Thursday, 24 July 2025

भविष्य की बुनियाद पर वर्तमान का निर्माण

यूपी की नई भवन उपविधियों से बदलेगी शहरी विकास की तस्वीर

भविष्य की बुनियाद पर वर्तमान का निर्माण 

विकास का रोडमैप : सरलता, पारदर्शिता और तकनीकी समावेशन. यूपी भवन निर्माण उपविधि-2025 एवं आदर्श जोनिंग रेगुलेशन पर वाराणसी में महत्वपूर्ण कार्यशाला संपन्न. जी हां, उत्तर प्रदेश भवन निर्माण एवं विकास उपविधि-2025 केवल निर्माण के दिशा-निर्देश नहीं हैं, ये एक विचार हैं कृ समन्वित, समावेशी और स्थायी विकास का। यह बदलाव नगरीय भारत के लिए एकपॉलिसी मॉडलबन सकता है। इस उपविधि को केवल अधिकारियों की फाइल में नहीं, बल्कि प्रत्येक नागरिक के व्यवहार और हर शहर की गली में उतरना चाहिए। तभी उत्तर प्रदेश के शहरों मेंविकासकेवल आंकड़ों की बात नहीं रह जाएगा, वह दिखाई देने वाला बदलाव बनेगा। कार्यशाला में विशेषज्ञों और वास्तुविदों द्वारा नागरिकों को प्रेरित किया गया कि वे भवन निर्माण के पूर्व प्राधिकृत योजनाओं का पालन करें। अवैध निर्माण और बिना अनुमति निर्माण पर सख्ती से रोक लगाने की बात कही गई   

सुरेश गांधी 

उत्तर प्रदेश की तेजी से शहरीकरण की ओर बढ़ती गति को दिशा देने, समावेशी एवं संतुलित विकास सुनिश्चित करने, और भवन निर्माण की प्रक्रिया को सरल, पारदर्शी एवं निवेशोन्मुखी बनाने की दृष्टि से 24 जुलाई 2025 का दिन ऐतिहासिक बन गया। इस दिन वाराणसी विकास प्राधिकरण के तत्वावधान में आयोजितउत्तर प्रदेश विकास प्राधिकरण भवन निर्माण एवं विकास उपविधि-2025 एवं आदर्श जोनिंग रेगुलेशन-2025“ पर केंद्रित कार्यशाला ने केवल निर्माण क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों और जनप्रतिनिधियों को एक मंच पर लाया, बल्कि आने वाले समय के नगरीय विकास के लिए एक ठोस रूपरेखा भी प्रस्तुती के साथ ही इस नए विधान की व्याख्या, विश्लेषण और जनप्रतिनिधियों के संवाद का जरिया बनी। यह केवल एक तकनीकी विमर्श नहीं था, बल्कि यह भविष्य की उस दिशा को परिभाषित करने का प्रयास था जहां उत्तर प्रदेश का नगरीय विकास, सुगठित, हरित, समावेशी और तकनीकी रूप से सक्षम होने के साथ ही यह उच्च स्तरीय सहभागिता इस बात की ओर संकेत करती है कि राज्य सरकार नगरीय नियोजन और भवन निर्माण को लेकर एक समग्र दृष्टिकोण अपना रही है। 

या यूं कहे यह केवल तकनीकी दस्तावेज नहीं हैं, यह उस सोच का परिणाम हैं
,
जोनागरिक केंद्रित विकासको प्राथमिकता देती है। इस कार्यशाला ने यह स्पष्ट कर दिया है कि आने वाले वर्षों में उत्तर प्रदेश की नगर योजनाएं और भवन निर्माण नीतियां कहीं अधिक व्यावहारिक, तकनीक-सहयोगी और विकासोन्मुखी होंगी। वाराणसी से शुरू हुई यह पहल समूचे उत्तर प्रदेश में शहरी नवजागरण की ओर इशारा करती है, एक ऐसा युग जहां योजना में आमजन की भागीदारी, पारदर्शिता और नवाचार प्राथमिकता होंगे।  वाराणसी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष पुलकित गर्ग की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य इन दोनों महत्वपूर्ण विधियों के नवीनतम प्रावधानों की जानकारी देना और विभिन्न जनप्रतिनिधियों अधिकारियों की राय से इसे और अधिक व्यावहारिक जनहितैषी बनाना रहा। कार्यशाला में उपस्थित मुख्य अतिथि सूबे के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) एवं विधायक वाराणसी उत्तरी रविन्द्र जायसवाल ने अपना सुझाव देते हुए कहा कि उपविधि-2025 और जोनिंग रेगुलेशन-2025 के व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए शहर में तकनीकी शिक्षा प्राप्त युवाओं (जैसे बीटेक, बीआरक्टिक, आईटीआई सीविल) की सहभागिता से विस्तृत जागरूकता अभियान चलाया जाए। यह प्रस्ताव केवल तकनीकी युवाओं के लिए इंटरर्नशिप एवं रोजगार के अवसर खोलता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि शासन की योजनाएं आम नागरिक तक सरल भाषा में पहुंचें। 

उन्होंने कहा किशहरों का नियोजन अराजक नहीं बल्कि आचार संहिताओं के साथ होना चाहिए। नियोजित विकास ही समृद्धि का वाहक बन सकता है। उन्होंने कहा नई उपविधियां केवल भवन निर्माण की गाइडलाइन नहीं, बल्कि विकास की संस्कृति हैं। हम वाराणसी को केवल स्मार्ट सिटी बनाना चाहते हैं, बल्कि आत्मा और पहचान के साथ विकसित शहर बनाना चाहते हैं। आयुष मंत्री डॉ. दयाशंकर मिश्रादयालु’, ने कहा ये उपविधियां कागज़ी सुधार नहीं, बल्कि जमीनी बदलाव की आधारशिला हैं। यह उपविधि पर्यावरण, परंपरा और प्रगति के संतुलन को साधने का दस्तावेज़ है। काशी जैसी ऐतिहासिक नगरी के लिए यह विशेष रूप से उपयोगी है। उन्होंने कहा कि शहरों का विकास केवल कंक्रीट की इमारतों से नहीं होता। नागरिकों की सुविधा, पर्यावरण की सुरक्षा और विरासत का सम्मान इस विकास का आधार होना चाहिए। महापौर अशोक तिवारी ने नगर निकायों की भूमिका पर बल देते हुए कहा कि नगर निगम और विकास प्राधिकरण को नागरिकों को नियमों के प्रति जागरूक करते हुए त्वरित सेवा देना होगा। इस अवसार पर स्टाम्प शुल्क एवं पंजीयन राज्य मंत्री रविंद्र जायसवाल, आयुष मंत्री डॉ. दयाशंकर मिश्रादयालु’, जिला पंचायत अध्यक्ष पूनम मौर्या, विधायकगण रमेश जायसवाल, सौरभ श्रीवास्तव त्रिभुवन राम, महापौर अशोक तिवारीवीडीए सदस्य अम्बरीश सिंह भोला समेत वीडीए उपाध्यक्ष, नगर निगम अधिकारियों, आर्किटेक्ट्स, इंजीनियर्स और तकनीकी संस्थानों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

जनहित में ऐतिहासिक बदलाव

कार्यशाला की शुरुआत दीप प्रज्वलन एवं सरस्वती वंदना से हुई और तत्पश्चात वीडीए उपाध्यक्ष द्वारा दोनों नई व्यवस्थाओं के प्रमुख बिंदुओं को विस्तार से समझाया। जो सबसे महत्वपूर्ण घोषणाएं रहीं, वे इस प्रकार हैं : 100 वर्ग मीटर तक के आवासीय निर्माण एवं 30 वर्ग मीटर तक के व्यावसायिक निर्माण के लिए मात्र 1 रुपये टोकन शुल्क पर पंजीकरण की सुविधा, जिससे आम नागरिक और छोटे व्यापारी वर्ग को बड़ी राहत मिलेगी। सम्बंधित विभागों से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) के लिए समयबद्ध प्रक्रिया निर्धारित की गई है, जिससे अनावश्यक देरी और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। ग्राउंड कवरेज प्रतिबंधों की समाप्ति और एफएआर (फ्लोर एरिया रेशियो) में वृद्धि ने जमीन के प्रभावी उपयोग के नए रास्ते खोले हैं। होटल, चिकित्सा सुविधा, पेइंग गेस्ट, होम स्टे के लिए अब एनओसी की अनिवार्यता नहीं होगी, जिससे पर्यटन और हॉस्पिटैलिटी सेक्टर को बढ़ावा मिलेगा। इसके अलावा औद्योगिक इकाइयों के लिए मानकों में छूट, जिससे निवेशक आकर्षित होंगे और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। सबसे विशेष बात यह रही कि आदर्श जोनिंग रेगुलेशन को सरल, व्यावहारिक और समावेशी बनाया गया है, जिससे ज़मीनी स्तर पर योजनाओं का क्रियान्वयन आसान होगा।

तकनीकी सहभागिता और युवाओं की भूमिका पर जोर

नगर नियोजक प्रभात कुमार द्वारा इन उपविधियों की तकनीकी व्याख्या और प्रस्तुति से प्रतिभागियों को इनके गहरे पक्षों की जानकारी दी गयी। विधायकगण सौरभ श्रीवास्तव (कैंट), त्रिभुवन राम (अजगरा), नील रतन नीलू (सेवापुरी), रमेश जायसवाल (मुगलसराय) ने भी इस उपविधि की सराहना करते हुए इसे वास्तविक समस्याओं का समाधान करने वाली नीति बताया। महापौर श्री अशोक तिवारी, जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती पूनम मौर्य, भाजपा जिला अध्यक्ष विधान परिषद सदस्य हंसराज विश्वकर्मा सहित सभी अतिथियों ने इस नीति कोनए युग का शहरी दस्तावेजकरार दिया।

भविष्य की दृष्टि : हर घर, हर योजना में सहभागिता

यह कार्यशाला उस दिशा में महत्वपूर्ण कदम है, जहां योजनाएं कागजों में नहीं, जमीनी स्तर पर उतरती हैं। उत्तर प्रदेश जैसे तेजी से शहरीकरण की ओर अग्रसर राज्य में यदि निर्माण प्रक्रिया सरल, पारदर्शी और प्रोत्साहक हो, तो वह केवल आम जनता के जीवन को बेहतर बनाती है, बल्कि आर्थिक प्रगति का मार्ग भी प्रशस्त करती है। इस नई उपविधि मेंईजी आफ डूइंग कांस्ट्रक्शनकी भावना स्पष्ट झलकती है, आम आदमी से लेकर बड़े निवेशकों तक के लिए यह एक समान अवसर प्रदान करने वाली व्यवस्था है।

अतिथिं को परंपरा और पर्यावरण के संगम के साथ स्मृति चिन्ह भेंट

कार्यक्रम के अंत में उपाध्यक्ष द्वारा सभी अतिथियों को पारंपरिक शाल और पौधा भेंट कर सम्मानित किया गया। यह प्रतीकात्मक क्रिया विकास के साथ पर्यावरण संरक्षण के प्रति भी प्राधिकरण की सजगता को दर्शाती है। सचिव द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ यह विचारमंथन पूर्ण हुआ, लेकिन इसकी गूंज निश्चित ही भविष्य की निर्माण नीतियों और नगरीय योजनाओं में सुनाई देगी।

भविष्य की बुनियाद पर वर्तमान का निर्माण 

उत्तर प्रदेश की बदलती शहरी तस्वीर को देखते हुए भवन निर्माण और विकास से जुड़ी नीतियों में व्यापक सुधार समय की मांग बन चुका था। बढ़ती जनसंख्या, अव्यवस्थित निर्माण, यातायात की चुनौती,
पर्यावरण
असंतुलन और नागरिक सुविधाओं की जटिलता ने शासन और प्रशासन को इस दिशा में गंभीर सोच के लिए प्रेरित किया। ऐसे में 2025 में जारी की गईउत्तर प्रदेश भवन निर्माण एवं विकास उपविधि-2025“ औरआदर्श जोनिंग रेगुलेशन-2025“ को एक दूरदर्शी और व्यावहारिक कदम माना जाना चाहिए।

नवाचार की धाराएं : क्या-क्या है उपविधि 2025 में नया?

1.       एफ..आर. में सुधार : वर्टिकल डेवलपमेंट को बढ़ावा

नई उपविधि में एफएआर( फ्लोर एरिया रेशियों) में संशोधन कर उसे अधिक व्यावसायिक और उपयोगी बनाया गया है। घनी आबादी वाले क्षेत्रों में अब ऊंची इमारतें अधिक वैधानिक स्वीकृति के साथ बनाई जा सकेंगी। इससे ज़मीन की खपत घटेगी और आवास संकट को कम करने में मदद मिलेगी। या यूं कहें एफएआर को आधुनिक आवश्यकताओं के अनुसार संशोधित किया गया है, जिससे अब बहुमंजिला निर्माण को बढ़ावा मिलेगा।

2.डिजिटलीकरण : कागज़ से क्लिक की ओर

अब नक्शा स्वीकृति, निर्माण अनुमति और पूर्णता प्रमाण पत्र की संपूर्ण प्रक्रिया ऑनलाइन सिंगल विंडो सिस्टम के माध्यम से होगी। इससे भ्रष्टाचार, दलालों का वर्चस्व और विभागीय विलंब पर अंकुश लगेगा।

3.हरित भवनों की अवधारणा

पर्यावरणीय संकट को देखते हुए नई उपविधि में 500 वर्गमीटर से बड़े भवनों के लिए सौर ऊर्जा संयंत्र, वर्षा जल संचयन और ऊर्जा दक्ष तकनीक को अनिवार्य बनाया गया है। यह शहरी भारत को ग्रीन सिटी मॉडल की ओर ले जाने का प्रयास है।

4.दिव्यांग-अनुकूल भवनः समावेशी सोच की शुरुआत

अब सभी सार्वजनिक और व्यावसायिक भवनों में दिव्यांगजन के लिए रैम्प, ब्रेल संकेत, अलग शौचालय और लिफ्ट अनिवार्य होंगे। यह निर्णय केवल सुविधा आधारित है, बल्कि यह संवेदनशील प्रशासनिक सोच का प्रतीक भी है।

5.अग्नि सुरक्षा और आपदा प्रबंधन

नई उपविधियों में पार्किंग अग्निशमन उपायों को लेकर कठोर प्रावधान किए गए हैं, जैसे फायर एस्केप, हाइड्रेंट, स्मोक डिटेक्शन सिस्टम और सुरक्षित निकास मार्ग। यह केवल नियम नहीं बल्कि जीवन रक्षा का आधार है। हर भवन में पार्किंग की न्यूनतम सीमा तय की गई है।

अवैध निर्माण से पार पाने की चुनौती

उत्तर प्रदेश के अधिकांश शहरों में वर्षों से अवैध निर्माण, भू-माफिया और नियमों की अनदेखी की समस्या रही है। इस नई उपविधि के माध्यम से सरकार ने स्पष्ट किया है कि यदि कोई बिना स्वीकृति निर्माण करता है तो उस पर भारी आर्थिक दंड, विध्वंस और कानूनी कार्यवाही की जाएगी। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया गया है कि आम नागरिकों को नियम समझने और पालन करने में सुविधा हो, यही न्यायपूर्ण प्रशासन की कसौटी है।

आर्थिक-सामाजिक लाभ : एक दूरगामी प्रभाव

इन उपविधियों का प्रभाव केवल भवन निर्माण तक सीमित नहीं रहेगा। इसका प्रभाव दूरगामी होगा : रियल एस्टेट में पारदर्शिता आएगी। निवेश बढ़ेगा और भवन निर्माण उद्योग को गति मिलेगी। नागर सुविधा और यातायात प्रबंधन बेहतर होगा। किफायती आवास योजना (अर्फोडेबुल हाउसिंग) को समुचित समर्थन मिलेगा। पर्यावरणीय दबाव में कमी आएगी।

क्या करें नागरिक?

सरकार ने दिशा दिखाई है, लेकिन अब जिम्मेदारी समाज और नागरिकों की भी है। निर्माण कार्यों से पहले नक्शा पास कराना, भवन अनुमति लेना और हर नियम का पालन करना, अब किसी विकल्प नहीं बल्कि अनिवार्यता है। यदि नागरिक नियोजन को अपने जीवन का हिस्सा बना लें, तो शहर सहजता से सुव्यवस्थित हो सकता है।

नियमों की नींव पर विकास की इमारत

उत्तर प्रदेश भवन निर्माण एवं विकास उपविधि-2025 केवल निर्माण के दिशा-निर्देश नहीं हैं, ये एक विचार हैं कृ समन्वित, समावेशी और स्थायी विकास का। यह बदलाव नगरीय भारत के लिए एकपॉलिसी मॉडलबन सकता है। इस उपविधि को केवल अधिकारियों की फाइल में नहीं, बल्कि प्रत्येक नागरिक के व्यवहार और हर शहर की गली में उतरना चाहिए। तभी उत्तर प्रदेश के शहरों मेंविकासकेवल आंकड़ों की बात नहीं रह जाएगा, वह दिखाई देने वाला बदलाव बनेगा। कार्यशाला में विशेषज्ञों और वास्तुविदों द्वारा नागरिकों को प्रेरित किया गया कि वे भवन निर्माण के पूर्व प्राधिकृत योजनाओं का पालन करें। अवैध निर्माण और बिना अनुमति निर्माण पर सख्ती से रोक लगाने की बात कही गई. 

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