निद्रा से जागेंगे सृष्टि के पालनहार, मंगल मुहूर्त में सात फेरे की रस्म
बजेंगे ढोल-नगाड़े, गली-गली गूंजेगी शहनाइयां, झूम के आईं मंगल घड़ियां...
कार्तिक
माह
के
शुक्ल
पक्ष
में
पड़ने
वाली
दूसरी
एकादशी
को
देवउठनी
एकादशी
कहा
जाता
है.
इस
बार
देवउठनी
एकादशी
का
व्रत
12 नवंबर
को
रखा
जाएगा.
यह
एकादशी
बेहद
महत्वपूर्ण
है.
इस
दिन
सृष्टि
के
पालनहार
भगवान
विष्णु
चार
माह
तक
सोने
के
बाद
जागते
हैं.
इन
चार
महीनों
में
भगवान
विष्णु
के
सोने
या
यूं
कहें
देव
शयन
के
कारण
सभी
प्रकार
के
मांगलिक
कार्य
वर्जित
होते
हैं.
भगवान
विष्णु
के
पुनः
जागने
के
बाद
ही
सभी
मांगलिक
कार्य
संपन्न
हो
पाते
हैं.
देव
जागरण
या
उत्थान
होने
के
कारण
इसको
देवोत्थान
एकादशी
भी
कहते
हैं.
इस
दिन
उपवास
रखने
और
कथा
सुनने
का
विशेष
महत्व
है.
इस
बार
कार्तिक
माह
की
एकादशी
11 नवंबर
को
शाम
के
6ः46
बजे
से
लेकर
12 नवंबर
को
शाम
04ः04
बजे
तक
रहेगी.
ऐसे
में
12 नवंबर
को
उदय
तिथि
में
होने
के
कारण
देव
देवउठनी
एकादशी
का
व्रत
इसी
दिन
रखा
जाएगा.
जबकि
पारण
13 नवंबर
को
सुबह
6ः42
बजे
से
8ः51
बजे
के
बीच
किया
जाएगा.
खास
यह
है
कि
इस
दिन
हर्षण
योग
और
सर्वार्थ
सिद्धि
योग
का
संयोग
बन
रहा
है.
इस
योग
में
विष्णु
जी
की
पूजा
करने
से
साधक
को
मनोवांछित
फलों
की
प्राप्ति
होती
है.
इस
दौरान
मां
लक्ष्मी
की
पूजा
करना
और
भी
लाभकारी
माना
जाता
है.
दोनों
की
साथ
में
पूजा
करने
से
वैवाहिक
जीवन
में
सुख-समृद्धि
का
वास
होता
है.
देवउठनी
एकादशी
से
मंगलकार्य
शुरू
हो
जाते
हैं।
इस
दिन
रात
में
शालिग्राम
जी
और
तुलसी
माता
का
विवाह
होता
है।
इस
तिथि
के
बाद
शुरू
किए
गए
पुण्यकर्मों
का
फल
इस
बार
करोड़ों
गुणा
अधिक
है
सुरेश गांधी
अगर आप लेना चाहते हैं नारायण का आशीर्वाद। उन तक पहुंचाना चाहते हैं अपने दिल की बात। तो हो जाइए तैयार, क्योंकि चार महीने की निद्रा के बाद जागने वाले हैं सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु। खास बात यह है कि तिथियों के साथ ग्रह-नक्षत्रों का ऐसा संयोग है कि इस बार नेत्र खुलते ही भक्तों को मिलेगा मनचाहा वरदान। भक्तों की भर देंगे झोली भगवान विष्णु। धन बरसाती मां लक्ष्मी भी आएंगी आपके द्वार। सनातन धर्म में एकादशी की तिथियों का विशेष महत्व है. देवउठनी एकादशी इनमें से एक है. इसको प्रबोधिनी एकादशी और देवुत्थान एकादशी के नाम से भी जानते हैं. देवउठनी एकादशी के दिन से विवाह, सगाई, मुंडन, गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य भी शुरू हो जाते हैं. यह तिथि कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पड़ती है. इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा और व्रत का विधान है. ज्योतिषाचार्यो के मुताबिक देवउठनी एकादशी को भगवान श्रीहरि चार माह की गहरी निद्रा से उठते हैं. भगवान के सोकर उठने की खुशी में देवोत्थान एकादशी मनाया जाता है. इसी दिन से सृष्टि को भगवान विष्णु संभालते हैं. इसी दिन तुलसी से उनका विवाह हुआ था. इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं.
परंपरा के अनुसार, देवउठनी एकादशी पर तुलसी जी का विवाह किया जाता है. इस दिन उनका शृंगार कर उन्हें चुनरी ओढ़ाई जाती है. उनकी परिक्रमा की जाती है. शाम के समय रोली से आंगन में चौक पूरा कर भगवान विष्णु के चरणों को कलात्मक रूप से अंकित करेंगी. रात को विधिवत पूजन के बाद सुबह भगवान को शंख, घंटा आदि बजाकर जगाया जाएगा और पूजा करके कथा सुनी जाएगी. मान्यता है कि, इस दिन सच्चे मन से उपासना करने वाले जातकों को जगत के पालनहार श्रीहरि का आशीर्वाद मिलता है. साथ ही घर में सुख-समृद्धि का भी वास रहता है. पंचांग के अनुसार, इस साल कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि की शुरूआत 11 नवंबर सोमवार को शाम 6 बजकर 46 मिनट से हो रही है. यह तिथि 12 नवंबर मंगलवार को शाम 4 बजकर 4 मिनट तक मान्य रहेगी. ऐसे में उदयातिथि के आधार पर देवउठनी एकादशी का व्रत 12 नवंबर मंगलवार के दिन रखा जाएगा. देवउठनी एकादशी के दिन व्रती भगवान विष्णु की पूजा सुबह 6ः42 बजे से कर सकते हैं. 7ः52 बजे से सर्वार्थ सिद्धि योग में पूजा करना और भी फलदायी होगा. देवउठनी एकादशी पर ब्रह्म मुहूर्त 04ः56 एएम से 05ः49 एएम तक है. वहीं, शुभ मुहूर्त या अभिजीत मुहूर्त 11ः44 ए एम से 12ः27 पी एम तक है. वहीं, व्रत पारण सुबह 6 बजकर 42 मिनट से सुबह 8 बजकर 51 मिनट तक है। देवउठनी एकादशी भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए भी बेहद उत्तम मानी जाती है।
इस दिन भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए कुछ लोग व्रत रखते हैं और पूजा करते हैं। इस दिन सच्ची श्रद्धा और भक्ति भाव से भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसी दिन से सभी मांगलिक कार्य आरंभ हो जाते हैं। इसी दिन से विवाह मुहूर्त भी शुरू हों जायेंगे। ज्योतिषियों की मानें तो इसके प्रभाव से बड़े से बड़ा पाप भी क्षण मात्र में ही नष्ट हो जाता है. ऊँ नमः नारायणाभ्याम, ऊँ उमा माहेश्वराय नमः, ऊँ रां ईं हीं हूं हूं, ऊँ घृणी सूर्याय आदित्य ऊँ व दिवाकराय विरमहे महातेनाम धीमहिं तन्नाभानू प्रचोदयात मंत्र के जाप से नौकरी में तरक्की, उत्तम स्वास्थ्य सहित मनोकामनाएं पूरी होती है। व्रत के दौरान इन मंत्रों का जाप करना चाहिए। खखोल्काय स्वाहा से सूर्यदेव को अर्घ्य देना चाहिए। श्रीकृष्ण ने कहा है देवउठनी एकादशी की रात्रि जागरण कर पूजा करने से साधक की आने वाली 10 पीढ़ियां विष्णु लोक में स्थान प्राप्त करती है, पितृ नरक से मुक्ति पाते हैं. देवउठनी एकादशी का व्रत कथा के बिना अधूरा है।
दरअसल, आषाढ़ शुक्ल पक्ष की हरिशयनी एकादशी से चातुर्मास की शुरुआत हुई थी। ये चातुर्मास कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तक होते हैं। चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु का शयनकाल होता है। इन चार महीनों के दौरान विवाह आदि सभी शुभ कार्य बंद होते हैं। पदमपुराण के अनुसार इन चार महीनों में भगवान विष्णु के दो रूप अलग-अलग स्थान पर वास करते हैं, उनका एक स्वरूप राजा बलि के
पास पाताल और दूसरा रूप क्षीर सागर में शेषनाग की शैय्या पर शयन करता है। भगवान विष्णु कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को अपने लोक में लौटते हैं। इसी कारण इन चार महीनों में विवाह आदि शुभ कार्य नहीं किए जाते। चूंकि 12 नवंबर को कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को चातुर्मास सम्पूर्ण हो जाएंगे। अतः इस दिन से शादी-ब्याह आदि सभी मांगलिक कार्य फिर से शुरू हो जाएंगे। क्षीरसागर में शयन कर रहे श्री हरि विष्णु को जगाकर उनसे मांगलिक कार्यों की शुरूआत कराने की प्रार्थना की जाती है। मंदिरों के व घरों में गन्नों के मंडप बनाकर श्रद्धालु भगवान लक्ष्मीनारायण का पूजन कर उन्हें बेर, चने की भाजी, आँवला सहित अन्य मौसमी फल व सब्जियों के साथ पकवान का भोग अर्पित किए जाते हैं। मंडप में शालिगराम की प्रतिमा व तुलसी का पौधा रखकर उनका विवाह कराया जाता है। इसके बाद मण्डप की परिक्रमा करते हुए भगवान से कुँवारों के विवाह कराने और विवाहितों के गौना कराने की प्रार्थना की जाती है। दीप मालिकाओं से घरों को रोशन किया जाएगा और बच्चे पटाखे चलाकर खुशियाँ मनाते हैं।
पौराणिक मान्यताएं
पौराण्कि मान्यताओं के अनुसार, एक राज्य में एकादशी के दिन प्रजा से लेकर पशु तक कोई भी अन्न नहीं ग्रहण करता था. एक दिन भगवान विष्णु ने राजा की परीक्षा लेने की सोची और सुंदरी भेष बनाकर सड़क किनारे बैठ गए. राजा की भेंट जब सुंदरी से हुई तो उन्होंने उसके यहां बैठने का कारण पूछा. स्त्री ने बताया कि वह बेसहारा है. राजा उसके रूप पर मोहित हो गए और बोले कि तुम रानी बनकर मेरे साथ महल चलो. सुंदर स्त्री के राजा के सामने शर्त रखी कि ये प्रस्ताव तभी स्वीकार करेगी जब उसे पूरे राज्य का अधिकार दिया जाएगा और वह जो बनाए राजा को खाना होगा. राजा ने शर्त मान ली.
अगले दिन एकादशी पर सुंदरी ने बाजारों में बाकी दिनों की तरह अन्न बेचने का आदेश दिया. मांसाहार भोजन बनाकर राजा को खाने पर मजबूर करने लगी. राजा ने कहा कि आज एकादशी के व्रत में मैं तो सिर्फ फलाहार ग्रहण करता हूं. रानी ने शर्त याद दिलाते हुए राजा को कहा कि अगर यह तामसिक भोजन नहीं खाया तो मैं बड़े राजकुमार का सिर धड़ से अलग कर दूंगी। राजा ने अपनी स्थिति बड़ी रानी को बताई. बड़ी महारानी ने राजा से धर्म का पालन करने की बात कही और अपने बेटे का सिर काट देने को मंजूर हो गई. राजा हताश थे और सुंदरी की बात न मानने पर राजकुमार का सिर देने को तैयार हो गए. सुंदरी के रूप में श्रीहरि राजा के धर्म के प्रति समर्पण को देखर अति प्रसन्न हुए और उन्होंने अपने असली रूप में आकर राजा को दर्शन दिए. विष्णु जी ने राजा को बताया कि तुम परीक्षा में पास हुए, कहो क्या वरदान चाहिए. राजा ने इस जीवन के लिए प्रभू का धन्यवाद किया कहा कि अब मेरा उद्धार कीजिए. राजा की प्रार्थना श्रीहरि ने स्वीकार की और वह मृत्यु के बाद बैंकुठ लोक को चला गया.
महत्व
ज्योतिषि के अनुसार चार
महीने तक देवताओं के
सोने और इनके जागने
पर कार्तिक, शुक्ल पक्ष की एकादशी
पर उनके जागने का
प्रतीकात्मक है। प्रतीक वर्षा
के दिनों में सूर्य की
स्थिति और ऋतु प्रभाव
बताने, उस प्रभाव से
अपना सामंजस्य बिठाने का संदेश देते
हैं। वैदिक वांग्मय के अनुसार सूर्य
सबसे बड़े देवता हैं।
उन्हें जगत की आत्मा
भी कहा गया है।
हरि, विष्णु, इंद्र आदि नाम सूर्य
के पर्याय हैं। वर्षा काल
में अधिकांश समय सूर्य देवता
बादलों में छिपे रहते
हैं। इसलिए ऋषि ने गया
है कि वर्षा के
चार महीनों में हरि सो
जाते हैं। फिर जब
वर्षा काल समाप्त हो
जाता है तो वे
जाग उठते हैं या
अपने भीतर उन्हें जगाना
होता है। बात सिर्फ
सूर्य या विष्णु के
सो जाने और उस
अवधि में आहार विहार
के मामले में खास सावधानी
रखने तक ही सीमित
नहीं है। इस अनुशासन
का उद्देश्य वर्षा के दिनों में
होने वाले प्रकृति परिवर्तनों
उनके कारण प्रायः फैलने
वाली मौसमी बीमारियों और शरीर की
प्रतिरोधक क्षमता पर पड़ने वाले
उसके प्रभाव के कारण अक्सर
गड़बड़ाता रहता है। निजी
जीवन में स्वास्थ्य संतुलन
का ध्यान रखने के साथ
ही यह चार माह
की अवधि साधु संतों
के लिए भी विशेष
दायित्वों का तकाजा लेकर
आती है। घूम-घूम
कर धर्म अध्यात्म की
शिक्षा देने लोक कल्याण
की गतिविधियों को चलाते रहने
वाले साधु संत इन
दिनों एक ही जगह
पर रुक कर साधना
और शिक्षण करते हैं।
क्यों मनाते हैं देवउठनी एकादशी
ब्रतावैवर्त पुराण की कथा के अनुसार कालांतर में तुलसी देवी भगवान गणेश के शापवश असुर शंखचूड की पत्नी बनीं। जब असुर शंखचूड का आतंक फैलने लगा तो भगवान श्री हरि ने वैष्णवी माया फैलाकर शंखचूड से कवच ले लिया और उसका वध कर दिया। तत्पश्चात् भगवान श्री हरि शंखचूड का रूप धारण कर साध्वी तुलसी के घर पहुंचे, वहां उन्होंने शंखचूड समान प्रदर्शन किया। तुलसी ने पति को युद्ध में आया देख उत्सव मनाया और उनका सहर्ष स्वागत किया। तब श्री हरि ने शंखचूड के वेष में शयन किया। उस समय तुलसी के साथ उन्होंने सुचारू रूप से हास-विलास किया तथापि तुलसी को इस बार पहले की अपेक्षा आकर्षण में व्यतिक्रम का अनुभव हुआ। अतः उसे वास्तविकता का अनुमान हो गया। तब तुलसी देवी ने पूछा, आप कौन हैं, आपने मेरा सतीत्व नष्ट कर दिया, इसलिए अब मैं तुम्हें शाप दे रही हूं। तुलसी के वचन सुनकर शाप के भय से भगवान श्री हरि ने अपना लीलापूर्वक अपना सुन्दर मनोहर स्वरूप प्रकट किया। उन्हें देखकर पति के निधन का अनुमान करके कामिनी तुलसी मूर्छित हो गई। फिर चेतना प्राप्त होने पर उसने कहा नाथ आपका हृदय पाषाण के सदृश है, इसलिए आप में तनिक भी दया नहीं है।
आज आपने छलपूर्वक धर्म नष्ट करके मेरे स्वामी को मार डाला। अतः देव! मेरे श्राप से अब पाषाण रूप होकर पृथ्वी पर रहें। इस प्रकार शोक संतृप्त तुलसी विलाप करने लगी। तब भगवान श्री हरि ने कहा भद्रे। तुम मेरे लिए भारतवर्ष में रहकर बहुत दिनों तक तपस्या कर चुकी हो। अब तुम दिव्य देह धारण कर मेरे साथ सानन्द रहो। मैं तुम्हारे श्राप को सत्य करने के लिए भारतवर्ष में पाषाण (शालिग्राम) बनकर रहूंगा और तुम एक पूजनीय तुलसी के पौधे के रूप में पृथ्वी पर रहोगी। गण्डकी नदी के तट पर मेरा वास होगा। बिना तुम्हारे मेरी पूजा नहीं हो सकेगी। तुम्हारे पत्रों और मंजरियों में मेरी पूजा होगी। जो भी बिना तुम्हारे मेरी पूजा करेगा वह नरक का भागी होगा। इस प्रकार शालिग्राम जी का उद्भव पृथ्वी पर हुआ।
पौराणिक कथा
के अनुसार भगवान विष्णु व जलंधर के
बीच युद्ध होता है। जलंधर
की पत्नी तुलसी पतिव्रता रहती हैं। इसके
कारण विष्णु जलंधर को पराजित नहीं
कर पा रहे थे।
जलंधर को पराजित करने
के लिए भगवान युक्ति
के तहत जालंधर का
रूप धारण कर तुलसी
का सतीत्व भंग करने पहुँच
गए। तुलसी का सतीत्व भंग
होते ही भगवान विष्णु
जलंधर को युद्ध में
पराजित कर देते हैं।
युद्ध में जलंधर मारा
जाता है। भगवान विष्णु
तुलसी को वरदान देते
हैं कि वे उनके
साथ पूजी जाएँगी। एक
अन्य कथा के अनुसार
गंगा राधा को जड़त्व
रूप हो जाने व
राधा को गंगा के
जल रूप हो जाने
का श्राप देती हैं। राधा
व गंगा दोनों ने
भगवान कृष्ण को पाषाण रूप
हो जाने का श्राप
दे दिया। इसके कारण ही
राधा तुलसी, गंगा नदी व
कृष्ण सालिगराम के रूप में
प्रसिद्ध हुए। प्रबोधिनी एकादशी
के दिन सालिगराम, तुलसी
व शंख का पूजन
करने से विशेष पुण्य
की प्राप्ति होती है।
व्रत-पूजन विधि
पूजन के लिए भगवान का मन्दिर अथवा सिंहासन को विभिन्न प्रकार के लता पत्र, फल, पुष्प और वंदनबार आदि से सजाएं। आंगन में देवोत्थान का चित्र बनाएं, तत्पश्चात फल, पकवान, सिंघाड़े, गन्ने आदि चढ़ाकर डलिया से ढंक दें तथा दीपक जलाएं। विष्णु पूजा या पंचदेव पूजा विधान अथवा रामार्चनचन्द्रिका आदि के अनुसार श्रद्धापूर्वक पूजन तथा दीपक, कपूर आदि से आरती करें। इसके बाद इस मंत्र से पुष्पांजलि अर्पित करें- यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन। तेह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्तिदेवाः।। इसके बाद इस मंत्र से प्रार्थना करें -इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता। त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थ शेषशायिना।। इदं व्रतं मया देव कृत प्रीत्यै तव प्रभो। न्यूनं सम्पूर्णतां यातु त्वत्प्रसादाज्जनार्दन।।
साथ ही प्रह्लाद, नारद, पाराशर, पुण्डरीक, व्यास, अम्बरीष, शुक, शौनक और भीष्मादि भक्तों का स्मरण करके चरणामृत, पंचामृत व प्रसाद वितरित करें। तत्पश्चात एक रथ में भगवान को विराजमान कर स्वयं उसे खींचें तथा नगर, ग्राम या गलियों में भ्रमण कराएं। शास्त्रानुसार जिस समय वामन भगवान तीन पद भूमि लेकर विदा हुए थे, उस समय दैत्यराज बलि ने वामनजी को रथ में विराजमान कर स्वयं उसे चलाया था। ऐसा करने से समुत्थिते ततो विष्णौ क्रियाः सर्वाः प्रवर्तये। यानी भगवान विष्णु योग निद्रा को त्याग कर सभी प्रकार की क्रिया करने में प्रवृत्त हो जाते हैं। अंत में कथा श्रवण कर प्रसाद का वितरण करें। किसानों की गन्ने की फसल भी तैयार है। आज के दिन गन्ने की पूजा करके उसका उपभोग किया जाता है। कहा जाता है, तुलसी विवाह के सुअवसर पर व्रत रखने का बड़ा ही महत्व है. आस्थावान भक्तों के अनुसार इस दिन श्रद्धा-भक्ति और विधिपूर्वक व्रत करने से व्रती के इस जन्म के साथ-साथ पूर्वजन्म के भी सारे पाप मिट जाते हैं और उसे पुण्य की प्राप्ति होती है।
शादी के शुभ मुहूर्त
नवंबर 13, 2024 त्रयोदशी
और रेवती नक्षत्र दोपहर 03ः26 से रात्रि
09ः48 तक
नवंबर 16, 2024 द्वितीया
और रोहिणी प्रातः 11ः48 से अगले
दिन 06ः47 तक
नवंबर 17, 2024 द्वितीया,
तृतीया और रोहिणी, मृगशिरा
प्रातः 06ः47 से अगले
दिन प्रातः 06ः4 तक
नवंबर 18, 2024 तृतीया
और मृगशिरा प्रातः 06ः48 से प्रातः
07ः56 तक
नवंबर 22 , 2024 अष्टमी
और मघा रात्रि 11ः44
से अगले दिन प्रातः
06ः51 तक
नवंबर 23, 2024 अष्टमी
और मघा प्रातः 06ः51
से प्रातः 11ः42 तक
नवंबर 25, 2024 एकादशी
और हस्त रात्रि
01ः01 से अगले दिन
प्रातः 06ः53 तक
नवंबर 26, 2024 एकादशी
और हस्त प्रातः 06ः53
से अगले दिन प्रातः
04ः35 तक
नवंबर 28, 2024 त्रयोदशी
और स्वाती प्रातः 07ः36 से अगले
दिन प्रातः 06ः54 तक
नवंबर 29, 2024 त्रयोदशी
और स्वाती प्रातः 06ः54 से अगले
दिन प्रातः 08ः39 तक
विवाह मुहूर्त नवंबर और दिसंबर 2024
पंचांग के अनुसार नवंबर
महीने की 16, 17,18, 22, 23, 24,
25, 26, 28 को विवाह का मुहूर्त है.
उसके बाद दिसम्बर महीने
में 2, 3, 4, 5, 9 , 10
, 11, 13, 14, 15 को विवाह का लग्न है.
पिछले साल की अपेक्षा
देखा जाए तो इस
साल अलग अलग कारणों
के चलते विवाह के
मुहूर्त 35 दिन कम है.
नवंबर 2024 के शुभ विवाह मुहूर्त
13 नवंबर 2024 - शुभ विवाह मुहूर्तः
दोपहर 03ः26 - रात 9ः48
16 नवंबर 2024 - शुभ विवाह मुहूर्तः
रात 11ः48 - 17 नवंबर 2024, सुबह 06ः45
17 नवंबर 2024 - शुभ विवाह मुहूर्तः
सुबह 06ः45 - सुबह 06ः46, 18 नवंबर 2024
18 नवंबर 2024 - शुभ विवाह मुहूर्तः
सुबह 06ः46 - सुबह 07ः56
22 नवंबर 2024 - शुभ विवाह मुहूर्तः
रात 11ः44 - सुबह 06ः50, 23 नवंबर
23 नवंबर 2024 - शुभ विवाह मुहूर्तः
सुबह 06ः50 - सुबह 11ः42
25 नवंबर 2024 - शुभ विवाह मुहूर्तः
सुबह 01ः01- सुबह 6.53, 26 नवंबर
26 नवंबर, दिन - मंगलवार, शुभ विवाह मुहूर्तः
06ः53 एएम से 27 नवंबर
को 04ः35 एएम तक
28 नवंबर 2024 - शुभ विवाह मुहूर्तः
सुबह 07ः36- सुबह 06ः55,
29 नवंबर
29 नवंबर 2024 - शुभ विवाह मुहूर्तः
सुबह 06ः55 - सुबह 08ः39
दिसंबर 2024 के शुभ विवाह मुहूर्त
4 दिसंबर 2024 - शुभ विवाह मुहूर्तः
शाम 05ः15 - सुबह 1.02, 5 दिसंबर
5 दिसंबर 2024 - शुभ विवाह मुहूर्तः
दोपहर 12ः49 - शाम 05ः26
9 दिसंबर 2024 - शुभ विवाह मुहूर्तः
दोपहर 02ः56 - सुबह 1.06, 10 दिसंबर
10 दिसंबर 2024 - शुभ विवाह मुहूर्तः
रात 10ः03 - सुबह 6.13, 11 दिसंबर
14 दिसंबर 2024 - शुभ विवाह मुहूर्तः
सुबह 07ः06 - शाम 04ः58
15 दिसंबर 2024 - शुभ विवाह मुहूर्तः
सुबह 03ः42 - सुबह 07ः06
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