Saturday, 11 January 2025

तिलकुट व तिलवा की सौंधी खुशबू से महका बाजार

तिलकुट तिलवा की सौंधी खुशबू से महका बाजार 

खूब बिक रहा मावे का तिलकुट

सुरेश गांधी

वाराणसी। शहर से लेकर देहात तक में मकर संक्रांति की तैयारियां जोरों पर है. बाजार में तिलवा की सौंधी आने लगी है. तिलवा की मांग में वृद्धि होने से बाजार भी गुलजार हो गया है. तिलवा को मकर संक्रांति का प्रमुख मिष्ठान माना जाता है. इसकी सोंधी महक हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर रही है। बाजारों में जगह-जगह लाई, तिलकुट, चूड़ा और मीठा की सैकड़ों दुकानें सज गयी हैं. जिससे बाजारों की रौनक बढ़ गयी है. वहीं इन दुकानों पर अभी से ही खरीदारी के लिए ग्राहकों की भीड़ नजर रही है.

सुबह आठ बजे से ही लोग संक्रांति के लिए गुड़ और चूड़ा खरीद रहे हैं. बाजार के अधिकतर दुकानों के सामने आजकल सिर्फ चूड़ा और गुड़ की ही बिक्री हो रही है. वहीं काले और सफेद तिल तिलकुट के बिक्री में भी काफी तेजी आई है. लोगों में बढ़ती व्यस्तता और भागदौड़ भरी जिंदगी के कारण अब घरों में लाई और तिल का लड्डू बनाने की परंपरा धीरे-धीरे कम होते जा रही है जिस कारण अधिकतर लोग अब इन्ही दुकानों पर निर्भर हो गये हैं.

ग्रामीण अंचलों में भी मकर संक्रति का उत्साह देखने को मिल रहा है. हर गली और चौक पर तिलकुट का बाजार सज चुका है. कहीं चीनी का तिलकुट तो कहीं मावे के तिलकुट की डिमांड है. हर कोई अपने पसंद के हिसाब से चूड़े की खरीदारी भी कर रहा है. लोग चूड़ा के साथ दही की भी खरीदारी कर रहें है. इसके अलावा भी मार्केट में मकर संक्राति को लेकर कई तरह से बाजार सज कर तैयार है. तिलकुट की सौंधी खुशबू फैल रही है. कारीगर तिलकुट बनाने में दिन-रात लगे हुए हैं. लोग तिलकुट और तिल की बनी चीजों के अलावा लाई के लड्डू, चूड़ा, गुड़ आदि खरीद रहे हैं. मकर संक्रांति पर लोग सुबह स्नान पूजा कर चूड़ा दही तिलकुट का सेवन करने की परंपरा है.

पतंगों से भी पटा बाजार

मकर संक्रांति नजदीक आते ही हर उम्र के लोगों में पतंगबाजी का खुमार चढ़ जाता है. बाजार भी रंग-बिरंगे पतंग से सजा नजर रहा है जो, लोगों को अपनी ओर लुभाते हैं. लोगों के बीच आज भी सबसे अधिक कागज से बनी पतंग की डिमांड है. इसके अलावा पन्नी से बने पतंग की भी खूब बिक्री हो रही हैं. बच्चों से लेकर बुजुर्गों के बीच पतंगबाजी केवल मनोरंजन का माध्यम है, बल्कि यह लोगों को आपस में जोड़ने का काम करती है. बाज, बटरफ्लाई, एयरोप्लेन, कोरिया पतंग, पैराशूट, प्रिंटेड पतंग, कागज और कार्टून डिजाइन की पतंगों की सबसे अधिक मांग रहती है. हाल ही में बड़े आकार की पतंगें लोगों के बीच ज्यादा लोकप्रिय हो रही हैं, जिनकी कीमत 100 रुपये से लेकर 600 रुपये तक होती है. आमतौर पर पतंगों की कीमत 2 रुपये से लेकर 600 रुपये तक होती है. सबसे ज्यादा बिकने वाली पतंग की कीमत 6 रुपये है. वहीं, लटाई की कीमत 20 रुपये से लेकर 1300 रुपये तक होती है. लटाई प्लास्टिक और लकड़ी की होती हैं, जो छोटे, मीडियम और बड़े आकारों में मिलती हैं. राजनीतिक चेहरों वाली पतंगे भी बाजार में आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं। इन पतंगों में खासतौर पर नेताओं के चित्र बने होते हैं, जो लोगों को बहुत भा रहे हैं। पतंग विक्रेता ने बताया कि इस बार मकर संक्रांति के मौके पर 2025 नाम से बनी पतंगें और नए आकार की पतंगें ग्राहकों को बहुत पसंद रही हैं। ग्राहक बरेली के मांझे की खास डिमांड कर रहे हैं, जिसमें काला और लाल रंग प्रमुख रूप से खरीदा जा रहा है।

बाजार में दर प्रति किलो

तिलकुट जेनरल : 200 रुपये

खजूर गुड़ तिलकुट : 280 रुपये

खस्ता चीनी तिलकुट : 260 रुपये

खोवा तिलकुट : 440 रुपये

गुड़ : 50 रुपयेखजूर गुड़ : 80 रुपये

चुड़ा : 50 रुपये

गोविंद भोग चुड़ा : 70 रुपये

काला तिल लड्डू : 300 रुपये

सादा तिल लड्डू : 280 रुपये

बदाम लड्डू : 260 रुपये

गजक : 300 रुपये

मस्का : 200 रुपये

तिल पापड़ी : 500 रुपये

रेवड़ी : 280 रुपये

बाजरा लड्डू : 260 रुपये

चुड़ा मिक्स लड्डू : 200 रुपये

मुढ़ी मिक्स लड्डू : 200 रुपये

तिल कतरी : 300 रुपये

दूध-दही की भी डिमांड

शहर बाजार के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में दूध, दही, मटर छीमी, फूलगोभी आदि की मांग बढ़ गयी है. लोग दूध और दही की बुकिंग करना शुरू कर दिये है. मंडी में दूध के काउंटर पर बुकिंग करने के लिए लोग पहुंच रहे है. ठेले लगाकर कारोबार करने वाले भी फायदेमंद कारोबार होने के कारण मकर संक्रांति का बेसब्री से इंतजार करते हैं. बाजार में चूड़ा, गुड़ समेत कई खाद्य सामग्री उपलब्ध है. खाद्य सामग्री खुले के साथ ही सुविधा के लिए छोटे-बड़े पैकेटों में भी इसकी पैकिंग की गयी है. दुकानदारों ने बताया कि बाजार अपने चरम पर है।

तिलकुट निर्माण में दिन-रात जुटे हैं कारीगर

तिलकुट बनाने वाले कारीगर दिन रात निर्माण कार्य में लगे हुए हैं. तिलकुट का कारोबार दिसम्बर और जनवरी सहित दो महीने का ही होता है. इन दो महीनों में ही कारोबारी त्योहार की डिमांड पूरी करते हैं. कारोबारियों की मानें तो इस साल पिछले साल की तुलना में अच्छी बिक्री की उम्मीद है क्योंकि मौसम भी साथ दे रहा है. कारोबारी बताते हैं कि तिलकुट पिछले दो सालों से प्रमंडल के विभिन्न जिलों के शहर और गांवों में जाने लगा है और इस लिहाज से दिसम्बर के शुरुआत से ही निर्माण का काम शुरू कर दिया जाता है. आज के दौर में यहां के तिलकुट की क्वालिटी काफी बेहतर मानी जाने लगी है. यही वजह है कि यहां से लोग दूर-दराज के अपने संबंधियों के यहां भी तिलकुट उपहार के रूप में भेज रहे हैं.

सीजन में 20 से 25 हजार कमा लेते हैं कारीगर

एक जमाना था जब मकर संक्रांति के मौके पर पूर्णिया के बाजार गया के तिलकुट पर निर्भर थे. उस समय तिलकुट के दाम भी अपेक्षाकृत अधिक होते थे. मगर, हालिया सालों में भी तिलकुट का मौसमी उद्योग शुरू हो गया है. कारीगरों ने बताया कि वे सब एक महीना पहले यहां डेरा डालते हैं और मकर संक्रांति का बाजार नरम पड़ते ही वापस चले जाते हैं. एक सीजन में 20 से 25 हजार की कमाई हो जाती है. कारीगरों ने बताया कि वे लोग माल बनाने वाली जगह पर ही डेरा डालते हैं जिससे रहने खाने का अलग से खर्च नहीं लगता है

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