भ्रष्टाचार, परिवारवाद व तुष्टिकरण से आजादी विकसित भारत की पहली जरूरत
सुरेश गांधी
लंबी पराधीनता के बाद मिली आजादी हमारे लिए किसी सुखद सपने से काम नहीं थी। हजारों स्वाधीनता सेनानियों के त्याग और बलिदान ने हमें खुली हवा में सांस लेने का अवसर दिया। जब देश आजाद हुआ तो हर तरफ समस्याओं का अंबार था, लेकिन सरकार और जनता के प्रयास रंग लाई। स्वतंत्रता के 78 वर्षों में हमने बहुत कुछ अर्जित किया है। भारत दुनिया में न सिर्फ अपनी अलग पहचान बनाई है, बल्कि आजादी के बाद हमने विज्ञान से लेकर रक्षा और आर्थिक क्षेत्र के साथ-साथ तकनीक की दुनिया में नई ऊंचाइयों को भी छुआ है। हालांकि यह पर्याप्त नहीं है। हमें इससे इतर और भी कुछ करने की जरुरत है। हमें आज के दिन देखना होगा कि ऐसी कौन सी कमियां हैं, जिन्हें दूर करने की जरूरत है। 2024 में भारत के 78वें स्वतंत्रता दिवस का थीम “विकसित भारत“ है। यह थीम 2047 तक देश को एक विकसित राष्ट्र में बदलने के भारत सरकार के दृष्टिकोण को दर्शाती है, जो भारत की स्वतंत्रता की 100वीं वर्षगांठ होगी। देखा जाएं तो बीते दशकों में देश ने अनेक सामाजिक कुरीतियों को दूर करने में सफलता हासिल की है। इसके बावजूद अनेक कुरीतियां आज भी हमें आईना दिखा रही है। देश के सामने अनेक चुनौतियां भी हैं जो हमारी प्रगति की राह में बाधक बनी हुई है। गरीबी, बेरोजगारी, आतंकवाद और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे आज भी हमसे सवाल पूछते हैं क्या गरीबी घटी है? बेरोजगारी का आंकड़ा आज भी चिंता में डालने वाला है। आतंकवाद पर काबू पाने में कामयाबी तो मिली है, लेकिन इसे जड़ से उखाड़ फेंकने में हम अब भी नाकाम रहे हैं। आज भी घाटी में रह-रह कर आतंकी वारदातें हो रही है, जवान शहीद हो रहे है। इन्हीं के साथ आम लोग भी आईडींटी देखकर मारे जा रहे है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का परिवारवाद, भ्रष्टाचार, आंतकवाद औऱ तुष्टिकरण के खिलाफ अभियान जारी हैं।
भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़े
- बड़े दावे तो किए
जाते है लेकिन तहसील
व थाना स्तर से
लेकर मंत्रालयों तक इसकी जड़े
इतनी गहरी हो गयी
है, बगैर इसके कुछ
होता ही नहीं। इसके
साथ ही एक नई
समस्या हाल के दिनों
में तेजी से उभरी
है, वह है राजनीतिक
टकराहट। हाल यह है
कि सत्ता के लिए देश
विरोधी भी बयान दे
जाते है। ताजा मामला
बांगला बांग्लादेश का है, जहां
हिंसा, आगजनी व मारकाट के
बीच तखतापलट हो गया। लेकिन
अफसोस है देश के
कुछ बड़बोले नेता तपाक से
कह देते है, ऐसी
स्थिति भारत में हो
सकती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी का नाम लिए
बगैर कहा जा रहा
है इस हिटलरशाही के
खिलाफ जनता सड़क पर
होगी। लेकिन वे ऐसा कहते
भूल गए भारत बड़ा
देश है। सत्तालोलुप नेताओं
के इस भड़का ऊ
बयानों से गदर मच
गया। हालात सभालते नहीं संभलेंगी। मतलब
साफ है सत्तालोलुपता की
यह नई बीमारी विकास
की रफ्तार में बाधक बन
रही है। हम भले
ही अपने आप को
दुनिया के सबसे बड़े
लोकतंत्र के नागरिक समझते
हो, लेकिन संसद से लेकर
सड़क तक हो रहा
यह राजनीतिक टकराव कई तरह की
समस्याएं पैदा कर रहा
है, जिसे कहीं से
भी जायज नहीं ठहराया
जा सकता है। इसे
लोकतंत्र के लिए शुभ
नहीं माना जा सकता।
इस समस्या के समाधान लिए
भी आज का दिन
चिंतनीय है। राजनीति में
मतभेद तो होते हैं,
लेकिन जब मनभेद होने
लग जाए तो चिंता
की बात है। सैद्धांतिक
मुद्दों पर टकराव समझ
में आता है, लेकिन
देश की प्रगति और
सुरक्षा जैसे मुद्दों पर
अनर्गल टिप्पणियां होने लग जाएं
तो घातक साबित हो
सकता है। कहने का
अभिप्राय है अनावश्यक बयानबाजी
से निजात पाने का भी
दिन है। इसके लिए
हर वर्ग को एकजुट
होकर प्रयास करने की जरूरत
है।
आजादी के बाद हुआ विकास हमारी समर्थ और संभावना का संकेत देता है। हमने यात्रा कहां से शुरू की थी और अब कहां पहुंचे है। यह बात भी काबिलेतारीफ होगी हम स्वतंत्रत हुए तो हमारे स्वभाव, व्यवहार और मूल्य सब में बदलाव आया। यह अलग बात है कि चाहे शिक्षा हो या फिर न्याय देने वाली कोर्ट कचहरी हम वही सब करते रहे जो अंग्रेजी राज में होता था। कुछ बदलावों को छोड़ दें तो गांव जस के तस आज भी फटेहाल नजर आते है। खेती किसानी से लोगों का मोह भंग होता जा रहा है। हालांकि 2014 के बाद गांव व किसानों की सोच व हालात बदले हैं। लेकिन यह काफी नहीं है। शिक्षा के ढांचे में आमूलचूल परिवर्तन लाने की जरुरत है। कभी सरकारी विद्यालय शिक्षा देते थे और वह सस्ती और गुणवत्ता वाली होती थी, परंतु आज निजी स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की बाढ़ सी आ रही है। इनमें महंगी और कई जगह गुणवत्ता की दृष्टि से कमजोर शिक्षा दी जा रही। और मजबूरी में लोग वही जा रहे हैं। शिक्षा के निजीकरण के भयानक असर दिखाई देने लगा है। पर उनके नियमन की कोई कोशिश नहीं हो रही है। दूसरी और अधिकांश सरकारी शिक्षा केंद्र सुविधाओं के अभाव व राजनीतिक खिंचातानी के चलते लगातार अपनी अस्मिता खोते जा रहे है। फिर भी तमाम मुश्किलों के बावजूद देश के कदम आगे बढ़े हैं। देश के लोगों में क्षमता है और उसका उपयोग ठीक से हो तो देश विकसित देशों की जमात में शामिल हो सकता है। मेक इन इंडिया, स्टार्टअप, विदेशी निवेश, एफडीआई आदि ने आकर्षित किया है और निर्माण क्षेत्र में देश आगे बढ़ा है, जिसे आर्थिक उन्नति की दिशा में सकारात्मक कदम कहा जा सकता है। देश के आईटी और सॉफ्टवेयर क्षेत्र के साथ ही सेवा क्षेत्र में भी जीडीपी में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। आने वाले समय में यह साधारण रूप से बढ़ेंगे। डिजिटल क्रांति का ही कमाल है देश भर में डिजिटल सेवाओं तक पहुंच बना दी है। भारत तकनीकी नवाचार में सबसे आगे बना रहे, इसके लिए अनुसंधान और विकास के साथ शिक्षा में निरंतर निवेश आवश्यक है। इन्नोवेशन हब और स्टार्टअप को बढ़ावा देकर भारत वैश्विक उद्योगों को आकार देने वाली तकनीक सफलताओं में आगे बढ़ सकता है। ब्रिटिश राज से 1947 में आजादी मिलते ही देश ने बंटवारे का दंस झेला। पाकिस्तान और चीन के नापाक मंसूबे के कारण 1947, 1948, 1962, 1965 के बाद 1971 और फिर 1999 युद्ध का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद देश के विकास का पहिया आगे बढ़ता रहा। इन 78 सालों में भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। 2027 तक भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी बन जाएगा। मतलब साफ है भारत का भविष्य स्वर्णिम है। इसमें कोई शक नहीं, भारत की विकास यात्रा तेज गति से यूं ही बढ़ता रहा तो अगला दशक पूरी दुनिया में भारत की होगी। जहां 80 फीसदी भारतीय गरीबी में जी रहे थे, वहां अब गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले की संख्या तकरीबन 15 फीसदी पर आ पहुंची है। प्रति व्यक्ति आय 788 गुना बढ़ा है। देखा जाएं तो 1947 में प्रति व्यक्ति आय 250 रुपये, 1975 में 1240 रुपए, 2000 में 1950 रुपए और अब 2023 में 197000 रुपये प्रति व्यक्ति आय हो गई है। जहां तक भारत के सैन्य शक्ति का सवाल है तो दुनिया में चौथे नंबर पर है। भारतीय वायुसेना दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी वायु शक्ति बनकर उभरी है। ग्लोबल इन्नोवेशन में दूसरे स्थान पर और इसरो दुनिया की छठी सबसे बड़ी स्पेस एजेंसी है। 156 परमाणु हथियारों के साथ भारत सातवा परमाणु शक्तिशाली देश बन चुका है। आज भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. लेकिन पाकिस्तान इस सूची में 41वें स्थान पर है और पाकिस्तान में करोड़ों लोग आज भी दाने-दाने के लिए तरस रहे हैं.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबबिक,
इस समय अमेरिका की
जीडीपी 26.85 ट्रिलियन डॉलर है. दूसरे
नंबर पर चीन है,
जिसकी जीडीपी 19 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा
है. भारत इस समय
दुनिया की पांचवीं सबसे
बड़ी अर्थव्यवस्था है. भारत की
जीडीपी 3.74 ट्रिलियन डॉलर है. भारत
ने अगले पांच साल
में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था
बनने का लक्ष्य रखा
है. अभी. तीसरे नंबर
पर जापान (4.41 ट्रिलियन डॉलर) और चौथे पर
जर्मनी (4.31 ट्रिलियन डॉलर) है. प्रति व्यक्ति
आय के मामले में
भारत अभी काफी पीछे
है. वर्ल्ड बैंक के मुताबिक,
2022 में भारत की प्रति
व्यक्ति आय 2,388.6 डॉलर रही थी.
इस मामले में भारत अपने
पड़ोसी देश श्रीलंका, भूटान
और बांग्लादेश से भी पीछे
है. वर्ल्ड बैंक के आंकड़े
बताते हैं कि 2022 में
अमेरिका की प्रति व्यक्ति
आय 76,399 डॉलर रही थी.
वहीं, चीन की प्रति
व्यक्ति आय 12,720 डॉलर से ज्यादा
थी. विकसित देश को मापने
का एक पैमाना इंडस्ट्रियलाइजेशन
यानी औद्योगिकीकरण भी है. ऐसा
माना जाता है कि
जिस देश में जितना
ज्यादा इंडस्ट्रियलाइजेशन होगा, वो उतना विकसित
होगा. क्योंकि इंडस्ट्रियलाइजेशन से न सिर्फ
रोजगार बढ़ता है, बल्कि
किसी देश का इम्पोर्ट
(आयात) घटता है और
एक्सपोर्ट (निर्यात) बढ़ता है. अभी
भारत का आयात ज्यादा
है और निर्यात कम.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2022-23 में
भारत का एक्सपोर्ट 36.20 लाख
करोड़ और.इम्पोर्ट 57.33 लाख
करोड़ रुपये रहा था. इस
हिसाब से भारत के
एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट में 21 लाख करोड़ से
ज्यादा का अंतर था.
जबकि, 2021-22 में 14 लाख करोड़ रुपये
था.
इंडस्ट्रियलाइजेशन कम होने से
ग्लोबल एक्सपोर्ट में भारत की
हिस्सेदारी काफी कम है.
वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक, अभी
ग्लोबल एक्सपोर्ट में भारत की
हिस्सेदारी 2 फीसदी के आसपास ही
है. इसे 2027 तक बढ़ाकर 3 फीसदी
और 2047 तक 10 फीसदी करने का टारगेट
रखा गया है. इंटरनेशनल
लेबर ऑर्गनाइजेशन की एक रिपोर्ट
बताती है कि विकसित
और विकासशील देशों में सबसे बड़ा
अंतर वहां की गरीबी
है. वर्ल्ड बैंक ने गरीबी
रेखा की परिभाषा तय
की है. इसके मुताबिक,
अगर हर दिन कोई
व्यक्ति 2.15 डॉलर (170 रुपये के आसपास) से
कम कमा रहा है,
तो वो ’बेहद गरीब’
माना जाएगा. भारत में गरीबी
रेखा की अलग परिभाषा
है. ये परिभाषा तेंदुलकर
कमेटी की रिपोर्ट के
आधार पर तय की
गई थी. इसके मुताबिक,
अगर गांव में रहने
वाला एक व्यक्ति हर
दिन 26 रुपये और शहर में
रहने वाला व्यक्ति 32 रुपये
खर्च कर रहा है,
तो वो गरीबी रेखा
से नीचे नहीं माना
जाएगा. गरीबी रेखा के सरकारी
आंकड़े 2011-12 के है। उसके
मुताबिक, भारत की लगभग
22 फीसदी आबादी यानी 27 करोड़ लोग गरीबी
रेखा से नीचे हैं.
हाल ही में संयुक्त
राष्ट्र की एक रिपोर्ट
आई थी. इसमें बताया
गया था कि 15 साल
में गरीबी काफी कम हो
गई है. रिपोर्ट के
मुताबिक, 2005-06 से 2019-21 के दौरान 15 साल
में 41.5 करोड़ लोग गरीबी
से बाहर निकले हैं.
इस रिपोर्ट में कहा गया
था कि भारत में
अब भी लगभग 23 करोड़
लोग गरीब हैं. इसमें
बताया गया था कि
इन गरीबों में से 90 फीसदी
गांवों में हैं.
उपलब्धियां
- अर्थव्यवस्थाः
1950-51 में देश की जीडीपी
4.96 लाख करोड़ रुपये थी,
जो 2022-23 में बढ़कर 157.60 लाख
करोड़ रुपये हो गई. इसी
तरह 1950-51 में देश में
हर आदमी की सालाना
औसतन कमाई 265 रुपये थी, जो 2022-23 में
बढ़कर 1.70 लाख रुपये से
ज्यादा हो गई.
- बेरोजगारी
को लेकर 1972-73 में नेशनल सैम्पल
सर्वे ऑफिस ने पहला
सर्वे किया था. उसके
मुताबिक, उस समय देश
में बेरोजगारी दर 8.35 फीसदी थी, जो 2021-22 में
घटकर 4.1 फीसदी पर आ गई.
बेरोजगारी दर से पता
चलता है कि जितने
लोग रोजगार के योग्य हैं,
उनमें से कितने बेरोजगार
हैं. वहीं, आजादी के समय देश
की 80 फीसदी आबादी गरीब थी, जो
अब घटकर 10 फीसदी के आसपास आ
गई है.
- स्वास्थ्य
के क्षेत्र में आजादी के
समय देश में 30 मेडिकल
कॉलेज थे, लेकिन अब
704 हैं. इतना ही नहीं,
आजादी के समय 2,014 सरकरी
अस्पताल थे, जिनकी संख्या
अब 49 हजार से ज्यादा
है. औसत आयु भी
किसी देश को विकसित
बनाती है, क्योंकि इससे
वहां की स्वास्थ्य सुविधाओं
का अंदाजा लगता है...आजादी
के समय औसत आयु
34 साल थी, जो अब
बढ़कर 69.7 साल हो गई
है.
- शिक्षा
के क्षेत्र में मार्च 1948 तक
देश में 1.50 लाख के आसपास
स्कूल थे, लेकिन आज
करीब 15 लाख हैं. इसी
तरह उस वक्त महज
414 कॉलेज और 34 यूनिवर्सिटीज थीं. आज 49 हजार
से ज्यादा कॉलेज और 11सौ से
ज्यादा यूनिवर्सिटीज है. इतना ही
नहीं, 1951 में साक्षरता दर
18 फीसदी थी, जो अब
बढ़कर 75 फीसदी हो गई है.
- खेती-किसानीः आजादी के समय भारत
की अर्थव्यस्था काफी हद तक
कृषि पर निर्भर थी.
लेकिन आज देश की
जीडीपी में कृषि का
योगदान 20 फीसदी से भी कम
है. हालांकि, भारत में अब
रिकॉर्ड प्रोडक्शन होता है. आजादी
के समय 508 लाख टन कृषि
उत्पादन हुआ था, जो
अब बढ़कर 3,305 लाख टन हो
गया है. अनाज का
सबसे बड़ा भंडार आज
भारत में है. वहीं,
दुनिया में सबसे ज्यादा
गेहूं और चावल का
उत्पादन चीन के बाद
भारत में होता है.
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