Wednesday, 27 March 2024

गाजीपुर : एमवाई फैक्टर में बुलडोजर की गूंज

गाजीपुर : एमवाई फैक्टर में बुलडोजर की गूंज

गाजीपुर सिर्फ महर्षि विश्वामित्र की धरती है, बल्कि स्वतंत्रता सेनानियों सहित फौजियों का गढ़ होने के साथ ही यहां का गहमर एक ऐसा गांव है, जिसकी गिनती एशिया के सबसे बड़े गांवों में होती है। यह अलग बात है कि 80 के दशक के बाद से यह जनपद माफियाओं के मकड़जाल में ऐसा उलझा की सियासत भी उन्हीं के इर्द-गिर्द चकरघिन्नी की तरह घूमती रही। लेकिन छह सालों में बाबा का बुलडोजर सिर्फ माफियाओं के तिलिस्म को तोड़ा, बल्कि वे अब घुट-घुट कर मरने को विवस है। मुहम्ममदाबाद के नीरज जायसवाल बिना लागलपेट कहते है अयोध्या में भव्य राम मंदिर भले बन गया हो, लेकिन रामराज्य तभी आयेगा, जब अपराधी मरेंगे। जहां तक बात चुनाव की है तो गाजीपुर की पांच विधानसभाओं में 4 सीटों पर सपा का कब्जा है। वजह : जातीय समीकरण। ये यहां का ऐसा प्रकोप है, जिसमें मोदी-योगी लहर के बावजूद बसपा के अफजाल अंसारी से मनोज सिनहा 2014 में प्राप्त कुल मतों की तुलना में से एक लाख से अधिक पाने के बावजूद हार गए। 2024 में भी सपा ने पूर्वांचल के माफिया डॉन मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल को ही मैदान में उतारा है। हालांकि अबकी बार 400 पार के नारे के बीच मैदान में उतरी भाजपा इस सीट को हरहाल में हथियाने के लिए हर हथकंडे अपना रही है। प्रत्याशी चयन में हो रहा बिलंब भी इसी का एक हिस्सा है। बहरहाल, गाजीपुर को कौन हथियायेगा, ये तो चुनाव परिणाम बतायेंगे, लेकिन एमवाई फैक्टर के बीच बुलडोजर की शोर क्षेत्र में सुना समझा जा सकता है 

सुरेश गांधी

जी हां, कभी गंगा पार के इस इलाके में नील और अफीम की खेती बड़े पैमाने पर होती थी। गाजीपुर फूलों के कारोबार के लिए भी जाना जाता था। 1820 में अंग्रेजों ने यहां बड़ा अफीम कारखाना स्थापित किया था। गंगा के किनारे होने के कारण यहां के उत्पाद जल मार्ग के जरिए देश के अलग-अलग कोनों में भेजे जाते थे। लेकिन दीमक रुपी माफियाओं का ऐसा घून लगा कि सब तहस-नहस हो गया। बात सियासत की करें तो 1952 से लेकर अब तक इस सीट से कांग्रेस, जनता दल, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, निर्दल और बीजेपी के सांसद चुने जा चुके हैं। 2019 लोकसभा चुनाव में 2004 के सांसद रहे अफजाल अंसारी को मायावती ने अपना प्रत्याशी बनाया था। उन्हें गठबंधन के तहत सपा का भी समर्थन था और एमवाई के साथ-साथ दलित वोटों के बूते उन्होंने बीजेपी के कद्दावर नेता मनोज सिन्हा को ऐसी पटकनी दी कि उनकी राजनीति ही चौपट हो जाएं। यह अलग बात है कि मोदी ने उनकी महत्वाकांक्षीता को समझा और समीक्षात्मक अध्ययन में पाया कि मनोज सिनहा नहीं हारे, बल्कि जातिय समीकरण हारा है। परिणाम यह रहा कि मनोज सिनहा को जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बनाकर संदेश दिया कि इलाके से माफियाओं का वर्चस्व एक एक दिन जरुर टूटेगा। बता दें, अफजाल अंसारी पूर्वांचल के माफिया डॉन मुख्तार अंसारी के भाई है। इस बार भी अफजाल अंसारी को सपा ने इंडी गठबंधन के तहत मैदान में उतारा है। जबकि बीजेपी ने अभी तक अपना प्रत्याशी घोषित नहीं किया है। 


भाजपा में इस बात पर मंथन चल रहा है कि तीन बार 1996, 1999 और 2014 में सांसद रहे मनोज सिनहा को ही मैदान में उतारे या उनके पुत्र अभिनव सिनहा या अन्य किसी को। जातीय समीकरण के हिसाब से यह सीट भाजपा के लिए काफी मुश्किल मानी जाती है. लेकिन, ओमप्रकाश राजभर की सुभाषपा के एनडीए में शामिल होने से गाजीपुर लोकसभा सीट पर भाजपा की राह थोड़ी आसान हुई है. गाजीपुर लोकसभा क्षेत्र में कुल पांच विधानसभा क्षेत्र हैं. फिलहाल इनमें से चार विधानसभा सीटें सपा के कब्जे में हैं. एक विधानसभा सीट पर सुभाषपा का कब्जा है. सैदपुर विधानसभा सीट से सपा के अंकित भारती, गाजीपुर सदर पर सपा के जयकिशन, जंगीपुर में सपा के वीरेंद्र यादव, और जमनिया सीट पर सपा के ही ओमप्रकाश सिंह और जखनिया सीट से सुभाषपा के त्रिवेणी राम ने जीत हासिल की थी. विधानसभा चुनाव के दौरान सपा और ओमप्रकाश राजभर की सुभाषपा पार्टी गठबंधन में थी. लेकिन, फिलहाल सुभाषपा फिर एनडीए के पाले में चली गई है. जातिय समीकरण के लिहाज से गाजीपुर लोकसभा सीट पर सर्वाधिक संख्या यादव वोटरों की हैं. इसके बाद दलित और फिर मुस्लिम वोटर है. यादव, दलित और मुस्लिम वोटरों को मिलाकर क्षेत्र के कुल वोटरों के मुकाबले आधी आबादी हो जाती है. यही वजह है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन में अफजाल अंसारी ने मनोज सिन्हा को 1,19,392 वोटों के अंतर से हराया था. उन्हें 5,66,082 वोट मिले। जबकि भाजपा के मनोज सिन्हा को 4,46,690 वोट मिले। 2014 में मनोज सिन्हा 3,06,929 वोट लेकर जीत दर्ज की थी और कांग्रेस की शिवकन्या कुशवाहा 2,74,477 वोटों के साथ दूसरे पायदान पर रही थीं.

जातिय समीकरण

जाति समीकरण की बात करें तो राजनीतिक पार्टियां अपने प्रत्याशियों का चयन जातिय आंकड़ों के मद्देनजर ही करती है। यहां यादव 4.50 लाख, दलित 4 लाख, मुस्लिम 2.70 लाख, राजपूत 2.70 लाख, कुशवाहा 2.20 लाख, बिंद 1 लाख, अन्य पिछड़े 1.50 लाख, ब्राह्मण 1.60 लाख, भूमिहार 0.40 लाख, वैश्य अगड़े 0.30, वैश्य पिछड़े 1.50 और अन्य 0.20 लाख हैं। भाजपा के मुख्य वोटरों में स्वर्ण और ओबीसी की कुछ जातिया हैं. स्वर्ण के साथ ओबीसी वोट बैंक जुड़ने से भाजपा के उम्मीदवार की जीत निश्चित होती है. लेकिन 2019 के मुकाबले इस बार का जातीय समीकरण अलग होगा। क्योंकि पिछली बार सपा-बसपा गठबंधन की वजह से यादव, दलित और मुसलमान अफजल अंसारी के पक्ष में गए थे। इस बार बसपार्टी अपना उम्मींदवार उतारेगी। ऐसे में दलित वोट बैंक का बड़ा हिस्सा बसपा उम्मीदवार के साथ जाने की संभावना है. मतलब साफ है मुस्लिम वोट बैंक इंडी गठबंधन और बसपा में बंटने से लड़ाई काटे की होगी। 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने कुशवाहा जाति के ही प्रत्याशी को चुनावी मैदान में उतारा था. लिहाजा, कुशवाहा वोटरों ने कांग्रेस पार्टी की तरफ रुख कर लिया था. लेकिन, इस बार कुशवाहा वोटर बहुत ही निर्णायक भूमिका में होंगे. ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुभाषपा का एनडीए गठबंधन में शामिल होने से इस सीट पर भाजपा उम्मीदवार और ज्यादा मजबूत होंगे. क्योंकि पूर्वांचल में ओम प्रकाश राजभर का अपना अलग ही वोट बैंक है.

29 लाख से ज्यादा मतदाता

गाजीपुर में 29 लाख 23 हजार 32 मतदाता हैं। इसमें 15 लाख 41 हजार 992 पुरुष मतदाता हैं। 13 लाख 80 हजार 955 महिला, 85 थर्ड जेंडर मतदाता हैं। महिला मतदाताओं की संख्या इस बार 53441 बढ़ी है। जबकि 18-19 आयु वर्ग के कुल 44 हजार 345 युवा मतदाताओं का नाम जोड़ा गया। वर्तमान में कुल युवा मतदाता 57 हजार 945 है। जबकि 20-29 आयु वर्ग के मतदाता की संख्या 5 लाख, 40 हजार 74 थी, लेकिन वर्तमान में 6 लाख 7 हजार 97 है। इस आयु वर्ग में 67 हजार 23 मतदाता की वृद्धि हुई है।

क्या कहते वोटर

राजनीतिक विश्लेषक, दयाराम चौधरी कहते है, गाजीपुर बलिया संसदीय सीट के प्रत्याशी का प्रभाव दोनों क्षेत्रों पर है। क्योंकि मुहम्मदाबाद जहूराबाद विधानसभा बलिया संसदीय सीट के अंतर्गत आती हैं। ऐसे में जातीय समीकरण को बैठाने के लिए ही दोनों सीटों पर भाजपा ने जातिय ताना-बाना फिट नहीं रखा तो दोनों सीटें उसके टारगेट को बट्टा लगा सकती है। यही वजह है कि बीजेपी ग़ाज़ीपुर बलिया सीट पर मजबूत प्रत्याशी को लेकर मंथन कर रही है. अगर गाजीपुर के जातिय समीकरण को देखा जाए तो यहां जातिगत मुद्दे चुनाव में अहम भूमिका निभाते हैं. जनता विकास तो चाहती है लेकिन अपनी जात-बिरादरी और धर्म के नेताओं के प्रति आस्थावान ज्यादा रहती है. जहानाबाद के कमलेश यादव कहते है मनोज सिनहा के नेतृत्व में गाज़ीपुर में बहुत सारे विकास कार्य हुए थे। लेकिन जातिय समीकरण में फिट नहीं बैठे। इस बार वो अपना वोट राष्ट्रवाद, श्रीराम मंदिर विकास के लिए वोट देंगे। अरजानी के सत्तार अहमद का कहना है कि पिछले 5 वर्षों में हुए विकास को देखा है। जाति-आधारित राजनीति के चलते पांच साल से विकास ठप है, इसलिए इसबार जाति नहीं बल्कि विकास के लिए वोट करेंगे। खुर्शीद आलम कहते हैयह एक आम धारणा है कि मुसलमान महागठबंधन के साथ जाएंगे, लेकिन मेरे कई रिश्तेदार और गांव के लोग सिन्हा जी द्वारा किए गए विकास कार्यों के कारण उन्हें वोट देंगे।

मनोज सिनहा 3 बार रहे सांसद

इस क्षेत्र से 35 वर्षों में दोबारा सांसद कोई नहीं बन सका है। आखिरी बार कांग्रेस नेता जैनुल बशर लगातार दो बार 1980 और 1984 के चुनाव में जीत दर्ज की थी. इसके बाद से कोई भी प्रत्याशी किसी किसी कारण से दोबारा नहीं जीत सका. अगर भाजपा के मनोज सिन्हा की बात करें तो वह पहली बार 1996 में भाजपा से सांसद चुने गए. इसके बाद 1998 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. 1999 में वह दोबारा सांसद चुने गए और वहीं 2004 के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. 2014 में वह तीसरी बार सांसद चुने गए और 2019 के चुनाव में उन्हें बसपा के अफजाल अंसारी ने उन्हें हरा दिया।

इतिहास

पूर्वांचल के जिलों में शुमार गाजीपुर का इतिहास बेहद गौरवशाली है। इसेलहुरी काशीभी कहा जाता है। स्थानीय बोली में लहुरी का अर्थ छोटी होता है। काशी के तरह ही यहां भी गंगा उत्तर वाहिनी है। कहा जाता है कि गाजीपुर को तुगलक वंश के सैय्यद मसूद गाजी ने बसाया था. विश्व में सबसे बड़े अफीम के कारखाने के लिए विख्यात गाजीपुर की राजनीतिक आबोहवा में वामपंथ, दक्षिणपंथ, मध्यमार्ग और दलित राजनीति सभी की महक है. देश में हुए पहले चुनाव और उसके बाद दो और चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. अतिम बार 1984 के बाद कांग्रेस को यहां जीत नसीब नहीं हुई थी. कांग्रेस पार्टी के हर प्रसाद सिंह ने यहां पहली बार 1952 में चुनाव जीता था. वो लगातार दो बार यहां से सांसद रहे हैं. गाजीपुर में अबतक कोई नेता लगातार तीन बार चुनाव नहीं जीत पाया है. 1962 में यहां कांग्रेस के वीएस गहमरी ने चुनाव जीता. गहमरी सरनेम गहमर गांव से जुड़ा है. दरअसल गाजीपुर का एक गांव है गहमर जहां की आबादी एक लाख 20 हजार से ज्यादा है. इस गांव को फौजियों का गांव कहा जाता है. गहमर गांव के 15 हजार से ज्यादा जवान फौज में हैं. शायद ही गांव का कोई ऐसा घर होगा जिसका कोई सदस्य फौज में नहीं है. इस गांव में 25 हजार मतदाता हैं. 1952 में पहली चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद कांग्रेस पार्टी यहां 1962 तक जीतती रही. 1967 में कांग्रेस के इस गढ़ को जीता भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी ने. 1967 और 1971 में यहां लगातार दो टर्म भाकपा के सरजूं पांडे चुनाव जीतने में कामयाब रहे. 1977 में यहां जनता पार्टी के गौरीशंकर राय सांसद बने. 1980 में कांग्रेस ने वापसी की. जैनुल बशर सांसद बने. गांजीपुर में पहली बार किसी मुस्लिम ने लोकसभा चुनाव जीता था. जैनुल बशर 1984 में दूसरी बार भी जीतने में कामयाब रहे. इसके बाद 1989 में निर्दलीय जगदीश कुशवाहा और 1991 में भाकपा के विश्वनाथ शास्त्री ने जीत दर्ज की. 1996 में पहली बार यहां बीजेपी का खाता खुला और मनज सिन्हा जीत सांसद चुने गए. 1998 में सपा के ओमप्रकाश सिंह और 99 में फिर मनोज सिन्हा चुनाव जीतने में कामयाब रहे.2004 में सपा की टिकट पर अफजाल अंसारी लोकसभा पहुंचे. इसके बाद अगले चुनाव में सपा की टिकट पर राधा मोहन सिंह ने जीत दर्ज की.

कौन और कब जीता

हर प्रसाद सिंह (कांग्रेस)- 1952

हर प्रसादसिंह (कांग्रेस)- 1957

विश्वनाथ सिंह, गहमरी (कांग्रेस)- 1962

सरजू पांडेय (सीपीआई)- 1967

सरजू पांडेय (सीपीआई)- 1971

गौरी शंकर राय (जनता पार्टी)- 1977

जैनुल बशर (कांग्रेस-आई)- 1980

जैनुल बशर (कांग्रेस-आई)- 1984

जगदीश कुशवाहा (निर्दलीय)- 1989

विश्वनाथ शास्त्री (सीपीआई)- 1991

मनोज सिन्हा (भाजपा)- 1996

ओमप्रकाश सिंह (सपा)- 1998

मनोज सिन्हा (भाजपा)- 1999

अफजाल अंसारी (सपा)- 2004

राधे मोहन सिंह (सपा)- 2009

मनोज सिन्हा (भाजपा)- 2014

अफजाल अंसारी (बसपा)- 2019

पांच बार विधायक दो बार

सांसद रहे है अफजाल

पांच बार विधायक और दो बार सांसद चुने गए अफजाल अंसारी 1985 में मुहम्मदाबाद से वह पहली बार भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी से विधायक बने थे। इसके बाद वर्ष 1996 तक लगातार पांच बार विधानसभा में पहुंचते रहे। वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव में अफजाल अंसारी हार गए। लेकिन, 2004 के लोकसभा चुनाव में उन्हें गाजीपुर संसदीय सीट से सपा ने पहली बार टिकट दिया था। इस चुनाव में अफजाल अंसारी ने भाजपा के खिलाफ जीत दर्ज की। इसके बाद अफजाल 2009 और 2014 में चुनाव लड़े, लेकिन हार गए। 2019 में सपा-बसपा गठबंधन से भाजपा के सांसद मनोज सिन्हा को हराकर लोकसभा में पहुंचे थे। 2004 के लोकसभा चुनाव में सपा से अफजाल अंसारी चुनाव जीते थे। लेकिन, 29 नवंबर 2005 को भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या मामले में मुख्तार अंसारी के साथ अफजाल अंसारी को आरोपी बनाया गया। अफजाल अंसारी ने इस मामले में कोर्ट में समर्पण कर दिया। लगभग दो वर्ष जेल में रहने के बाद जमानत पर बाहर आए। 70 साल के अफजाल अंसारी का गाजीपुर में दबदबा है. चुनाव से पहले पार्टी बदलने में माहिर अफजाल अंसारी के सामने बीजेपी किसे उम्मीदवार बनाएगी, यह देखना दिलचस्प होगा. अंसारी, गैंगस्टर से नेता बने मुख्तार अंसारी के भाई हैं. अफजाल को अप्रैल 2023 में गैंगस्टर एक्ट के मामले में 4 साल की सजा हुई थी. दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट ने बतौर सांसद उनकी अयोग्यता को अस्थायी तौर पर निलंबित कर दिया.

 

 

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