‘राम-राष्ट्र’ के साथ लगेगा ‘बाबा विश्वनाथ’ का ‘छौका’
2019 लोकसभा चुनाव का शंखनाद हो चुका है। आचार संहिता लागू हो, इससे पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ताबड़तोड़ रैलियां कर चुनावी एजेंडा भी तय कर दिया है। इन रैलियों की समीक्षा के बाद बहुत हद तक भाजपा का विजन साफ हो गया है। भाजपा चुनावी मैदान में विकास के साथ-साथ ‘राम-राष्ट्र’ व ‘बाबा विश्वनाथ धाम’ के मुद्दे को जोर-शोर उठायेंगी। जवाब में न चाहते हुए मोदी खौफ में एक मंच पर आएं बेसुरों की टोली भाजपा को किस दांव से मात देगी, ये तो वक्त बतायेगा। लेकिन इतना तो साफ है कि मोदी विरोध में एकजुट मुस्लिम मतदाता जितना गठबंधन के पक्ष में बलबलायेंगे या यूं कहे सड़कों पर प्रदर्शन करेंगे, उसे बीजेपी भुनाने की हर संभव कोशिश करेगी। इन सबके बीच मोदी लहर की बयार में सबसे ज्यादा लोगों की निगाहे काशी पर होंगी। क्योंकि काशी से खुद प्रधानमंत्री मोदी एकबार अपनी किस्मत आजमाने का ऐलान कर चुके है
सुरेश गांधी
फिरहाल, लोकसभा चुनाव
में प्रचंड सीटों
के साथ केन्द्र
में मोदी को
सत्ता में स्थापित
कराने वाली यूपी
इस बार भाजपा
के लिए नाक
का सवाल बन
गया है। खासकर
वजूद बनाने की
खातिर साथ आएं
बुआ-बबुआ के
मिलने से बीजेपी
को कड़ी चुनौती
का सामना करना
पड़ सकता है।
उधर, आयोग की
घोषणा से ठीक
पहले भाजपा नेतृत्व
ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी को वाराणसी
से ही उम्मीदवारी
पर अपनी मुहर
लगा दी है।
हालांकि कुछ दिन
पहले ऐसी अटकले
लगाई जा रही
थीं कि पीएम
मोदी ओडिशा के
पुरी से चुनाव
लड़ सकते हैं,
लेकिन अब इन
सभी अटकलों पर
विराम लग गया
है। साल 2014 को
लोकसभा चुनाव में पीएम
मोदी गुजरात की
वडोदरा सीट से
भी चुनाव लड़े
थे और यहां
भी उन्होंने जीत
दर्ज की थी।
हालांकि बाद में
उन्होंने ये सीट
छोड़ दी थी।
जहां तक पार्टी
नेतृत्व का प्रधानमंत्री
मोदी को दुबारा
वाराणसी से ही
चुनाव लडाने के
फैसले का सवाल
है तो इसके
पीछे तर्क यही
यही है कि
वाराणसी के सहारे
लोकसभा चुनाव 2014 एवं विधानसभा
चुनाव 2017 की तर्ज
पर यूपी ही
नहीं, बिहार, मध्य
प्रदेश व झारखंड
जीतने की है।
गौरतलब है कि
साल 2014 के लोकसभा
चुनाव में पीएम
मोदी ने आम
आदमी पार्टी के
संयोजक अरविंद केजरीवाल को
तीन लाख 71 हजार
वोटों से हराया
था। पीएम मोदी
को कुल पांच
लाख 81 हजार वोट
मिले थे। वहीं,
इस सीट पर
कांग्रेस उम्मीदवार अजय राय
की जमानत जब्त
हो गई थी।
उन्हें सिर्फ करीब 75 हजार
वोट मिले थे।
इस बार अरविंद
केजरीवाल ने लोकसभा
चुनाव लड़ने से
इनकार कर दिया
है। जबकि सपा-बसपा कांग्रेस
सहित कोई भी
विपक्षी पार्टी अपने उम्मीदवार
की घोषणा नहीं
की है, लेकिन
दावे किए जा
रहे है कि
मोदी इस बार
बनारस से दूने
वोटों से जीतेंगे।
इस कयास का
आधार लोकसभा चुनाव
2014 है। हालांकि चुनावी शंखनाद
से ठीक तीन
दिन पहले प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी ने
यूपी को पूरब
से पश्चिम तक
मथ डाला। इस
दौरान मोदी ने
‘काशी विश्वनाथ धाम‘ के विस्तारीकरण की बात
कहकर संकेत दिया
कि काशी के
कायाकल्प की उनकी
कल्पना अभी और
भी कुछ है।
देखा जाएं तो
मोदी की ये
बाते सिर्फ काशी
तक ही नहीं
सीमित रहने वाली।
इसके मतलब सियायी
उठापटक में दूर
तक निकाले जायेगे।
बेशक, 2014 से 2019 तक मोदी
ने बतौर सांसद
विकास कार्यों के
बूते बनारस को
बदलने का संकल्प
पूरा किया ही
है वहीं प्रधानमंत्री
के तौर पर
काशी से उन्होंने
कई ऐसे अभियान
और योजनाओं को
आगे बढ़ाया, जो
देश-दुनिया में
मिसाल बन गए।
काशी की आध्यात्मिकता,
रचनात्मकता और सांस्कृतिक
विरासत को नजदीक
से महसूस कर
उसे और समृद्ध
करने के लिए
प्रधानमंत्री ने वह
सब किया, जिसकी
काशीवासी कल्पना भी नहीं
करते थे। पांच
साल में काशी
के कायाकल्प का
कारण यह है
कि प्रधानमंत्री ने
30 हजार करोड़ से
अधिक की परियोजनाओं
का शिलान्यास ही
नहीं किया, शुभारंभ
कर अपने वादों-इरादों में अंतर
न होने को
सच साबित कर
दिया।
खासकर कार्यकाल खत्म
होने के अंतिम
दिनों में मोदी
ने काशी विश्वनाथ
के वितारीकरण की
जो नीव रखी,
उसके मायने जो
भी निकालें जाएं
लेकिन उन्होंने चुनावी
लिहाज से बड़ा
दाव चल दी
है। लोगों को
भरोसा हो चला
है कि काशीवासियों
का सपना मोदी
ही पूरा कर
सकते है। चाहे
वो स्मार्ट सिटी
बनने, पौराणिक धरोहरों
और ऐतिहासिक स्मारकों
के संरक्षण-संवर्धन
और स्वच्छता और
पर्यावरण के लिहाज
से शहर की
रैंकिंग को बेहतर
करने के साथ-साथ काशी
को बौद्धिक राजधानी
बनने की बात
हो यह सब
मोदी ही कर
सकते है। इसके
पीछे बड़ी वजह
मोदी का काशीवासियों
से सियासी नहीं
बल्कि आत्मीय रिश्ते
जोडना है। छठ
पूजा हो या
दीपावली या फिर
नया साल, मोदी
ने हर अवसर
पर वाराणसी को
अपने जेहन में
रखा। 17 सितंबर को वह
अपना 68वां जन्मदिन
मनाने के लिए
अपने संसदीय क्षेत्र
के बच्चों के
बीच आए। शायद
इसीलिए वाराणसी के लोग
‘नमो-नमो’ करते हुए
शहर में बीते
पांच दशक और
पांच साल में
हुए विकास कार्यों
के अंतर की
चर्चा करते हैं।
तीन दिवसीय प्रवासी
भारतीय सम्मेलन में सौ
से अधिक देशों
के छह हजार
से अधिक प्रवासी
आए और काशी
की मेहमाननवाजी के
साथ भारत की
खुशनुमा यादें लेकर गए।
यह सब मोदी
के चलते ही
संभव हो पाया।
इससे पहले
प्रधानमंत्री की ही
पहल पर शहर
और आसपास के
जिले के लोगों
को बाबतपुर एयरपोर्ट
से शहर तक
आने के लिए
फोरलेन फ्लाईओवर की सुविधा
ही नहीं मिली,
मौजूदा समय में
यहां 80 से अधिक
फ्लाइट्स शुरू हो
चुकी हैं। देश
के सभी बड़े
शहरों से यहां
के लोग सीधे
जा सकते हैं।
वाराणसी के क्षेत्रीय
कार्यालय से पासपोर्ट
का कोटा 800 से
बढ़ाकर 1200 कर दिया
गया है। बनारस
के बदलाव को
काशीवासी महसूस करते हैं।
काफी काम हुआ
है, विपक्षी भी
इसे नकारते नहीं
हैं। विकलांग और
शौचालय के वर्षों
से प्रचलित नामों
को नया नाम
प्रधानमंत्री ने अपने
संसदीय क्षेत्र में ही
दिया। डीरेका में
एक ही दिन
में करीब 10 हजार
विकलांगों को उपकरण
वितरित करने के
मौके पर प्रधानमंत्री
ने उन्हें दिव्यांगजन
का नाम दिया।
इसी तरह शाहंशाहपुर
गांव की मुसहर
बस्ती में उन्होंने
शौचालय की पिट
रखते हुए इसे
इज्जत घर का
नाम दिया था।
डीरेका से उन्होंने
गैर उपयोगी वस्तुओं
को उपयोगी बताते
हुए ‘कबाड़ से
जुगाड़’ प्रदर्शनी का उद्घाटन
भी किया था।
प्रधानमंत्री ने वाराणसी
से चुनाव लड़ने
से पहले कहा
था ‘मुझे गंगा
मैया ने बुलाया
है’। इसे
निभाते हुए 12 दिसंबर, 2015 को
वह जापान के
प्रधानमंत्री शिंजो अबे को
गंगा आरती दिखाने
के लिए अपने
साथ लेकर लाए।
इसी तरह 12 मार्च,
2018 को फ्रांस के तत्कालीन
राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रां के
साथ आए प्रधानमंत्री
ने उनके साथ
गंगा में नौका
विहार किया। दोनों
शासनाध्यक्षों के दौरे
से दुनिया भर
में काशी का
महत्व नए सिरे
से बनाने में
आसानी हुई।
इतना ही
नहीं लोग अब
तो खुलकर कहने
लगे है कि
मोदी के नेतृत्व
में देश न
सिर्फ सुरक्षित है,
बल्कि विकास भी
करेगा। पुलवामा के बाद
मोदी ने जो
एअर स्ट्राइक किया
विपक्ष सपने में
भी करने की
सोच नहीं सकता।
विंग कमांडर अभिनंदन
के वापसी से
लेकर पाकिस्तान का
टमाटर रोकने का
माद्दा मोदी में
ही हो सकता
है। किसानों के
खाते में छह
हजार रुपये सालाना
भेजना, सामान्य वर्ग को
दस फीसद आरक्षण
देना मोदी के
ही वस का
है। इसके आलावा
मुद्रा, उज्जवला, सौभाग्य, आवास
योजना जैसी योजनाओं
के लाभार्थियों के
रिटर्न गिफ्ट मोदी की
बड़ी उपलब्धि है।
वाराणसी से कोलकाता
तक गंगा में
वाणिज्यिक जल परिवहन
की शुरूआत, काशी
विश्वनाथ मंदिर में श्रद्धालुओं
को बेहतर सुविधाएं
दिलाने के लिए
4000 वर्ग मीटर में
कॉरिडोर, शहर में
बिजली के खुले
तारों के जाल
से मुक्ति दिलाने
के लिए आईपीडीएस
की शुरूआत, महामना
एक्सप्रेस और देश
में निर्मित पहली
सेमी हाईस्पीड ट्रेन
वंदेभारत के जरिए
काशी को नई
दिल्ली से जोड़ा
जाना, बनारस की
बुनकरी और पूर्वांचल
के हस्तशिल्प को
विश्व बाजार में
स्थापित करने के
लिए दीनदयाल हस्तकला
संकुल की स्थापना,
बीएचयू से जुड़े
ट्रॉमा सेंटर के अलावा
सर सुंदरलाल अस्पताल
में एम्स जैसी
सभी सुविधाएं मुहैया
कराना, कैंसर पीड़ितों के
इलाज और शोध
के लिए महामना
के नाम पर
11 सौ करोड़ की
कॉप्लेक्स मोदी की
बड़ी उपलब्धि है।
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