मुगल आक्रांताओं के धार्मिक बर्बरता की जिंदा सबूत है श्रीकृष्ण जन्मभूमि
ब्रजभूमि का कोना-कोना भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का गवाह रहा है. यहां ऐसे अनेक स्थान हैं, जहां श्रीकृष्ण के जन्म से लेकर किशोरावस्था तक की घटनाओं की निशानियां मिलती हैं. श्रीकृष्ण सखा-सखियों के साथ रास रचाते थे. उनके हाथ में मुरली, सिर पर मोर पंख का मुकुट और आस-पास गाय-बछड़े होते थे. उन्होंने वृंदावन को जग में सबसे न्यारा बताया था, इसलिए वृंदावन के पग-पग में राधा-कृष्ण की गूंज सुनाई देती है.लेकिन इस दिव्य एवं मनोरम स्थली पर मुगल आक्रांताओ की क्रुरता का ऐसा धब्बा लगा है, जो लाखों-करोड़ों आस्थावानों के दिल पर सीधा चोट करता है। अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि, काशी के बाबा विश्वनाथ मंदिर की तरह मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर भी मुगल आक्रांताओं की धार्मिक उन्माद एवं क्रूरता की दास्तां को देखा व समझा जा सकता है। अपने आराध्य की एक झलक पाने को दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं। मथुरा- वृंदावन के साथ ही गोकुल, बरसाना, नंदगांव, बलदेव, गोवर्धन में आराध्य के दर्शन को लाखों श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। लेकिन जब श्रद्धालु अपने आराध्य की स्थली पर मत्था टेकने पहुंचता है तो मुगलों की क्रूरता देख उसका खून खौल उठता है। हालांकि जब उसके जेहन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का चेहरा सामने आता है तो वो इस उम्मींद में आगे बढ़ जाता है एक न एक दिन श्रीराम मंदिर जैसा न्याय उसे जरुर मिलेगा। बता दें, जिस जगह पर आज कृष्ण जन्मस्थान है, वह पांच हजार साल पहले मल्लपुरा क्षेत्र के कटरा केशव देव में राजा कंस का कारागार हुआ करता था। इसी कारागार में रोहिणी नक्षत्र में आधी रात को भगवान कृष्ण ने जन्म लिया था। इस जन्मभूमि पर सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य द्वारा बनवाए गए भव्य मंदिर पर महमूद गजनवी ने 1017 ई. में आक्रमण कर इसे लूटने के बाद न सिर्फ तोड़ दिया था, बल्कि मंदिर की भव्यता से चिढ़कर औरंगजेब ने 1669 में दोबारा तुड़वाकर इसके एक भाग पर ईदगाह का निर्माण करा दिया, जो आज भी मौजूद है। यहां प्राप्त अवशेषों से पता चलता है कि इस मंदिर के चारों ओर एक ऊंची दीवार का परकोटा मौजूद था। मंदिर के दक्षिण पश्चिम कोने में एक कुआं भी बनवाया गया था। इस कुएं से पानी 60 फीट की ऊंचाई तक ले जाकर मंदिर के प्रांगण में बने फव्वारे को चलाया जाता था। इस स्थान पर उस कुएं और बुर्ज के अवशेष अभी तक मौजूद है। कथित मस्जिद के दीवारों पर आज भी कमल के आकार का एक स्तंभ, व शेषनाग की एक प्रतिकृति है जो हिंदू देवताओं में से एक हैं और जिन्होंने जन्म की रात भगवान कृष्ण की रक्षा की थी
सुरेश गांधी
मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि पर बना मंदिर आज भी लाखों-करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र बना हुआ है। लेकिन हाल के दौर में चमत्कार की ढेरों कहानियां समेटे श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर मुगल आक्रांता औरंगजेब, महमूद गजनवी और सिकंदर लोदी की क्रूरता की दास्तां बया कर रहा है। जन्मस्थान पर बने भव्य मंदिर के कुछ हिस्सों को तोड़कर बनायी गयी कथित मस्जिद की दीवारें चीख-चीख कर बता रही है कि वह मंदिर है। मथुरा नगर, वृंदावन, गोवर्धन, गोकुल, बरसाना और नंदगांव का अस्तित्व श्रीकृष्ण के जन्म से भी पहले से है। पौराणिक इतिहास के अनुसार, करीब 5 हजार साल पहले भगवान विष्णु ने अपना 22वां अवतार मनुष्य योनि में कृष्ण के रूप में लिया था। वे द्वापर युग में भद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की रात 12 बजे कंस की कारागार (जेल) में देवकी के गर्भ से जन्मे थे। तब कंस (एक राक्षस) मथुरा का राजा था और उसने अपनी बहन देवकी और उनके पति वसुदेव महाराज को बंदी बनाकर कारागार में डलवा दिया था। कृष्ण कारागार के अंदर ही देवकी की 8वीं संतान के रूप में पैदा हुए। रंग सांवला कुछ नीला होने की वजह से उन्हें कृष्ण पुकारा गया।
फिरहाल, अयोध्या और काशी के साथ मंदिरों के पास में बनी मस्जिदों के कारण मथुरा भी चर्चित है। यहां श्रीकृष्ण जन्मस्थान और शाही ईदगाह मस्जिद की एक ही दीवार है। तकरीबन 5300 साल पहले मल्लपुरा क्षेत्र के कटरा केशव देव में कंस का कारागार हुआ करता था। इसी कारागार में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। इसी स्थल को भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि है। भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र प्रद्युम्न के बेटे अनिरुद्ध के पुत्र बज्रनाभ ने अपने कुलदेवता की स्मृति में यहां मंदिर निर्माण कराया था। उस समय मथुरा की ख्याति संस्कृति और कला के बड़े केंद्र के रूप में थी।
खुदाई में मिले संस्कृत के शिलालेख के मुताबिक 1150 ईस्वी में राजा विजयपाल देव के शासनकाल में श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर एक नये मंदिर का निर्माण हुआ था। इस मंदिर को सिकंदर लोदी के शासन काल में नष्ट कर दिया गया। इसके बाद जहांगीर के शासनकाल के दौरान 1618 ईसवीं में ओरछा के राजा वीर सिंह बुंदेला ने जन्मभूमि मंदिर निर्माण कराया था। इसे मुगल शासक औरंगजेब ने 1669 में ध्वस्त कर एक हिस्से में शाही मस्जिद ईदगाह का निर्माण करा दिया। इसके प्रमाण यहां से मिले शिलालेखों पर मिले हैं। शोडास के राज्य में वसु नामक व्यक्ति ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर मंदिर, उसके तोरण-द्वार और वेदिका का निर्माण कराया था।सम्राट विक्रमादित्य के शासन काल
में भी 400 ईसवी में भी
यहां मंदिर निर्माण कराया गया। श्रीकृष्ण जन्मस्थान
सेवा संस्थान के विशेष कार्याधिकारी
विजय बहादुर ने बताया कि
उपरोक्त इतिहास से जुड़ा बोर्ड
श्रीकृष्ण जन्मस्थान परिसर में लगा हुआ
है। इसका अवलोकन यहां
आने वाले श्रद्धालु करते
हैं। इसके बाद गोवर्धन
युद्ध के दौरान मराठा
शासकों ने आगरा-मथुरा
पर आधिपत्य जमा लिया। उन्होंने
मस्जिद हटा कर श्रीकृष्ण
मंदिर निर्माण कराने का प्रयास किया,
लेकिन तब तक ईस्ट
इंडिया कंपनी का शासन आ
गया। ब्रिटिश सरकार ने सन् 1803 में
13.37 एकड़ जमीन कटरा केशव
देव के नाम नजूल
भूमि घोषित कर दी। सन्
1815 में बनारस के राजा पटनीमल
ने इसे अंग्रेजों से
खरीद लिया। मुस्लिम पक्ष के स्वामित्व
का दावा खारिज कर
दिया गया और 1860 में
बनारस के राजा के
वारिस राजा नरसिंह दास
के पक्ष में डिक्री
हो गई। इसके बाद
हिन्दू-मुस्लिम पक्ष के बीच
विवाद चलता रहा।
1920 के फैसले में मुस्लिम पक्ष को निराशा मिली। कोर्ट ने कहा कि 13.37 एकड़ जमीन पर मुस्लिम पक्ष का कोई अधिकार नहीं है। 1944 में पूरी जमीन का पं मदनमोहन मालवीय और दो अन्य के नाम बैनामा कर दिया गया। जेके बिड़ला ने इसकी कीमत का भुगतान किया। इससे पहले 1935 में मस्जिद ईदगाह के केस को एक समझौते के आधार पर तय किया गया था। बिड़ला ने 21 फरवरी 1951 को श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की. जयदयाल डालमिया के साथ मिलकर वे इस जमीन पर मंदिर पर बनाने के इच्छुक थे.
1953 में उद्योगपतियों की
सहायता से मंदिर का
निर्माण शुरू हुआ और
फिर 16 सितंबर 1958 को श्रीकृष्ण केशव
देव मंदिर का वर्तमान स्वरूप
बनकर तैयार हो पाया. इसी
साल मुस्लिम पक्ष का एक
केस खारिज कर दिया गया।
1977 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ बना
जो बाद में संस्थान
बन गया। इलाहाबाद उच्च
न्यायालय ने शाई ईदगाह
मस्जिद का सर्वेक्षण करने
का आदेश दिया है,
जो कथित तौर पर
मंदिर के ऊपर बनाई
गई थी। सर्वेक्षण में
कहा गया है कि
“यह तथ्य और इतिहास
की बात है कि
औरंगजेब ने भगवान श्री
कृष्ण के जन्म स्थान
पर स्थित मंदिर सहित बड़ी संख्या
में हिंदू धार्मिक स्थलों और तीर्थों को
बहाल करने का आदेश
जारी किया है।“
अब रामलला विराजमान की तर्ज पर श्री कृष्ण विराजमान की अंतरंग सखी के रूप में एक याचिका दायर की गई है. श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद को लेकर 25 सितंबर 2020 से मुकदमा कोर्ट में चल रहा है. याचिका में कहा गया है कि शाही ईदगाह ट्रस्ट ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर कब्जा किया है और एक हिस्से पर ढांचे का निर्माण कर लिया है. भगवान कृष्ण का जन्मस्थान उसी ढांचे के नीचे स्थित है. याचिका में ईदगाह मस्जिद को हटाए जाने और जमीन पर मालिकाना हक की मांग की गई है.आरटीआई में दी गई जानकारी के अनुसार अंग्रेजों के शासन के दौरान 1920 में इलाहाबाद से प्रकाशित गजट में यूपी के विभिन्न जिलों के 39 स्मारकों की सूची है. इसमें 37 नंबर पर कटरा केशवदेव भूमि पर श्रीकृष्ण जन्मभूमि का उल्लेख है. इस जानकारी के सामने आने के बाद पूरे मामले को अब अहम सबूत के तौर पर देख रहे हैं।
इतिहासकार डॉ.
वासुदेव शरण अग्रवाल ने
कई साक्ष्यों के मिलने और
गहन अध्ययन के बाद इस
बात का जिक्र किया
कि कृष्ण का असली जन्मस्थान
कटरा केशव देव ही
है। उन्होंने इससे जुड़े कई
पहलुओं का जिक्र अपनी
पुस्तक मथुरा में किया है।
उद्योगपति जुगलकिशोर बिड़ला द्वारा हुआ पुनर्रुद्धार कार्य
कृष्ण जन्मभूमि मंदिर की व्यवस्था अब
जन्मभूमि ट्रस्ट के हाथों में
है। इस ट्रस्ट की
स्थापना 1951 में हुई थी।
मंदिर प्रबंधन से जुड़े एक
पदाधिकारी ने बताया कि
मंदिर-मस्जिद का पूरा इलाका
कई स्तरीय सुरक्षा घेरे के अंदर
पड़ता है। यह जगह
मथुरा के बीचों-बीच
है। मंदिर के ट्रस्ट निर्माण
में जुगल किशोर बिड़ला
की भी अहम भूमिका
रही। जब जन्मस्थान वाले
मंदिर का पुनर्रुद्धार कार्य
हुआ तो भागवत भवन
यहां का प्रमुख आकर्षण
बनकर उभरा।
द्वारिकाधीश मंदिर
मथुरा का अन्य आकर्षण असिकुंडा बाजार स्थित ठाकुर द्वारिकाधीश महाराज का मंदिर है। यहां वल्लभ कुल की पूजा-पद्धति से ठाकुरजी की अष्टयाम सेवा-पूजा होती है। देश के सबसे बड़े व अत्यंत मूल्यवान हिंडोले द्वारिकाधीश मंदिर के ही हैं, जो कि सोने व चांदी के हैं। यहां श्रावण माह में सजने वाली लाल गुलाबी, काली व लहरिया आदि घटाएं विश्व प्रसिद्ध हैं। मथुरा में यमुना पर हैं 25 प्राचीन घाट ब्रजभूमि पर्यटन से जुड़ी पुस्तक के अनुसार, मथुरा में यमुना के प्राचीन घाटों की कुल संख्या 25 है। उन्हीं सब के बीच स्थित है- विश्राम घाट। जहां प्रातः व सांय यमुनाजी की आरती उतारी जाती है। यहां पर यमुना महारानी व उनके भाई यमराज का मंदिर भी मौजूद है। विश्राम के घाट के सामने ही यमुना पार महर्षि दुर्वासा का आश्रम है। ये हैं शहर के अन्य प्रमुख दर्शनीय स्थल जन्मभूमि मंदिर के अलावा मथुरा में भूतेश्वर महादेव, ध्रुव टीला, कंस किला, अम्बरीथ टीला, कंस वध स्थल, पिप्लेश्वर महादेव, बटुक भैरव, कंस का अखाड़ा, पोतरा कुंड, गोकर्ण महादेव, बल्लभद्र कुंड, महाविद्या देवी मंदिर आदि प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं।
रमण बिहारी मंदिर
मथुरा में सबसे महत्वपूर्ण मंदिर गोकुल नाथ जी है। गोकुल विशेष रूप से जन्माष्टमी, अन्नकूट और त्रिनवत मेला जैसे त्योहारों के उत्सव की विशिष्ट शैली के लिए प्रसिद्ध है। गोकुल में ’रमन रेती’ नामक एक स्थान है जहां लोग भगवान कृष्ण का आशीर्वाद लेने के लिए रेत पर लोटते हैं। यहां मिट्टी में लोटते हैं लोग, साथ भरकर ले जाते हैं रेत। बता दें, गोकुल के रमण रेती मंदिर परिसर में हर तरफ रेत ही रेत है। यहां जो भी कृष्ण भक्त आता है, बिना रेत में लोटे नहीं जाता। फागुन मास में यहां भक्तों की भीड़ बढ़ जाती है। मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने बाल रूप में इस रेत पर लीलाएं की थीं। लोग मानते हैं कि इस रेत से बीमारियां दूर हो जाती हैं।
रमण रेती मंदिर के संत सुभावना तितरानंद ने बताया कि भगवान कृष्ण के बाल्यावस्था में मंदिर की जगह जंगल था। इस जगह पर रमण बिहारी (कृष्ण) खेलते थे। एक बार जब रमण बिहारी खेल रहे थे, तब गोपियों ने उनकी गेंद चुरा ली। तब उन्होंने रेत की ही गेंद बना ली। भक्त मानते हैं कि यहां की रेत को घुटने वह जोड़ों में रखने पर दर्द खत्म हो जाता है। लोग यहां आकर लोटते हैं, ताकि इस पवित्र मिट्टी से वे भी पवित्र हो सकें। मान्यता है कि बालकृष्ण यहां चले हैं इसलिए यह पवित्र है। रेत की गेंद बनाकर एक-दूसरे को मारने से पुण्य मिलता है। सारे दुख दूर हो जाते हैं। यहां लोग रेत का घर भी बनाते हैं।
मान्यता है
कि इससे अपना घर
बनाने की मुराद पूरी
होती हैं। मंदिर के
रेत में लोग नंगे
पैर चलते हैं। कोई
भी जूता, चप्पल पहनकर रेत में नहीं
जा सकता है। रेत
में कंकड़ नहीं हैं।
इसलिए नंगे पांव चलने
से कोई असुविधा नहीं
होती है और अच्छा
लगता है। इस रेत
को पूजनीय माना जाता है।
लोग इस रेत को
अपने साथ भी ले
जाते हैं। यहां पर
संत आत्मानंद गिरि आए। माना
जाता है कि भगवान
श्री कृष्ण ने इन्हें साक्षात
दर्शन दिए। इसलिए यह
स्थान सिद्ध स्थान माना जाता है।
कान्हा की भूमि ब्रज
में रंग की होली
की शुरुआत रमणरेती से ही होती
हैं कहते है श्यामसुन्दर
ने ग्वाल बालों के साथ यहां
होली खेली थी। द्वापर
की परंपरा का निर्वहन करने
के लिए यहां की
होली में गुजरात से
आरारोट के गोले मंगाए
जाते हैं। ये गोले
जब किसी भक्त पर
गिरते हैं तो गिरते
ही फूट जाते हैं
और इनसे रंग बिरंगा
गुलाल निकलता है। यहां की
होली में पहले श्यामसुन्दर
राधारानी के साथ होली
खेलते हैं, बाद में
वे ग्वालबालों के साथ होली
खेलते हैं।
गोकुल
यमुना मतलब कान्हा की
पटरानी। यमुना की लहरों से
अठखेलियां करने को श्रद्धालु
लालायित रहते हैं। गोकुल
वह स्थान हैं, जहां उन्हें
कंस के कारागार में
जन्म के बाद पिता
वसुदेव यमुना पार कर मैया
यशोदा के पास लाए
थे। गोकुल के घाटों पर
ही साथियों संग कान्हा यमुना
में अठखेलियां करते थे। इसी
यमुना में उन्होंने कालिया
नाग का मर्दन किया
था। अब इन घाटों
को उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास
परिषद ने संवारा है।
गोकुल का ठकुरानी और
मुरलीधर घाट आज खिलखिला
रहे हैं। यहां से
यमुना में बोटिंग का
आनंद भी पर्यटकों को
मिल रहा है। दूर-दूर से श्रद्धालु
शाम को यहां पहुंचते
हैं और समय बिताते
हैं।
ब्रह्मांड घाट
ब्रह्मांड घाट वही स्थान है, जहां के बारे में मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने यहां मिट्टी खाई तो मैया यशोदा ने उससे मुंह खोलने को कहा, जब कान्हा ने मुंह खोला तो मैया को मुख के अंदर मिट्टी के स्थान पर ब्रह्मांड दिखाई दिया। इसीलिए स्थान को ब्रह्मांड घाट के नाम से जाना जाता है। घाट पर स्थित भगवान श्रीकृष्ण के ब्रह्मांड बिहारी मंदिर पर मिट्टी के लड्डू चढ़ाए जाते हैं।
चौरासी खंबा
चौरासी खंबा मंदिर में
भगवान श्री कृष्ण का
बचपन व्यतीत हुआ था। वासुदेव
और देवकी को कंस द्वारा
बंदी बना लेने के
उपरांत नंदबाबा और उनकी पत्नी
मां यशोदा के साथ भगवान
श्री कृष्ण इसी घर में
रहा करते थे। यही
कारण है इस मंदिर
में श्रीकृष्ण का बाल रूप
मौज़ूद है। दरसअल गोकुल
के नंद भवन मंदिर
जिसे चौरासी खंबा मंदिर के
नाम से जाना जाता
है। कहा जाता है
जिस तरह मथुरा के
द्वारकाधीश और वृंदावन में
स्थित बांके बिहारी मंदिर में जाने के
लिए तंग गलियों से
गुज़रना पड़ता है, ठीक
उसी तरह इस मंदिर
तक जाने वाला रास्ता
है। मान्यताओं की मानें तों
कहा जाता है बलराम
जी के जन्म के
उपरांत देवी यशोदा यहां
कुछ ही समय के
लिए रही थीं। तो
मंदिर की खासियत की
बात करें तो चौरासी
खंबार नामक इस मंदिर
में भगवान श्री कृष्ण का
बचपन व्यतीत हुआ था। वासुदेव
और देवकी को कंस द्वारा
बंदी बना लेने के
उपरांत नंदबाबा और उनकी पत्नी
मां यशोदा के साथ भगवान
श्री कृष्ण इसी घर में
रहा करते थे। यही
कारण है इस मंदिर
में श्रीकृष्ण का बाल रूप
मौज़ूद है। इसके अलावा
भी यहां इनकी अनेकों
मूर्तियां रखी हुई हैं
जिसमें से एक मूर्ति
के बारे में मान्यता
प्रचलित है यह प्रतिमा
ज़मीन से अपने-आप
निकली थीं। इसके अतिरिक्त
इस मंदिर के पास में
ही एक गौशाला भी
है।
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