शक्ति की देवी करेंगी ‘कोरोना’ का महाविनाश
ऊँ दुं दुर्गाय नमः’
का जाप से दिलायेगा ‘कोरोना’ से मुक्ति। जी हां, दुनियाभर में कोरोना का कहर बढ़ता जा रहा है। भारत भी अछूता नहीं है। लगातार संक्रमण के मामले सामने आ रहे हैं। स्थिति इतनी विकराल हो चुकी है देशभर में लॉकडाउन और कर्फ्यू है। देवी-देवताओं के मंदिरों के कपाट पहले से ही बंद है। इतिहास में संभवतः पहला ही मौका होगा जब देश में जम्मू के वैष्णो देवी से मदुरै के मीनाक्षी मंदिर, कामाख्या मंदिर, मां विन्ध्यवासिनी मंदिर समेत सारे शक्तिपीठों के कपाट बंद है। इससे नवरात्रि में मां के भक्तों की भी पूजा-पाठ बाधित है। लेकिन ज्योतिषियों का दावा है कि घर में ही जिस किसी ने विधि-विधान से मातारानी की आराधना कर ली, उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होते देर नहीं लगेगी। खासकर कोरोना वायरस से रक्षा के लिए मां दुर्गा की सप्तशती पाठ व बीज मंत्र ‘ऊँ दुं दुर्गाय नमः‘
का जाम रुद्राक्ष की माला से 108 बार करने से संक्रमण दूर होगी। हालांकि कोरोना वायरस से सुरक्षा ही बचाव है। अपने और परिवार के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए घर पर ही रहें
भारत में
नवरात्रि एक बड़ा
उत्सव है। मान्यता
है चैत्र नवरात्रि
की प्रतिपदा पर
देवी दुर्गा प्रकट
हुई थीं। इसी
दिन ब्रह्माजी ने
सृष्टि की रचना
की थी। प्रतिपदा
पर ही गुड़ी
पड़वा भी मनाया
जाता है। चैत्र
नवरात्रि इसलिए भी खास
है क्योंकि ये
हिंदु नववर्ष का
पहला दिन है।
इस दिन ही
विक्रम संवत के
नए संवत्सर की
शुरुआत होती है।
गुरुवार, 2 अप्रैल को राम
नवमी है। इस
दिन भगवान राम
का जन्मोत्सव मनाया
जाता है। पूर्णिमा
पर हनुमान जन्मोत्सव
है। इन नौ
दिनों में देवी
दुर्गा की पूजा
करने की और
देवी मंदिरों में
दर्शन करने की
परंपरा है, लेकिन
इस बार कोरोना
वायरस की वजह
से घर से
बाहर निकलने की
मनाही है। गौरतलब
है कि जब
से राहु ग्रह
ने आद्रा नक्षत्र
में प्रवेश किया
तब से ही
यह संक्रमण पूरे
विश्व में तेजी
से फैल रहा
है। इस वक्त
राहु ग्रह मिथुन
राशि में अपने
ही नक्षत्र आद्रा
नक्षत्र में है
जो 22 मई 2020 तक
रहेंगे। तब तक
विशेष सावधानियों की
जरूरत रहेगी। ज्योतिषियों
के मुताबिक 29 मार्च
से बृहस्पति ग्रह
का मकर नीच
राशि में गोचर
रहेगा। परंतु सूर्य अपनी
उच्च राशि में
14 अप्रैल से आने
पर ही कोरोना
के संक्रमण का
असर कम दिखाई
देने लगेगा।
श्री उपाध्याय
का कहना है
कि पूरे संक्रमण
का असर 21 मई
के बाद ही
कमजोर होगा। नवरात्रि
में संक्रमण को
रोकने के लिए
विशेषकर राहु ग्रह
की शांति के
लिए हवन-पूजन
करना चाहिए। क्योंकि
मंगल ग्रह शनि
ग्रह के साथ
मकर राशि में
हैं। जब भी
इन दोनों ग्रह
की युति होती
है तब राहु
ग्रह का उपाय
जरूरी हो जाता
है। स्कंद पुराण
में वर्णित अवंतिका
खंड में श्री
कर्कोटकेश्वर महादेव का वर्णन
है। ‘कर्कोटकेश्वर दशमं
विद्धि पार्वती। यस्य दर्शनमात्रेण
विपैनैवामिभूयते‘।। अर्थात महादेव जी
पार्वती से कहते
हैं राहु के
दर्शन मात्र से
ही विष दोष
का नाश हो
जाता है। या
यूं कहे राहु
के शांत होने
पर ही कोरोना
संकट से मुक्ति
पा सकते हैं।
इसलिए नवरात्रि में
अपने ही घर
पर राहु की
शांति के लिए
सरस्वती चालीसा का पाठ,
दुर्गा सप्तशती का पाठ,
देवी कवच,दुर्गा
चालीसा,सिद्ध कुंजिका स्त्रोत
का पाठ जरुरी
हैं। अपने शरीर
की सुरक्षा के
लिए राम रक्षा
स्त्रोत का पाठ
विशेष रूप से
नवरात्रि में कर
सकते हैं। 18 अक्षरों
का मंत्र ‘अच्युताय
नमः, अनंताय नमः,
गोविंदाय नमः‘ का जाप
करने से रोग
प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
इत्र जलाभिषेक भी है कारगर उपाय
घर में
ही शिवलिंग पर
चंदन के इत्र
से अभिषेक करें।
हवन सामग्री में
चंदन के पाउडर
का उपयोग करें।
चंदन की धूप
अगरबत्ती लगाएं। चंदन सर्प
को अधिक प्रिय
है और राहु
को सर्प का
मुख बताया गया
है। यह सभी
उपाय श्रद्धा व
विश्वास के साथ
नवरात्रि में करें।
साथ ही अपनी
कुलदेवी का स्मरण
करें। पूर्वजन्म में
किए गए पापों
के लिए उनसे
क्षमा मांगें। ताकि
जल्दी से जल्दी
इस महामारी का
निवारण हो। ज्योतिषाचार्य
माताबदल पांडेय के मुताबिक
नवरात्रि में घर
में रहकर भी
पूजा पाठ का
पूर्ण फल मिलता
है। इसके लिए
रोज सुबह उठते
ही सबसे पहले
हाथों के दर्शन
करना चाहिए। इसे
‘करदर्शन‘ कहते हैं।
इस दौरान ये
मंत्र बोलें- कराग्रे
वसते लक्ष्मी, करमध्ये
सरस्वती। करमूले तू गोविन्दः
प्रभाते करदर्शनम्।। इस मंत्र
से दिन की
शुरुआत शुभ होती
है। नित्यक्रिया के
बाद प्रतिदिन सुबह
6 बजे तक स्नान
कर लें। नहाते
समय स्नान मंत्र
‘गंगे च यमुने
चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिंधु कावेरी जले
अस्मिन् सन्निधिम् कुरु‘ जरुर बोले।
इस मंत्र के
जाप से घर
में ही तीर्थ
स्नान का पुण्य
मिल सकता है।
विधि पूर्वक कीनी होगी हवन
स्नान के बाद
सूर्य को जल
चढ़ाएं और ‘ऊँ
सूर्याय नमः‘ मंत्र का जाप
करें। सूर्य को
जल चढ़ाने के
लिए तांबे के
लोटे का उपयोग
करना चाहिए। पूजा
में हर दिन
धुले हुए वस्त्र
ही धारण करें।
इसके बाद देवी
की प्रतिमा को
स्वच्छ जल से
स्नान कराएं। ध्यान
रहे देवी की
पूजा से पहले
गणेशजी की पूजा
करनी चाहिए। गणेशजी
प्रथम पूज्य देव
हैं, इसीलिए हर
शुभ काम की
शुरुआत इनकी पूजा
से ही करनी
चाहिए। इसके बाद
मां को वस्त्र
अर्पित करें। फूल चढ़ाएं।
अन्य पूजन सामग्री
अर्पित करें। माता को
लाल चुनरी चढ़ाएं।
नारियल अर्पित करें। घर
में बने हलवे
का भोग लगाएं।
संभव न हो
तो दूध व
फलों का भोग
भी लगा सकते
हैं। घी का
अखण्ड दीपक अवश्य
जलाएं। प्रत्येक दिन घी,
गूगल, लोभान, कपूर,
चावल, शकर, जौ
व तिल मिलाकर
हवन करें। पूजन
के समय हर
दिन दुर्गा सप्तशती
पाठ व माता
के बीज मंत्रों,
चालीसा, आरती, स्त्रोत आदि
जरुर करें। मंत्र
जाप के लिए
लाल चंदन के
मोतियों की या
रुद्राक्ष की या
स्फटिक की माला
का उपयोग कर
सकते हैं। मंत्र
जाप की संख्या
कम से कम
108 होनी चाहिए। ध्यान रहे
इसमें किसी तरह
की भी त्रुटि
नहीं होनी चाहिए।
इसलिए संभव हो
तो किसी विद्वान
पंडित से पाठ
व बीज मंत्र
का जाप कराएं।
पूजा के बाद
फलों का वितरण
करें। पूजा के
बाद घर के
आसपास ही किसी
गरीब व्यक्ति को
धन और अनाज
का दान करें।
अगर संभव हो
सके तो वस्त्रों
का दान भी
करें। छोटी कन्याओं
को मिठाई खिलाएं।
श्री उपाध्याय ने
बताया कि दुर्गा
सप्तशती या देवी
माहात्म्य पारायण, रामायण या
अपने इष्ट देव
की आराधना करने
से जीवन में
उत्कृष्ट प्रगति, समृद्धि और
सफलता मिलती है।
जाप मंत्र
ऊं ह््रीं
दुं दुर्गायै नमः,
इस मंत्र का
जाप करने से
सभी बाधाओं से
मुक्ति मिलती है। सर्वमंगल
मांगल्ये शिवे सवार्थ
साधिके, शरंयेत्र्यंबके गौरी नारायणी
नमोस्तुते। इस मंत्र
करने से देवी
मां अपने भक्तों
का कल्याण करती
हैं। ऊँ जयंती
मंगला काली भद्रकाली
कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा
धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।
इस मंत्र के
जाप से बड़ी-बड़ी समस्याएं
भी खत्म हो
सकती हैं। ऊँ
ऐं ह््रीं क्लीं
चामुण्डायै विच्चै। इस मंत्र
का जाप मां
चामुंडा की कृपा
पाने के लिए
किया जाता है।
ऊँ ऐं ह््रीं
क्लीं श्री शितलाय
नमः इस मंत्र
के जाप से
मां शीतला समस्त
संक्रामक बीमारियों से मुक्ति
दिलाती है।
ध्वनि तरंगों से मरते है कीटाणु
संगीतकार मृदुल चटर्जी
के अनुसार, ताली
शिव और शक्ति
के मिलन का
रूप है। घंटी,
थाली व ताली
बजाने की धार्मिक
मान्यता तो है
ही इसका वैज्ञानिक
तथ्य भी है।
यही वजह है
कि चाहे वो
मंदिर हो घर
में हो रहे
अनुष्ठान, शंख, घंट-घड़ियाल बजाएं जाते
है। इससे सकारात्मक
माहौल बनता है।
जीत के लिए
भी उत्साह बढ़ाने
के लिए ताली
बजाई जाती है।
वैज्ञानिक प्रभाशंकर का कहना
है कि जब
घंटी बजाई जाती
है तो वातावरण
में कंपन पैदा
होता है, जो
वायुमंडल में काफी
दूर तक जाता
है। इस कंपन
का फायदा यह
है कि इसके
क्षेत्र में आने
वाले सभी कीटाणु
व विषाणु आदि
नष्ट हो जाते
हैं, जिससे आसपास
का वातावरण शुद्ध
हो जाता है।
कोरोना से सतर्क
रहने व उस
पर जीत के
लिए ताली बजाना
कारगर होगा। ‘ता‘ का अभिप्राय शिव के
तांडव नृत्य और
‘ल‘ का पार्वती
के लास्य स्वरूप
है। इनसे मिलकर
ही ताली बनी
है। इसलिए शिव
और शक्ति के
मिलाप पर सृजन
और सकारात्मक ऊर्जा
निकलती है। ज्योतिषाचार्य
डॉ. माधोराम के
अनुसार घंटी, थाली व
ताली सकारात्मक उर्जा
को प्रबल करने
के लिए व
जागरूक करने के
लिए बजाई जाती
है। वहीं हिंदू
धर्म में बच्चों
के जन्म पर
थाली बजाई जाती
है। हथेलियों में
सभी ग्रह होते
है, ताली बजाकर
सभी ग्रहों की
सकारात्मकता ली जाती
है। वहीं देवालयों
में घंटी इसलिए
बजाई जाती है
कि ताकि प्रत्येक
मनुष्य के जीवन
में सकारात्मकता फैले।
शंख बजने से होता है शत्रुओं नाश
समुद्र मंथन से
14 रत्नों की प्राप्ति
हुई थी, उनमें
से एक शंख
भी है। मान्यता
है कि शंख
से घर में
सुख-समृद्धि आती
है। सांस संबंधी
और फेफड़ों से
जुड़ी बीमारियों में
शंख बजाना बेहद
फायदेमंद है। इसके
अलावा इसके ध्वनि
से क्षेत्र में
उत्साह और ऊर्जा
बनती है। जो
किसी भी नेगेटिव
एनर्जी या वायरसनुमा
दुश्मन से लड़ने
के लिए हमारे
अंदर चेतना जागृत
करती है। जबकि
ताली बजाने से
हथेली में विराजमान
29 एक्यूप्रेशर पॉइंटस सक्रिय हो
जाते है। इन
प्रेशर पॉइंट को दबाने
से संबंधित अंग
तक रक्त और
ऑक्सीजन का संचार
अच्छे से होने
लगता है।
संक्रमण से मुक्ति देती है शीतला माता
मान्यता है कि
शीतला माता चेचक
रोग, खसरा आदि
बीमारियों से बचाती
हैं। इनकी पूजन
से चेचक, खसरा,
बड़ी माता, छोटी
माता जैसी बीमारियां
नहीं होती है।
अगर हो भी
जाए तो उससे
जल्दी ही छुटकारा
मिलता है। मान्यता
के अनुसार शीतला
मां का स्वरूप
अत्यंत शीतल है।
जो रोगों को
हरने वाला है।
इनका वाहन गधा
है, तथा इनके
हाथों में कलश,
सूप, झाड़ू और
नीम के पत्ते
रहते हैं। मुख्य
रूप से इनकी
उपासना गर्मी के मौसम
में की जाती
है। इनकी उपासना
का मुख्य पर्व
शीतला अष्टमी है।
वर्तमान समय वसंत
ऋतु का है।
जो शिशिर और
ग्रीष्म ऋतु का
संधिकाल होता है।
शिशिर ऋतु के
बाद इस वर्ष
वातावरण में गर्माहट
देर से शुरू
हुई है। शिशिर
ऋतु में संचित
होने वाला कफ
वसंत ऋतु में
सूर्य के ताप
से पिघलता है।
फलस्वरूप शरीर में
कफ प्रकोप होते
हैं। यह पिघला
हुआ कफ प्राणवह
स्त्रोत में अवरोध
उतपन्न करता है।
खांसी, बुखार, भूख न
लगना, खाना पचाने
की क्षमता का
कम होना आदि
बीमारियां होने लगती
हैं। इसके अलावा
चर्म रोगों में
खुजली, जलन, त्वचा
का सूख जाना
जैसे रोग होते
हैं। इसी ऋतु
में चेचक, खसरा
आदि विषाणु जन्य
रोगों का प्रकोप
प्रायः अधिक होता
है। ऐसे में
कुछ सावधानियां बरतने
से आप रोगों
से बचे रहे
सकते हैं।
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