चंद्रमा की ‘चूक’ बनी करोड़ों आस्थावनों की ‘अमृतस्नान’ का जरिया
कहते है जब समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर बाहर निकले, तो अमृत को पाने के लिए देवताओं और असुरों के बीच महासंग्राम छिड़ गया। हर कोई अपने तरीके से अमृत कलश पाने के लिए अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग कर रहा था। लेकिन देवताओं की सहमति अमृत कलश को सुरक्षित करने का जिम्मा इंद्र पुत्र जयंत को दी गयी। उन्होंने चंद्रमा के साथ अमृत कलश लेकर भागने लगे। लेकिन असुरों की छीना-झपटी में कलश झकझोर उठा और छलककर अमृत की कुछ बूंदे प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिर गईं। आज इन्हीं चार स्थानों पर 12 साल के अंतराल में महाकुंभ का आयोजन किया जाता है। मतलब साफ है चंद्रमा की चूक का परिणाम है महाकुंभ। खास यह है कि इस महाकुंभ में संगम स्नान के मात्र से डूबकी लगाने वालों को जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती हैसुरेश गांधी
संगम नगरी में
13 जनवरी से शुरू हो
रहे महाकुंभ में श्रद्धालुओं और
पर्यटकों को एक अनोखा
अनुभव देने के लिए
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हरसंभव
कोशिश में जुटे हैं।
अब तक के महाकुंभ
के इतिहास में यह भव्य-दिव्य आयोजन माना जा रहा
है। जहां पग-पग
पर आध्यात्मिकता व भारतीय संस्कृति
की झलक दिखायी दे
रही है। हाल यह
है कि महाकुंभ शुरु
होने में भले ही
पांच दिन का वक्त
हो, लेकिन संगम की रेती
पर डेरा जमा चुके
बाबाओं की अजब-गजह
भेषभूसा, रहन-सहन उनकी
हठधर्मिता योग हर किसी
को लुभा रही है।
नरमुंड पहले अघोरियों की
लीलाएं, किन्नरों का सजना-संवरना
व नागा साधुओं की
हैरतअंगेज लीलाएं हर किसी को
अपनी आकर्षित कर रही है।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल
तो यही है इतने
गौरवशाली आयोजन के पीछे वजह
क्या हो सकती है?
कहते है जब समुद्र
मंथन के दौरान भगवान
धन्वंतरि अमृत कलश लेकर
बाहर निकले, तो अमृत को
पाने के लिए देवताओं
और असुरों के बीच महासंग्राम
छिड़ गया। हर कोई
अपने तरीके से अमृत कलश
पाने के लिए अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग कर
रहा था। भगवान विष्णु
ने इस संघर्ष को
रोकने और अमृत को
सुरक्षित रखने के लिए
मोहिनी का रूप धारण
किया। उन्होंने अमृत कलश को
सुरक्षित रखने के लिए
इंद्रदेव के पुत्र जयंत
को सौंपा। जयंत चंद्रमा के
साथ अमृत कुंभ को
लेकर आकाश मार्ग से
चले, लेकिन दानवों की छीना-झपटी
में कलश झकझोर उठा
और छलककर अमृत की कुछ
बूंदे प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में
गिर गईं। आज इन्हीं
चार स्थानों पर 12 साल के अंतराल
में महाकुंभ का आयोजन किया
जाता है।
मतलब साफ है
चंद्रमा की चूक का
परिणाम है महाकुंभ। खास
यह है कि इस
महाकुंभ में संगम स्नान
के मात्र से डूबकी लगाने
वालों को जन्म-मरण
के चक्र से मुक्ति
मिल जाती है। यही
वजह है कि महाकुंभ
लोगों की आस्था का
एक प्रमुख केंद्र बना हुआ है।
महाकुंभ में पवित्र नदियों
का जल अमृत बन
जाता है. यह महाकुंभ
करोड़ों श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक ऊर्जा
प्रदान करता है और
सनातन संस्कृति की महानता को
दर्शाता है। यह महाकुंभ
इसलिए भी खास होने
वाला है क्योंकि इसका
आयोजन 144 वर्षों बाद होने जा
रहा है। मान्यता है
कि जो भी व्यक्ति
महाकुंभ में स्नान करता
है, उसके सभी पाप
धुल जाते हैं और
उसे जन्म और मृत्यु
के चक्र से मुक्ति
मिल जाती है। पौराणिक
मान्यताओं के अनुसार, एक
बार अमृत पाने की
चाह में देवताओं और
असुरों के बीच समुद्र
मंथन हुआ। इस दौरान
कई तरह के रत्नों
की उत्पत्ति हुई, जिन्हें सहमति
के साथ देवताओं और
असुरों ने आपस में
बांट लिया। लेकिन जब आखिर में
अमृत कलश की बात
आयी तो भिडंत हो
गयी और महरसंग्राम शुरु
हो गया। इस छीनाछपटी
में ही कलश की
कुछ अमृत बूंदे प्रयागराज
में गंगा-यमुना-सरस्वती
के संगम पर, हरिद्वार
में गंगा नदी में,
उज्जैन में क्षिप्रा नदी
में और नासिक में
गोदावरी नदी में गिरीं।
इन्हीं स्थानों पर कुंभ मेले
की परंपरा शुरू हुई। प्रयागराज
वह जगह है जहां
गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती
नदियों का संगम होता
है। संगम का यह
स्थान हिंदू धर्म में अत्यंत
पवित्र माना जाता है।
कुंभ मेले के दौरान
यहां लाखों श्रद्धालु एकत्रित होकर पवित्र स्नान
करते हैं और ईश्वर
से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। खास
यह है कि महाकुंभ
केवल धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं,
बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि
से भी अत्यंत महत्वपूर्ण
है। इस मेले में
संत-महात्मा, ऋषि-मुनि, आस्थावान
श्रद्धालु और पर्यटक बड़ी
संख्या में शामिल होते
हैं। कुंभ स्नान का
महत्व हिंदू धर्मग्रंथों में विस्तार से
वर्णित है। मान्यता है
कि कुंभ में स्नान
करने से व्यक्ति के
सभी पाप धुल जाते
हैं और उसे मोक्ष
की प्राप्ति होती है। इसके
अलावा, कुंभ मेला आध्यात्मिक
ज्ञान, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और
सामाजिक समरसता का भी प्रतीक
है। यहां कई आध्यात्मिक
और धार्मिक सभाएं आयोजित होती हैं, जिनमें
साधु-संतों के प्रवचन, योग
साधना और विभिन्न अनुष्ठान
शामिल होते हैं।
हर 12 वर्षों में चार पवित्र
स्थानों में महाकुंभ महापर्व
का आयोजन होता है। देश-दुनिया के कोने-कोने
से नागा-साधु, सन्यासी,
संत, किन्नर, करोड़ों श्रद्धालु कुंभ के अमृत
को पाने पहुंचते हैं।
ऐसा कहा जाता है
कि 850 वर्ष पहले कुंभ
की शुरुआत शंकराचार्य ने की थी।
ज्योतिष के अनुसार, कुंभ
मेले का आयोजन ग्रहों
की स्थिति यानि बृहस्पति के
कुंभ राशि में प्रवेश
और सूर्य के मेष राशि
में प्रवेश के आधार पर
होता है। कहा जाता
है कि कुंभ का
आयोजन समुद्र मंथन के दौरान
आदिकाल से ही हो
गया था। इसको लेकर
कुछ और भी कहानियां
प्रचलित हैं। इनमें एक
कहानी है सांपों और
पक्षीराज गरुड़ की। एक
ऋषि थे जिनका नाम
था कश्यप। उनकी दो पत्नियां
थी जो आपस में
बहने थीं, एक थीं
कद्रू और दूसरी विनीता।कद्रू
ने ऋषि कश्यप से
एक दिन एक वरदान
मांगा कि मुझे 100 विषैले
बच्चे चाहिए, जो बहुत शक्तिशाली
हों। ऋषि कश्यप ने
तथास्तु कह दिया और
कद्रू को मिले 100 अंडे।
यह देखकर विनीता को लगा कि
मुझे भी वरदान मिलना
चाहिए। विनीता भी ऋषि कश्यप
के पास गईं और
उन्होंने कहा कि मुझे
भी वरदान दीजिए, मगर मेरे बच्चे
कद्रू के बच्चों से
ज्यादा शक्तिशाली होनें चाहिए। ऋषि कश्यप ने
तथास्तु कहा और विनीता
को मिले दो बड़े
अंडे। कद्रू के पास जो
100 अंडे थे वह एक
करके धीरे-धीरे टूटने
लगे और उन अंडों
में से बच्चे यानी
सांप निकलने लगे। आज पूरी
दुनिया में जितने सर्प
हैं उन सब की
मां कद्रू को माना गया
है। कद्रू के एक-एक
करके जब अंडे टूटने
लगे और उनमें से
बच्चे निकल लगे तो
विनीता के सब्र का
बांध टूटने लग गया, उनको
लगा कि जब इसके
बच्चे हो रहे तो
मेरे क्यों नहीं हो रहे
और जल्दबाजी में विनीता ने
दो में से एक
अंडा खुद अपने हाथ
से फोड़ दिया। उस
अंडे से जो निकला
वह अर्ध विकसित शरीर
था, एक ऐसा शरीर
जो ऊपर से कमर
तक बना था, मगर
कमर के नीचे तैयार
होना बचा था और
नाराजगी से उन्होंने अपनी
मां विनीता से कहा कि
यह गलती जो आपने
मेरे साथ किया वह
दूसरे अंडे के साथ
मत कीजिएगा। सब्र रखिए और
आसमान में उड़ गया।
उनका नाम अरुड़ पड़ा
और वो आगे चलकर
भगवान सूर्य के रथ के
सारथी बने।
समय के साथ जब दूसरा अंडा फूटा तो उसमें से एक शक्तिशाली
बाज पैदा हुआ और उसका नाम रखा गरुड़। इन सब के बीच गरूण की मां विनीता, अपनी बहन कद्रू से एक शर्त हारने के कारण उनकी दास बन गईं। गरुड़ को यह अच्छा नहीं लगा, उन्होंने कद्रू और उनके बच्चों से जो सांप थे पूछा कि मेरी मां को कैसे मुक्ति मिलेगी। तब कद्रू और उनके बेटों ने शर्त रखी कि अगर तुम देवों के पास रखा समुंद्र मंथन से निकला अमृत कलश ला दोगे तो दोनों को दासत्व से मुक्त कर देंगे। अब शक्तिशाली गरूण देव लोक पहुंच गए और छिपा हुआ अमृत कलश लेकर उड़ चले। ये देख देवों के राजा इंद्र उनके सामने आ गए, जिन्हें गरुड़ ने हरा दिया। देवों ने तमाम कोशिश की लेकिन गरुड़ से जीत नहीं पाए। अंत में हारकर सब विष्णु जी के पास पहुंचे। और बोले कि अनर्थ हो जाएगा। अगर यह अमृत कलश गलत हाथों में चला गया तो। देवों की वनती के बाद गरूण के सामने भगवान विष्णु युद्ध में उतरे। गुरुण और विष्णु जी के बीच युद्ध शुरू हो गया। इसी बीच में विष्णु जी को यह समझ में आया कि गरुड़ के हाथ में अमृत कलश है, मगर गरुड़ उसको खोल कर अमृत ग्रहण नहीं कर रहे हैं सिर्फ हाथ में पकड़कर उसे बचा रहे हैं। विष्णु जी ने पूछा कुंभ को लेकर कहां जाने की कोशिश कर रहे हो और जब अमृत तुम्हारे हाथ में तो उसको पी क्यों नहीं रहे हो। तब गरुड़ ने पूरी व्यथा बताई कि वह अपनी मां को मुक्त करने के लिए ले जाना चाहते हैं। विष्णु जी ने कहा कि ठीक है, मैं एक शर्त पर तुमको यह अमृत कलश ले आने दूंगा। जमीन पर पहुंचने के बाद तुम हमेशा के लिए मेरे वाहन बन जाओगे और मेरे साथ रहोगे। गरुड़ ने यह शर्त स्वीकार कर ली, जिसके बाद कलष विष्णु जी ने ले जाने दिया, लेकिन गरुड़ ने अमृत कलश जैसे ही जमीन पर रखा विष्णु जी ने मायावी शक्तियों से उस कलश को वहां से गायब कर दिया लेकिन क्योंकि वह अमृत कलश कद्रू और उनकी मां तक पहुंचा दिया था, इसलिए उनकी मां को दासत्व से मुक्ति मिल गई। जब गरुड़ और विष्णु जी में युद्ध हो रहा था तो कलश से कुछ अमृत छलका और वह पृथ्वी पर चार जगहों पर गिरा। वह चार जगहें उज्जैन ,हरिद्वार, नासिक और प्रयागराज, जहां आज महाकुंभ होता है। और इस बार 2025 में यह महाकुंभ प्रयागराज में लग रहा है।डूबकी लगाते वक्त ये जरुर करें
महाकुंभ में डुबकी लगाते
समय कुछ ऐसे नियम
हैं जिनका पालन हर श्रृद्धालु
को करना चाहिए. खासकर
गृहस्थ्य लोग 5 डुबकी जरुर लगाएं. धार्मिक
मान्यता के अनुसार जब
गृहस्थ्य लोग महाकुंभ में
5 बार डुबकी लगाते हैं तो कुंभ
स्नान पूरा माना जाता
है. दूसरा कभी भी नागा
साधुओं से पहले डुबकी
नहीं लगानी चाहिए। क्योंकि महाकुंभ के दौरान सबसे
पहले नागा साधु स्नान
करते हैं और डुबकी
लगाते हैं. फिर अन्य
लोग डुबकी लगाते हैं. इसलिए अगर
आपक भी पवित्र नदी
में नागा साधुओं के
स्नान के बाद ही
स्नान करें वरना ये
नियमों का उल्लंघन व
धार्मिक दृष्टि से अच्छा नहीं
माना जाता है व
शुभ फलों की प्राप्ति
भी नहीं होती. तीसरी
प्रमुख बात यह है
कि महाकुंभ में पवित्र नदी
में स्नान के बाद अपने
दोनों हाथों से सूर्यदेव को
अर्ध्य जरुर दें. इससे
आपकी कुंडली में सूर्य की
स्थिति को मजबूत भी
करता है. ऐसा करने
से आपको शुभ फलों
की प्राप्ति होती है.
संगम के अलावा अन्य घाटों पर
भी श्रद्धालुओं का होगा जमघट
अरैल घाट
अरैल घाट त्रिवेणी
संगम के निकट स्थित
है, जहां गंगा, यमुना
और सरस्वती नदियां मिलती हैं। अरैल घाट
की पवित्रता इसी त्रिवेणी संगम
से जुड़ी हुई है।
महर्षि महेश योगी द्वारा
यहां एक बड़ा आश्रम
और स्कूल स्थापित किया गया है,
जो योग और ध्यान
के लिए समर्पित है।
योग और ध्यान को
आध्यात्मिक विकास का एक महत्वपूर्ण
साधन माना जाता है
और इनका उल्लेख कई
प्राचीन ग्रंथों में मिलता है।
राम घाट
राम घाट का
उल्लेख रामायण महाकाव्य में मिलता है।
माना जाता है कि
भगवान राम ने अपने
वनवास के दौरान इस
स्थान पर कुछ समय
बिताया था। इस घाट
पर विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान, पूजा और आरती
की जाती हैं। इस
घाट पर स्नान करने
और पूजा करने से
पापों का नाश होता
है और मोक्ष की
प्राप्ति होती है।
दशाश्वमेध घाट
यह प्रयागराज के
प्रमुख घाटों में से एक
है। इसका नाम अश्वमेध
यज्ञ से जुड़ा हुआ
है, जिसे राजा भगीरथ
ने गंगा को पृथ्वी
पर लाने के लिए
किया था। मान्यता है
कि इसी घाट पर
राजा भगीरथ ने अश्वमेध यज्ञ
किया था। यहां नियमित
रूप से भव्य गंगा
आरती का आयोजन किया
जाता है। इस घाट
पर भी भक्त पवित्र
डुबकी लगाने आते हैं और
अपने पापों का निवारण करते
हैं।
लक्ष्मी घाट
लक्ष्मी घाट देवी लक्ष्मी
से जुड़ा है। मान्यता
है कि इस घाट
पर पूजा करने से
माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और
भक्तों को धन, वैभव
और समृद्धि का आशीर्वाद देती
हैं।
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