आजादी के 75वें साल में कहां खड़ा है देश का जायसवाल समाज?
आजादी
के
75 साल
पूरे
होने
को
है।
स्वतंत्र
भारत
के
सफर
में
जायसवालों
ने
कई
अहम
पड़ाव
देखे
हैं।
बावजूद
इसके
आज
भी
जायसवालों
के
हालात
नहीं
बदले
हैं
और
न
ही
उनके
मुद्दे।
खासतौर
से
20 करोड़
से
भी
अधिक
आबादी
के
बावजूद
राजनीतिक
हिस्सेदारी
नगण्य
है।
जिन्हें
मौका
मिला,
उनकी
नकेल
इस
कदर
कसी
है,
वे
समाज
के
लिए
ठोस
पहल
नहीं
कर
सकते।
मतलब
साफ
है
चंदा
देने
से
लेकर
बैनर-पोस्टर
ढोने
के
बावजूद
अपनी
आंखों
में
राजनीतिक
पहचान
बनाने
के
ख्वाब
लिए
हुए
जायसवाल
समाज
जी
रहा
हैं।
ऐसे
में
बड़ा
सवाल
तो
यही
है
आजादी
के
इतने
अरसे
बाद
आज
देश
का
जायसवाल
समाज
कहां
और
किस
हालत
में
खड़ा
है?
इसका
जवाब
जायसवाल
समाज
जानना
चाहता
है
सुरेश गांधी
जी हां, मुल्क
की आजादी के 74 साल गुजर चुके हैं। इन 74 सालों में देश के जायसवालों ने
कई उतार-चढ़ाव भरे दौर देखें और कई चुनौतियों
का सामना भी किया है।
इसके बावजूद उनके अन्दर एक बेहतर जिन्दगी
की उम्मीद, आबादी के अनुपात में
राजनीतिक हिस्सेदारी की लौ हमेशा
जलती रही और उनकी आंखों
में इसका ख्वाब सजता रहा है। खासतौर से तब जब
अन्य जातियों को उनकी आबादी
के अनुपात में राजनीतिक पार्टिया न सिर्फ उन्हें
उनका हक, सांसद-विधायक, एमएलसी बना रहे है, बल्कि मान-सम्मान भी दे रहे
है। लेकिन अनुमानतः 20 करोड़ की आबादी वाला
यह समाज, जिसके दर्जनों उपनामों वाली जातियां (जैसे जायसवाल, कलवार, कलाल, ब्याहुत, गुप्ता, शिवहरे, अहलूवालिया, चौधरी, चौकसी, नेवाड़ा, गुलहरे, बाटम, वालिया, सोमवंशीय, नाडार, गौड़, राय, थिया, बिल्लवा, जयसवाल, जैस्वाल, साहा, भंडारी, कोसरे, सुवालका, बेहरा, भगत, चौकसे, मेवाड़ा, कर्णवाल, इडिगा.. आदि) है, को अगर आबादी
के अनुपात में राजनीतिक हिस्सेदारी नहीं मिली तो कहीं न
कहीं इसके लिए हम भी जिम्मेदार
है।
अन्य जातियों के मुकाबले हम
अपनी एकजुटता, अपनी संख्या प्रदर्शित नहीं कर सके और
राजनीतिक उपेक्षा इस कदर की
जाती रही कि हमारे समाज
के कुलदेवता राजराजेश्वर भगवान सहस्त्राबाहुजी महराज व श्रद्धेय डॉ
काशी प्रसाद जायसवाल की आज तक
कहीं प्रतिमा तक नहीं लग
सकी। साथ ही समाज के
उन महान हस्तियां जिन्होंने इस देश की
सेवा में प्रमुख स्थान बनाया है, जैसे श्रीनारायण गुरु-केरला, श्रीकामराज नाडार-तमिलनाडू, डॉ राजकुमार-कर्नाटक,
श्री गोठू लाछन्ना-आंध्र प्रदेश, श्री मोंटेक सिंह अहलूवालिया-पंजाब, श्री शिव नाडार-एचसीएल, श्री गोपाल-सह कार्यकारी इंफोसिस,
डॉ गोरख प्रसाद जायसवाल-यूपी, राय बहादुर डॉ हीरालाल राय-एमपी, श्री शिबूलाल-मुख्य कार्यकारी एवं प्रबंध निदेशक इंफोसिस सहित अन्य विभूतियों की पहचान तक
गायब कर दिया गया।
बता दें, श्री मद भगवत महापुराण
के नवम स्कन्ध के चतुर्थ अध्याय
से 14वें अध्याय में हैयय वंश का काल त्रेता
युग में अंकित है। हैययवंशी कलवार, कलाल व कलार के
आराध्य कुलदेवता श्री श्री कार्तवीर्य सहस्त्ररार्जुन जी महाराज, जो
भगवान विष्णु और ब्रह्मा की
बीसवीं पीढ़ी में उत्पन्न हुए और फिर उनके
परपोते के परपोते श्री
बलभद्र जी का काल
द्वापर युग है, जो उत्तर व
उत्तर पूर्व भारत के कलवार के
एक वर्ग ब्याहुत द्वारा कुलदेवता के रूप में
पूजे जाते हैं। शेष भारत में श्री बलभद्र की पूजा “हल
षष्ठी” के रूप में
की जाती है। कहा जा सकता है
हैययवंशी क्षत्रिय कलवार, कलाल व कलार का
इतिहास लाखों साल पुराना है। स्वजातीय इतिहास में नर्मदा नदी तट स्थित और
राजा हैहय के प्रपौत्र महिष्मान
द्वारा बसाया गया महिष्मति नगर (वर्तमान में मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र
में महेश्वर के नाम से
प्रसिद्द है, जो कार्तवीर्य सहस्त्ररार्जुन
जी महाराज कि राजधानी थी)
का विशेष धार्मिक महत्व है। इसी तरह शेषनाग अवतार श्री बलभद्र जी से सम्बंधित
गोकुल, मथुरा...आदि के भी धार्मिक
रूप से विशेष महत्व
हैं।
देर से ही सही
आजकल समाज में एक अच्छी लहर
उठी हुई है अपने आप
को सशक्त करने की। इस लहर को
जायसवाल क्लब ने भी अपने
पूरे समाज को सशक्त करने
के लिए एक बीड़ा उठाया
है। 29 राज्यों वाले देश में सिर्फ अंगुलियों के सांसद-विधायक
है। विधानसभा और संसद में
समाज की हिस्सेदारी बेहद
धीमी गति से बढ़ रही
है। मतदाता के रूप में
चंदा और वोट देने
वाला समाज सत्ता के शिखर पर
क्यों नहीं पहुंच पाता? यह अपने आप
में बड़ा सवाल है। खासतौर से तब जब
समाज के मतदाताओं की
संख्या तेजी से बढ़ रही
है लेकिन उस अनुपात में
विधायकों या सांसदों की
संख्या में बढ़ोतरी नहीं हो रही है।
जबकि दूसरी अन्य जातियों को मान-सम्मान
और हिस्सेदारी दोनों बढ़ रही है।
कहा जा सकता है
समाज की बराबर भागीदारी
के बिना स्वस्थ प्रजातंत्र नहीं हो सकता है।
इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि
चुनावी राजनीति की दाल में
थोड़ी व्यावहारिकता का छौंक ज़रूरी
है लेकिन हमने तो पूरी दाल
ही संकीर्ण सरोकारों की व्यावहारिकता की
तैयार कर डाली। हमने
अपनी पूरी उर्जा संघ और भाजपा में
लगा दी, लेकिन दो-चार दस
विधायकों व सांसदों को
छोड़ दें, तो हमें मिला
क्या? जबकि सत्ता, संपदा और संसाधन का
समतामूलक दृष्टिकोण हमारे राजनीतिक दर्शन के डीएनए में
था, पता नहीं हम ये कब
भुला बैठे। सामाजिक न्याय, आज़ादी, गैरबराबरी और धर्मनिरपेक्षता के
बीच एक नैसर्गिक रिश्ता
है और हम बीते
वर्षों में इस बात को
लोगों तक पहुंचाने में
पूरी तरह असफल रहे हैं।
क्या है हमारी चुनौती?
हमें राजनीतिक संगठनों को चौबीसों घंटे
और सातों दिन लोगों के बीच उपलब्ध
और सक्रिय रहना होगा। टॉप डाउन एप्रोच के बदले बॉटम
अप एप्रोच के साथ आगे
बढ़ते हुए प्रखंड, जिला और राज्य स्तर
के संगठन को लोगों से
लगातार संपर्क में रहकर उनके मुद्दों के प्रति सक्रिय
पक्षधरता दिखानी होगी। अपने पारंपरिक आधार समूहों के अलावा तमाम
वैसे समूह जिनका हमारे राजनीतिक संगठनों के आधार समूहों
से अंतर्विरोध नहीं है, उन्हें जोड़ने के लगातार सार्थक
प्रयास किए जाएं। एक दो बार
की कोशिशों में पाई गयी असफलता से निराश हुए
बगैर हम एक निरंतर
सैद्धांतिक कार्यक्रम में तब्दील करें।
राजनीतिक हिस्सेदारी को संगठित हो समाज
बढ़े राजनीतिक हिस्सेदारी : मनोज
सत्ता में समुचित भागीदारी के बिना जायसवाल
समाज का सर्वांगीण विकास
संभव नहीं है। राजनीतिक दृष्टिकोण से जायसवाल समाज
आज भी हाशिए पर
है। अतएव जरूरत है संगठित होकर
राज्य की सत्ता में
भागीदारी सुनिश्चित करने की। जब सदन में
जायसवालों की आवाज गूंजेगी,
तभी सरकार हमारी बातें सुनेगी। राजनीतिक पिछड़ेपन के साथ ही
शैक्षणिक पिछड़ेपन का कुरुक्षेत्र ये
भी है कि आई.ए.एस., आई.पी.एस., बी.डी.ओ., सी.ओ, थाना प्रभारी,
बी.एस.एफ., सी.आई.एस.एफ.,
जी.आर.पी. अधिकारी
इत्यादि भी इस कलाल
जाति का आज तक
कोई भी इस पद
पर स्थापित हुआ ही नहीं। कलाल
समाज विकास की मुख्य धारा
से कोसों दूर कैसे होता चला गया? यह आंकलन, मूल्यांकन
और समीक्षा सरकार के साथ-साथ
आत्म मंथन कलाल समाज को भी करना
है। जायसवाल क्लब अपने स्थापना काल से ही समाज
के शारीरिक, सामाजिक एवं बौद्धिक विकास पर ध्यान देता
आ रहा है। क्योंकि जब समाज के
लोग संस्कारवान व अनुशासित बनेंगे
तो ही उनकी पहचान
बनेगी। समाज की एकजुटता इस
बात की गवाह है
कि कल तक जो
अपने आप को जायसवाल
कहने से डरता था,
वह आज क्लब की
शक्ति पाकर गर्व से अपने आप
को जायसवाल कहता है। शक्ति की उपासना एवं
समाज का सर्वांगीण विकास
ही क्लब की स्थापना का
मूल उद्देश्य है। समाज में परिवर्तन तथा उसे बेहतर भविष्य की ओर ले
जाने के वास्ते सभी
को संगठित करना है। क्लब का लक्ष्य है
कि समाज के सकारात्मक काम
समाज के लोगों द्वारा
ही पूरे किए जा सकें। क्योंकि
जब समर्थ संस्कारवान और संपूर्ण समाज
का निर्माण हो जाएगा तो
समाज अपने हित के सभी कार्य
स्वयं करने में सक्षम होगा।
प्रमुख मांगे
जायसवाल क्लब समाज के कुलदेवता राजराजेश्वर
भगवान सहस्त्राबाहुजी महराज व श्रद्धेय डॉ
काशी प्रसाद जायसवाल की प्रतिमा हर
शहर, हर जिला मुख्यालयों
पर लगवाने के साथ ही
काशी प्रसाद जायसवाल को भारत रत्न
दिलाने के लिए संकल्पित
है। साथ ही समाज के
उन महान हस्तियों जिन्होंने इस देश की
सेवा में प्रमुख स्थान बनाया है, जैसे श्रीनारायण गुरु-केरला, श्रीकामराज नाडार-तमिलनाडू, डॉ राजकुमार-कर्नाटक,
श्री गोठू लाछन्ना-आंध्र प्रदेश, श्री मोंटेक सिंह अहलूवालिया-पंजाब, श्री शिव नाडार-एचसीएल, श्री गोपाल-सह कार्यकारी इंफोसिस,
डॉ गोरख प्रसाद जायसवाल-यूपी, राय बहादुर डॉ हीरालाल राय-एमपी, श्री शिबूलाल-मुख्य कार्यकारी एवं प्रबंध निदेशक इंफोसिस सहित अन्य विभूतियों की पहचान कर
उन्हें समाज एवं देश में उचित स्थान दिलाने के लिए प्रयास
करेंगा। राजधानी से लेकर जिलों
में उनके नाम पर सड़क का
नामकरण करने व उनके नाम
पर मुद्रा के रुप में
क्वाइन जारी करने, स्कूल, कालेज, विश्व विद्यालय खोलने, एनसीआरटी में उनकी जीवनी को पढ़ाने की
भी मांग प्रदेश व केन्द्र सरकार
से करेगा। इसके अलावा विवाह के मौके पर
किए जा रहे फिजूलखर्ची
को रोकना और इस फिजूलखर्ची
को समाजहित में खर्च करने के लिए समाज
को प्रेरित करना है। समाज
के प्रत्येक व्यक्ति को हमेशा एक-दूसरे के सहयोग के
लिए तैयार करना है। इसके लिए समाज निर्माण और विकास के
लिए हर व्यक्ति को
आगे आना होगा। किसी एक व्यक्ति या
संस्था के सहयोग से
समाज ऊंचाइयों तक नहीं पहुंचेगा।
बेटे और बेटी में
कोई अंतर नहीं है। लोगों को चाहिए कि
वे बालिकाओं के लिए जो
मदद हो सके वह
जरूर करें। खुशी है कि जायसवाल
क्लब इसमें महती भूमिका अदा कर रहा है।
बेटियों को खूब पढ़ाएं,
उन्हें पढ़ाई के लिए जरूरी
सुविधा के लिए हरसंभव
मदद करना चाहिए। ाष्ट्रीय समस्याओं पर चिन्तन करना
एवं विचार कर निर्णय करना।
शिक्षा के माध्यम से
राष्ट्रीयता की भावना जाग्रत
करना एवं राष्ट्र हित के कार्यक्रमों में
सहयोग करना। समाज के हित में
व्यावसायिक प्रशिक्षण तथा कौशल विकास के कार्यक्रम को
करना। ऐसे कार्यकलापों का संचालन करना,
जिनका लक्ष्य समाज के लोगों का
आर्थिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, राजनैतिक, मानसिक एवं सामाजिक विकास का संरक्षण सुनिश्चित
करना हो। सरकारी, अर्ध सरकारी एवं राजनीति में समान भागीदारी को सुनिश्चित करवाना।
संकल्प
समाज के लोगों के
मध्य मित्रवत व्यवहार को प्रोत्साहित करने
के साथ उनमें भाई चारे एवं सहयोग स्थापित करना। समाज के लोगों के
कार्यशैली एवं जीवनशैली में सुधार के साथ साथ
उनके सामाजिक स्तर को राष्ट्र तथा
समाज के बीच ऊंचा
उठाने हेतु जो भी जरूरी
हो कार्य करना। समाज के लोगों को
प्रेरित कर समाज के
विकलांग व कुष्ठ जैसे
असाध्य रोगों से पीड़ितों की
मदद और सेवा करने
को आगे आये साथ ही विकलांग, गूगे
व नेत्रहीनों को स्वावलंबी बनाने
के लिए कार्य करना। प्राकृतिक आपदा या महामारी आदि
से पीड़ित समाज के लोगों का
संगठन के माध्यम से
हर संभव मदद करना। प्रभावित समाज के लोगों को
भोजन, वस्त्र, औषधि आदि से तत्काल सहायता
करना और विपत्ति से
ग्रस्त हुए समाज के लोगों को
अपेक्षित स्नेह, सहयोग और देखरेख दिलवाना।
विशेष रूप से निर्धन और
जरूरतमंद बच्चों व गर्भवती महिलाओं
को हानिरहित दवा, पौष्टिक भोजन, मौसम के अनुकूल वस्त्रों
आदि उपलब्ध करवाना। समाज के हित में
बिभिन्न विषयों के राज्य क्षेत्र,
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर
के ख्याति प्राप्त और योग्य विशेषज्ञों
को आमन्त्रित करके सेमिनार, वाद-विवाद, व्याख्यान, सम्मेलन, परिचर्चा, सामुहिक विवाह, वर वधू जान
पहचान आदि का आयोजन व
नियमित संचालन करके उनके रहन सहन व विज्ञान और
प्रौद्योगिकी की बौद्धिक गतिविधियों
को बढ़ावा देना।
सामाजिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करना
समाज के हित में
समय समय पर विभिन्न सांस्कृतिक
व साहित्यिक कार्यक्रमों का आयोजन करवाना।
समाज के लोगों को
सामाजिक सुरक्षा दिलाने के लिए विशेष
उपाय करना, जिसमें दुर्घटना, बिमारी, वृद्धावस्था आदि में जरूरी सहायता, बीमा और संरक्षण एवं
रोजगार, स्वरोजगार, पुनर्वास जैसे विषय भी शामिल हैं।
समाज के लोगों के
साथ भेद भाव, अन्याय, शोषण, अत्याचार, उत्पीड़न अस्पृश्यता आदि की स्थिति में
होने वाली घटनाएं घटने पर क्लब के
द्वारा सिविल, आपराधिक मुकदमे, शिकायत कायम करके या करवा के
यथासंभव उचित कठोर कार्रवाई करवाना और पदाधिकारियों को
विशेष रूप से प्रशिक्षित कर
पारंगत करना।
डॉ. काशी प्रसाद को मिले भारत रत्न
महान इतिहासकार, कानूनविद, मुद्राशास्त्री, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व पुरातत्व के
अर्न्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विद्वान व जायसवाल समाज
के गौरव डॉ. काशी प्रसाद जायसवाल को मरणोपरान्त भारत
का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न देने की मांग एक
अरसे से हो रही
है। लेकिन अभी तक किसी राजनेता
या उसके दल ने पहल
नहीं की है। यह
अलग बात है जायसवाल क्लब
एवं उससे जुड़े अनुसांगिक संगठने लगातार उन्हें भारत देने की मांग समय-समय पर करते रहे
है। यह देश के
लिए गौरव की बात है
कि देर से ही सही
लोग उनकी वैभव, महत्ता व कार्यक्षमता को
समझने लगे है। हकीकत तो यही है
कि इतिहास से लेकर साहित्य
व स्वतंत्रता आंदोलन के माध्यम से
भारत की आजादी में
अतुलनीय योगदान दिया है, उन्हें बहुत पहले ही भारतरत्न मिल
जाना चाहिए। लेकिन सरकारों ने अन्य महान
विभूतियों की तरह काशी
प्रसाद जायसवाल के इतिहास को
लोगों के बीच आने
नहीं दिया।