रंगभूमि का कथानायक अपनी हक के लिए लड़ने वाला एक जुझारू चरित्र है : अनूप
’रंगभूमि’ के सौ
साल
पूरे
होने
के
उपलक्ष्य
में
हिंदी
विभाग,
बीएचयू
में
अंतरराष्ट्रीय
संगोष्ठी
का
शुभारंभ
’रंगभूमि’ के चुनिंदा
अंशों
का
मंचन
एवं
’हिंदी
गजल
के
निकष’
पुस्तक
का
लोकार्पण
सुरेश गांधी
वाराणसी। हिंदी विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी द्वारा “प्रेमचंद की विशिष्ट कृति : रंगभूमि के सौ साल“ विषयक त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। गुरुवार को संगोष्ठी के प्रथम दिवस उद्घाटन सत्र में स्वागत वक्तव्य देते हुए हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. वशिष्ठ द्विवेदी ’अनूप’ ने कथाकार प्रेमचंद के कथा साहित्य की विशेषताओं को रेखांकित करते हुए कहा कि रंगभूमि का कथानायक सूरदास सामाजिक उपयोग में आने वाली अपनी जमीन के लिए उद्योगपतियों, सरकार और जमींदारों से लड़ने वाला एक ईमानदार, साहसी एवं जुझारू चरित्र है। सूरदास के कंठ से हमारे देश का तत्कालीन इतिहास बोलता है।
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे सुप्रसिद्ध वरिष्ठ कथाकार सुरेन्द्र वर्मा ने अपने वक्तव्य में कहा कि प्रेमचंद समसामयिक लेखक थे और जो लेखक समसामयिक लेखन नहीं करता, वह अपने समय के साथ अन्याय करता है। लोकप्रिय और मुख्यधारा के साहित्य पर विचार रखते हुए उन्होंने कहा कि लोकप्रिय साहित्य टिकता नहीं है। जबकि मुख्यधारा का साहित्य कालजयी होता है।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में प्रख्यात साहित्यकार एवं राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सत्यकाम ने कहा कि आज प्रेमचंद को देखने, पढ़ने की मौलिक दृष्टि विकसित करने की आवश्यकता है, पूर्व में कही गई घिसी-पिटी पुरानी बातों पर विश्वास करना उचित नहीं है। प्रेमचंद ने जिस सूरदास के चरित्र का निर्माण किया था, उसमें भगवद्गीता का प्रभाव है।विशिष्ट अतिथि के रूप में
नेपाली और हिंदी साहित्य
के विशेषज्ञ प्रो. दामोदर ढकाल ने नेपाली
और भारतीय किसान समाज के तुलनात्मक
स्वरूप पर विचार करते
हुए कहा कि समाज
हमेशा से शोषक और
शोषित में बंटा रहा
है और आज भी
यह स्थिति बनी हुई है।
उन्होंने ’संघे शक्ति कलियुगे’
की बात भी कही।
इस कार्यक्रम में हिंदी विभाग
के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. बलिराज पाण्डेय ने बताया कि
प्रेमचंद का साहित्य हमें
स्वाधीन और स्वाभाविक बनाता
है। इसलिये साहित्य के विद्यार्थी होने
के नाते आत्मनिरीक्षण करना
चाहिए। रंगभूमि का नाम यदि
रणभूमि रखा जाए तो
अतिशयोक्ति नहीं होगी।
डॉ. किंगसन सिंह पटेल ने कहा कि सूरदास अंत तक लड़ता रहता है और अपनी जली हुई झोपड़ी को बार बार बनाता है लेकिन हार नहीं मानता।विश्वविद्यालय की परंपरानुसार दिव्या शुक्ला, स्मिता पाण्डेय और रुक्मिणी राय ने मधुर वाणी में कुलगीत प्रस्तुत किया। इस सुअवसर पर डॉ. लहरी राम मीणा के निर्देशन में रंगभूमि के चुनिंदा अंशों का नाट्य मंचन किया गया। साथ ही हिंदी विभाग के वर्तमान अध्यक्ष प्रो. वशिष्ठ द्विवेदी अनूप की आलोचनात्मक कृति ’हिंदी गजल के निकष’ का लोकार्पण भी किया गया। इस सत्र का संचालन डॉ. अशोक कुमार ज्योति ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. विंध्याचल यादव ने किया। इस कार्यक्रम में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के शोधार्थियों के अलावा देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के शोधार्थी एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।
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