तिलकुट व तिलवा की सौंधी खुशबू से महका बाजार
खूब बिक
रहा
मावे
का
तिलकुट
सुरेश गांधी
वाराणसी। शहर से लेकर
देहात तक में मकर
संक्रांति की तैयारियां जोरों
पर है. बाजार में
तिलवा की सौंधी आने
लगी है. तिलवा की
मांग में वृद्धि होने
से बाजार भी गुलजार हो
गया है. तिलवा को
मकर संक्रांति का प्रमुख मिष्ठान
माना जाता है. इसकी
सोंधी महक हर किसी
को अपनी ओर आकर्षित
कर रही है। बाजारों
में जगह-जगह लाई,
तिलकुट, चूड़ा और मीठा
की सैकड़ों दुकानें सज गयी हैं.
जिससे बाजारों की रौनक बढ़
गयी है. वहीं इन
दुकानों पर अभी से
ही खरीदारी के लिए ग्राहकों
की भीड़ नजर आ
रही है.
सुबह आठ बजे
से ही लोग संक्रांति
के लिए गुड़ और
चूड़ा खरीद रहे हैं.
बाजार के अधिकतर दुकानों
के सामने आजकल सिर्फ चूड़ा
और गुड़ की ही
बिक्री हो रही है.
वहीं काले और सफेद
तिल व तिलकुट के
बिक्री में भी काफी
तेजी आई है. लोगों
में बढ़ती व्यस्तता और
भागदौड़ भरी जिंदगी के
कारण अब घरों में
लाई और तिल का
लड्डू बनाने की परंपरा धीरे-धीरे कम होते
जा रही है जिस
कारण अधिकतर लोग अब इन्ही
दुकानों पर निर्भर हो
गये हैं.
ग्रामीण अंचलों में भी मकर
संक्रति का उत्साह देखने
को मिल रहा है.
हर गली और चौक
पर तिलकुट का बाजार सज
चुका है. कहीं चीनी
का तिलकुट तो कहीं मावे
के तिलकुट की डिमांड है.
हर कोई अपने पसंद
के हिसाब से चूड़े की
खरीदारी भी कर रहा
है. लोग चूड़ा के
साथ दही की भी
खरीदारी कर रहें है.
इसके अलावा भी मार्केट में
मकर संक्राति को लेकर कई
तरह से बाजार सज
कर तैयार है. तिलकुट की
सौंधी खुशबू फैल रही है.
कारीगर तिलकुट बनाने में दिन-रात
लगे हुए हैं. लोग
तिलकुट और तिल की
बनी चीजों के अलावा लाई
के लड्डू, चूड़ा, गुड़ आदि खरीद
रहे हैं. मकर संक्रांति
पर लोग सुबह स्नान
व पूजा कर चूड़ा
दही व तिलकुट का
सेवन करने की परंपरा
है.
पतंगों से भी पटा बाजार
मकर संक्रांति नजदीक
आते ही हर उम्र
के लोगों में पतंगबाजी का
खुमार चढ़ जाता है.
बाजार भी रंग-बिरंगे
पतंग से सजा नजर
आ रहा है जो,
लोगों को अपनी ओर
लुभाते हैं. लोगों के
बीच आज भी सबसे
अधिक कागज से बनी
पतंग की डिमांड है.
इसके अलावा पन्नी से बने पतंग
की भी खूब बिक्री
हो रही हैं. बच्चों
से लेकर बुजुर्गों के
बीच पतंगबाजी न केवल मनोरंजन
का माध्यम है, बल्कि यह
लोगों को आपस में
जोड़ने का काम करती
है. बाज, बटरफ्लाई, एयरोप्लेन,
कोरिया पतंग, पैराशूट, प्रिंटेड पतंग, कागज और कार्टून
डिजाइन की पतंगों की
सबसे अधिक मांग रहती
है. हाल ही में
बड़े आकार की पतंगें
लोगों के बीच ज्यादा
लोकप्रिय हो रही हैं,
जिनकी कीमत 100 रुपये से लेकर 600 रुपये
तक होती है. आमतौर
पर पतंगों की कीमत 2 रुपये
से लेकर 600 रुपये तक होती है.
सबसे ज्यादा बिकने वाली पतंग की
कीमत 6 रुपये है. वहीं, लटाई
की कीमत 20 रुपये से लेकर 1300 रुपये
तक होती है. लटाई
प्लास्टिक और लकड़ी की
होती हैं, जो छोटे,
मीडियम और बड़े आकारों
में मिलती हैं. राजनीतिक चेहरों
वाली पतंगे भी बाजार में
आकर्षण का केंद्र बनी
हुई हैं। इन पतंगों
में खासतौर पर नेताओं के
चित्र बने होते हैं,
जो लोगों को बहुत भा
रहे हैं। पतंग विक्रेता
ने बताया कि इस बार
मकर संक्रांति के मौके पर
2025 नाम से बनी पतंगें
और नए आकार की
पतंगें ग्राहकों को बहुत पसंद
आ रही हैं। ग्राहक
बरेली के मांझे की
खास डिमांड कर रहे हैं,
जिसमें काला और लाल
रंग प्रमुख रूप से खरीदा
जा रहा है।
बाजार में दर प्रति किलो
तिलकुट जेनरल : 200 रुपये
खजूर गुड़ तिलकुट : 280 रुपये
खस्ता चीनी तिलकुट : 260 रुपये
खोवा तिलकुट : 440 रुपये
गुड़ : 50 रुपयेखजूर गुड़ : 80 रुपये
चुड़ा : 50 रुपये
गोविंद भोग चुड़ा : 70 रुपये
काला तिल लड्डू : 300 रुपये
सादा
तिल
लड्डू
: 280 रुपये
बदाम
लड्डू
: 260 रुपये
गजक
: 300 रुपये
मस्का
: 200 रुपये
तिल
पापड़ी
: 500 रुपये
रेवड़ी
: 280 रुपये
बाजरा
लड्डू
: 260 रुपये
चुड़ा
मिक्स
लड्डू
: 200 रुपये
मुढ़ी
मिक्स
लड्डू
: 200 रुपये
तिल
कतरी
: 300 रुपये
दूध-दही की भी डिमांड
शहर बाजार के
अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में दूध, दही,
मटर छीमी, फूलगोभी आदि की मांग
बढ़ गयी है. लोग
दूध और दही की
बुकिंग करना शुरू कर
दिये है. मंडी में
दूध के काउंटर पर
बुकिंग करने के लिए
लोग पहुंच रहे है. ठेले
लगाकर कारोबार करने वाले भी
फायदेमंद कारोबार होने के कारण
मकर संक्रांति का बेसब्री से
इंतजार करते हैं. बाजार
में चूड़ा, गुड़ समेत कई
खाद्य सामग्री उपलब्ध है. खाद्य सामग्री
खुले के साथ ही
सुविधा के लिए छोटे-बड़े पैकेटों में
भी इसकी पैकिंग की
गयी है. दुकानदारों ने
बताया कि बाजार अपने
चरम पर है।
तिलकुट निर्माण में दिन-रात जुटे हैं कारीगर
तिलकुट बनाने वाले कारीगर दिन
रात निर्माण कार्य में लगे हुए
हैं. तिलकुट का कारोबार दिसम्बर
और जनवरी सहित दो महीने
का ही होता है.
इन दो महीनों में
ही कारोबारी त्योहार की डिमांड पूरी
करते हैं. कारोबारियों की
मानें तो इस साल
पिछले साल की तुलना
में अच्छी बिक्री की उम्मीद है
क्योंकि मौसम भी साथ
दे रहा है. कारोबारी
बताते हैं कि तिलकुट
पिछले दो सालों से
प्रमंडल के विभिन्न जिलों
के शहर और गांवों
में जाने लगा है
और इस लिहाज से
दिसम्बर के शुरुआत से
ही निर्माण का काम शुरू
कर दिया जाता है.
आज के दौर में
यहां के तिलकुट की
क्वालिटी काफी बेहतर मानी
जाने लगी है. यही
वजह है कि यहां
से लोग दूर-दराज
के अपने संबंधियों के
यहां भी तिलकुट उपहार
के रूप में भेज
रहे हैं.
सीजन में 20 से 25 हजार कमा लेते हैं कारीगर
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