Tuesday, 10 September 2024

काशी में 1000 एकड़ में खुलेगा सनातन विश्व विद्यालय : रितेश्वरजी महराज

काशी में 1000 एकड़ में खुलेगा सनातन विश्व विद्यालय : रितेश्वरजी महराज

इस विश्व विद्यालय में गुरुकुल की तर्ज पर होगा पठन-पाठन

आत्मरक्षार्थ शस्त्र शिक्षा के साथ-साथ मानवता के समग्र कल्याण के लिए आध्यात्मिकता, योग, आयुर्वेद, मॉडर्न साइंस और वैदिक ज्ञान की पढ़ाई होगी

सरकार को चाहिए कि वो सनातन बोर्ड का गठन करें

जो हमें गुलामी की यादें दिलाती है, उन्हें बदलना ही होगा

सुरेश गांधी

वाराणसी। वृंदावन धाम के सद्गुरु ऋतेश्वर महाराज ने कहा कि धर्म एवं आस्था की नगरी काशी में एक हजार एकड़ भूमि में सनातन विश्व विद्यालय की स्थापना होगी। इस विश्व विद्यालय में पठन-पाठन गुरुकुलम की तर्ज पर होगा। इस विश्व विद्यालय में बच्चों को मैकाले पद्धति की शिक्षा नहीं बल्कि प्रातकाल उठके रघुनाथा मातु-पिता गुरु नावहिं माथा, के संस्कार वाली शिक्षा दी जायेगी। इस विश्व विद्यालय में आत्मरक्षार्थ शस्त्र शिक्षा के साथ-साथ मानवता के समग्र कल्याण के लिए एक ऐसा मंच तैयार करना है जहां आध्यात्मिकता, योग, आयुर्वेद, मॉडर्न साइंस और वैदिक ज्ञान के माध्यम से जीवन के हर पहलू को समझने और जीने की कला सिखाई जाएगी। इस विश्व विद्यालय की स्थापना का मकसद समस्त मानवता के उत्थान और जागरण का संदेश है। सरकार से उनकी मांग है कि देश में सीबीएसई, आईसीएससी माध्यमिक शिक्षा की तर्ज पर सनातन बोर्ड का भी गठन हो। 

        वृंदावन स्थित श्री आनंदम धाम ट्रस्ट के पीठाधीश्वर ऋतेश्वर महाराज इन दिनों देश भर में सनातन का प्रचार कर रहे हैं। इस सिलसिले में वे धार्मिक नगरी काशी भी पहुंचे। श्री ऋतेश्वर महाराज जी 11 सितम्बर को पुराना आरटीओं के समीप नंदगांव लॉन में सायं पांच बजे आयोजित धार्मिक प्रवचन से पहले मंगलवार को अकथा चौराहा स्थित उषा गेस्ट हाउस में पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। उन्होंने वर्तमान शिक्षा पद्दति पर कटाक्ष करते हुए बहुसंख्यक हिंदू सनातनियों का अपना शिक्षा बोर्ड बनाने की पैरवी की. वहीं, इस मौके पर उन्होंने हिंदू संस्कृति सनातन धर्म की संरक्षण की भी बात कही. उन्होंने कहा कि देश की शिक्षा पद्धति में सुधार होना चाहिए जब प्रत्येक अल्पसंख्यक धार्मिक लोगों का अपना पर्सनल बोर्ड है तो बहुसंख्यक हिंदू सनातनियों का अपना शिक्षा बोर्ड क्यों नहीं है. सनातन शिक्षा बोर्ड का निर्माण जल्द से जल्द होना चाहिए क्योंकि जब पूरे जड़ में दीमक लगा हो तो ऊपर ऊपर उपचार से कुछ नहीं होगा. उन्होंने कहा कि अगर राष्ट्र देश को बदलना है तो पूरी शिक्षा पद्धति में बदलाव करना पड़ेगा और इसके लिए हमारी सनातनी शिक्षा नीति लानी होगी.

उन्होंने जर्मनी के राष्ट्रवाद की चर्चा करते हुए कहा कि पूरे भारत की शिक्षा पद्धति एक जैसी होनी चाहिए। ऐसी शिक्षा प्रणाली, जिसमें राष्ट्र प्रथम भारत प्रथम हो। इससे सिर्फ हर बच्चे के भीतर राष्ट्र की भावना जागृत होंगी, बल्कि बच्चों के अंदर राष्ट्रप्रेम जागेगा। इसी राष्ट्रप्रेम को जगाने के लिए उन्होंने सनातन विश्व विद्यालय की स्थापना के लिए धर्म की नगरी काशी को चुना है। विश्व के कोने- कोने में जहां मनुष्य अपने अस्तित्व और जीवन के अर्थ को खोज रहा है, वहां यह विश्वविद्यालय प्रकाश की किरण बनकर मार्गदर्शन करेगा। उन्होंने कहा कि यह एक ऐसा अद्वितीय विश्वविद्यालय होगा जहां किडजी से लेकर हायर एजुकेशन की शिक्षा उपलब्ध होगी। एक बच्चे के अक्षर ज्ञान से लेकर आधुनिक विज्ञान चाहे एआई, मशीन लर्निंग, क्वांटम कंप्यूटिंग तथा मेडिकल, आर्ट्स, कॉमर्स, साइंस, इन सब के साथ लेकर एक दिव्य विद्या पद्धति का निर्माण कर राष्ट्र के लोगों को बचाने की परिकल्पना है।

उन्होंने कहा कि वह एक अद्भुत विधा पद्धति चाहते है जिसका आधार होगा सनातन संस्कृति का प्राण यानी 16 संस्कार। यद्यपि आज हमारे हर संस्कार एक एक विलप्त हो रहे है। संस्कारों सबसे प्रमुख शादी-विवाह जैसे संस्कार अब इवेंट बनकर रह गए है। यह सिर्फ हमारी अज्ञानता वर्तमान शिक्षा की वजह से हो रहा है। उन्होंने कहा कि भारत में रहने वाले सभी भारतीय हैं, सभी हिंदुस्तानी है और हर भारतीय का डीएनए हिंदू है. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के अनुसार हिंदू जीवन जीने की पद्धति है. हिंदू कोई मत नहीं है किंतु अज्ञानता अशिक्षा और वोटों की राजनीति के कारण हिंदू को एक धर्म कहकर ही संबोधित किया जाता है. पूजा की पद्धति अलग हो सकती हैं, लेकिन धर्म अलग नहीं है. यह एक हिंदू राष्ट्र था, है और हमेशा रहेगा. सदगुरु ने कहा कि सच्चे ज्ञान का प्रचार-प्रसार करने के लिए लोगों को आध्यात्म से जुड़ने की बहुत आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि देश एक है तो संविधान भी एक होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हिंदू कोई धर्म नहीं है, बल्कि यह एक जीवन पद्धति है जो लोगों को जीवन जीने की कला सिखाता है. यह एक ऐसा धर्म है जो सभी धर्मों की आदर करता है, तभी तो विदेश में भी बैठे विदेशी हमारे मंत्र का जाप कर अपने जीवन को आनंदित करते हैं. वर्तमान में चल रहे रूस और यूक्रेन के युद्ध में भी कई सैनिक हरे रामा हरे कृष्णा का जाप करते दिखे. उन्हें भरोसा है कि इससे वे सब कुछ हासिल कर सकते हैं.

संविधान के संशोधन के सवाल पर ऋतेश्वर महाराज ने कहा कि हर सरकार के कार्यकाल में नए-नए कानून लाएं गए है। कई बार-बार छोटे-छोटे अनुच्छेदों को बदला गया है तो फिर हमें ऐसे काले कानूनों को बदलने में हर्ज क्या है, जो हमें गुलामी की यादें दिलाती है। जो गुलामी को पुनः आमंत्रित कर रही है। जो चीजें बहुसंख्यक भारतीयों को अल्पसंख्यक होने पर मजबूर कर रही है। जो चीजें भारत के विरोध में है, जो चीजें भारतीयों में भेद हीनता का भाव पैदा कर रही है। जो चीजें आने वाले समय में इस बहुसंख्यक सनातनी समाज को नष्ट कर देंगी, उन चीजों को तो बदलना ही चाहिए। आत्मरक्षा का अधिकार तो सबकों है। चाहे वो आक्रांताओं का काल हो या ब्रतानिया काल हो, पहले जो कुछ हुआ वो शिक्षा पद्धति के चलते हुआ है। बच्चो को ऐसा उदाहरण दिया गया कि वो अपने संस्कृति को जान ही नहीं पाएं। धीरे-धीरे वे इपते बेपरवाह बन गए वो समझ हीं नहीं पाएं एक दिन बांगलादेश बन जायेगा। इसलिए आज सनातन विश्व विद्यालय की आवश्यकता बन गयी है। यद्यपि मैं 8 अरब लोगों की बात कर रहा हूं, फिर भी विरोधी टारगेट करेंगे। लेकिन इस काम को बिना किसी डर भय के अंतिम रुप देकर ही चैन से बैठूंगा।

श्री रितेश्वर जी महराज ने कहा कि भारत के भी हालात बांग्लादेश जैसा हो जाएं। राष्ट्र विरोधी ताकते सनातनियों को जाति के नाम पर खंड-खंड कर दें, सनातनियों का नामोनिशान मिटा दें, इसके लिए जरुरी है कि गुरुकुल शिक्षा के माध्यम से बच्चों को स्वामी विवेकानंद, शिवाजी जैसे महापुरुषों के आदर्श से उन्हें अवगत कराएं। क्योंकि समय रहते हम अपने बच्चों को सनातन का पाठ नहीं पढ़ा पाएं तो आने वाली पीढ़िया सर तन से जुदा से हरकतों से हमें कोसेंगी। वो सोंचेंगे हमारे पूर्वज हमें किस आग में झोक गए है। इसलिए अब सनातन शिक्षा प्रणाली ही हमारे परिवार, बहु-बेटियों की रक्षा करेगा। इसके निर्माण में हम सभी को लगना होगा। सनातन शिक्षा उन्हें जन्म से देना होगा। सनातन विश्वविद्यालय केवल एक शिक्षा का केंद्र नहीं बल्कि एक ऐसी जीवित धारा होगी जो पूरे विश्व को भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर से परिचित कराएगी। इस शिक्षा से हर बालक में वीर शिवाजी जैसा साहसी व्यक्तित्व जन्म लेगा। वर्तमान समय में हिंदू समाज को विधर्मियों से सतर्क रहकर अपना कर्म करना होगा और हिंदू है तो हिंदू का आचरण अपनाना होगा। माथे पर टिका, हाथों में कलेवा आदि पूर्व के संस्कार अपनाने होंगे। अपने साथ परिवार एवं समाज में भी हिंदू संस्कार पर विशेष ध्यान देना होगा। बता दें, ऋृतेश्वर जी महाराज ना सिर्फ सनातन धर्म के अच्छे जानकार हैं, बल्कि आध्यात्मिकता और विज्ञान से लेकर मेडिकल के क्षेत्र में भी उनकी ज्ञान अद्भूत है. इस कारण से ना सिर्फ देश, बल्कि विदेशों में भी उनकी कई शाखाएं कार्यरत है. उन्होंने कहा कि मेरी समझ में आनंद ही श्रीकृष्ण है और श्रीकृष्ण ही आनंद है. जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान के अर्पण करता चल. ऐसा करने से सदा जीवन-मुक्त का आनंद अनुभव करेगा

सद्गुरु ऋतेश्वर जी महाराज ने कहा कि सनातन संस्कृति के बिना विकसित भारत की कल्पना अधूरी है. देश में शिक्षा के विकास के लिए सनातन बोर्ड का निर्माण जरूरी है. इसलिए देश में शिक्षा के विकास के लिए सनातन बोर्ड का निर्माण किया जाये. मैकाले की शिक्षा पद्धति से देश का विकास नहीं हो सकता है. संघर्ष में जीवन नहीं है. आनंद में जीवन समाहित है. हम यदि खुश रहेंगे, तभी अपने जीवन को बेहतर तरीके से सुखमय रहकर जी सकते हैं. वर्तमान शिक्षा के चलते ही आज बाप बड़ा ना भईया, सबसे बड़ा रुपईया हो गया है। इस शिक्षा के चलते ही पाश्चात्य संस्कृति को बढ़ावा मिला है, जो अब सोशल मीडिया में हमारे संस्कार की धज्जियां उड़ाते देखा जा सकता है। सद्गुरू ऋतेश्वर महाराज ने सरकार से अपील की है कि किसी भी राष्ट्र की संस्कृति को बचाने के लिए राष्ट्रवादियों के नाम पर ही वहां के प्रतीक चिन्हों के नाम होने चाहिए। सभी राजनीतिक दलों और भारतवासियों को मिलकर देश की महान विभूतियों के नाम पर सड़कों और भवनों के नाम रखे जाने चाहिए।

ऋतेश्वर महाराज ने कहा कि किसी भी स्थानीय धरोहर और सड़कों के नाम वहां के वीरों और नायकों के नाम पर होने चाहिए। ऐसे में हम महान भारत के अस्तित्व और संस्कृति को लंबे समय तक बचा के रखेंगे। उन्होंने कहा- ये लोग भगवान को मांस खाने वाला मान रहे हैं। जबकि, वाल्मिकी रामायण की चौपाइयों में ममसा या मनसा का तात्पर्य घने वनों में मिलने वाले फल, गूदा और कंदमूल से है। दक्षिण भारतीय मंदिर शहर श्री रंगम में जब पुजारी भगवान रंगनाथ को आम का प्रसाद चढ़ाते हैं, तो वे मंत्रोच्चारण करते हैं- “इति आम्र ममसा खंड समर्पयामिः“, अर्थात् मैं भगवान को सेवन करने के लिए आम-ममसा (आम का मांस यानि मूल) चढ़ाता हूं। हमें पता होना चाहिए कि वे फल के गूदे को संदर्भित करते हैं। उन्होंने कहा कि सनातन संस्कृति विराट है। किसी की भावना का अनादर नहीं होना चाहिए। भारत ने सती प्रथा समाप्त की है। वहीं, जाति-व्यवस्था के कारण हुए उत्पीड़न को उन्होंने अपवाद बताया।

उन्होंने कहा कि अपवाद कभी नियम नहीं हो सकते। इस सनातन विश्व विद्यालय के जरिए हम प्रारम्भ में गुरु द्वारा दिए गए धर्म, मंत्र और ज्ञान की रक्षा करना सिखायेंगे। हम ज्ञान के अभाव में जाति रंग बांट रहे हैं। जबकि धर्म, शरीर को कष्ट देने का अर्थ नहीं है। धर्म हमें संस्कार सिखाता है। उन्होंने कहा कि अगर राष्ट्र और देश को बदलना है तो पूरी शिक्षा पद्धति में बदलाव करना पड़ेगा और इसके लिए हमारी सनातनी शिक्षा नीति लानी होगी। इस दौरान उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के अनुसार हिंदू जीवन जीने की पद्धति है। हिंदू कोई मत नहीं है बल्कि अज्ञानता, अशिक्षा और वोटों की राजनीति के कारण हिंदू को एक धर्म कहकर ही संबोधित किया जाता है। पूजा की पद्धति अलग हो सकती हैं, लेकिन धर्म अलग नहीं है। यह एक हिंदू राष्ट्र था, है और हमेशा रहेगा। राजनीतिक दलों से जुड़े सवालों पर ऋतेश्वर महाराज ने जवाब देते हुए कहा मैं किसी विशेष दल का नहीं हूं, दिल की बात करने आया हूं, जो भी व्यक्ति सनातन की बात करेगा, हित की बात करेगा, गरीबों की बात करेगा एक सामान्य नागरिक के तौर पर मैं उसके साथ खड़ा रहूंगा.

 

 

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