भगवान सूर्य के दर्शन के लिए तालाब व नदियों पर उमड़ी आस्था
उगते सूर्य
को
अर्घ्य
देने
के
साथ
चार
दिवसीय
छठ
व्रत
संपन्न
देर रात
से
सुबह
तक
घाटों
पर
उमड़े
लोग,
आस्था
का
दिखा
अटूट
मिलाप
ग्रामीण अंचलों
में
भी
छठ
व्रतियों
ने
नदियों
और
तालाबों
के
किनारे
तथा
छतों
पर
दिया
उदीयमान
सूर्य
को
अर्घ्य
सूप में
फल-ठेकुआ
सजाकर
श्रद्धालुओं
ने
डूबते
सूर्य
को
अर्घ्य
दिया
व्रतियों ने
छठी
मईया
से
सुख-समृद्धि
की
कामना
छठ गीतों
की
सुरलहरी
में
डूबी
रही
पूरी
काशी
छठी मइया
सुन
लो
अरजिया
हमार..
घाट छठ
गीतों
से
भक्तिमय
थे
सुरेश गांधी
वाराणसी। आस्था के अर्घ्य में व्रतियों का समर्पण हैं सूर्य उपासना। आस्था के हृदय में भी सुख-समृद्धि की कामना है। ये भक्ति उस अद्भूत शक्ति की है जो प्रतीकों में नहीं साक्षात है। जो सर्वशक्तिमान है उर्जा का सबसे बड़ा भंडार हैं। ऐसे साक्षात देवता को अर्घ्य देने जब व्रतियों का जमघट घाटों पर पहुंचा तो ऐसा लगा आसमान से लाखों सूर्य इस धरती पर उतर आएं हैं।
भगवान सूर्य की लालिमा बिखरने
से पहले घाटों की ओर चली
व्रती महिलाओं की टोलियां देखते
ही बन रही थी।
सभी में छठ के महापर्व
पर उगते सूर्य को अर्घ्य देने
की उत्सुकता थी। घाट दीपकों की रोशनी से
जगमगा रहे थे। सूर्य को अर्घ्य देने
के लिए घाटों पर उमड़ा जन
सैलाब हमारी आस्था और विश्वास को
और समृद्ध कर रहा था।
महिलाओं की टोली गीतों संग छठी मइया से पति की दीर्घायु और संतान सुख की कामना कर रही थीं। जैसे ही भगवान सूर्य की लालिमा दिखी व्रती महिलाओं ने उगते सूर्य को अर्घ्य देकर संतान की सुख की कामना की।
इस तरह सोमवार
को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने
के साथ ही लोक आस्था
का चार दिवसीय महापर्व छठ संपन्न हो
गया। भगवान भोलेनाथ की नगरी काशी
सहित पूरे पूर्वांचल में छठ व्रतियों ने
नदियों और तालाबों के
किनारे पहुंचकर उगते सूर्य की पहली किरण
जलराशि पर पड़ते ही
‘कहीं देर न हो जाए’
की तर्ज पर जलांजलि व
दुग्धांजलि प्रदान की। मोक्षदायिनी जाह्न्वी के सभी घाट
व वरुणा तट छठ महापर्व
पर अद्भुत मधुर छठ-गीतों से
गुंजायमान और उमड़ते श्रद्धालुओं
से गुलजार रहा।
घरों और अपार्टमेंट की छतों पर भी अर्घ्य दिया गया। सिंघाड़ा, नारियल, फलों के साथ ही सूप, कच्ची हल्दी, मूली व गन्ना समेत पूजन सामग्री को मिट्टी की बनी सुसुबिता पर चढ़ाया और विधि विधान से पूजन कर छठी मइया के गीत गाए।
केरवा फरेला घवद से ओहे पे
सुगा मंडराय.., देवी मइया सुन लो अरजिया हमार..
और कांचहि बांस की बहंगिया..,, उग
हो सूरज देव, भइल अरगिया के बेर..,, सहित
अन्य कर्णप्रिय लोकगीतों से माहौल छठ
मइया की भक्ति से
सराबोर हो उठा। हर
तरफ छठ गीतों की
सुरलहरी सबके मन को सुकून
दे रही थी। अंत में छठ मइया का
प्रसाद वितरित किया और स्वयं ग्रहण
कर व्रतियों ने पारण कर
लिया। इस दौरान जिला
प्रशासन द्वारा सुरक्षा के कड़े इंतजाम
किए गए थे।
सुबह के अंधेरे में ही लोगों ने घाटों पर पहुंचना शुरू कर दिया था। बहुतों ने तो अपनी रात घाट किनारे ही बिताई। अस्सी से लेकर दशाश्वमेघ घाट के किनारों पर ऐसे लोगों की बड़ी संख्या देखने को मिली जो ग्रामीण क्षेत्रों से गंगा नदी में छठ करने आए थे और रात भर जागकर सूर्य के उगने का इंतजार करते रहे और जैसे ही सूरज ने लालिमा बिखेरी मंत्रोचार के बीच अर्घ्य दिया। ग्रामीण अंचलों में भी व्रतियों ने उदीयमान सूर्य को अर्घ दिया।
बता दें, रविवार की शाम का
अर्घ्य देने के बाद अधिकांश
व्रती अपना-अपना सूप और दउरा लेकर
वापस चले गए थे। सुबह
ही एक बार फिर
घाट किनारे पहुंचकर सबने पानी के समीप उन्हें
सजा दिया। हर सूप के
बगल में दीये भी जलाये गए
थे। उसके बाद व्रती सूर्य भगवान के उगने का
इंतजार करने लगे कि कब वे
उदीयमान हों और वे अर्घ्य
दें।
ग्रामीण क्षेत्रों में भी दिखा छठ का उत्साह
ग्रामीण क्षेत्रों में भी छठ का
गजब का उत्साह रहा।
हाथों में पूजा की टोकरी व
अन्य सामान लिए महिला, पुरुष, बच्चे एवं बुजुर्ग घाटों पर पहुंचना शुरू
हो गए थे। मां
गंगा मइया से लगायत अनेक
कुंड लाइटों की रोशनी में
जगमगा रहे थे। देर रात बाद से ही भीड़
बढ़ने लगी थी। जैसे-जैसे सुबह होने को आया श्रद्धालुओं
ने कलशों पर शुद्ध घी
के दिये जलाने शुरू कर दिये। देखते
ही देखते तटों पर लाखों टिमटिमाते
दियों को देख ऐसा
लग रहा था कि मानो
सितारे जमीन पर उतर आये
हों। एक ओर मां
गंगा की लहरें थी
तो दूसरी ओर आस्था का
समुद्र हिलोरे ले रहा था।
लाउड स्पीकर, डीजे पर छठ माता
के गीत गूंजते रहे और व्रती महिलाएं
गीतों के जरिए अपनी
हाजिरी लगाती रहीं। खास यह है कि
छठ पूजा करने वाले व्रतियों की संख्या में
साल दर साल इजाफा
हो रहा है। इस बार के
छठ पूजा की सबसे खास
बात ये रही कि
व्रती के अलावा आम
जनमानस में भी इस महापर्व
का उत्साह देखने को मिला। पूजा
करने आये श्रद्धालुओं के साथ-साथ
घाट पर कई पंजाबी
और बंगाली परिवार भी दिखे, जिन्होंने
बढ़-चढ़ कर पूजा
में हिस्सा लिया और वर्तियों की
मदद की।
गन्ने की छांव में सौभाग्य सिंदूर
घाटों पर दिखा विहंगम नजारा
सूर्य देव के प्रति ऐसा
समर्पण शायद ही किसी व्रत,
त्योहार में देखा जाता हो। काशी के गंगा घाटों
पर संस्कृति, समर्पण और श्रद्धा का
संगम विहंगम नजारा बन गया। दीप,
धूप, फल-फूल से
लदे सूप को लेकर पूरब
की ओर मुंह करके
सूर्यदेव का इंतजार होता
रहा। 36 से 40 घंटे का निर्जला व्रत
भी श्रद्धा को डिगा नहीं
सका। ‘उगा हो सूरज देव
भइल अरघा की वेर’ गाती
हुईं महिलाएं गुजरीं तो पूरा माहौल
भक्तिमय हो गया।
उमंग, उत्साह, उल्लास ऐसा जैसे 40 नहीं चार घंटे की पूजा हो।
मान, मनुहार और गुहार के
साथ ही लंबे इंतजार
के बाद कार्तिक सप्तमी के सूर्य भगवान
ने दर्शन दिए तो श्रद्धालु कृत्य-कृत्य हो उठे। घाट
से कुंडों तक भोर से
ही उगा हो सुरुज देव...की गुहार लगनी
शुरू हो गई। काशी
के सात किलोमीटर लंबे घाटों की श्रृंखला पर
सोमवार सुबह विहंगम नजारा नजर आया। ढोल-नगाड़ों की थाप, आतिशबाजी
और जगह-जगह मंगलगान हुआ। वेदियों पर सर्व मंगल
की कामना से जले अखंड
दीपों की लौ ने
जन-जन के तन-मन को प्रकाशमान
किया। घाटों के आसपास मेले
जैसा दृश्य नजर आया। आस्था के इस विहंगम
नजारे को लोग कैमरे
में कैद करते रहे। काशी में गंगा तट पर राजघाट
से विश्वसुंदरी पुल तक व्रतियों की
अटूट कतार ऐसे ही भक्तिभावों में
रमी रही। गंगा-वरुणा तटों से कुंडों-सरोवरों
तक ब्रह्म मुहूर्त में बाजे-गाजे के बीच लोकोत्सव
की अनूठी छटा निखरी।
दंडवत प्रणाम, भरी कोशी
मन्नतें पूरी होने पर कुछ महिलाएं
व पुरुष घाट कुंडों पर दंडवत करते
पहुंचे। गंगा स्नान और पूजन विधान
के साथ भगवान सूर्य को जलधार समर्पित
की। मन्नतें पूरी होने पर कई परिवारों
ने कोशी भी भरी।