‘महाकुंभ’ के ‘धर्मसंसद’ से निकलेगा ‘सनातन बोर्ड’ के गठन का रास्ता
कुंभ मेला के आयोजन को वक्फ की जमीन पर होने के दावें के बाद देश के साधु-संतों का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया है। हर साधु-संत एवं सनातन धर्माचार्यो ने कुछ कट्टर मौलानाओं के इस बयान को ओछी हरकत बताते हुए घोषणा किया है कि महाकुंभ में 26 जनवरी को होने वाली धर्म संसद में सनातन बोर्ड के गठन का न सिर्फ प्रस्ताव पास होगा, बल्कि मंदिरों और मठों के अधिकारों पर भी चर्चा होगी। इसके बाद सरकार पर दबाव बनाने के लिए साधु-संतों का वृहद आंदोलन किया जायेगा। खास यह है कि महाकुंभ के इस धर्म संसद में देशभर के प्रमुख साधु-संतों के अलावा चारों शंकराचार्य और 13 अखाड़ों के प्रमुख शामिल होंगे. इस धर्म संसद से संतों का ऐलान होगा, ’ना तो सनातन दबाएगा, ना दबेगा’. महाकुंभ से शुरू होकर यह अभियान पूरे देश में फैलाया जाएगा. धर्म संसद में काशी और मथुरा के साथ ही अजमेर व संभल जैसे हिंदुओं के पुराने धार्मिक स्थलों को मुक्त कराए जाने के प्रस्ताव पर भी चर्चा की जा सकती है. साथ ही बंगलादेश व पाकिस्तान में हिंदुओं की रक्षा का आह्वान भी किया जायेगा
सुरेश गांधी
फिरहाल, सनातन बोर्ड का उद्देश्य वक्फ
बोर्ड की तर्ज पर
सनातन धर्मावलंबियों के हितों की
रक्षा करना है. इसमें
मठ-मंदिरों का सर्वेक्षण, उनकी
स्थिति का आकलन, कब्जे
को कानूनी लड़ाई के जरिए
छुड़ाना और धार्मिक स्थलों
का जीर्णोद्धार शामिल है. इसके अलावा,
मतांतरण रोकने के लिए राष्ट्रव्यापी
अभियान चलाने, गरीब सनातन धर्मावलंबियों
को स्वरोजगार से जोड़ने, और
संस्कृत भाषा तथा वेद-पुराणों के संरक्षण हेतु
गुरुकुल परंपरा को बढ़ावा देने
पर भी ध्यान दिया
जाएगा. बता दें, उत्तर
प्रदेश के प्रयागराज में
महाकुंभ के आयोजन की
तैयारियां अंतिम चरण में हैं.
13 जनवरी से लगने वाले
महाकुंभ के लिए साधु-संतों का बड़ा समूह
पहुंच चुके है. नागा
साधुओं से लेकर लगभग
हर अखाड़ों के प्रमुख भी
महाकुंभ में प्रवेश के
दौरान शस्त्र विद्या का प्रदर्शन करते
हुए सनातन धर्म की रक्षा
का संकल्प लिया है. इस
दौरान अखाड़ों की कोतवाल सेना
भी मौजूद रही. अखिल भारतीय
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत
रविंद्र पुरी ने तो
इसके लिए धर्म संसद
के तारीख 26 जनवरी तय कर दी
है। उनका कहना है
कि महाकुंभ में प्रमुख संतों
और ऋषियों की धर्म संसद
में ’सनातन बोर्ड’ के गठन का
प्रस्ताव मंजूर किया जाएगा। इसका
उद्देश्य मठ-मंदिरों की
संपत्तियों को कब्जे से
मुक्त कराना होगा. सनातन धर्मावलंबियों की सुरक्षा सुनिश्चित
करना है. इसके साथ
ही मंदिरों के जीर्णोद्धार की
योजना तैयार की गई है.
धर्म संसद का
आयोजन महाकुंभ क्षेत्र के संगम की
रेती पर किया जाएगा.
इसमें चारों पीठ के शंकराचार्य,
13 अखाड़ों के प्रमुख संतों
और अन्य धर्माचार्यों को
आमंत्रित किया गया है।
साथ ही, उत्तर प्रदेश
के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को
भी संत के रूप
में विशेष निमंत्रण दिया जाएगा. अखाड़ा
परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत
रवींद्र पुरी का कहना
है कि वक्फ बोर्ड
की तर्ज पर सनातन
बोर्ड की जरूरत लंबे
समय से महसूस की
जा रही है. उन्होंने
कहा कि हमारा लक्ष्य
एक सुव्यवस्थित, सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त बोर्ड की स्थापना करना
है जो बिना किसी
कमी के सनातन धर्म
के सिद्धांतों को कायम रखे.
सनातन को बचाना हमारा
उद्देश्य है. उन्होंने कहा
पूरे भारत में वक्फ
बोर्ड की चर्चा है.
अभी एक बयान सामने
आया था जिसमें मुस्लिम
कहते हैं कि महाकुंभ
की भूमि भी हमारी
है. इसलिए हम लोगों ने
26 जनवरी को धर्म संसद
का आयोजन किया है. उन्होंने
बातचीत के दौरान वक्फ
बोर्ड को लेकर सवाल
उठाया कि जितनी भूमि
इनके पास है वह
भूमि कहां से आई.
9 से 10 लाख एकड़ भूमि
इनके पास है. साथ
ही उन्होंने कहा कि जितने
मंदिर-मठ हैं, उन्हें
सरकार छीन रही है.
हमारे अगल-बगल वाले
हैं, वह छीन रहे
हैं. हमारे पड़ोसी कब्जे कर रहे हैं.
हमारे मठों पर कब्जा
हो रहा है, जबकि
वक्फ बोर्ड जो दिखाएगा, वह
उसका हो रहा है.
इसलिए सनातन बोर्ड के गठन अब
जरुरी हो गया है।
उन्होंने कहा कि हमारा
प्रयास है कि पूरे
भारत में जितने साधु
संत हैं, जितने मठों
के प्रमुख हैं, जितने महामंडलेश्वर
हैं, सभी को बुलाया
जाएगा. इस पर चर्चा
होगी कि सनातन बोर्ड
का प्रारूप क्या होगा. इसमें
हम क्या-क्या विषय
रखेंगे. धर्म संसद में
सब की सहमति ली
जाएगी कि सनातन बोर्ड
का प्रारूप कैसा हो. उनका
कहना है कि प्रयागराज
महाकुंभ में धर्म संसद
की तारीख का फैसला अखाड़ा
परिषद की बैठक में
लिया गया. तय किया
गया कि जिस दिन
देश का संविधान लागू
हुआ, धर्म संसद उसी
दिन आयोजित की जाएगी.
महंत रवींद्र पुरी
के मुताबिक देश में हिंदुत्व
काल की शुरुआत 2014 में
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री
बनने के बाद हुई
है. यह हिंदुत्व काल
बना रहे, इसके लिए
सनातन बोर्ड का गठन बेहद
जरूरी है. उनका कहना
है कि अगर देश
में वक्फ बोर्ड बना
हुआ है तो सनातन
बोर्ड गठित किए जाने
में किसी को ऐतराज
नहीं होना चाहिए. सनातनियों
को पीएम नरेंद्र मोदी
पर पूरा भरोसा है,
ऐसे में इस बात
की पूरी उम्मीद है
कि प्रयागराज महाकुंभ में धर्म संसद
के जरिए अलग सनातन
बोर्ड के गठन की
जो मांग की जाएगी
उसे पीएम नरेंद्र मोदी
की सरकार जरूर पूरा करेगी.
स्वामी बालकानंद गिरि, निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी
महेशानंद गिरि और निरंजनी
अखाड़े की महामंडलेश्वर गुरु
मां आनंदमई पुरी के मुताबिक,
सीएम के अलावा इस
धर्म संसद के लिए
देश के सभी राज्यों
के मुख्यमंत्रियों और केंद्र सरकार
के प्रतिनिधि को भी बुलाया
जाएगा, ताकि वह लोग
भी संत महात्माओं की
मांग पर सहमति जताते
हुए केंद्र की मोदी सरकार
से सनातन बोर्ड गठित किए जाने
की मांग के पूरा
होने में अपना योगदान
दें। उनके मुताबिक सनातन
आज सचमुच खतरे में है,
अगर वक्त रहते कोई
ठोस कदम नहीं उठाया
गया तो सनातन धर्म
पर खत्म होने का
खतरा मंडराने लगेगा.
रामानंदाचार्य नरेन्द्राचार्य महाराज का कहना है
कि महाकुंभ में वह धर्म
संसद में शामिल होकर
सनातन बोर्ड के गठन समेत
तमाम मुद्दों पर चर्चा करेंगे.
उनके मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अजमेर
में चादर इसलिए भेजी
है क्योंकि वह किसी धर्म
के नहीं बल्कि पूरे
राष्ट्र के प्रधानमंत्री हैं.
देश में रहने वाले
सभी नागरिकों को उचित सम्मान
देना उनका दायित्व है,
लेकिन इसका यह मतलब
कतई नहीं कि वह
सनातन धर्म को आगे
बढ़ाने की कोशिश नहीं
करना चाहते. रामानंदाचार्य नरेंद्राचार्य का कहना है
कि दुनिया भर में ईसाइयों
और मुसलमानों के तमाम देश
हैं, लेकिन सौ करोड़ से
ज्यादा की जनसंख्या होने
के बावजूद भारत हिंदू राष्ट्र
नहीं बन पा रहा
है. उनके मुताबिक सनातन
धर्म को लेकर चिंता
जताना और आवाज उठाने
का काम अगर सनातनियों
के सबसे बड़े समागम
महाकुंभ से नहीं होगा
तो आखिरकार कहां होगा. वहीं
मौनी बाबा और श्री
राधाचार्या ने भी नरेंद्राचार्य
का समर्थन किया है. मौनी
बाबा ने महाकुंभ में
लगाए गए डरेंगे तो
मरेंगे वाले पोस्टर का
समर्थन किया है. उन्होंने
कहा कि यह पोस्टर
पन्नू जैसे आतंकियों को
संदेश देने के लिए
काफी हैं. सनातन धर्मी
अब डरते नहीं है
बल्कि वह लड़ते हैं
और आंख उठाने वालों
को मुंहतोड़ जवाब देते हैं.
ऐसे पोस्टर और संदेश का
समर्थन किया जाता है.
मौनी बाबा के मुताबिक
अब आतंकवाद के खात्मे की
घड़ी आ गई है
और महाकुंभ से ही इसका
आगाज हो जाएगा. स्वामी
बालकानंद ने कहा कि
महाकुंभ में सनातन धर्म
के उत्थान को लेकर संत
मंथन करेंगे। दुनियाभर में हमारे धर्म
व संस्कृति का प्रचार-प्रसार
हो उस दिशा में
तमाम आयोजन किए जाएंगे।
प्रस्ताव का यह है प्रारूप
केंद्र
सरकार
की
ओर
से
सनातन
बोर्ड
को
संवैधानिक
मान्यता
दी
जाय।
सनातन
बोर्ड
के
अध्यक्ष
अखाड़ा
परिषद
के
पदेन
अध्यक्ष
बनाए
जाएं।
बोर्ड
में
13 अखाड़ों
के
प्रमुख
संतों
को
शामिल
किया
जाय।
बोर्ड
में
सेवानिवृत्त
न्यायमूर्ति,
वरिष्ठ
अधिवक्ता,
धर्माचार्य
शामिल
किए
जाएं।
बोर्ड
जिला
स्तर
पर
मठ-मंदिरों
का
सर्वे
करके
उसकी
स्थिति
देखेगा।
कब्जा
हुए
मठ-मंदिरों
को
छुड़ाने
के
लिए
कानूनी
लड़ाई
लड़ी
जाएगी।
मतांतरण
रोकने
के
लिए
राष्ट्रव्यापी
अभियान
चलाया
जाएगा।
गरीब
सनातन
धर्मावलंबियों
को
आत्मनिर्भर
बनाने
के
लिए
उन्हें
स्वरोजगार
से
जोड़ा
जाएगा।
धार्मिक
गतिविधियां
बढ़ाई
जाएंगी।
संस्कृत
भाषा,
वेद-पुराणों
के
संरक्षण
को
गुरुकुल
परंपरा
को
बढ़ावा
दिया
जाएगा।
नागा साधुओं का है खास महत्व
महाकुंभ में बड़ी संख्या
में नागा साधु आते
हैं। हालांकि, बाकी समय ये
एकांतवास करते हैं, हिमालय
की दुर्गम चोटियों पर ये दुनिया
से अलग रहकर गुप्त
तरीके से योग-ध्यान
और साधना करते हैं। लेकिन
महाकुंभ के दौरान बड़ी
संख्या में नागा साधु
पवित्र घाटों पर पहुंच जाते
हैं। नागा साधु 12 साल
तक ब्रह्मचर्य का पालन करने
के बाद पूर्ण रूप
से दीक्षित होते हैं। अपने
दीक्षा काल के दौरान
नागा साधु हिमालय के
दुर्गम पहाड़ों में तप करते
हैं। लेकिन जब भी महाकुंभ
का स्नान होता है, तो
रहस्यमयी तरीके से ये उस
स्थान पर पहुंच जाते
हैं। इनके पास किसी
भी तरह संपर्क साधने
का जरिया जैसे मोबाइल आदि
नहीं होता। दरअसल नागाओं के सभी 13 अखाड़ों
के कोतवाल महाकुंभ से काफी पहले
महाकुंभ की तिथि और
स्थान की जानकारी देना
शुरू कर देते हैं।
कोतवाल के द्वारा स्थानीय
साधुओं को सूचना दी
जाती है, इसके बाद
श्रृंखला बनती रहती है
और धीरे-धीरे दूरदराज
में साधना कर रहे नागा
साधुओं तक भी सूचना
पहुंच जाती है। इसके
बाद नागा साधु उस
स्थान की ओर कूच
करना शुरू कर देते
हैं, जहां महाकुंभ लगने
वाला है। वहीं कुछ
लोग यह भी मानते
हैं कि, योग से
सिद्धियां पाए नागा साधुओं
को ग्रह-नक्षत्रों की
चाल से ही महाकुंभ
की तिथि और स्थान
का पता लग जाता
है। जहां भी नागा
साधु डेरा डालते हैं
वहां धुनि अवश्य जलाते
हैं। इस धुनि को
बेहद पवित्र माना जाता है
और इससे जुड़े कई
नियम भी हैं। धुनि
की आग को साधारण
आग नहीं माना जाता।
यह सिद्ध मंत्रों के प्रयोग से
सही मुहूर्त में जलाई जाती
है। इसे जलाने का
एक नियम यह भी
है कि नागा साधु
बिना गुरु के आदेश
या सानिध्य के धुनि नहीं
जला सकता। एक बार धुनि
जलने के बाद, धुनि
जलाने वाले नागा साधु
को उसके निकट ही
रहना पड़ता है। अगर
किसी परिस्थिति में नागा साधु
को धुनि के पास
से जाना पड़े तो
उसका कोई सेवक वहां
जरूर होना चाहिए। नागा
साधुओं के पास जो
चिमटा होता है, वो
भी केवल इसीलिए होता
है कि, धुनि की
आग को व्यवस्थित किया
जा सके। नागा साधु
यह मानते हैं कि पवित्र
धुनि के पास बैठकर
अगर नागा साधु कोई
बात बोल दे तो
वो पूरी अवश्य होती
है। जब नागा साधु
यात्रा करते हैं तो
धुनि उनके पास नहीं
होती, लेकिन जहां भी ये
अपना डेरा जमाते हैं
वहां धुनि अवश्य जलाते
हैं। नागा साधुओं को
आपने भी अवश्य देखा
होगा। ये हमेशा निर्वस्त्र
रहते हैं। इसके पीछे
नागा साधु जो तर्क
देते हैं वो यह
है कि, इंसान दुनिया
में निर्वस्त्र ही आया है।
प्राकृतिक रूप से व्यक्ति
को संसार में रहना चाहिए,
इसीलिए नागा साधु वस्त्र
नहीं पहनते। दूसरी धारणा यह है कि
वस्त्र धारण करने से
उनकी साधना में भी विघ्न
पड़ता है। अगर साधु
वस्त्रों के माया जाल
में ही फंसा रहेगा
तो उसके कारण काफी
समय खराब होगा। यह
वजह भी है कि
नागा साधु कभी वस्त्र
धारण करना पसंद नहीं
करते। वो प्राकृतिक रूप
में रहकर आसानी से
हर कार्य को करते हैं।
योग करके नागा साधु
अपनी देह को इतना
मजबूत कर देते हैं
कि, हर परिस्थिति और
जलवायु में वो निर्वस्त्र
जी सकते हैं।
समुद्र मंथन में रस्सी बने थे नागवासुकि
नागवासुकी को सर्पराज माना
जाता है। नागवासुकी भगवान
शिव के कण्ठहार हैं।
नागवासुकि जी कथा का
वर्णन स्कंद पुराण, पद्म पुराण,भागवत
पुराण और महाभारत में
भी मिलता है। कहा जाता
है कि जब देव
और असुर, भगवान विष्णु के कहने पर
सागर को मथने के
लिए तैयार हुए तो मंदराचल
पर्वत मथानी और नागवासुकि को
रस्सी बनाया गया। लेकिन मंदराचल
पर्वत की रगड़ से
नागवासुकि जी का शरीर
छिल गया। तब भगवान
विष्णु के ही कहने
पर उन्होंने प्रयाग में विश्राम किया
और त्रिवेणी संगम में स्नान
कर घावों से मुक्ति प्राप्त
की। वाराणसी के राजा दिवोदास
ने तपस्या कर उनसे भगवान
शिव की नगरी काशी
चलने का वरदान मांगा।
दिवोदास की तपस्या से
प्रसन्न होकर जब नागवासुकि
प्रयाग से जाने लगे
तो देवताओं ने उनसे प्रयाग
में ही रहने का
आग्रह किया। तब नागवासुकि ने
कहा कि यदि मैं
प्रयागराज में रुकूंगा तो
संगम स्नान के बाद श्रद्धालुओं
के लिए मेरा दर्शन
करना अनिवार्य होगा और सावन
मास की पंचमी के
दिन तीनों लोकों में मेरी पूजा
होनी चाहिए। देवताओं ने उनकी इन
मांगों को स्वीकार कर
लिया। तब ब्रह्माजी के
मानस पुत्र द्वारा मंदिर बना कर नागवासुकि
को प्रयागराज के उत्तर पश्चिम
में संगम तट पर
स्थापित किया गया.
No comments:
Post a Comment