संसद में गूंजा इमरजेंसी की क्रूरता, बौखलाएं कांग्रेसी
संविधान की दुहाई देने वाले कांग्रेस नेता राहुल गांधी सहित पूरा विपक्ष उस वक्त खड़बड़ा गया, जब लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने एक एक कर इमरजेंसी की क्रूरता को बया करते हुए कहा, इस घटनाक्रम को हमारे युवा पीढ़ी को भी जानने का हक है। कैसे इंदिरा गांधी ने देश में 1975 में इमरजेंसी लगाई थी और संविधान को ध्वस्त किया था। किस तरह उसके पूर्वजों के अधिकार को सीज करने के साथ ही जेल में ठूस दिया गया। बता दें, भारत में अब तक कुल तीन बार आपातकाल लग चुका है. इसमें वर्ष 1962, 1971 तथा 1975 में अनुच्छेद 352 के अंतर्गत राष्ट्रीय आपातकाल लगाया गया था. लेकिन 25 जून 1975 को भारत के इतिहास में हमेशा एक काले अध्याय के रूप में जाना जाएगा. इस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया और बाबा साहेब अंबेडकर द्वारा बनाए गए संविधान पर हमला किया। उस दौरान भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों को कुचला गया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रताका गला घोंटा गया. इस दौरान लोगों को जबरदस्ती बाजारों, बसों, और ट्रेनों से पकड़ा जाता और उनकी नसबंदी कर दी जाती. सर्जरी के बाद टिटनेस की वजह से कई लोगों की जान भी चली गई. इस नसबंदी कार्यक्रम से जुड़े जो भी सरकारी मुलाजिम थे, टार्गेट पूरा न करने पर उनकी सैलरी रोक दी जाती थी. कुछेक जगहों पर सत्याग्रह जरुर हुए, लेकिन इससे इतर सूबे में खौफ की एक मोटी परत बिछी रही...
सुरेश गांधी
आपातकाल का जिन्न लोकसभा में आज फिर जागा और जब ये जागा तो एनडीए के खिलाफ एकजुट होने का दावा कर रहे इंडि गठबंधन में फूट नजर आया. दरअसल, इंडिया गठबंधन से जुड़े सांसद संविधान के मुद्दे पर बीजेपी को घेर रहे हैं. तो एनडीए से जुड़े सांसद आपातकाल को लेकर कांग्रेस पर हमलावर हैं. इस बीच लोकसभा के स्पीकर चुने जाने के बाद ओम बिरला ने भी इमरजेंसी पर सदन में एक प्रस्ताव रखा. जैसे ही उन्होंने निंदा प्रस्ताव रखा, सदन में हंगामा शुरू हो गया. पक्ष और विपक्ष के सांसदों के बीच नारेबाजी शुरु हो गई. कांग्रेस सांसदों ने इस प्रस्ताव का जोरदार विरोध किया. लेकिन इंडिया गठबंधन में कांग्रेस की सहयोगी समाजवादी पार्टी, टीएमसी, आरजेडी और लेफ्ट, इस विरोध से दूर रहे. जब कांग्रेस सांसद विरोध जताने के लिए स्पीकर की कुर्सी के पास पहुंच गए.
इस दौरान भी
कांग्रेस के सहयोगी दलों
के सांसद चुपचाप बैठ रहे. लेकिन
जब स्पीकर ने इमरजेंसी के
दौरान जान गंवाने वालों
की याद में मौन
रखते समय ये सांसद
श्रद्धांजलि देने के लिए
खड़े हो गए. भारी
हो हंगामे के बीच स्पीकर
ने सदन को संबोधित
करते हुए 1975 में देश में
आपातकाल लगाने के फैसले की
निंदा की. और इसे
भारतीय इतिहास का काला अध्याय
बताते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री
इंदिरा गांधी पर तनाशाही थोपने,
संविधान-लोकतंत्र का अपमान करने
लोकतांत्रिक मूल्यों को कुचलने और
अभिव्यक्ति की आजादी का
गला घोंटने के संगीन आरोप
लगाए. तो क्या आपातकाल
पर मोदी के मास्टस्ट्रोक
से विपक्ष बिखर गया. क्या
एलओपी बनते ही राहुल
सियासी चक्रव्यूह में फंस गए.
फिरहाल, लोकसभा में बुधवार को अलग ही नजारा दिखा. एक तरफ ओम बिरला के फिर से लोकसभा स्पीकर बनने पर विपक्ष ने जहां स्वागत किया, साथ ही निष्कासन के मामलों को लेकर ताने कसे. वहीं कुछ देर में गेम एकदम से पलटता दिखा. स्पीकर ओम बिरला ने अपनी पहली ही स्पीच में एकदम अलग रुख दिखाया. विपक्ष हक्का-बक्का रह गया. ओम बिरला ने 1975 में इंदिरा सरकार के द्वारा लगाई गई इमरजेंसी की बरसी पर जमकर सदन में सुनाया. इमरजेंसी को लोकतंत्र के इतिहास का काला अध्याय बतया, कांग्रेस को उसके लिए घेरा और सदन में दो मिनट का मौन भी रखवा दिया. ओम बिरला ने कहा कि 25 जून 1975 को भारत के इतिहास में हमेशा एक काले अध्याय के रूप में जाना जाएगा.
इस दिन तत्कालीन
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में
आपातकाल लगाया और बाबा साहेब
अंबेडकर द्वारा बनाए गए संविधान
पर हमला किया. भारत
पूरी दुनिया में लोकतंत्र की
जननी के रूप में
जाना जाता है. भारत
में हमेशा से लोकतांत्रिक मूल्यों
और वाद-विवाद का
समर्थन किया गया है.
ओम बिरला जब तक इमरजेंसी
की क्रूरता को लोगों के
सामने रख पाते संविधान
की दुहाई देने वाले नेता
राहुल गांधी सहित पूरा विपक्ष
हूटिंग करने लगा। शोरगूल
के चलते सदन को
अगले दिन तक के
लिए स्थगित करना पड़ा। लेकिन
बड़ा सवाल तो यही
है क्या इमरजेंसी के
काले अध्याय को हमारी पीढ़ी
को जानने का हक नहीं
है? देखा जाएं तो
इमरजेंसी का वह समय
हमारे देश के इतिहास
में अन्यायकाल का एक काला
खंड था. इमरजेंसी लगाने
के बाद कांग्रेस सरकार
ने कुछ ऐसे फैसले
किए, जिन्होंने हमारे संविधान की भावनाओं को
कुचलने का काम किया.
आंतरिक सुरक्षा रखरखाव अधिनियम में बदलवा करके
कांग्रेस पार्टी ने सुनिश्चित
किया
कि हमारी अदालतें गिरफ्तार लोगों को न्याय नहींं
दे सकती।
इमरजेंसी के वक्त पीएम मोदी की उम्र24 वर्ष थी
नरेंद्र मोदी महज 24 साल
के थे जब भारत
में इमरजेंसी की घोषणा हुई
थी। आपातकाल के दौरान इंदिरा
गांधी के खिलाफ उन्होंने
अपनी आवाज भी उठाई।
उस दौरान वह ऐसे लोगों
से मिलते थे जिनके परिवार
का मुखिया या तो जेल
में था या फिर
पुलिस के डर से
छिपता फिर रहा था।
वह परिवारों से मिलते थे
और उन्हें आश्वासन भी देते थे।
आपातकाल के बाद 1978 में
मोदी ने लिखी थी
पहली पुस्तक ’संघर्ष मा गुजरात’ं
इस किताब को पीएम मोदी
नाई की दुकान पर
रखवाते थे। वह लगातार
सरकार विरोधी प्रदर्शन का हिस्सा रहे
थे। उनकी किताब गुजरात
में आपातकाल के खिलाफ भूमिगत
आंदोलन में एक नेता
के रूप में उनके
अनुभवों का एक संस्मरण
है। इस किताब को
खूब सराहा गया और व्यापक
रूप से स्वीकार किया
गया। खास यह है
कि मोदी उस वक्त
हर उस परिवार के
लोगों से मिल रहे
थे, जिनके परिवार का मुखिया या
तो जेल में था
या फिर पुलिस के
डर से छिपता फिर
रहा था। वह सभी
परिवारों से मिलते उनकी
जरूरतें समझते, उनका कुशल क्षेम
पूछते और हर संभव
मदद करते और आश्वासन
भी देते थे। अजीत
सिंह भाई गढ़वी के
मुताबिक इमरजेंसी के समय नरेन्द्र
मोदी पूरे भारत में
भेष बदलकर इधर-उधर जाया
करते थे। नरेन्द्र मोदी
पंजाब में सरदार बनकर
गए थे। जब वह
अहमदाबाद आते थे तो
उनके लिए सारी व्यवस्था
वही करते थे। यह
सब वह अंडर ग्राउंड
होते हुए करते थे।
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