्वाब संजोए सरकार के सामने अब भी विकास का गला तर करने की ही चुनौती बनी हुई है। यही वजह है कि लोकसभा चुनाव की आहट के बाद सरकार ने वादों से ज्यादा बुनियादी जरूरतों पर फोकस योगी सरकार ने अपने 4.28 लाख करोड़ रुपये वाले बजट में भी किया है। योध्या, मथुरा, काशी से लेकर गाय गोरक्ष तक को बजट में प्रमुखता दी गयी हैं। माना जा रहा है कि प्रदेश का यह अब तक का सबसे बड़ा बजट है। ऊर्जा, आवास, सड़क और अन्य बुनियादी सुविधाओं के मद में बजट आवंटन काफी बढ़ाया गया है जिससे नींव मजबूत कर उस पर उम्मीदों की इमारत खड़ी की जा सके। सरकार ने बजट को भीस्प्रिंकलरसिंचाई योजना जैसा ही रखा है जिससे, जहां जितनी जरूरत हो उतनी हीबूंदपहुंचे। हालांकि, किसानों की कर्ज माफी और सातवें वेतन आयोग के एरियर के बोझ से सरकार अब भी पूरी तरह उबर नहीं पाई है। मिसाल के तौर पर बेसिक शिक्षा विभाग के लिए सबसे ज्यादा 54,896 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। यह वही महकमा है जो कड़ाके की ठंड में वक्त रहते स्वेटरों की खरीद नहीं कर पाया। शिक्षकों की तैनाती से लेकर स्कूलों की बिल्डिंग, चॉक-डस्टर और फर्नीचर तक में बरसों से घोटाले होते आए हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का वादा भ्रष्टाचार मुक्त शासन-प्रशासन देने का है। अब उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती बेसिक शिक्षा विभाग होगा, जहां ईमानदार अफसरों कर्मचारियों के लिए काम करना मुश्किल है। बजट में अलॉट किया गया पैसा इतना है कि स्कूलों का कायाकल्प हो सकता है। बशर्ते ईमानदारी से खर्च किया जाए। केंद्र और यूपी दोनों जगह ही भाजपा की सरकार है, ऐसे में अड़चनों का भी सवाल नहीं उठता। जनता अब नतीजों के इतजार में है।
यह अच्छी बात है कि सरकार ने मुफ्त बांटने की प्रवृत्ति से निजात पाई है। बुनियादी सुविधाएं दुरुस्त करने और चुनावी वादे पूरी करने की कोशिश बजट में साफ नजर आती है। युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने वाली मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना, या एक जिला एक उत्पाद योजना। गाजियाबाद को इंजीनियरिंग और नोएडा को रेडीमेड कपड़ों के कारोबार विकसित करने के लिए चुना गया है तो एक साल बाद इसका असर नजर आना चाहिए। गांवों में घर-घर बिजली पहुंचाने के लिए करीब 30 हजार करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी का भविष्य काफी हद तक गांवों में जगमग बल्ब पंखों पर निर्भर करेगा। योजना जमीन तक पहुंची तो यकीनन चुनावों में फायदा होगा। सड़कों के लिए साढ़े सत्रह हजार करोड़ रुपये से ज्यादा धन दिया गया है। सड़कों का निर्माण नए रोजगार लाएगा, लेकिन गुणवत्ता पर ध्यान देना होगा। आम शहरियों के लिए रूफ टॉप सोलर पावर प्लांट योजना बेहतर साबित हो सकती है। इसके लिए सरकार ने 25 करोड़ रुपये की व्यवस्था की है। चूंकि सौर ऊर्जा नीति-2017 के तहत साल 2022 तक यूपी को 10,700 मेगावाट बिजली पैदा करनी है ऐसे में इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए और धन की जरूरत भी हो सकती है। इस बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जलवायु परिवर्तन सम्मेलनों में कई वादे भी किए हैं। कहा जा सकता है अगले साल लोकसभा चुनाव हैं। योगी सरकार के लिए बड़ा इम्तेहान है। यूपी चुनाव के दौरान किए गए वादों को जमीन पर उतारने की चिंता बजट में दिखी है। बुंदलेखंड एक्सप्रेस-वे के लिए रु. 650 करोड़, पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के लिए रु. 1 हजार करोड़ और गोरखपुर लिंक एक्सप्रेस-वे के लिए रु. 550 करोड़ दिए गए हैं। अब यह काम चुनाव के पहले होते दिखाई देंगे।

योगी सरकार ने अपनी ब्रैंडिंग के लिए इस्तेमाल किए जा रहे आगरा एक्सप्रेस-वे के लिए भी रु. 500 करोड़ दिए हैं। हर जिलों को उसकी पहचान दिलाने की बहुप्रचारित योजना एक जिला, एक उत्पाद को भी रु. 250 करोड़ काटॉनिकमिल गया है। क्योंकि देश की तकरीबन 17 फीसदी आबादी यूपी में ही रहती है। दुनिया में भारत को आने वाले दौर की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत सिर्फ इसीलिए माना जाता है कि सबसे बड़ी युवा आबादी यहीं पर है। अर्थशास्त्र की भाषा में इसे डेमोग्राफिक डिविडेंट कहा जाता है। और अगर भारत के भीतर देखें, तो सबसे बड़ी युवा आबादी वाला राज्य यूपी ही है। इसी कारण से उद्योगों के लिए निवेश की इससे अच्छी जगह कोई और नहीं हो सकती। खासकर इसलिए कि प्रदेश में कुशल और पढ़े-लिखे नौजवानों की बड़ी संख्या है। यह प्रदेश हस्तशिल्प और दुग्ध उत्पादन के मामले में अव्वल है, जो बताता है कि प्रदेश में कारोबार की एक परंपरा पहले से ही मौजूद है, बस इसे आधुनिक कार्य-संस्कृति से जोड़ने की जरूरत है। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश को एक नई चुनौती दी, प्रदेश को महाराष्ट्र से पहले ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनाने की चुनौती। महाराष्ट्र के लिए भी यह बहुत आसान नहीं है, पर वह इससे ज्यादा दूर भी नहीं है। यह अलग बात है कि यूपी के मुकाबले महाराष्ट्र के पास बहुत बड़ा विकसित इन्फ्रास्ट्रक्चर है। अगर ऐसी तमाम दिक्कतों के बावजूद महाराष्ट्र को पछाड़ सका, तो एक इतिहास बन जाएगा।

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