’मोदी की गारंटी’ पर भरोसा, विपक्षी ’गारंटी’ जुमला
लोकसभा चुनाव 2024 के एग्जिट पोल के आंकड़ों के मुताबिक इस बार के परिणाम साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव के सारे रिकॉर्ड तोड़ देंगे। मतलब साफ है केंद्र में एक बार फिर पूर्ण बहुमत से मोदी सरकार आ रही है। केंद्र की सत्ता में मोदी हैट-ट्रिक लगाकर नेहरू के रेकॉर्ड की बराबरी करने जा रहे हैं. पूरब से दक्षिण और उत्तर से पश्चिम तक भगवा लहराने में बीजेपी का कदम मजबूती से बढ़ेगा. जहां तक 400 पार की बात है तो यह भी मुमकिन है. हालांकि यह 4 जून के बाद तय होगा, लेकिन एक्सिट पोलों पर यकिन करें तो यह सच होता दिखाई दे रहा है। मतलब साफ है जनता मोदी की गारंटी पर विश्वास करती है। क्योंकि उन्होंने श्रीराम मंदिर, धारा 370, भ्रष्टाचारियो को जेल, अर्थव्यवस्था, आयुष्मान, विकास सहित अन्य कल्याणकारी योजनाओ को धरातल पर उतारा है। जबकि कांग्रेस का गरीबी हटाओं से लेकर जो भी लोकलुभावन वादे किए, वे सिर्फ भाषणों तक सीमति रह गए। उनकी योजनाएं एक वर्ग विशेष की होकर रह गयी। इस चुनाव में भी विपक्ष का जाति कार्ड, मुस्लिम परस्ती आरक्षण, न्याय गारंटी में युवाओं को रोजगार, 30 लाख सरकारी पदों पर नौकरी, मुफ्त कानूनी सहायता और गरीब महिलाओं के खातों में खटाखट सवा लाख देने की गारंटी हवा-हवाई साबित हो गयी। यूपी में मायावती एवं मुलायम व अखिलेश सिंह यादव का शासन काल कौन दोहराना चाहेगा? आज भी समाजवादी पार्टी, परिवार के लोगों को ही सत्ता में बनाए रखने के प्रयास कर रही है। अखिलेश यादव, पत्नी-डिम्पल, चाचा-शिवपाल सिंह तो शीर्ष पर हैं। उनके लिए आम जनमानस कहीं नहीं है। जबकि भाजपा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश, राष्ट्र, सनातन, विकास के लिए वोट मांगे। उन्होंने 140 करोड़ जनता को अपना परिवार समझा. कहा जा सकता है सरकार के खिलाफ विपक्ष की बात में चाहे कितना भी दम रहा हो जनता उन पर विश्वास नहीं कर पाई। राहुल गांधी का कद पहले से जरुर बढ़, लेकिन इतना नहीं कि वह मोदी की बराबरी कर सकें। बाकी क्षेत्रीय नेताओं की पहुंच अपने-अपने राज्यों तक सीमित रही
सुरेश गांधी
भारत में सात
चरण के लोकसभा चुनाव
आखिरकार खत्म हो गए
हैं। देश की 543 लोकसभा
सीटों पर चुनाव संपन्न
होने के बाद अब
चुनाव नतीजों का इंतजार है.
एग्जिट पोल के आंकड़े
भी आ गए हैं।
एक्जिट पोल के मुताबिक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व
वाले बीजेपी-एनडीए गठबंधन को हैट्रिक का
भरोसा है, जबकि कांग्रेस
के नेतृत्व वाले विपक्षी ’इंडिया’
ब्लॉक का दावा है
कि देश ने हैट्रिक
हासिल कर ली है।
’परिवर्तन’ के लिए वोट
दिया. जबकि जमीनी हकीकत
यह है कि ज्यादातर
सर्वे में बीजेपी पूर्ण
बहुमत की सरकार बनती
दिख रही है। ज्यादातर
राज्यों में बीजेपी बेहतरीन
प्रदर्शन करती दिख रही
है। बीजेपी को सबसे ज्यादा
फायदा दक्षिण भारत के राज्यों
में दिख रहा है।
केरल से लेकर तेलंगाना
में बीजेपी बढ़त बनाती दिख
रही है। वहीं पश्चिम
बंगाल में भी बीजेपी
को टीएमसी से ज्यादा सीटें
मिलती दिख रही है।
दिल्ली की सातों सीटों
पर फिर बीजेपी क्लीन
स्विप कर सकती है।
यानी देश में फिर
एक बार मोदी सरकार
बनने जा रही है।
अगर ये एग्जिट पोल
सही होते हैं, तो
मोदी नेहरू के रिकॉर्ड की
बराबरी कर लेंगे।
नेहरू के बाद मोदी
ऐसे दूसरे पीएम होंगे जो
लगातार तीसरी बार सरकार बनाएंगे।
4 जून को मतगणना के
बाद चुनाव नतीजे आने हैं. एग्जिट
पोल के अनुमान अगर
असल नतीजों में बदलते हैं
तो बीजेपी की अगुवाई वाले
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को 361 से 401 सीटें मिल सकती हैं.
जबकि विपक्षी इंडिया ब्लॉक को 131 से 166 सीटें मिलने का अनुमान एग्जिट
पोल में जताया गया
है. फिरहाल, पीएम मोदी द्वारा
किए गए कार्यो व
वादों को आम जनमानस
प्राण जाए पर वचन
न जाए की तर्ज
पर भरोसा करने लगी है।
जनमानस को लगने लगा
है कि मोदी की
गारंटी मतलब वादे पूरे
होंगें। यह न सिर्फ
एक्जिट पोल के नतीजे
बा रहे है, बल्कि
वास्तविकता के घरातल भी
दिखता है। पीएम मोदी
का वादा था ’अनुच्छेद
370 हटायेंगे तो सत्ता मिलते
ही हटा दिया। तीन
तलाक को एक झटके
में लागू कर दिया।
जबकि राहुल गांधी के उस बयान
को जनमानस भरोसेलायक नहीं समझती जिसमें
उन्होंने कहा, मैं एक
झटके में गरीबी दूर
कर दूंगा. गरीब परिवार की
महिलाओं के खाते में
1 लाख रुपये ट्रांसफर करके एक पल
में गरीबी मिटा देंगे. लोग
समझने लगे है कि
जिनको पांच-छह दशक
शासन करने का मौका
मिला, वे आज कैसे
गरीबी हटा देंगे।
लोगों के जेहन में
अब भी लाखों करोड़ों
के घपले -घोटाले है और लोगों
को दिख रहा है
कैसे एक एक कर
विपक्षी नेता जेल जा
रहे है। जनमानस को
मोदी द्वारा भ्रष्टाचारियों को जेल में
डालने की अभियान रास
भी आ रही है।
लोग देख रहे है
सुगम सड़के कैसे एक
जगह से दूसरी जगह
पहुंचाने में मददगार साबित
हो रही है। परिवहन
सुगम होने पर कैसे
कारोबार को भी फायदा
मिल रहा है. लोग
चाहते हैं कि एक
देश एक चुनाव की
व्यवस्था करनी चाहिए. इससे
न सिर्फ संसाधन बचेंगे बल्कि एक साथ चुनाव
देश में योजनाएं भी
तेज गति से लागू
होंगी। लोगों के लिए परिवार
में किसी के बीमारी
होने की स्थिति में
इलाज कराना भी उनकी वित्तीय
स्थिति पर गहरा प्रभाव
डालता है. महंगे इलाज
से ज्यादातर परिवार परेशान हैं, ऐसे में
आयुष्मान कार्ड कारगर साबित हो रहा है।
विपक्ष के मुस्लिम परस्ती
सियासत को देखते हुए
लोग भारत को हिंदू
राष्ट्र बनते हुए देखना
चाहते हैं. देश में
किसानों की खराब आर्थिक
हालत भी एक बड़ी
समस्या है. हर तिमाह
दो जार उनके लिए
डूबते को तिनके का
सहारा साबति हो रही है।
वो चाहते है किसानों की
कर्जमाफी के बजाय उन्हें
समृद्ध बनाया जाए और उनकी
आमदनी भी बढ़े. देश
में समान नागरिक संहिता
चाहते है। बता दें,
बीजेपी के लिए समान
नागरिक संहिता एक बड़ा चुनावी
मुद्दा भी है.
अखिलेश को खा गयी मुख्तार की तरफदारी
देखा जाएं तो
अखिलेश और राहुल गांधी
जिस कॉन्फिडेंस से अपनी जीत
के दावे कर रहे
थे वो फुस्स होते
दिख रहा है। अभी
तीन दिन पहले ही
राहुल गांधी के साथ वाराणसी
पहुंचे अखिलेश यादव यहां तक
कह रहे थे कि
वे ’क्यूटो’ (वाराणसी पर तंज) भी
जीत रहे हैं. उन्होंने
कहा था जनता का
गुस्सा सातवें आसमान पर है. लेकिन
वे हकीकत से दूर नहीं
समझ पाएं कि उनका
माफिया प्रेम उन्हें ले डूबेगा। मुख्तार
की मौत पर सपा
की आईटी सेल ने
उसे शहीद बनाने में
कोई कसर नहीं छोड़ी
थी. क्षेत्रों में इसका जबरछसत
रियेक्शन देखने को मिला। इसके
अलावा राम मंदिर उद्घाटन
में न जाकर उन्होंने
खुद को हिंदुओं से
अलग एक पार्टी बना
लिया था. उद्घाटन के
पहले कई बार उनके
बयानों से ऐसा लगा
था कि वो राममंदिर
के प्राण प्रतिष्ठा में जा सकते
हैं. पर वो नहीं
गए. अखिलेश उस समय भी
सजग नहीं हुए जब
उनकी ही पार्टी के
विधायकों ने विधानसभा में
राम मंदिर उद्घाटन के धन्यवाद प्रस्ताव
में अपनी पार्टी से
हटकर सरकार के समर्थन में
वोटिंग किया था. इसके
अलावा बीएसपी को साथ न
लेने की उनकी जिद
सिवाय अपरिपक्वता और कुछ नहीं
था. शुरूआत में ही अगर
अखिलेश ने बीएसपी को
इंडिया गुट में न
शामिल करने की जिद
नहीं पकड़ी होती तो
हो सकता था कि
मायावती भी गठबंधन में
शामिल हुईं होतीं. राहुल
गांधी और अखिलेश यादव
साथ तो आ गए
पर आम जनता के
सामने दिखाई नहीं दिए. ऐन
मौके पर आरएलडी के
जयंत चौधरी का साथ छोड़ना
भी घातक साबित हुआ।
अखिलेश व तेजस्वी को
देश अच्छी तरह जान गया
है। ये लोग घोर
साम्प्रदायिक हैं, ये लोग
घोर जातिवादी और परिवारवादी हैं।
जब भी इनकी सरकार
बनती है, तो इसके
आधार पर ही फैसला
लेते हैं। यादव समाज
में इतने होनहार लोगों
की मौजूदगी के बावजूद सिर्फ
अपने परिवार को लोगों को
ही टिकट दिया। इतने
दशकों तक देश ने
बम धमाके झेले हैं। आतंकवाद
ने सैंकड़ों जीवन तबाह किए
हैं। बावजूद इसके एक वोट
बैंक की खातिर आतंकियों
को छोड़ा। सपा ने घोषणा
की कि पुलिस और
पीएससी में 15 फीसदी आरक्षण मुसलमानों को दिया जाएगा।
जनता समझयी कि ये लोग
अपने वोट बैंक को
खुश करने के लिए
किस तरह दलित और
पिछड़ा वर्ग का हक
छीनना चाहते हैं। सरकार में
आने के बाद इन्होंने
अपनी मनमानी भी की, लेकिन
मामला तब से कोर्ट
में फंसा है, बावजूद
इसके पिछले दरवाजे से ओबीसी में
मुसलमानों को आरक्षण देते
रहे हैं, लेकिन बार-बार कभी हाई
कोर्ट तो कभी सुप्रीम
कोर्ट कभी रोक लगाता
है। तेजस्वी व अखिलेश का
राष्ट्रीय राजनीति से कोई सम्बन्ध
नहीं है। इनका उद्देश्य
भ्रष्टाचार, अत्याचार-लूट-खसोट है।
कहीं भी उन्होंने लोकतंत्र
को पनपने नहीं दिया। यही
वजह है कि इस
बार के लोकसभा चुनाव
में सभी क्षेत्रीय-व्यक्तिवादी
दल अंतिम सांसे लेते दिखाई पड़े।
खुद अखिलेश व तेजस्वी अपने-अपने परिवार को
जिताने में लगे थे।
इनका राष्ट्रीय चिन्तन कहीं भी नहीं
दिखाई पड़ा। लालू ने
परिवार के लिए वोट
मांगे, राजद के लिए
नहीं। वे समझ चुके
हैं कि परिणाम क्या
होंगे। अमेठी-रायबरेली में सोनिया गांधी
ने सार्वजनिक रूप से कहा
था कि ‘मैं अपना
बेटा आपको सौंप रही
हूं। यह आपको निराश
नहीं करेगा।’ प्रियंका भी भाई के
लिए ही संकल्प करके
बैठी थीं। कांग्रेस के
लिए, भारत के लिए
नहीं। पूरे प्रचार में
अपने परिवार की ही गाथा
सुनाई। बस, नरेन्द्र मोदी
के विरुद्ध वक्तव्य थे! महाराष्ट्र में
शरद पवार का परिवार
तथा उद्धव ठाकरे का परिवार, दोनों
में ही महाभारत चल
रहा है। उद्धव ठाकरे
भी शिवसेना के स्थान पर
‘ठाकरे’ खानदान के प्रतिनिधि हैं।
अपने दादा केशव सीताराम
ठाकरे से लेकर बाला
साहब और पुत्र आदित्य
ठाकरे के ही साम्राज्य
की बात करते हैं।
राज ठाकरे इनका ही भाई
है। यही स्थिति शरद
पवार-अजीत पवार-सुप्रिया
सुले की है। ममता
बनर्जी के परिवार की
है, स्टालिन के परिवार की
है। कैसे राजस्थान के
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने
पुत्र वैभव को लेकर
शहर-शहर, गांव-गांव
गए। पार्टी और पुत्र का
भेद स्पष्ट ही है। अपनी
सत्ता को बनाए रखने
के लिए केन्द्रीय नेतृत्व
से अड़ गए। यही
हाल वसुन्धरा राजे का सामने
आया।
ढिल हई क्षत्रपों की अकड़
दरअसल, चुनाव से पहले ही
विरासत की जंग में
कई क्षेत्रीय दल टूट चुके
हैं, तो कई क्षत्रपों
के लिए खुद को
साबित करने का आखिरी
मौका है। केसीआर, शरद
पवार, चिराग पासवान, ओ पन्नीरसेल्वम, ईके
पलानीस्वामी और उद्धव ठाकरे
के लिए चुनाव जीवन-मरण के प्रश्न
की तरह है। खास
बात यह है कि
सियासत में अपनी प्रासंगिकता
बचाए और बनाए रखने
के लिए इनके पास
जीत के अलावा दूसरा
कोई विकल्प नहीं है। ईपीएस
के नाम से मशहूर
तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री
ईके पलानीस्वामी (70) ने 1974 में एमजी रामचंद्रन
की पार्टी अन्नाद्रमुक से सियासी पारी
शुरू की। जयललिता के
निधन के बाद पार्टी
में मची विरासत की
जंग में वे सीएम
की कुर्सी तक तो पहुंच
गए, मगर 2021 में डीएमके के
हाथों सत्ता गंवाने के बाद पार्टी
में अंतर्विरोध को संभाल नहीं
पा रहे। राजनीति का
चाणक्य कहे जाने वाले
शरद पवार (84) पांच दशक के
सियासी कॅरिअर के सबसे मुश्किल
दौर में हैं। भतीजे
अजीत पवार की बगावत
से महाराष्ट्र के चार बार
सीएम व केंद्र में
कई बार मंत्री रह
चुके पवार की एनसीपी
दो धड़े में बंट
गई। पार्टी के साथ चुनाव
चिह्न से भी हाथ
धोना पड़ा। उनके सामने
कई चुनौतियां हैं।
मुस्लिम परस्ती विपक्ष के लिए बना काल
देखा जाएं तो
यूपी में खुद मैने
पूर्वांचल की सभी सीटों
का सर्वे किया, जहां यह देखने
को मिला मुस्लिम तबका
तो पूरी तरह इंडी
गठबंधन के साथ और
बूथों पर दिखा भी,
लेकिन इस एक्शन का
रिएक्शन भी जमकर देखने
को मिला। परिणाम यह है कि
80 में 70 सीटें एनडीए के खाते में
जाती नजर आ रही
है। चुनावी विश्लेषक राजनारायण सिंह का कहना
है कि 2024 ही नहीं जब
से मोदी युग का
आरंभ हुआ है विपक्ष
कुछ ज्यादा ही मुस्लिम परस्ती
करता दिखाई दिया और ये
उसी का परिणाम है
और अब उसके लिए
काल बन गया है।
बता दें, सारे टीवी
के एग्जिट पोल के मुताबिक,
एनडीए को 371 से 401 सीटें मिल सकती हैं
और इंडी गठबंधन के
खाते में 109 से 139 सीटें आएंगी। यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी का 400 पार का नारा
सच साबित होते हुए नजर
आ रहा है। अगर
ऐसा हुआ तो लोकसभा
चुनाव 2014 और 2029 के सारे रिकॉर्ड
टूट जाएंगे। बता दें, 2024 के
लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी ने एनडीए के
लिए 400 पार का नारा
दिया था। इसके बाद
कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी
दलों ने प्रचार के
दौरान यह कहना शुरू
किया था कि बीजेपी
देश का संविधान बदलना
चाहती है इसलिए वह
400 सीटें मांग रही है।
हालांकि तमाम सर्वे एजेंसी
के आए एग्जिट पोल
को सही मानें तो
ऐसा लगता है कि
विपक्षी दलों की कही
बातों को जनता ने
बिल्कुल भी विश्वास नहीं
किया। इसके अलावा महंगाई
और बेरोजगारी का मुद्दा भी
कामयाब होता नहीं दिखाई
दे रहा है। एग्जिट
पोल्स के नतीजे सामने
आने के बाद पीएम
मोदी ने कहा कि
मैं विश्वास के साथ कह
सकता हूं कि भारत
के लोगों ने एनडीए सरकार
को दोबारा चुनने के लिए रिकॉर्ड
संख्या में मतदान किया
है। उन्होंने हमारा ट्रैक रिकॉर्ड देखा है और
जिस तरह से हमारे
काम ने गरीबों हाशिए
पर मौजूद और वंचितों के
जीवन में गुणात्मक बदलाव
लाया है। साथ ही,
उन्होंने देखा है कि
कैसे भारत में सुधारों
ने भारत को पांचवीं
सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था
बनने के लिए प्रेरित
किया है। हमारी हर
योजना बिना किसी पूर्वाग्रह
या लीक के इच्छित
लाभार्थियों तक पहुंची है।
गठबंधन मतदाताओं के साथ तालमेल
बिठाने में विफल रहा।
वे जातिवादी, सांप्रदायिक और भ्रष्ट हैं।
यह गठबंधन, जिसका उद्देश्य मुट्ठी भर राजवंशों की
रक्षा करना था, राष्ट्र
के लिए भविष्य की
दृष्टि प्रस्तुत करने में विफल
रहा। अभियान के माध्यम से,
उन्होंने केवल एक चीज
में अपनी विशेषज्ञता बढ़ाई
- मोदी को कोसना। ऐसी
प्रतिगामी राजनीति को जनता ने
नकार दिया है।
बीजेपी के लिए दक्षिण में खुले द्वार
बीजेपी ने केरल और
तमिलनाडु में बहुत अच्छा
परफॉर्मेंस कर रही है.
बीजेपी का दक्षिण विजय
का सपना तो नहीं
पूरा हो रहा है
पर दरवाजा खुल गया है
तो कुर्सी भी एक दिन
मिल ही जाएगी. भारतीय
जनता पार्टी का बहुत पुराना
सपना साकार होता दिख रहा
है. दक्षिण भारत में धमक
के साथ बीजेपी अपना
वोट परसेंटेज बढ़ाती दिख रही है.
हालांकि दक्षिण भात के राज्यों
में भारतीय जनता पार्टी की
बढ़त को लेकर हमेशा
से ही संदेह होता
रहा है. पीएम मोदी
ने एक इंटरव्यू में
कहा था कि विपक्ष
ने एक मिथक पैदा
किया है कि भाजपा
दक्षिणी राज्यों में कोई ताकत
नहीं है या वहां
उसकी मौजूदगी नहीं है. उन्होंने
यह भी कहा कि
2019 के चुनाव में भी दक्षिण
भारत में सबसे बड़ी पार्टी
भाजपा ही थी. एक
बार फिर, मैं यह
कहता हूं इस बार
दक्षिण में सबसे बड़ी
पार्टी भाजपा होगी तथा उसके
सहयोगियों को और अधिक
सीटें मिलेंगी. हम दक्षिण क्षेत्र
में अपनी सीटों की
संख्या और मत प्रतिशत
में भी बड़ी वृद्धि
देखेंगे. देखा जाएं तो
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले
लोकसभा चुनाव के पहले से
ही दक्षिण के राज्यों को
विशेष महत्व दे रहे थे.
मोदी ने 26 मई 2014 से 17 अप्रैल 2024 के बीच पांच
दक्षिणी राज्यों आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तेलंगाना और तमिलनाडु की
146 यात्राएं की हैं. इनमें
से एक तिहाई से
अअधिक यात्राएं पिछले तीन वर्षों में
हुईं हैं. 2022 में दक्षिण के
इन राज्यों में 13 यात्राएं की, जबकि 2023 में
यात्राओं की संख्या 23 और
23 अप्रैल 2024 तक यात्राओं की
संख्या 17 थी. एक रिपोर्ट
बताती है कि पीएम
मोदी की दक्षिण भारत
की यात्राओं में केंद्र की
भाजपा सरकार के पहले कार्यकाल
के 14 फीसदी के मु.काबले
18 फीसदी बढ़ोतरी हुई है. प्रधानमंत्री
ने पिछले 10 वर्षों में दक्षिणी राज्यों
में सबसे अधिक यात्राएं
कर्नाटक में कीं. उसके
बाद तमिलनाडु (39), केरल (25), तेलंगाना (22) और आंध्र (15) का
स्थान रहा. मोदी की
दक्षिणी राज्यों की 146 यात्राओं में 64 आधिकारिक और 56 गैर-आधिकारिक यात्राएं
जिनमें चुनावी रैलियां और पार्टी समारोह
आदी शामिल थीं. कुल मिलाकर
प्रधानमंत्री ने दक्षिणी राज्यों
की अपनी 146 यात्राओं के दौरान 356 कार्यक्रमों
में भाग लिया. इनमें
से अधिकतम 144 रैलियां
जैसी थीं, जबकि 83 परियोजनाओं
का उद्घाटन और शिलान्यास जैसे
विकास संबंधी कार्यक्रम थे. -केरल में
बड़े चेहरे उतारना फायदेमंद साबित हुआ। केरल पिछले
दशक से ही बीजेपी
के टार्गेट रहा है. आरएसएस
के जितने कार्यकर्ताओं की केरल में
हत्या हुई है देश
में कहीं नहीं हुई
हैं. केवल चुनाव के
दौरान ही पीएम ने
6 बार रैलियां की हैं. इसके
पहले भी लगातार वो
केरल आए हैं. केरल
में पिछले लोकसभा चुनावों में .13 फीसदी से ज्यादा वोट
मिले थे. पर एक
भी सीट जीतने में
सफलता नहीं मिली थी.आजतक एक्सिस माई
इंडिया के एग्जिट पोल
के हिसाब से इस बार
एनडीए को 27 परसेंट...वोट मिलता दिख
रहा है. जिसमें बीजेपी
को 21 प्रतिशत और बीजीडीएस 6 परसेंट
वोट मिल रहा है.
जहां तक सीटों का
मामला है उसमें बहुत
ज्यादा इजाफा नहीं हो रहा
है पर 2 से 3 सीटें
मिलतीं जरूर दिख रही
हैं. मतलब साफ है
कि बीजेपी का बड़े नाम
वाले चेहरने उतारने की रणनीति सफल
हुई है.
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