दीक्षांत समारोह में वैदिक मंत्रोच्चार और शंखनाद से गूंजा संपूर्णानंद
अभिषेक शुक्ल
को
सबसे
ज्यादा
9 मेडल
व
शाश्वत
निर्भय
को
4 मेडल
और
स्मिता-आराधना
पांडेय
को
3-3 मेडल
दिए
मिले
संस्कृत भाषा
से
हमारा
देश
एकता
के
सूत्र
मे
बंधा
हुआ
है
: कुलाधिपति
श्रीमती
आनन्दीबेन
पटेल
आम जनता
को
भी
संस्कृत
भाषा
का
जानकार
बनाने
का
प्रयास
करना
चाहिए
हर घर
तिरंगा
अभियान
में
जनता
के
देश
प्रेम
ने
विश्व
को
विस्मित
किया
भारत में
जी-20
देशों
की
बैठक
मानवता
के
कल्याण
के
लिए
‘‘वसुधैव
कुटुम्बकम‘‘
की
थीम
पर
आधारित
हैं
संस्कृत मात्र
एक
भाषा
ही
नहीं
अपितु
संस्कृति
है
: मुख्य
अतिथि
शरद
बोबडे
संपूर्णानंद संस्कृत
विश्वविद्यालय
का
40 वाँ
दीक्षांत
समारोह
संपन्न
सुरेश गांधी
वाराणसी। संपूर्णांनंद संस्कृति विश्व विद्यालय का 40वां दीक्षांत समारोह सकुशल संपंन हो गया। समारोह
में कुलाधिपति महामहिम राज्यपाल आनंदी बहन पटेल, मुख्य अतिथि सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य
न्ययाधीश शरद अरविंद बोबडे व कुलपति प्रों
हरेराम त्रिपाठी ने ने 31 मेधावियों
को 60 गोल्ड मेडल दी। इसमें अभिषेक शुक्ल को सबसे ज्यादा
9 मेडल दिए गए। अभिषेक नव्य व्याकरण के छात्र हैं।
जबकि शाश्वत निर्भय को 4 मेडल और स्मिता-आराधना
पांडेय को 3-3 मेडल दिए मिले।
इसके अलावा आचार्य की 5088 उपाधियां, शास्त्री की 7954 और मध्यमा की
1088 उपाधियां भी बांटी गयी।
इसके बाद अलग-अलग जगहों पर कुल 17,400 उपाधियां
दी गयी। इससे पहले दीक्षांत समारोह में वैदिक मंत्रोच्चार और शंखनाद की
गूंज सुनाई दी। विद्यार्थियों ने भारतीय पारंपरिक
परिधान में उपाधि और स्वर्ण पदक
ली। इस दौरान राज्यपाल
ने विश्वविद्यालय की स्मारिका का
लोकार्पण व प्राथमिक विद्यालय
से आएं बच्चों को पोषण सामग्री
एवं पठ्न-पाठन सामग्री का वितरण भी
किया।
इस मौके पर
समारोह की अध्यक्षता कर
रही कुलाधिपति एवं राज्यपाल श्रीमती आनन्दी बेन पटेल ने विद्यार्थियों को
संबोधित करते हुए कहा कि संस्कृत मे
अमूल्य ज्ञान सम्पदा समाहित है। हमारे देश मे कई गांव
ऐसे है जहां संस्कृतमय
आचरण करते हैं। संस्कृत के प्रचार- प्रसार
के साथ साथ आमजन की भाषा बनाने
पर बल देना चाहिये।
संस्कृत में रोजगार की भाषा बनाने
का प्रयास करना चाहिये। विद्यार्थी देश के धरोहर है,
आप समृद्ध होंगे तो विश्वविद्यालय समृद्ध
होगा। आपका सौभाग्य है कि आप
देववाणी संस्कृत भाषा अध्ययन कर रहे है।
उन्होंने कहा कि आजादी के
75 वर्ष पूर्ण होने पर अमृत महोत्सव
के तहत हर घर तिरंगा
यात्रा मनाया गया। इससे सम्पूर्ण देश तिरंगा मय हो गया।
आज भारत खुले में शौच से मुक्त हुआ,
इसका सकरात्मक प्रभाव रहा, अन्तरराष्ट्रीय योगा दिवस से सम्पूर्ण देश
को नया जीवन मिला। भारत मानव जाति के कल्याण के
लिये अभूतपूर्व कार्य कर रहा है।
जो विश्व के सामने प्रमुख
मिशाल बन सकता है।
समारोह में मुख्य अतिथि सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य
न्ययाधीश शरद अरविंद बोबडे ने कहा कि
इस विश्वविद्यालय में पूर्व और पश्चिम के
बीच ज्ञान का वास्तविक आदान-प्रदान शुरू हुआ, जो पांडुलिपि प्रकाशन
’द पंडित’ के नाम से
जाना जाता था। मुझे बताया गया है कि यह
अमूल्य संग्रह अभी भी इस विश्वविद्यालय
में सुरक्षित रूप से संरक्षित है।
कहा जाता है कि सरस्वती
भवन में एक लाख से
अधिक दुर्लभ पांडुलिपियां हैं। यह विश्वविद्यालय कई
महान संस्कृत विद्वानों का अल्मा मेटर
रहा है जो दुनिया
भर में प्रसिद्ध हुए। उन्होंने कहा कि यह विश्वविद्यालय
वास्तव में एक राष्ट्रीय विश्वविद्यालय
है और भारत के
बहुत सीमावर्ती राज्यों जैसे अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश में इसकी शाखाएँ हैं। यह भूटान, नेपाल,
तिब्बत, श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड, जापान, कोरिया, पोलैंड, मॉरीशस अमेरिका, इंग्लैंड आदि देशों से दुनिया भर
के छात्रों को प्राप्त करता
है। बौद्ध और पाली ग्रंथों
का अध्ययन करने के लिए बौद्ध
देशों के छात्र यहां
आते हैं।
इसके पूर्व कुलाधिपति श्रीमती आनन्दीबेन पटेल एवं मुख्य अतिथि व सर्वोच्च न्यायालय
के पूर्व मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे ने दीप प्रज्जवलन
कर कार्यक्रम की शुरुवात की।
इस दौरान छात्र-छात्राओं द्वारा मंगलाचरण, कुलगीत, जल भरो गीत
एवं लोकार्पण’ किया गया। कुलपति प्रो हरेराम त्रिपाठी द्वारा परम्परागत रूप से कुलाधिपति एवं
मुख्य अतिथि का अभिनंदन और
स्वागत सम्बोधन किया गया।
मेधावियों के नाम इस प्रकार है
सर्वाधिक
नौ मेडल (08 सुवर्ण एवं रजत पदक)
नव्य
व्याकरण में अभिषेक शुक्ल
चार
पदक :
सामवेद
में शाश्वत निर्भर
तीन
पदक
धर्मशास्त्र
में शिवशंकर उपाध्याय, साहित्य में शिवम शुक्ल, साहित्य में स्मिता, दर्शन में राम प्रवेश त्रिपाठी, रामानुज वेदांत में ज्ञानेंद्र कुमार मिश्र व आराधना पांडेय।
दो पदक : वेदांत में जाधव राम भाउ लिबाजी वेदांत में अरूण कुमार महतो, जैनदर्शन में मंयक जैन, शास्त्री साहित्य में हर्षिता शुक्ला, आयुर्वेद में ज्योति सिंह, फलित ज्योतिष में संतोष न्योपाने,
एक-एक पदक
: शुक्ल यजुर्वेद में रंजीत कुमार, अर्थव वेद में पंकज भोय, रामानंद वेदांत में राहुल कुमार तिवारी, पुराणेतिहास में सिद्धराज उपाध्याय, प्राचीन राजशास्त्र-अर्थशास्त्र में राहुल
शुक्ला, नव्य व्याकरण में कृष्ण शरण भूर्तेल, सांख्ययोग तंत्रागत में विनोद कुमार त्रिपाठी, बौद्ध दर्शन में रविशंकर पांडेय, प्राकृत
एवं जैनागम में अर्चना उपाध्याय, संस्कृत विद्या में अभय तिवारी, भाषा विज्ञान में प्रिंस कुमार यादव, शिक्षाशास्त्र में देवेश कुमार दुबे, वैष्णवी,
विज्ञान में वरूण शर्मा, साहित्य में आदर्श पांडेय।
कलश में जल भरकर दीक्षांत
समारोह का शुभारंभ हुआ।
दीक्षांत समारोह का संचालन तुलनात्मक
धर्म दर्शन विभाग के आचार्य प्रो
हरिप्रसाद अधिकारी ने संचालन किया।
शिष्ट यात्रा दीक्षांत मण्डप में कुलाधिपति, मुख्य अतिथि, कुलपति, कुलसचिव, विद्यापरिषद एवं कार्यपरिषद के सदस्य शिष्ट
यात्रा में उपस्थित रहे। इस मौके पर
प्रो नागेन्द्र पांडेय, प्रो योगेश चन्द्र दुबे, प्रो -राय, ई रमन तिवारी,
प्रो हेतराम कछवाहा, प्रो प्रेम चन्द्र जैन, प्रो केसी दुबे, प्रो जयप्रकाश त्रिपाठी, कुलसचिव केशलाल, वित्त अधिकारी जेपी पांडेय व जनसंपर्क अधिकारी
शशींद्र मिश्र मौजूद रहे।
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