मिर्जापुर : जातीय गुणाभाग में देशभक्ति का शोर
अपने प्राकृतिक
सौन्दर्य एवं तीनों
लोकों में न्यारी
मां विन्ध्यवासिनी को
अपने आंचल में
समेटे मिर्जापुर में
1984 में कांग्रेस के उमाकांत
मिश्रा जीते थे।
इसके बाद कांग्रेस
यहां से अब
तक नहीं जीती।
लेकिन नेहरु मंत्रीमंडल
के सदस्य रहे
पंडित कमलापति त्रिपाठी
के पपौत्र ललितेशपति
त्रिपाठी अब यहां
विरासत के सहारे
जनाधार तलाशने की जद्दोजहद
में है। जबकि
उनका मुकाबला अपना
दल व भाजपा
के गठबंधन प्रत्याशी
अनुप्रिया पटेल से
है। वर्तमान में
वो यहीं से
भी सांसद है।
2014 में भाजपा अपना दल
के गठबंधन से
अनुप्रिया को 4,36,536 वोट मिले
थे। उन्होंने अपने
निकटतम प्रतिद्वंदी बसपा के
समुद्र बिंद को
2 लाख से ज्यादा
वोटों के अंतर
से हराया था।
सनुद्र बिंद को
2,17,457 वोट मिले थे।
वहीं, 1,52,666 वोटों के साथ
कांग्रेस के ललितेश
पति त्रिपाठी तीसरे
स्थान पर रहे
थे। इस बार
भी लड़ाई कांटे
की है। विन्ध्याचल
धाम के अमरेश
पांडेय कहते है
कि प्रत्याशियों के
बाहरी होने का
दर्द तो है।
लेकिन जब वोट
देने की बारी
आयेगी तो उनके
जेहन में राष्ट्र
सर्वोपरि होगा
सुरेश गांधी
फिरहाल, 19 मई को
अंतिम चरण में
होने वाले लोकसभा
चुनाव में मिर्जापुर
का सियासी रण
अपने चरम पर
है। सपा-बसपा
गठबंधन के बाद
से मिर्जापुर लोकसभा
सीट पर चुनाव
रोमांचक होने के
आसार नजर आ
रहे हैं। दरअसल,
मिर्जापुर लोकसभा सीट से
वर्तमान में केंद्रीय
मंत्री और मौजूदा
सांसद अनुप्रिया पटेल
एक बार फिर
मैदान में है।
सपा-बसपा गठबंधन
ने इस सीट
से बीजेपी के
बागी मछलीशहर लोकसभा
क्षेत्र से मौजूदा
सांसद राम चरित्र
निषाद को टिकट
दिया है। जबकि
कांग्रेस ने पुनः
ललितेशपति त्रिपाठी को अपना
उम्मींदवार बनाया है। श्री
त्रिपाठी को इस
बार उम्मींद है
कि उनके पितामह
पं कमलापति त्रिपाठी
व दादा लोकपति
त्रिपाठी का आर्शीवाद
व खुद उनके
किए कामों तथा
लोगों के सुख
दुख में शामिल
होने का ईनाम
जरुर मिलेगा। जाति
आधारित राजनीति के लिए
विख्यात इस सीट
पर ललितेश को
भरोसा है कि
ब्राह्मण तो उनके
साथ है ही।
गठबंधन द्वारा बिन्द
समाज के घोषित
उम्मींदवार का टिकट
काटे जाने से
नाराज समाज का
भी उन्हें भरपूर
सहयोग मिल रहा
है। बिन्द समाज
के नेता उनके
साथ घूम रहे
है। इसके अलावा
आदिवासी बेल्ट में उनकी
मौजूदगी के साथ
उनकी हर समस्या
के समाधान का
भी उन्हें भरपूर
लाभ मिल रहा
है। बड़ी संख्या
में मुस्लिम व
अन्य जातियों का
भी कांग्रेस के
प्रति झुकाव उन्हें
दिल्ली की राह
दिखायेगा। जबकि मुस्लिम
वोटों की गोलबंदी
के सहारे सत्ता
की छलांग लगाने
का समीकरण साध
रही सपा बसपा
के राम चरित्र
निषाद इस मुगालते
में है कि
मल्लाह, बिन्द, यादव व
मुसलमान की तिकड़ी
उसकी जीत आसान
कर देंगे। लेकिन
यह इतना सहज
है नहीं जितना
दावा किया जा
रहा है। इसकी
बड़ी वजह उनका
स्थानीय ना होना
तो है ही
बिन्दों की नाराजगी
भी है। यह
अलग बात है
कि अन्य सर्वण
जातियों का बटना
उनकी जीत को
आसान बनायेगी। चिल्ह
के करुणा दुबे
कहते हैं कि
ललितेश का व्यवहार
ब्राह्मण बाहुल्य इलाकों में
ही नहीं, अन्य
बिरादरियों के लोगों
के दिलों में
बसा है। 2012 से
2017 तक विधायक के तौर
पर उनके द्वारा
लखनऊ में सरकार
न होने पर
भी कराए गए
विकास कार्य भी
लोगों को याद
हैं। समर्थकों की
राय है कि
2019 में मोदी लहर
नहीं है। जबकि
सुलेमान का दावा
है कि मुसलमान
भी कांग्रेस का
साथ देंगे, क्योंकि
वह केंद्र में
भाजपा को रोकने
वाले मजबूत प्रत्याशी
को सर्पोट करेंगे।
दुबारा अपनी भाग्य
आजमा रही अनुप्रिया
पटेल को आशा
ही नहीं विश्वास
है कि एक
बार फिर अपने
स्वजातिय बंधुओं एवं मोदी
मैजिक के बूते
किला फतह करेंगी।
उनका दावा है
कि पटेल, बिन्द,
मल्लाह, कोल भील,
बनिया समेत अन्य
पिछड़ी सर्वण जातियों
का एक बड़ा
हिस्सा उनके साथ
है। यह अलग
बात है कि
बालेंदु मणि त्रिपाठी
को भाजपा के
जिलाध्यक्ष पद से
हटाए जाने के
बाद से पार्टी
का एक बड़ा
धड़ा नाराज है।
उन्हें मनाने की कोशिश
चल रही है।
क्षत्रियों में भी
नाराजगी है और
इसे दूर करने
के लिए केंद्रीय
गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने
यहां रुककर अपने
पुराने रिश्तों को ताजा
करने के साथ
ही उन्हें पार्टी
और प्रत्याशी दोनों
का ध्यान रखने
की सलाह दी
है। अनुप्रिया खेमा
ब्राह्मणों को सहेजने
के साथ-साथ
बिंदों पर खास
नजर रखे हुए
है। मौर्य बिरादरी
पहले से ही
भाजपा के साथ
खुलकर है। ऐसे
में कौन किस
पर भारी रहेगा
यह तो 23 मई
को पता चलेगा।
लेकिन कोतवाली कटरा
निवासी संजीव कसेरा कहते
है सांसद ने
अपेक्षा के अनुरुप
विकास में रुचि
नहीं दिखाई, लोकसभा
में मुद्दे भी
नहीं उठाई, लेकिन
जनता मोदी के
नाम पर वोट
करेगी।
उनका कहना
है कि पहली
बार देश को
ऐसा जांबाज प्रधानमंत्री
मिला है जो
पाकिस्तान में घुस
कर मारा। दुनिया
में भारत का
न सिर्फ मान
सम्मान बढ़ाया है बल्कि
दबाव बनाकर सैकड़ों
लोगों की जान
लेने वाले कुख्यात
आतंकी मसूद अजहर
को यूएन से
पाबंदी भी लगवाई
है। बगल में
खडे सोनू पटले
कहते है क्या
नहीं कराया है
सांसद ने। सालों
से अधर में
लटकी 200 करोड़ से
भी अधिक की
बाणसागर परियोजना को चालू
कराया। बिजली कटौती से
मुक्ति मिली है।
सड़के लहक दहक
रही है। सांसद
निधि से शत
प्रतिशत काम हुआ
है। लोगों को
मकान शौचालय, गैसे
कनेक्शन सबकुछ तो मिला
है। विरोधी कुछ
भी कहें लेकिन
जीतेगी अनुप्रिया ही। स्वास्थ्य
एवं परिवार कल्याण
राज्यमंत्री ने क्षेत्रीय
लोगों को राजकीय
मेडिकल कॉलेज (निर्माणाधीन), प्रसूताओं
के लिए पीपीपी
मॉडल पर 100 बेड
की व्यवस्था, फोरलेन,
मॉडल रेलवे स्टेशन,
बाईपास की सौगात
दी है। जमुआ
व कछवा के
भगवती यादव व
नूरमोहम्मद कहते हैं
कि लोग अनुप्रिया
के काम और
मोदी के नाम
पर वोट देंगे।
चुनार और भटौली
पुल उनकी बड़ी
उपलब्धि है।
यहां के
कालीन और पीतल
उद्योग भी खूब
ख्याति रखते आये
हैं, मगर अब
पहले वाली बात
नहीं रही। सड़क,
बिजली, पानी, शिक्षा और
स्वास्थ्य जैसे बुनियादी
मुद्दों के बीच
कालीन उद्योग पर
छाये संकट के
बदल से निजात
दिलाने तथा रोजगार
पैदा करने के
मुद्दे इस चुनाव
में खास हैं।
मिर्जापुर शहर में
कई मुद्दे हैं।
बड़े कारोबारी, सामान्य
दुकानदार और आम
लोगों की राय
करीब-करीब एक
जैसी है। कालीन
कारोबारी मानते हैं कि
सबसे बड़ा मुद्दा
कालीन का गिरता
व्यापार है। कारोबारी
सिद्धनाथ सिंह कहते
है इस काम
में लगभग 75 फीसदी
की गिरावट आयी
है। डिमांड उतनी
नहीं रही कि
नये कारीगर तैयार
किये जाएं। पुराने
कारीगर भी काम
छोड़ रहे हैं।
पेट पालना मुश्किल
है। पर्यटन की
दृष्टि से मिर्जापुर
काफी महत्वपूर्ण जिला
माना जाता है।
यहां की प्राकृतिक
सुंदरता और धार्मिक
वातावरण लोगों का ध्यान
बरबस ही अपनी
ओर खींच लाते
हैं। मिर्जापुर स्थित
विन्ध्याचल धाम भारत
के प्रमुख हिन्दू
तीर्थ स्थलों में
से एक है।
मिर्जापुर “लालस्टोन“ के लिए
बहुत प्रसिद्ध है।
विन्ध्याचल धाम के
अलावा यहां के
सीता कुण्ड, लाल
भैरव मंदिर, मोती
तालाब, टंडा जलप्रपात,
विन्धाम झरना, तारकेश्वहर महादेव,
महा त्रिकोण, शिव
पुर, चुनार किला,
गुरुद्वारा गुरु दा
बाघ, पुण्यजल नदी
और रामेश्वपर भी
प्रसिद्ध हैं। आदर्श
इण्टर कॉलेज अदलहाट,
स्वामी गोविंदाश्रम पोस्ट ग्रेजुएट
कॉलेज, के.बी
पोस्ट ग्रेजुएट यहां
के प्रमुख शैक्षिण
संस्थान हैं। यह
वाराणसी जिले के
उत्तर, सोनभद्र जिले के
दक्षिण और इलाहाबाद
जिले के पश्चिम
से घिरा हुआ
है। मिर्जापुर रेलमार्ग
द्वारा भारत के
कई प्रमुख शहरों
से जुड़ा हुआ
है। लखनऊ, इलाहाबाद,
वाराणसी, पटना, दिल्ली और
कोलकाता आदि जगहों
से सड़कमार्ग द्वारा
पहुंचा जा सकता
हैं। मिर्जापुर जिला
मिर्जापुर डिविजन का एक
हिस्सा है। एक
समय सोनभद्र उत्तर
प्रदेश का सबसे
बड़ा जिला था,
लेकिन 1989 में विभाजन
कर मिर्जापुर को
नया जिला बना
दिया गया। इस
जिले में 4 तहसील
हैं जो 12 ब्लॉक
में बंटे हैं।
मिर्जापुर जिले की
आबादी करीब 25 लाख
है जो यूपी
का 33वां सबसे
घनी आबादी वाला
जिला है।
बीजेपी ने इस
सीट पर पहली
बार 1991 में अपना
खाता खोला था।
मिर्जापुर लोकसभा सीट के
अंतर्गत मरिहन, चुनार, छानबे,
मिर्जापुर और मझावन
विधानसभा सीटें आती हैं।
इनमें से चार
विधानसभा सीटों पर बीजेपी
और एक विधानसभा
सीट पर अनुप्रिया
पटेल गुट के
अपना दल (सोनेलाल)
का कब्जा है।
मिर्जापुर लोकसभा सीट पर
अबतक 15 बार चुनाव
हो चुके हैं।
इस सीट पर
5 बार कांग्रेस को
जीत मिली है।
वहीं, बीजेपी ने
2 बार, समाजवादी पार्टी ने
4 बार और बसपा
ने 2 बार जीत
दर्ज की है।
मिर्जापुर लोकसभा सीट पर
मतदाताओं की कुल
संख्या 17,20,661 है। इनमें
से 9,38,504 पुरुष मतदाता और
7,82,028 महिला मतदाता हैं। करीब
25 लाख की आबादी
वाले इस लोकसभा
क्षेत्र में सामान्य
वर्ग की आबादी
18,15,709 लाख है, तो
अनुसूचित जाति के
लोगों की आबादी
6,61,129 और अनुसूचित जनजाति की
आबादी 20,132 है। धर्म
आधारित आबादी के आधार
पर देखा जाए
तो यहां पर
हिंदूओं की आबादी
सबसे ज्यादा है।
उनकी संख्या 22 लाख
से अधिक है,
जबकि मुस्लिमों की
संख्या 1 लाख 95 हजार है
तो ईसाइयों की
आबादी 2500 के आसपास
है। जातीय जानकारी
देते हुए नवनीत
ने बताया कि
इस क्षेत्र में
पटेल (कुर्मी) 3,05,000, एससी
3,35,000, ब्राह्मण 1,55,000, क्षत्रिय 80,000, वैश्य 1,40,000, एसटी (कोल) 1,15,000, बिंद,
निषाद 1,45,000, मौर्या 1,20,000, पाल 50,000, बियार 30,000, यादव
85,000 है।
एक समय
में कांग्रेस का
यहां दबदबा हुआ
करता था, लेकिन
1984 में मिली जीत
के बाद कांग्रेस
को अभी तक
जीत नहीं मिल
पाई है। 1984 में
उमाकांत मिश्रा यहां से
सांसद चुने गए
थे, उसके बाद
से कांग्रेस यहां
से जीत नहीं
सकी है। तब
से लेकर अब
तक 35 साल के
इतिहास में 5 दलों ने
जीत हासिल की,
लेकिन कांग्रेस को
जीत नहीं मिली।
1957 के लोकसभा चुनाव में
कांग्रेस के जॉन
एन विल्सन ने
जीत हासिल की
थी। दस्यु सुंदरी
फूलन देवी इसी
सीट से 2 बार
लोकसभा पहुंचने में कामयाब
रही थीं। 1990 के
बाद से राजनीतिक
परिदृश्य की बात
की जाए तो
1991 में भजपा ने
यहां से पहली
बार जीत हासिल
की और वीरेंद्र
सिंह लोकसभा पहुंचे।
इससे पहले 1967 के
चुनाव में भारतीय
जनसंघ को जीत
मिली थी। 2001 में
फूलन की हत्या
के बाद 2002 में
हुए उपचुनाव में
सपा के ही
टिकट पर रामरती
बिंंद ने जीत
हासिल की। 2004 में
बसपा के नरेंद्र
कुमार कुशवाहा यहां
से चुनाव जीत
गए। 2009 में भी
सपा के बालकुमार
पटेल ने जीत
हासिल की।
मिर्जापुर जिले का
गठन ईस्ट इंडिया
कम्पनी के अफसर
लार्ड मार्कक्वेस वेलेस्ले
ने किया था।
जब उन्हें ईस्ट
इंडिया कम्पनी का अफसर
बनाया गया तो
बंगाल से मिर्जापुर
तक व्यापारिक गतिविधियों
के लिए जल
मार्ग की स्थापना
की। बंगाल घाट
से मिर्जापुर तक
पानी की जहाजों
से विभिन्न सामानों
का आयात व
निर्यात होता था।
लार्ड वेलेस्ले के
नाम पर एक
नगर भी है।
उसका नाम वर्तमान
में वासलीगंज हो
गया है। ब्रिटिश
हुकूमत ने बरीर
घाट(बरियाघाट) का
निर्माण कराया। मुकेरी बाजार
और तुलसी चौक
तत्कालीन समय के
सबसे समृद्ध बाजार
थे। शक्ति त्रिकोण
का यह क्षेत्र
अपने पांच सौ
साल पुराने पीतल
उद्योग के लिए
पुरे विश्व में
प्रसिद्ध है तो
वहीं यह शहर
अपने लाल पत्थरों
के कारण भी
विश्व मानचित्र पर
एक अलग पहचान
रखता है, इन्हीं
लाल पत्थरों का
उपयोग करके ही
सम्राट अशोक ने
अशोक स्तम्भ का
निर्माण करवाया था। प्राचीन
काल से यह
लौह, लाख, कपड़ा
एवं रूई के
व्यापार के लिए
मशहूर रहा है।
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