जहां होता है राधा कृष्ण की दीवानगी का साक्षात दर्शन
दुनिया
जहान
में
श्रीकृष्ण
के
मंदिर
तो
शहर-शहर
घर-घर
में
है,
लेकिन
वृंदावन
में
पग
पड़ते
ही
उनकी
सारी
लीलाएं
आंखों
के
सामने
बरबस
ही
तैरने
लगती
है।
जन्मभूमि
मथुरा,
गोकुल,
वृंदावन,
निधिवन,
बरसाना,
गोवर्धन
सहित
ब्रज
के
किसी
कोने
में
खड़े
हो
जाइए,
उंगलियां
खुद-ब-खुद
वहां
के
मिट्टी
की
तिलक
लगाने
के
लिए
फड़फडाने
लग
जाती
है।
खासकर
जगद्गुरु
एवं
ख्यातिलब्ध
कथावाचक
कृपालुजी
महराज
के
अथक
प्रयासो
से
वृंदावन
में
निर्मित
प्रेम
मंदिर
में
जब
कदम
पड़ते
है
तो
लगता
है
सचमुच
हम
राधा-कृष्ण
के
प्रेम
लीलाओं
को
साक्षात
आत्मसात
कर
रहे
हो।
भगवान
श्रीकृष्ण
और
राधा
को
समर्पित
इस
मन्दिर
में
रंग-बिरंगे
फूलो
से
सुसजिज्त
राम-सीता
का
भी
खूबसूरत
महल
बरबस
ही
अपनी
ओेर
आकर्षित
करता
है।
लेजर
लाइट
एंड
साउंड
के
बीच
पल-पल
बदलती
सतरंगी
रोशनी
में
यहां
की
शांति
और
सुंदरता
भक्तों
को
घंटों
रुकने
के
लिए
विवस
कर
देती
है।
संगमरमर
के
पत्थरों
से
निर्मित
94 कलामंडित
स्तम्भ
मंदिर
की
खूबसूरती
में
न
सिर्फ
चार-चांद
लगा
रहे
हैं,
बल्कि
किंकिरी
और
मंजरी
सखियों
के
विग्रह
को
भी
दर्शाते
हैं.
मंदिर
में
स्थापित
श्री
कृष्ण
की
झाकियों
को
इतने
सधे
अंदाज
में
पिरोया
गया
है
कि
पलके
झपकना
ही
भूल
जाती
है।
राधा
कृष्ण
की
छवि
के
दर्शन
में
भक्त
इतना
लीन
हो
जाता
है
कि
पता
ही
नहीं
चलता
कब
चार
घंटे
गुजर
गए।
मंदिर
प्रांगण
में
फव्वारे,
श्रीकृष्ण
और
राधा
की
झांकियां,
श्रीगोवर्धन
धारणलीला,
कालिया
नाग
दमनलीला,
झूलन
लीलाओं
को
बहुत
ही
खूबसूरत
व
बेहतरीन
तरीके
से
चित्रण
किया
गया
है।
ढंग
से
दर्शाएं
गए
हैं।
साथ
ही
कृष्ण
लीला
का
भी
मंचन
आकृतियों
के
द्वारा
मंदिर
के
प्रांगण
में
लगाया
गया
है
जी हां, भगवान श्रीकृष्ण की क्रीडा स्थली कहे जाने वाले वृंदावन का प्रेम मंदिर ’प्रेम’ दीवानगी का साक्षात स्थली है. ये मंदिर भगवान श्रीकृष्ण और राधा के न सिर्फ प्रेम की निशानी है, बल्कि अत्यंत भव्य धार्मिक एवं आध्यात्मिक परिसर है। या यूं कहे वास्तुकला का बेजोड़ नमूना प्रेम मंदिर भक्ति एवं आस्था का वह अनोखा संगम है, जिसमें भक्ति और ईश्वरीय प्रेम की अलौकिक धारा प्रवाहित होती है। सुंदर हरे-भरे बगीचों से युक्त सायं के समय लेजर लाइट एंड साउंड के बीच पल-पल बदलती सतरंगी रोशनी में चमचमाता मंदिर अपनी खूबसूरती की एक अलग ही छटा बिखेरता है। यही कारण है कि महज 12 वर्षो में ही प्रेम मंदिर न केवल वृंदावन, बल्कि पूरे ब्रज क्षेत्र में नव-पर्यटन आकर्षण के रूप में स्थापित हो चुका है।
मान्यता है कि इस मंदिर में जोड़े में दर्शन करने से सभी मुदार पूरी होती है और आपसी प्रेम बढ़ता है. लगभग पांच सौ करोड़ की लागत से निर्मित इस मंदिर का उद्घाटन 15-17 फरवरी, 2012 को गोलोकवासी जगद्गुरु कृपालुजी महाराज के कर-कमलों द्वारा संपन्न हुआ था। लगभग 30,000 टन इटैलियन संगमरमरों और विशेष कूका रोबोटिक मशीनों द्वारा नक्काशीकृत इस भव्य एवं दिव्य मंदिर के अधिष्ठात्र भगवान श्रीकृष्ण एवं अधिष्ठात्री देवी राधारानी हैं।
मंदिर के सामने लगभग 73,000 वर्ग फीट, मीनार-रहित तथा गुंबदनुमा बने यहां के सत्संग हॉल में लगभग 25,000 लोग एक साथ जमा हो सकते हैं। मंदिर की ऊंचाई 125 फीट, लंबाई 122 फीट एवं चौड़ाई 115 फीट है. मंदिर की नींव 20 फीट गहरी है. इसमें ग्रेनाइट भरा गया है ताकि भूकंप जैसी स्थिति में भी मंदिर को नुकसान न पहुंचे. इसके निर्माण में किसी भी प्रकार के लोहे या सीमेंट का उपयोग नहीं किया गया है.
मंदिर की सभी ईंटें और पत्थर बिना किसी जोड़ के एक साथ रखे गए हैं. यह मंदिर एक अद्भुत इंजीनियरिंग का प्रतीक है, उस इंजीनियरिंग का, जो प्राचीन भारत में मंदिरों को बनाए जाने में इस्तेमाल की जाती थी.मंदिर के गुंबद के ऊपर लगे पीतल के बड़े-बड़े घडे भक्तों को और भी आकर्षित करते हैं. हर 30 सेकेंड में मंदिर की लाइटें अपना रंग भी बदलती हैं. मंदिर में एक विशाल झूमर भी दिखाई देता है और श्रद्धालुओं की नजर इस झूमर से नहीं हटती है.
मंदिर के मुख्य द्वार
पर मयूर आकृति के
8 नक्काशी वाले तोरण लगाए
गए है। मंदिर परिसर
में कृपालु महाराज की झांकियां भी
बनाई गई है। मंदिर
खुलने के साथ ही
मंदिर में सत्संग की
आवाजें शुरू हो जाती
हैं. प्रतिदिन यहां हजारों की
संख्या में श्रद्धालु आकर
भजन कीर्तन एवं सत्संग करते
हैं. मंदिर के अंदर बैठकर
श्रद्धालु कृष्णमय हो जाते हैं
और इन सुखद क्षणों
का आनंद लेते हैं।
कहते हैं कि राधा-कृष्ण के दर्शन से
श्रद्धालुओं को सुकून मिलता
है।
दावा है कि आज से तकरीबन पांच हजार वर्ष पूर्व जिस वृंदावन में भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी ने जीवों को महारास का रस प्रदान किया था, उसी दिव्य रस को विश्व के पंचम मूल जगद्गुरुकृपालु जी महाराज ने प्रेम मंदिर के रूप में स्थापित किया है। बता दें, कृपालु महाराज भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे। भगवान श्रीकृष्ण के प्रेम के प्रतीक कहे जाने वाले प्रेम मंदिर का निर्माण भी उन्होंने ही कराया था. प्रेम मंदिर का निर्माण 2001 में शुरू हुआ और मंदिर 2012 में बनकर तैयार हो गया. मंदिर को बनने में करीब 11 वर्ष का समय लगा।
कृपालुजी महराज का कहना था श्रीमद्भागवत ग्रंथ ही वेदांत का भाष्य है। उसी श्रीमद्भागवत को प्रेम मंदिर के स्वरूप में संसार के समक्ष प्रस्तुत किया गया है। मंदिर में प्रवेश करते ही हृदय आनंद से आह्लादित हो उठता है। प्रेम मंदिर की बाहरी दीवारों पर श्रीमद्भागवत के दशम स्कंध में वर्णित श्रीकृष्ण लीलाओं का जीवंत चित्रण मन को मोह लेता है। मंदिर के भूमितल की दीवारों पर श्रीकृष्ण की मनमोहक ब्रजलीलाओं के दर्शन होते हैं।
प्रथम तल की बाहरी दीवारों पर मथुरा एवं द्वारका की लीलाएं क्रमबद्ध रूप से चित्रित हैं। कुब्जा-उद्धार, कंस-वध, देवकी-वसुदेव की कारागृह से मुक्ति, सान्दीपनी मुनि के गुरुकुल में जाकर कृष्ण-बलराम का विद्याध्ययन, रुक्मिणी-हरण, सोलह हजार एक सौ आठ रानियों का वरण, नारद जी द्वारा श्रीकृष्ण की गृहस्थावस्था के दर्शन, श्रीकृष्ण का अपने अश्रुओं द्वारा सुदामा के चरण पखारना, सुदामा एवं उनके परिवार का एक रात्रि में काया-पलट, कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण का गोपियों से पुनर्मिलन, रुक्मिणी आदि द्वारिका की रानियों का श्रीराधा एवं गोपियों के साथ मिलन, श्रीकृष्ण द्वारा उद्धव को अंतिम उपदेश एवं दर्शन तत्पश्चात स्वधाम-गमन आदि लीलाएं भी चित्रित की गई हैं। विशेष कर श्रीकृष्ण का राधाजी के चरणों में अपना मुकुट रखना एवं उनकी चरण सेवा करना आदि दृश्य प्रेम तत्व की प्रधानता का निरुपण कर प्रेम मंदिर के नाम को चरितार्थ करता है।
श्रद्धालु जितेन्द्र माझी का कहना है कि प्रेम मंदिर पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. इस मनमोहक मंदिर को देखने के लिए देश और विदेश से लोग वृंदावन आते हैं. इस मंदिर की सुंदरता हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देती है. यही वजह है कि भक्त यहां पर घंटो रूकने के लिए मजबूर हो जाते हैं. प्रेम मंदिर भगवान श्री कृष्ण राधा और राम-सीता को समर्पित है. होली औऱ दीवाली में मंदिर का नजारा देखने लायक होता है.
मंदिर खासियत ये भी है कि ये दिन में बिल्कुल सफेद दिखाई देता है और शाम को ये अलग-अलग रंग में नजर आता है. ताजमहल की तरह ही प्रेम मंदिर भी राधा-कृष्ण के प्रेम की कहानी कहता है। देखा जाएं तो जब भी राधा और कृष्ण की बात होती है तो इस बात का जिक्र अवश्य होता है कि संसार में आध्यात्मिक प्रेम से राधा-कान्हा के प्रेम ने ही कराया है। कृष्ण का प्रेम सिखाता है कि प्रेम केवल प्रेमी-प्रेमिका के बीच ही नहीं बल्कि सखी -साथियों, माता-पिता, भाई बहनों, पशु-पक्षी सभी से हो सकता है। वैसे कृष्ण की नगरी में प्रेम ही प्रेम भरा हुआ है।
होली और दिवाली होती है खास
होली और दिवाली पर प्रेम मंदिर देखने लायक होता है. इसे देखने के लिए देश-विदेश से लोग यहां आते हैं. दरअसल ब्रज ही होली तो पूरे विश्व में ही प्रसिद्ध है. ऐसे में होली के मौके पर प्रेम मंदिर का वातावरण अद्भूत होता है. इसी के साथ दिवाली के मौके पर प्रेम मंदिर अपनी सुंदरता के चरम पर होता है. इसकी लाइटिंग दिवाली के मौके पर देखने वाली होती है.
मंदिर को इतना भव्य
और दिव्य बनाया गया है कि
इस मंदिर में आकर एक
बार राधा कृष्ण की
छवि के दर्शन कर
लेता है वह भक्ति
में लीन हो जाता
है। मंदिर प्रांगण में राधा कृष्ण
की लीलाओं का बेहतरीन तरीके
से चित्रण किया गया है।
देखा जाएं तो वृंदावन
का एक प्राचीन अतीत
है, जो हिंदू संस्कृति
और इतिहास से जुड़ा है.
16वीं और 17वीं शताब्दी
में मुसलमानों और हिंदू सम्राटों
के बीच एक स्पष्ट
संधि के परिणामस्वरूप इसे
स्थापित किया गया था.
यह लंबे समय से
एक महत्वपूर्ण हिंदू तीर्थ स्थल है. इस
मंदिर को देखने और
भगवान राधा-कृष्ण का
दर्शन करने लोग देश-विदेश से वृंदावन आते
हैं।
कैसे पहुंचा जाए
मथुरा रेलवे स्टेशन प्रेम मंदिर से लगभग 12 किमी
दूर है और पास
का हवाई अड्डा आगरा
है जो 54 किमी दूर है।
प्रेम मंदिर सड़क मार्ग से
भी अच्छी तरह जुड़ा हुआ
है। अगर आप ट्रेन
से वृंदावन आ रहे हैं
तो यह 12 किलोमीटर की दूरी पर
है. मथुरा रेलवे स्टेशन से ऑटो के
जरिए आप प्रेम मंदिर
पहुंच सकते हैं. इसके
अलावा आप अपने निजी
वाहन से आ रहे
हैं और यमुना एक्सप्रेसवे
आपका रूट है तो
आप माट एक्सप्रेसवे कट
से वृंदावन में एंट्री कर
सकते हैं.
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