शिक्षा व परीक्षा प्रणाली में बदलाव वक्त की मांग
पहले शिक्षा, फिर पेपर लीक और अब परीक्षा में धांधली को लेकर दिल्ली से पटना और राजस्थान-गुजरात से यूपी तक देश के हर शहर जिले में युवा छात्र गुस्से में है। कहीं, डिग्रियां जलायी जा रही है तो कहीं भूख हड़ताल के बीच धरना-प्रदर्शन चल रहा है। सबके सब कहीं न कहीं खराब शिक्षा प्रणाली, पेपर लीक और परीक्षा धांधली से हलकान है, उन्हें खुद का भविष्य अंधकार में जाता दिख रहा है। हालांकि इस तरह की धांधलियां पहले भी होती रही है, लेकिन तब इतनी जागरुकता नहीं थी। मुझे तो वह दौर भी याद है जब शिक्षा की राजधानी कल का इलाहाबाद और आज के प्रयागराज में परीक्षा की कापियां ही बदल दिया जाया करती थी। प्रतियोगी परीक्षाओं में दुसरे की फोटो लगाकर छात्र परीक्षा दे आते थे और तो और परीक्षा केन्द्र की सेटिंग-गेटिंग से आंसर सीट ही बदल दी जाती थी। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है देश में कब बदलेगी शिक्षा प्रणाली और कब थमेगा पेपर लीक व परीक्षा में धांधली पर कब लगेगी लगाम?सुरेश गांधी
इससे बड़ी विडंबना
और क्या होगी कि
देश भर में जिन
कुछ परीक्षाओं को सबसे पुख्ता
इंतजामों के बीच कराए
जाने और उनकी गुणवत्ता
के लिए जाना जाता
रहा है, आज धांधली
या फिर पहले ही
प्रश्न-पत्रों के बाहर आ
जाने की लगातार घटनाओं
के बीच उनकी विश्वसनीयता
को गहरी चोट पहुंच
रही है। इन परीक्षाओं
का आयोजन कराने वाली एजेंसी की
साख इस तरह गिर
चुकी लगती है कि
अब उसकी क्षमता पर
सवाल उठने लगे हैं।
सवाल है कि अगर
यह स्थिति पिछले काफी समय से
निरंतर बनी हुई है,
तो इसके लिए किसकी
जिम्मेदारी बनती है? बता
दें, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग-नेट परीक्षा
में कई स्तर पर
हुई गड़बड़ी के संकेत मिलने
के बाद केंद्रीय शिक्षा
मंत्रालय ने उसे रद्द
करने की घोषणा कर
दी। दरअसल, परीक्षा के अगले ही
दिन यूजीसी को गृह मंत्रालय
के भारतीय साइबर अपराध कोआर्डिनेशन केंद्र से परीक्षा में
गड़बड़ी होने के स्पष्ट
संकेत मिले थे। अब
मंत्रालय ने परीक्षा रद्द
करने के साथ-साथ
इसकी जांच केंद्रीय जांच
ब्यूरो यानी सीबीआइ को
सौंप दी है। लेकिन
उन परीक्षाओं का क्या होगा,
जिसमें धांधली या पेपर लीक
के मामले सामने आ रहे है।
आखिर उन परीक्षाओं को
क्यों नहीं रद्द किया
जा रहा है? जाहिर
है, अब समूचे मामले
की जांच की प्रक्रिया
चलेगी, लेकिन कितने दिनों में उसका नतीजा
क्या आएगा, किसे कठघरे में
खड़ा किया जाएगा, क्या
कार्रवाई होगी, गड़बड़ी से बचाव के
क्या इंतजाम किए जाएंगे, इसे
लेकर कोई स्पष्टता शायद
ही सामने आए! यूजीसी-नेट
की परीक्षा में हुई गड़बड़ी
इस तरह का कोई
पहला मामला नहीं है। देश
में अलग-अलग राज्यों
में स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर
पर चिकित्सा और इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों
में दाखिले के लिए आयोजित
की जाने वाली परीक्षाओं
के दौरान गड़बड़ी या प्रश्न पत्रों
के पहले ही बाहर
आ जाने की घटनाएं
पिछले कुछ समय से
लगातार सुर्खियों में रही हैं।
यह तब है, जब
इन परीक्षाओं में शामिल होने
वाले विद्यार्थियों को परीक्षा केंद्र
में प्रवेश के पहले बहुस्तरीय
और बारीक जांच की प्रक्रिया
से गुजरना पड़ता है और
किसी भी तरह की
संदिग्ध वस्तु अंदर ले जाने
की छूट नहीं होती।
इसके बावजूद परीक्षा के प्रश्न पत्र
कुछ आपराधिक तत्त्वों के हाथ लग
जाते हैं और उनका
संजाल ऊंची रकम लेकर
इन्हें अभ्यर्थियों को बेचता है।
जब एनटीए और संबंधित महकमों
की ओर से हर
स्तर पर चौकसी बरतने
और सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम
किए जाने का दावा
किया जाता है, तब
इतनी गंभीर गड़बड़ी कैसे संभव हो
पाती है?
यह विडंबना ही
है कि एनटीए भी
उन्हीं समस्याओं से ग्रस्त नजर
आ रही है जिनका
मुकाबला करने के लिए
इसकी स्थापना की गई थी।
वर्ष 2018 में इसकी शुरुआत
के साथ ही समस्याएं
भी नजर आनी शुरू
हो गई थी। उदाहरण
के लिए किसी अभ्यर्थी
के स्थान पर दूसरे व्यक्ति
का परीक्षा में बैठना और
शीर्ष स्थान हासिल करना, गलत अंक मिलना,
गलत माध्यम में प्रश्न पत्र
का वितरित होना वगैरह। इनमें
से कई समस्याएं चिकित्सा
स्नातक, दंत चिकित्सा, आयुष
और अन्य पाठ्यक्रमों में
प्रवेश के लिए होने
वाली नीट की ताजा
परीक्षा में भी सामने
आईं और संबंधित विवाद
सर्वोच्च न्यायालय तक जा पहुंचा।
इन शिकायतों में 4 जून को घोषित
परीक्षा परिणाम में अनियमितता और
गड़बड़ी शामिल है। याद रहे
कि उसी दिन लोक
सभा चुनाव के नतीजे भी
आए थे। इनमें अहम
प्रश्नचिह्न था कई विद्यार्थियों
का अस्वाभाविक रूप से पूर्णांक
हासिल करना। इनमें कई हरियाणा के
एक ही सेंटर से
परीक्षा देने वाले थे।
इसके अलावा यह भी सामने
आया कि प्रश्न पत्र
की दिक्कतों की वजह से
कुछ बच्चों को ‘ग्रेस मार्क्स’
यानी प्राप्तांक दिए गए। इससे
पारदर्शिता को लेकर सवाल
उठे। खासकर बिहार और गोधरा में
पर्चा लीक के रैकेट
सामने के बाद ताबड़तोड़
धरपकड हो रही है,
उसके बाद तो हर
तरह की परीक्षाएं रद्द
होनी चाहिए। एनटीए की कमियां इस
समस्या का एक पहलू
हैं। परंतु मौजूदा विवाद बड़े सवालों की
ओर भी संकेत करता
है जो शिक्षा व्यवस्था
के ढांचे से संबद्ध है।
उनमें से ताजा सवाल
यह है कि क्या
देशव्यापी स्तर पर फैली
परीक्षाओं का केंद्रीकरण व्यावहारिक
विकल्प है? उदाहरण के
लिए नीट की परीक्षा
में 24 लाख बच्चे बैठे
और यूजीसी-नेट में नौ
लाख विद्यार्थी शामिल हुए। इन सबने
300 शहरों में परीक्षाएं दीं।
व्यापक समस्या देश की स्कूली
व्यवस्था और उच्च शिक्षा
के संस्थानों की अपर्याप्त संख्या
में निहित है। उदाहरण के
लिए नीट की परीक्षा
में बैठने वाले बच्चे 1,09,000 एमबीबीएस
सीटों के लिए प्रतिस्पर्धा
कर रहे थे। ऐसे
में मध्य वर्ग और
निम्न वर्ग के माता-पिता अपने जीवन
भर की पूंजी और
बचत बच्चों को महंगी कोचिंग
कक्षाओं में डालने में
लगा देते हैं ताकि
वे इन परीक्षाओं में
पास हो सकें। इन
परीक्षाओं में नाकाम होने
वाले बच्चों की आत्महत्या का
सीधा संबंध इस दबाव से
है जो उन पर
हावी रहता है। कुल
मिलाकर भारतीय छात्र-छात्राओं के लिए बहुत
कुछ दांव पर लगा
है। कम से कम
एनटीए को अपनी कमियों
को तत्काल दूर करने की
जरूरत है।
देखा जाएं तो
दो दशक पहले भी
पेपर लीक होते थे।
हालांकि घटनाएं सिर्फ कुछ जगह तक
सीमित रहती थीं। आज
सोशल मीडिया आने से पेपर
लीक जैसी घटनाएं छिपती
नहीं रही है बल्कि
जगजाहिर हो रही हैं।
देश में शिक्षा एक
कमोडिटी हो गई है।
यानी सबकुछ व्यवसायिक नजरिये से देखा जाने
लगा है। एग्जामिशन पैटर्न
पुराना हो चुका है।
कई बार बच्चे पढ़ाई
से जी चुराते हैं।
विद्यार्थियों के साथ-साथ
उनके अभिभावक भी चाहते हैं
कि किसी तरह बच्चा
पास हो जाए। इसके
लिए वे कुछ भी
करने को तैयार रहते
हैं। पेपर सेट तैयार
होने से लेकर परीक्षा
केंद्र उनके वितरण तक
सैकड़ों लोग शामिल रहते
हैं। जबकि परीक्षा में
गोपनीयता रखना सर्वोपरि है
क्योंकि प्रश्न पत्र के माध्यम
से ही विद्यार्थी का
मूल्यांकन होता है। आज
भी पेपर सेट करने
वाला शिक्षक हाथ से लिखता
है। फिर किसी कर्मचारी
द्वारा कंप्यूटर पर टाइप किया
जाता है। प्रश्नपत्र बोर्ड
के पास जाने के
बाद प्रिंटिंग के लिए जाता
है। प्रिंटिंग के बाद पैकेजिंग
होती है। ऐसे में
कोई एक कमजोर कड़ी
भी दवाब या पैसे
के लालच में पेपर
लीक जैसा गुनाह कर
बैठती है। ऐसे में
आज के तकनीक के
दौर में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर
डवलप करके पेपर लीक
जैसी घटनाओं पर कुछ हत
तक काबू पाया जा
सकता है। इससे पेपर
सेट होने और उसके
परीक्षा केंद्र में वितरित होने
के दौरान कम से कम
व्यक्तियों का दखल होगा
तो लीक होने की
संभावना न के बराबर
होगी। हालांकि इसके लिए डिजिटल
इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने की जरूरत
होगी। इसके लिए प्रश्न
पत्र बनाने वाले को निर्धारित
फॉर्मेट के आधार पर
प्रश्नपत्र तैयार करना चाहिए। इसके
सीबीएसई के पोर्टल पर
एनक्रिप्ट होकर सेव होने
से पेपर लीक होना
मुश्किल हो सकता है।
इसके अलावा एग्जामिमेशन सेंटर को डिजिटल नेटवर्क
के साथ जोड़ा जाना
चाहिए। परीक्षा के दिन ही
तीस मिनट पहले पेपर
एग्जामिशन सेंटर के पोर्टल पर
जारी करना होगा। साथ
ही प्रश्नपत्र उसी कंपयूटर पर
खुले जिसका स्टैटिक आईपी सर्वर के
साथ रजिस्टर्ड हो। उसे खोलने
के लिए ओटीपी व
कोड का प्रयोग किया
जा सकता हो।
दूसरी ओर शिक्षा नीति
को आज भी अंग्रेजी
चश्मे से देखा जाता
है। प्रतियोगी परीक्षाएं भी ऐसी हैं
जिससे परीक्षार्थी की समझ का
आकलन नहीं हो पाता।
ये परीक्षाएं रटने की प्रवृत्ति
को ही बढ़ावा देती
हैं। परीक्षाओं में सवाल ऐसे
क्यों नहीं किए जाएं
जिससे इन परीक्षाओं में
बैठने वालों की समझ का
पता चल सके। लेकिन
धन कमाने की प्रवृत्ति के
घनचक्कर में करोड़ों छात्रों
का भविष्य दांव पर तो
है ही, येनकेन प्रकारेण
ये पास भी हो
गए तो इनकी पहली
प्राथमिकता ध नही होगी।
आज के अस्पतालों से
लेकर सड़कें - पुल पुलिया में
देखा जा सकता है।
हद तो तब हो
जाती है जब नकली
अंग प्रत्यारोपण, नकली दवाइयां, झूठे
टेस्ट व झूठे क्लेम
के बीच कमीशनखोरी जैसे
मामले सामने आते है। इनके
लिए देश, राष्ट्र सब
गौण हो जाते है।
उनके इस खेल में
कुछ धनकुबेर अभिभावक साथ देते है।
ये उन्हीं अभिभावकों की काली छाया
है, जिससे अब लगभग डेढ़
करोड़ बच्च्चों का भविष्य प्रभावित
हुआ है। देखा जाएं
तो देश में कानूनों
की कमी नहीं है।
लोगों की कमी नहीं
है। सरकारें रोज नए कानून
लाती रहती हैं। उसके
कर्मचारी- नौकर ही कानूनों
की धज्जियां उड़ाते रहते हैं। केन्द्र
सरकार का लोक परीक्षा-
अनुचित साधन निवारण बिल-
2024 लोकसभा में पास हुआ
था। कोई प्रभाव नहीं
पड़ा। देश भर में
छात्रों के भविष्य से
पेपर माफिया होली खेल रहा
है। जम्मू से आंध्र, गुजरात,
महाराष्ट्र, असम चारों ओर
त्राहि-त्राहि मची रहती है।
सारी जांचें मिलकर भी इन परीक्षा
लेने वालों के प्रति विश्वास
पैदा नहीं कर पाईं।
पेपर लीक के
आंकड़ों में बिहार, यूपी
व राजस्थान सबसे आगे है।
रीट-2021, लाइब्रेरियन भर्ती परीक्षा, वरिष्ठ अध्यापक भर्ती परीक्षा, स्वास्थ्य सहायक संविदा भर्ती परीक्षा, पुलिस कांस्टेबल भर्ती परीक्षा, कोर्ट एलडीसी भर्ती परीक्षा सब में पेपर
लीक हुएं आज बड़े
स्कूलों में स्वयं अध्यापक
ट्यूशन पर जोर देकर
अपनी आय बढ़ाने में
लगे हैं। कौन रोक
रहा है उनको? नगर-नगर में कोचिंग
संस्थाओं की बाढ़ क्यों
आ गई? क्योंकि सरकारी
ढांचा चरमरा गया है। शिक्षण
स्पर्धा करने में सक्षम
नहीं है। दूसरी ओर
शिक्षा नीति को आज
भी अंग्रेजी चश्मे से देखा जाता
है। प्रतियोगी परीक्षाएं भी ऐसी हैं
जिससे परीक्षार्थी की समझ का
आकलन नहीं हो पाता।
ये परीक्षाएं रटने की प्रवृत्ति
को ही बढ़ावा देती
हैं। परीक्षाओं में सवाल ऐसे
क्यों नहीं किए जाएं
जिससे इन परीक्षाओं में
बैठने वालों की समझ का
पता चल सके। सिर्फ
नंबर देने के लिए
ही परीक्षाएं क्यों? शिक्षा नीति के लिए
वरिष्ठ शिक्षकों की समिति होनी
चाहिए। पाठ्क्रम भी समिति के
सदस्य ही सर्वसम्मति से
तय करें। शिक्षा से जुड़े हर
व्यक्ति का अलग से
गुणवत्ता टेस्ट भी होना चाहिए।
केवल वरिष्ठता का आधार ही
उपयोगी नहीं है। परीक्षा
क्षेत्र के लोगों का
तो मनोवैज्ञानिक परीक्षण भी अनिवार्य होना
चाहिए। शिक्षा मंत्री-सचिव जैसे पदों
पर बैठे लोग भी
आज दूध के धुले
नहीं रहे। बड़ा लालच
इनको भी फांस सकता
है। शिक्षा एक पवित्र कार्य
है, पूजा है। कोई
अहंकार बीच में नहीं
आना चाहिए। मतलब साफ है
सरकारों का दृढ़ संकल्प
कारगर होना ही चाहिए।
वरना बच्चे लुटते रहेंगे, पास होकर भी
बेरोजगार घूमते रहेंगे। समानता का अधिकार, शिक्षा
का अधिकार सरकारी उदासीनता की भेंट इसी
तरह चढ़ते रहेंगे। हाल
यह है कि अध्यापकों-अधिकारियों-शोध ग्रंथों सभी
की तो गुणवत्ता सवालों
के घेरे में हैं।
ऊपर से पेपर-लीक
में इतना बड़ा धन,
मानो लाटरी खुल गई। बड़ी
सारी चुनौती है जिससे निपटने
की शुरुआत गंभीर शिक्षा मंत्री, शिक्षा अधिकारी से लेकर सुदृढ़
ढांचे तक से करनी
होगी।
कई पेपर पहले भी हो चुके हैं लीक
कुछ ही समय
पहले यूपी व बिहार
पुलिस भर्ती परीक्षा का पेपर सोशल
मीडिया पर वायरल हो
गया था. जिसके बाद
पुलिस ने मामले में
कई लोगों पर केस दर्ज
किया था. साथ ही
इस परीक्षा को रद्द कर
दिया गया था. इसके
अलावा साल 2022 में पेपर लीक
होने के चलते बिहार
सिविल सेवा परीक्षा भी
रद्द हो चुकी है.
इनके अलावा बिहार कर्मचारी चयन आयोग की
परीक्षा 2017, बिहार कर्मचारी चयन आयोग की
इंटर स्तरीय परीक्षा 2017 परीक्षा आदि भी पेपर
लीक का शिकार हो
चुकी हैं. प्रतियोगी एग्जाम
के अलावा राज्य में 10वीं -12वीं एग्जाम के
पेपर लीक के मामले
कई बार चर्चा का
विषय बनते नजर आए
हैं. हालांकि सरकार की ओर से
पेपर लीक कि घटनाओं
को गंभीरता से लिया जा
रहा है. लेकिन ये
सिलसिला थम नहीं रहा.
देश में होने वाले
पेपर लीक के मामले
कहीं ना कहीं बिहार
से कनेक्ट ही होते हैं.
हाल ही में हुई
यूजीसी नेट परीक्षा पेपर
लीक होने के कारण
रद्द कर दी गई
है. एजेंसी की मानें तो
एग्जाम पेपर डार्क नेट
पर लीक हो गया
था. जिसके बाद इसे रद्द
करने का निर्णय लिया
गया. इस परीक्षा में
करीब 09 लाख कैंडिडेट्स शामिल
हुए थे. अब उम्मीदवारों
को परीक्षा की नई तारीख
आने का इंतजार है.
सीएसआईआर नेट जून 2024 परीक्षा
स्थगित कर दी गई
है. नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) ने इस संबंध
में एक अधिसूचना जारी
की है. परीक्षा 25 से
27 जून 2024 तक देशभर के
विभिन्न परीक्षा केंद्रों पर आयोजित होने
वाली थी. नई परीक्षा
तिथियों की घोषणा जल्द
ही की जाएगी.
परीक्षा प्रणाली पर माफिया तंत्र हावी
माफिया तंत्र और पैसों वालों
की सांठ गांठ से
पेपर लीक के जरिए
लाखों रुपए देकर सीट
खरीद कर पैसे वाले
शिक्षा और परीक्षा प्रणाली
को धता बता रहे
हैं। वहीं, इस तरह के
अपराधिक कृत्य से प्रतिभावान निम्न
वर्गीय और मध्यम वर्गीय
बच्चों का भविष्य अंधकार
में डाला जा रहा
है। हालत यह हो
गई है कि जब
छात्र परीक्षा देकर आते हैं
तो यही डर सताता
है कि पेपर लीक
की खबर कभी भी
आ जाएगी और उनका भविष्य
लटक जाएगा । यह घटनाएं
तब से ज्यादा बढ़ी
हैं जब से छज्।
इन परीक्षाओं को कंडक्ट कर
रहा है। सरकार को
चाहिए कि छात्रों के
भविष्य से खिलवाड़ बंद
किया जाए और सभी
तरह के एग्जामिनेशन के
लिए कोई बेहतर विकल्प
की तलाश करते हुए
फुल प्रूफ प्रणाली विकसित की जाए ताकि
आम छात्रों का शिक्षा व्यवस्था
पर भरोसा बना रहे और
देश के आर्थिक विकास
में सहायक बन सके। लंबे
संघर्ष के बाद वैश्विक
समुदाय में हमने अपना
स्थान बनाया है. पर कुछ
ऐसे मामले भी हैं, जो
देश के लिए चिंता
का विषय बने हुए
हैं. आज देश की
शिक्षा व्यवस्था में असामाजिक तत्व
और भ्रष्ट प्रवृत्तियां लगातार बढ़ रही हैं,
जो व्यवस्था को खोखला कर
रही हैं. इन मुद्दों
पर चर्चा और तत्काल निर्णय
लेने की जरूरत है.
जो माफिया आज की परीक्षा
के पेपर लीक में
शामिल है, वह तीन
वर्ष पहले भी ऐसी
गतिविधियों में शामिल था.
इसका सीधा अर्थ यह
निकलता है कि देश
में कानून इतना शिथिल है
अथवा माफियाओं की पहुंच इतनी
ज्यादा है कि उनके
खिलाफ कार्रवाई नहीं होती. ऐसी
कोई खबर मीडिया नहीं
छाप रहा है कि
जो पेपर आज से
चार-पांच साल पहले
लीक हुए उसमें शामिल
अपराधियों में से किसी
को सजा हुई है
या नहीं. और कितनी कठोर
सजा हुई. हमारे यहां
लोगों को मालूम है
कि हमारी न्याय व्यवस्था इतनी शिथिल है
कि मामला लटकता जायेगा और कुछ होगा
नहीं. प्रश्न है कि एक
व्यक्ति या चार व्यक्ति
मिलकर एक परीक्षा का
प्रश्नपत्र लीक करते हैं,
और 48 लाख या 13 लाख
लोगों पर प्रभाव पड़ता
है, इसमें यदि उनके परिवारवालों
को जोड़ लिया जाए,
तो करोड़ों लोग इससे प्रभावित
होते हैं. कितने परिवारों
पर आर्थिक दबाव पड़ता है.
इस बात की कोई
संभावना नहीं है कि
पेपर लीक मामले में
शामिल लोगों को कोई सजा
हो भी पायेगी. हमारे
देश के नियम इतने
शिथिल हैं कि इतनी
सारी घटनाएं होने के बाद
भी आज तक किसी
नेता या मंत्री को
उत्तरदायी क्यों नहीं माना गया?
यह स्थिति चिंताजनक और दुर्भाग्यपूर्ण है.
जहां तक प्रश्न है
कि किस तरह ये
अपराधी इस मामले को
अंजाम देते आ रहे
हैं, तो इसका उत्तर
है कि या तो
प्रतिष्ठान इनके साथ मिला
हुआ है या यह
उस एजेंसी की अक्षमता है
और उसके भी भ्रष्टाचार
में लिप्त होने की संभावना
भी है, जिसके ऊपर
इस परीक्षा की जिम्मेदारी है.
इस तरह की संभावनाओं
पर अब विचार करना
पड़ेगा. इस समस्या के
समाधान के लिए देश
के जाने-माने शिक्षाविदों
के साथ बात करनी
चाहिए, इसमें किसी तरह की
कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए.
सभी सरकारों को मिलकर एक
नयी शिक्षा प्रणाली के लिए आगे
बढ़ना चाहिए और यह संभव
है. इसके बाद उन
कारणों का पता लगाना
चाहिए जिसके चलते यह स्थिति
निर्मित हुई है.
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