Friday, 31 May 2019

मोदी मंत्रिमंडल में यूपी का दबदबा


मोदी मंत्रिमंडल में यूपी का दबदबा
दो महिलाओं समेत आठ मंत्रियों को मिली जगह
मोदी कैबिनेट में भी दिखा सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला
      सुरेश गांधी
वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबसे ज्यादा सीटें जिताने वाले उत्तर प्रदेश को पूरी तवज्जो देते हुए अपने मंत्रिमंडल में यहां के आठ लोगों को स्थान दिया है। इनमें दो महिलाएं शामिल हैं। तीन को कैबिनेट, दो को राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार और तीन को राज्यमंत्री का दर्जा दिया है। प्रधानमंत्री मोदी खुद भी उत्तर प्रदेश के वाराणसी से ही सांसद हैं। मेनका गांधी को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली है। पर, माना जा रहा है कि उन्हें कोई अन्य महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। चर्चा यह भी है कि उन्हें लोकसभा अध्यक्ष बनाया जाएगा। इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मंत्रिपरिषद पर सोशल इंजीनियरिंग की छाप है। ऐसे चेहरों को मौका मिला है, जो अपने राज्यों में राजनीतिक लिहाज से प्रभावी जाति समूहों से आते हैं।
लगातार दूसरी बार वाराणसी से चुनाव लड़कर सांसद बने मोदी ने अपने मंत्रिमंडल में उत्तर प्रदेश का दबदबा बनाकर यह संदेश दे दिया है कि 2014 में काशी से चुनाव लड़ने आए मोदी खुद को उत्तर प्रदेश वाला सिर्फ कहते नहीं है बल्कि वह इस प्रदेश के महत्व को दिल से स्वीकार भी करते हैं। इसीलिए सिर्फ उन्होंने खुद को उत्तर प्रदेश का सांसद बनाकर इस प्रदेश के खाते में अटल बिहारी वाजपेयी के बाद भाजपा का दूसरा प्रधानमंत्री देने का रिकार्ड दर्ज कराया बल्कि अपने अलावा 8 मंत्री भी बनाए। जिनमें कैबिनेट मंत्री के रूप में राजनाथ सिंह, स्मृति ईरानी, डॉ. महेंद्रनाथ पांडेय, राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार के रूप में संतोष गंगवार, प्रदेश से राज्यसभा सदस्य हरदीप पुरी और राज्यमंत्री के रूप में वीके सिंह, साध्वी निरंजन ज्योति, डॉ. संजीव बालियान शामिल हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ शपथ लेने वाले 57 मंत्रियों के नाम पर गौर करने से पता चलता है कि लिस्ट तैयार करते वक्त सोशल इंजीनियरिंग का भी ध्यान रखा गया। राज्यों में प्रभावी जातीय समूहों को साधने की कोशिश हुई है। बीजेपी ने यह कोशिश है कि उसका कोर वोटर खुश रहे। यही वजह है कि बीजेपी ने उन जातियों से आने वाले चेहरों को ज्यादा मौका दिया है, जो उसके कोर वोटर माने जाते हैं। ऐसा भी नहीं है कि सभी मंत्रियों के नाम जातीय समीकरणों की वजह से ही फाइनल हुए, मगर इतना जरूर है कि अधिकांश मंत्रियों को इस वजह से ही मंत्रिपरिषद में शामिल होने का मौका मिला। उत्तर प्रदेश में बीजेपी के शानदार प्रदर्शन पर प्रदेश अध्यक्ष और पार्टी के ब्राह्मण चेहरे महेंद्रनाथ पांडेय को इनाम के साथ प्रमोशन मिला है। पिछली बार राज्य मंत्री थे, इस बार कैबिनेट मंत्री बने हैं। जाटलैंड में रालोद मुखिया चौधरी अजित सिंह को हराने वाले जाट चेहरे संजीव बालियान फिर से मंत्री बने हैं। पिछली बार यूपी के जिन तीन मंत्रियों को हटाया गया था, उसमें बालियान भी एक थे. पश्चिमी यूपी में जाटों का वर्चस्व है। कश्यप, निषाद और बिंद जातियों में खास पैठ रखने वालीं साध्वी निरंजन ज्योति को फिर से मंत्री बनने का मौका मिला है।
राजस्थान में जाट कैलाश चौधरी, राजपूत गजेंद्र सिंह शेखावत और दलित चेहरे अर्जुन राम मेघवाल को मोदी सरकार में मंत्री बनने का मौका मिला है। जाटों को प्रतिनिधित्व देने के लिहाज से कैलाश चौधरी को पहली बार मोदी ने मंत्रिपरिषद में शामिल किया है। महाराष्ट्र से बने पांच मंत्रियों में दलित चेहरे रामदास अठावले को फिर मौका मिला है। बिहार में लालू यादव की राजनीति को लंबे समय से चुनौती देते आए बिहार बीजेपी अध्यक्ष नित्यानंद राय को पहली बार पीएम मोदी ने अपने मंत्रिपरिषद में शामिल किया है। बिहार में वह बीजेपी के यादव चेहरा माने जाते हैं। तादाद अधिक होने से बिहार में यादव वर्ग की गिनती एक प्रभावी जाति समूह के रूप में होती है। नित्यानंद के जरिए बीजेपी ने यहां पिछड़ों की नुमाइंदिगी सुनिश्चित करने की कोशिश की है। वहीं बिहार से राम विलास पासवान को मंत्री बनाकर दलितों को भागीदारी दी गई है।
हालांकि बिहार में एक बड़ी तादाद में मौजूद गैर यादव पिछड़ा वर्ग  से कोई मंत्री नहीं बना है। माना जा रहा है कि इसमें से एक या दो नाम नीतीश के कोटे से आने थे, मगर जेडीयू के सरकार में शामिल होने से इस वर्ग को प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया। वहीं मंत्री बने रविशंकर प्रसाद, गिरिराज सिंह, अश्विनी चौबे, आरके सिंह अगड़ी जातियों से हैं। कर्नाटक में पिछली बार जब कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार थी तो बीजेपी लिंगायतों, वोक्कालिगा और ब्राह्मणों की उपेक्षा का आरोप लगाती रही। इस बार मोदी के मंत्रिमंडल में ब्राह्मण चेहरे प्रह्लाद जोशी, वोक्कालिगा वर्ग के सदानंद गौड़ा और लिंगायत चेहरे सुरेश अंगाड़ी को मंत्री बनाया गया है। कर्नाटक में लिंगायत वर्ग बीजेपी का वफादार माना जाता है।
गुजरात से बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, मनसुख मंदाविया और पुरुषोत्तम रुपाला मंत्री बने हैं। राज्य के तीन बड़े पटेल नेताओ में पुरुषोत्तम रूपाला की गिनती होती है। माना जाता है कि राज्य में प्रभावशाली जाति समूह पटेलों को साधने के लिए बीजेपी ने राज्यसभा सदस्य पुरुषोत्तम रूपाला को फिर से मंत्री बनाया है। हरियाणा में दस सांसदों पर तीन केंद्रीय मंत्री बने हैं। भले ही हरियाणा में जाटों की तादाद 25 फीसद हो, मगर बीजेपी ने मंत्री बनाने में गैर जाट कार्ड खेला है। तीन में से एक भी जाट मंत्री नहीं है। जिन तीन नेताओं को मोदी ने मंत्री बनाया है, उनमें अंबाला सुरक्षित सीट से तीसरी बार जीते रतनलाल कटारिया जहां दलित चेहरे हैं, वहीं फरीदाबाद से जीते कृष्णपाल, गुर्जर हैं और राव इंद्रजीत राव अहीर चेहरे हैं। बीजेपी की झोली में इस बार पांचों लोकसभा सीटें गईं. पीएम नरेंद्र मोदी ने ब्राह्मण चेहरे और पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को मंत्रिपरिषद में शामिल कर कई संतुलन स्थापित किए. राजपूत टीएस रावत मुख्यमंत्री हैं, ऐसे में ब्राह्मण चेहरे निशंक को केंद्र सरकार में मौका देकर बीजेपी ने अपने दोनों कोर वोटबैंक को साधने की कोशिश की है.

मोदी कैबिनेट में महेंद्र और राजनाथ को जगह मिलने पर झूमी काशी


मोदी कैबिनेट में महेंद्र और राजनाथ को जगह मिलने पर झूमी काशी
प्रधानमंत्री छोड़ आठ मंत्री शामिल, राजनाथ के अलावा स्मृति महेंद्रनाथ को कैबिनेट दर्जा
सुरेश गांधी
वाराणसी। उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे मंत्रिमंडल में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ महेंद्रनाथ पांडेय और राजनाथ सिंह के कैबिनेट मंत्री पद की शपथ लेते ही जिले के लोग खुशी से झूम उठे। जिले से दो-दो कैबिनेट मंत्री होने से लोगों को भरपूर विकास की उम्मीद है। लोगों ने मिठाई बांटकर एक-दूसरे को बधाई दी है। कार्यकर्ताओं ने खुशी के माहौल में पटाखे भी फोड़े। महेंद्रनाथ पांडेय को कौशल विकास और उद्यमिता मंत्री बनाया गया है तो वहीं राजनाथ सिंह को रक्षा मंत्री का पदभार संभालने के लिए दिया गया है। लोकसभा चुनाव के दौरान यूपी में कमल खिलाने की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ-साथ पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्रनाथ पांडे के कंधों पर भी थी।
आरएसएस से जुड़े महेंद्रनाथ पांडेय का राजनीतिक सफर संघर्षों से भरा है। उन्होंने अपने जीवन में कई उतार-चढ़ाव भरे दौर देखे हैं। गाजीपुर के पखनपुर गांव के मूल निवासी डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय का जन्म 15 अक्टूबर 1957 को हुआ था। उन्होंने एमए, पीएचडी के साथ ही मास्टर ऑफ जर्नलिज्म की भी डिग्री हासिल की है। उनकी पूरी शिक्षा-दीक्षा वाराणसी में हुई है। महेंद्र नाथ पांडे ने छात्र जीवन से ही राजनीति में कदम रख दिया था। बीएचयू छात्रसंघ में महामंत्री भी रह चुके हैं। सीएम एंग्लो बंगाली इंटर कालेज में वह 1973 में अध्यक्ष चुने गए। इसी कड़ी में वह 1978 में बीएचयू में छात्र संघ चुनाव जीतकर महामंत्री बने. इसी के बाद से मुख्य राजनीति में कदम रखा। महेंद्र नाथ पांडे आपातकाल से लेकर राम मंदिर आंदोलन तक से नाता रहा है। आपातकाल में डॉ. महेंद्र नाथ पाण्डेय ने पांच माह जेल में गुजारे थे।
रामजन्म भूमि आंदोलन में मुलायम सिंह यादव की सरकार में इन्हें रासुका के तहत निरुद्ध कर दिया गया था। महेंद्र नाथ पांडे पहली बार रामंदिर आंदोलन के दौरान 1991 में बीजेपी से विधायक चुने गए। इसके बाद वो नगर आवास राज्य मंत्री, नियोजन मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रदेश में वे पंचायती राज मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) भी रहे। बीजेपी संगठन में उन्हें क्षेत्रीय अध्यक्ष समेत प्रदेश के महामंत्री की जिम्मेदारी भी संभाली। 2014 के लोकसभा चुनाव मे पार्टी ने इन्हें चंदौली लोकसभा सीट से टिकट देकर मैदान में उतारात्र। मोदी लहर में उन्होंने बसपा के अनिल मौर्य को करीब ढाई लाख मतों से मात देकर सांसद बने और मोदी सरकार में राज्यमंत्री चुने गए थे। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए लगातार दूसरी बार सांसद बने डॉ पांडेय के मंत्री बनने पर उनके गोद लिए गांव जरखोर में भी जश्न का माहौल रहा।
राजनाथ सिंह प्रधानमंत्री मोदी के बाद शपथ लेने वालों के क्रम में  दूसरे नंबर पर रहे। भाजपा के कद्दावर नेताओं में केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह का भी नाम आता है। मौजूदा समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के बाद पार्टी में सबसे पावरफुल और जनाधार वाले नेता माने जाते हैं। राजनाथ सिंह के राजनीतिक कद का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी के बाद ऐसे नेता हैं जो पार्टी की कमान दो बार संभाल चुके हैं। ऐसे में 2019 के लोकसभा चुनाव में लोगों की नजर राजनाथ सिंह के ऊपर भी थी। लखनऊ सीट पर भाजपा प्रत्याशी और गृह मंत्री राजनाथ सिंह गठबंधन की तरफ से लड़ रहीं सपा प्रत्याशी पूनम सिन्हा को करीब तीन लाख 40 हजार वोटों से हराकर संसद पहुंचे हैं। चंदौली जिले में जन्मे राजनाथ सिंह एक कुशल प्रशासक के रूप में जाने जाते रहे हैं। राजनाथ सियासत में कदम रखने से पहले मिर्जापुर के कॉलेज में प्रोफेसर रहे हैं। लेकिन बचपन से संघ के आंगन में पले बढ़े हैं। बीजेपी के मातृ संगठन के रूप में मशहूर आरएसएस से राजनाथ की करीबी जगजाहिर है।
आरएसएस के साथ उनके बेहतर रिश्ते का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आडवाणी के जिन्ना प्रकरण के बाद संघ ने राजनाथ को ही पार्टी के अध्यक्ष के रूप में जिम्मेदारी सौंपी थी। इसके बाद दूसरी बार बीजेपी की कमान राजनाथ सिंह ने तब संभाली थी जब पूर्ती मामले में नितिन गडकरी का नाम सामने आया था। दिलचस्प बात ये है कि राजनाथ सिंह ने अध्यक्षकाल में ही 2013 में प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी के नाम पर मुहर लगी थी। हालांकि पार्टी के कई नेता इस बात पर सहमत नहीं थे, लेकिन राजनाथ सिंह ने आगे आकर उनके नाम को बढ़ाया है। 10 जुलाई 1951 को जन्मे राजनाथ ने गोरखपुर विश्वविद्यालय से भौतिकी विषय में प्रोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की है। उसके बाद 1971 में केबी डिग्री कॉलेज में वह प्रोफेसर नियुक्त किए गए। इमरजेंसी के दौरान कई महीनों तक जेल में बंद रहने वाले राजनाथ सिंह को 1975 में जनसंघ ने मिर्जापुर जिले का अध्यक्ष बनाया।
यूपी में शिक्षा मंत्री के तौर पर किए गए कामों को लेकर आज भी राजनाथ सिंह का फैसला काबिल--तारीफ है। 1991 में उन्होंने बतौर शिक्षा मंत्री एंटी-कॉपिंग एक्ट लागू करवाया था। साथ ही वैदिक गणित को पाठ्यक्रम में भी शामिल करवाने का श्रेय उन्हीं को जाता है। राजनाथ सिंह 20 अक्टूबर 2000 में राज्य के मुख्यमंत्री बने। हालांकि उनका कार्यकाल 2 साल से भी कम समय के लिए रहा। केंद्र में जब वाजपेयी की अगुवाई वाली एनडीए की सरकार बनी तब राजनाथ सिंह को कृषि मंत्री बनाया गया था। इसके बाद 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी तो देश के गृहमंत्री बने। वे मोदी कैबिनेट में दूसरे नंबर के नेता हैं। राजनाथ के दूसरी बार शपथ ग्रहण करने के बाद चकिया तहसील के राजनाथ सिंह के भभौरा गांव में भी जश्न का माहौल है। राजनाथ के प्रयास से चकिया में सीआरपीएफ के ग्रुप भर्ती सेंटर की सौगात मिली।





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