‘क्षेत्रीयता’ की अनदेखी से नहीं पनपेगी ‘राष्ट्रवाद’
दिल्ली विधानसभा में आम आदमी पार्टी को दुसरी बार प्रचंड बहुमत मिला है। या यूं कहे आप दिल्ली में जीत की हैट्रिक लगाने में सफल रही। पार्टी के खाते में फिलहाल 62 सीटें गयी है, जबकि बीजेपी को मात्र 8 सीटे ही मिली है। कांग्रेस का एकबार फिर निल बटा सन्नाटे में है। मतलब साफ है राष्ट्रवाद की लहर पर सवार बीजेपी को दिल्ली की जनता ने आयुष्मान हेल्थ कार्ड के मुकाबले मोहल्ला क्लिनिक के मुद्दे पर जमकर बैटिंग की। सिसोदिया के बेहतर शिक्षा के आगे बीजेपी के दो रुपये किलों आटे की हवा निकल गयी। मुफ्त पानी बिजली व महिला बस यात्रा पर राष्ट्रवाद का मुद्दा सिसक-सिसक कर घूटता दिखा। झुग्गी के बदले लोगों को मकान रास आयी। और बीजेपी के आयातित मनोज तिवारी के आगे केजरीवाल के क्षेत्रीय कार्यकर्ता पास हुए
फिरहाल, हकीकत तो
यही है कि
दिल्ली विधानसभा चुनाव ने
संकेत दिया है
कि चाहे वो
क्षेत्रीय मुद्दे हो या
क्षेत्रीय कार्यकर्ता उनकी उपेक्षा
अब नहीं चलेगी।
आम गरीब जनता
को राष्ट्र से
तो प्यार है
लेकिन उसके जरुरतों
की अनदेखी कर
नहीं। कुछ ऐसा
ही संकेत झारखंड
ने भी दी
थी, लेकिन हाईकमान
ने तवज्जों नहीं
दी। परिणाम सामने
है कि जीती
हुई बाजी दिल्ली
भी हार में
बदल गयी। बता
दें, दिल्ली के
चुनावों में बीजेपी
ने गंदे पानी
का मुद्दा जोर-शोर से
उठाया था। दिल्ली
और आसपास के
शहरों जैसे नोएडा
और गुरुग्राम के
बाशिंदे ये नहीं
जानते कि उनका
पीने का पानी
कितना सुरक्षित और
कितना साफ है?
लेकिन दिल्ली की
सरकार ने जहां
पानी को बिल्कुल
सुरक्षित बताया, वहीं केंद्र
सरकार ऐसा नहीं
मानती थी। अवैध
कॉलोनी और झुग्गी
के बदले मकान
का मुद्दा भी
छाया रहा।
मोदी सरकर
ने अवैध कॉलोनियों
की समस्या की
जो 40 साल से
समस्या थी, सॉल्व
की और 7 लाख
घर वालों को
और 40 लाख कॉलोनी
वालों को न्याय
दिया। इसका फायदा
बीजेपी को नहीं
हुआ बल्कि झुग्गी
के बदले मकान
मुद्दे पर केजरीवाल
पास हुए। खास
बात यह रही
कि केजरीवाल ने
शुरुआत से ही
काम यानी विकास
पर फोकस किया।
लेकिन बीजेपी 370, राम
मंदिर, हिन्दुस्तान पाकिस्तान में
उलझी रही। परिणाम
यह रहा कि
महिलाओं का मुफ्त
सफर व गरीब
दलित का मुफ्त
बिजली पानी रास
आयी। पार्टी शुरू
से जानती थी
कि बिजली और
पानी जैसे मुद्दे
दिल्ली के हर
आदमी को प्रभावित
करते हैं। ऐसे
में इसका असर
वोट पर भी
दिखा। और इसमें
मुस्लिमों की एकजुटता
का ऐसा तड़का
लगा कि बीजेपी
चारों खाने चित
नजर आयी। जहां
तक कांग्रेस का
सवाल है तो
वो इसी में
खुश है कि
बीजेपी के हाथों
एक-एक राज्य
फिसल रहे है।
केजरीवाल का सबसे
बड़ा मास्टरस्ट्रोक दिल्ली
के स्कूलों की
कायापलट रही। दिल्ली
के सरकारी स्कूलों
का कायाकल्प जिस
तरह मनीष सिसोदयिा
ने डिप्टी सीएम
और शिक्षा मंत्री
रहते किया वो
बीजेपी के दो
रुपये किलो आटे
देने वाले वादे
पर भारी पड
गयी। सरकार ने
200 शिक्षकों को प्रशिक्षण
के लिए देश
के बाहर भेजा।
इसका मतलब यह
कि सिर्फ यही
कोशिश नहीं हुई
कि स्कूलों को
ठीक किया जाये,
बल्कि बच्चों की
पढ़ाई-लिखाई अच्छी
हो, इसके लिए
भी पहलकदमी की
गयी। उच्च शिक्षा
के लिए दस
लाख रुपये तक
के लोन में
दिल्ली सरकार खुद गारंटर
बनी। प्रयोगशालाओं, पुस्तकालय, खेल-कूद,
भवन, कंप्यूटर, यूनिफॉर्म
आदि- हर पहलू
पर समुचित ध्यान
दिया गया है।
इन प्रयासों का
सबसे अच्छा परिणाम
यह रहा है
कि स्कूलों का
माहौल बहुत रोचक
बन गया है।
इससे गरीब तबके
के बच्चों को
सम्मान के साथ
अच्छी शिक्षा पाने
का अवसर पैदा
हुआ है तथा
उनके साथ व्यवहार
भी सम्माननीय हो
रहा है। सरकार
की कोशिशों का
ही नतीजा है
कि उत्तीर्ण होने
वालों छात्रों का
आंकड़ा नब्बे फीसदी
के आसपास पहुंच
गया है, जो
बहुत बड़ी उपलब्धि
है।
जहां तक
काम की बात
है, तो सबसे
उल्लेखनीय बिजली के बिल
का मामला है।
इससे केवल गरीब
घरों को फायदा
नहीं मिला है,
बल्कि कम मांग
के मौसम में
अधिक आमदनी के
परिवारों की भी
बचत हुई है।
कई संभ्रांत इलाकों
में जहां बिजली
की बचत की
गयी है, वहां
जीरो बिल आये
हैं। बिजली दरों
से जनता के
बड़े हिस्से को
कमोबेश फायदा हुआ है,
गरीबों को तो
पूरी तरह से
रियायत मिली है।
ऐसे में दिल्ली
के गरीबों को
कहीं-न-कहीं
भरोसा हो गया
है कि ये
सभी काम हमारे
लिए किये जा
रहे हैं और
इनमें कहीं भी
कोई राजनीतिक लोभ
नहीं है या
भ्रष्टाचार करने या
पैसा बनाने की
कोई नीयत नहीं
है। जनता का
यह विश्वास जो
इधर-उधर की
बयानबाजियां हुईं, उनके असर
से उठा नहीं
और केवल बंटवारे
की राजनीति, आप
किस धर्म के
हैं, किस जाति
के हैं- ऐसी
बातों में जनता
पड़ी नहीं। इससे
यह भी इंगित
होता है कि
मतदाता अपने वोट
का इस्तेमाल अपनी
सोच और अपने
विवेक के हिसाब
से करता है।
वह मतदाता गरीब
भले ही हो,
लेकिन राजनीतिक चयन
की प्रक्रिया में
उसकी बुद्धि प्रखर
रूप से संचालित
होती है तथा
वह उसके अनुरूप
निर्णय लेने में
सक्षम होता है।
वैसे भी
अगर जनता सरकार
को टैक्स देती
है तो सरकार
की जिम्मेदारी बनती
है कि वह
उसकी दैनिक जरूरतों
का ख्याल रखे।
बिजली, पानी और
सफर जैसे पहलुओं
इनमें सबसे अहम
हैं। अरविंद केजरीवाल
की सरकार दिल्ली
की ज्यादातर आबादी
को बिजली और
पानी मुफ्त देती
है। वहीं, महिलाओं
के लिए डीटीसी
बसों सफर मुफ्त
कर दिया गया।
एक तरह से
दिल्ली सरकार ने अपने
इन फैसलों से
बड़े तबके को
प्रभावित किया। आप ने
महिलाओं के लिए
मेट्रो में भी
मुफ्त सफर का
प्रस्ताव बनाया है। यही
वजह है कि
दिल्ली के दिल
में अरविंद केजरीवाल
एकबार फिर जगह
बनाने में कामयाब
हो गए। या
यूं कहे दिल्ली
वासियों को केजरीवाल
की सियासत और
नेतृत्व पर ज्यादा
भरोसा है। जबकि
भाजपा के जीतने
की स्थिति में
दिल्ली की कमान
किसे मिलेगी? यही
स्पष्ट नहीं कर
पायी। शायद इसी
वजह से केजरीवाल
बार-बार भाजपा
को इस मुद्दे
पर घेरते रहे।
दिल्ली विधानसभा चुनाव ने
ये तो साफ
कर दिया है
कि चेहरा नहीं
तो पूरे मन
से वोट भी
नहीं। जब चुनाव
स्थानीय है तो
राष्ट्रीय मुद्दे का क्या
करना?
दिल्ली चुनाव में
तीन बड़ी पार्टियां
थीं- आप, बीजेपी
और कांग्रेस। लेकिन
चुनाव प्रचार से
लेकर वोटों की
गिनती तक मुकाबला
बीजेपी और आप
के बीच रही।
कांग्रेस रेस में
कहीं भी नहीं
थी। इसका ज्यादा
फायदा आप को
हुआ है। कांग्रेस
के मतों का
बंटवारा हुआ जो
आप में शिफ्ट
कर गया। केजरीवाल
ने पिछले अनुभवों
से सीखा है
कि पीएम मोदी
पर सीधा हमला
उनके पक्ष में
नहीं जाता। लेकिन
उनके बाद भाजपा
में कोई ऐसा
नेता नहीं जिस
पर सियासी हमले
का कोई नुकसान
हो। केजरीवाल इसी
रणनीति को चुनाव
प्रचार अमल में
लाते रहे। जब
पाकिस्तान से प्रतिक्रिया
आई तो इस
पर केजरीवाल ने
साफ तौर पर
कहा कि मोदी
इस देश के
प्रधानमंत्री हैं और
पड़ोसी मुल्क को
इस पर बोलने
का कोई हक
नहीं है। दूसरी
तरफ, अरविंद केजरीवाल
के निशाने पर
अमित शाह से
लेकर दिल्ली बीजेपी
के अध्यक्ष मनोज
तिवारी थे। पूरे
चुनावी प्रचार के दौरान
केजरीवाल पीएम मोदी
के नाम पर
मौन ही रहे।
कहा जा
सकता है चुनाव
से पहले ही
आप ने यह
तय कर लिया
था कि वह
ऐसे मुद्दों से
बचेगी जिनमें भाजपा
को फायदा हो।
चुनाव प्रचार के
दौरान भाजपा ने
यह तय कर
दिया वह शाहीन
बाग में चल
रहे धरना प्रदर्शन
को मुद्दा बनाएगी।
भाजपा का मकसद
इसे सांप्रदायिक रंग
देकर सियासी फायदा
उठाने का था।
लेकिन उसमें भी
उसे सफलता नहीं
मिली। भाजपा नेताओं
द्वारा बार-बार
केजरीवाल को इस
मुद्दे पर अपनी
राय रखने का
ताल ठोकते थे
लेकिन केजरीवाल ने
चतुराई से इस
मुद्दे पर दूरी
बनाए रखी। साथ
ही खुद को
हनुमान भक्त बताकर
भाजपा के सांप्रदायिक
कार्ड को फेल
करने की भी
कोशिश की। चुनाव
प्रचार के अंतिम
दिनों में केजरीवाल
मंदिर में दर्शन
करने भी पहुंचे
थे। दिल्ली सरकार
के अंतर्गत दिल्ली
पुलिस भी नहीं
आती। दिल्ली सरकार
के अधिकार सीमित
हैं। इसके बावजूद
चुनाव में पुलिस
को लेकर ही
नहीं बल्कि इससे
लगायत हर मसलों
पर सबसे ज्यादा
अपशब्द बोले गए।
छोटे नेताओं को
तो छोड़िए, बड़े
नेताओं ने भी
मर्यादा की सारी
सीमाएं तोड़ दीं।
दिल्ली में विकास
और बदलाव की
जीत हुई है।
अरविंद केजरीवाल ने साबित
किया है कि
कोई सरकार चाहे
तो स्कूल अस्पताल,
बिजली पानी जैसी
बुनियादी जरूरतों को अच्छी
तरह पूरा करना
संभव है। यही
कारण है कि
तमाम प्रतिकूल स्थितियों
के बावजूद एक
बार फिर दिल्ली
के मतदाताओं ने
आप को भारी
बहुमत से जिताया
है। अब यह
कहना कि दिल्ली
की जनता ने
मुफ्तखोरी को अपनाया
है, यह जनादेश
का अपमान है।
भाजपा को सबक
लेना चाहिए कि
धर्म, जाति और
क्षेत्र की संकीर्ण
राजनीति से सत्ता
मिल सकती है,
लेकिन जनता का
भला तो बेहतर
काम से ही
होगा। सरकारी खर्च
में कटौती करके
भ्रष्टाचार पर रोक
लगाने के कारण
भी केजरीवाल का
खजाना हरदम भरा
रहा। उन्होंने शहीद
फौजियों और पुलिस
जवानों के लिए
1 करोड़ की सहायता,
विजेता खिलाड़ियों और संभावना
वाली खेल प्रतिभाओं
के लिए भी
बड़ी राशि का
इंतजाम किया। र्थव्यस्था की
सुस्त रफ्तार ने
भी दिल्ली वालों
को निराश किया
है। भारत की
जीडीपी पिछले कई वर्षों
के मुकाबले कम
रफ्तार से बढ़
रही है। रोजगार
का संकट बढ़ा
है और मौजूदा
नौकरियां जाने के
डर ने भी
लोगों को चिंता
में डाला है।
दूसरी ओर, आम
आदमी पार्टी को
62 सीटें मिलीं और उसे
दिल्ली में 54 फीसदी वोट
मिले। 2015 के मुकाबले
बीजेपी का वोट
शेयर 32 से बढ़कर
38 तक पहुंचा, लेकिन
इससे उसकी सीटें
ज्यादा नहीं बढ़ीं।
बीजेपी को सिर्फ
8 सीटों पर जीत
मिली। इस बार
के चुनाव में
भी कांग्रेस अपना
खाता नहीं खोल
सकी। खास बात
तो यह रही
कि कांग्रेस की
67 सीटों पर जमानत
जब्त हो गई।
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