अब बदल रहा धरती का स्वर्ग कश्मीर
ऋषि-मुनियों
और
अवतारों
की
भूमि
भारत
में
कश्मीर
एक
ऐसा
खूबसूरत
जगह
है
जहां
प्रकृति
ने
तबीयत
से
सजाया
है।
बर्फीली
व
घुमावदार
पहाड़ियों
के
बीच
तरह-तरह
के
फलों
व
वनस्पतियों
के
नजारे
और
झीलें
बरबस
ही
लोगों
को
अपनी
ओर
आकर्षित
करते
है।
पहाड़ों
से
निकलते
छोटे-छोटे
झरने,
जलप्रपात
का
दृश्य
नयनाभिराम
लगाते
हैं,
तो
45 से
अधिक
शिवधाम,
60 से
अधिक
विष्णुधाम,
3 ब्रह्मधाम,
22 शक्तिधाम
तथा
700 नागधाम
देवलोक
का
अहसास
कराती
हैं।
यह
अलग
बात
है
कि
सात
साल
पहले
तक
कश्मीर
का
सुख-चैन
सहित
कारोंबार
पर
आतंकियों
का
कब्जा
था।
हर
रोज
कभी
सैनिकों
पर
हमला
तो
कभी
आमजन
मारे
जाते
थे।
जनजीवन
बेहाल
था,
तो
कारोबार
ठप।
लेकिन
अब
यह
कलंक
मिट
चुका
है।
5 अगस्त,
2019 के
बाद
घाटी
में
किसी
तरह
का
खौफ
नहीं
है।
रोजाना
होने
वाली
हड़ताल
व
पत्थरबाजी
इतिहास
बन
चुका
है।
होटल,
रेस्टोरेंट
से
लेकर
फेरीवाले
तक
के
कारोबारी
सुकून
में
तो
है
ही
आमदनी
भी
बढ़ी
है।
जिस
लाल
चौक
पर
रुकना
तो
दूर
देखने
मात्र
से
रायफलें
तन
जाती
थी,
वहां
पर्यटक
अब
सेल्फी
ले
रहे
है।
श्रीनगर
के
नुसरत
बानो
कहती
है
कुछ
लोगों
को
370 हटने
का
मलाल
तो
है,
लेकिन
अमन
लौटने
से
जीवन
की
राह
आसान
हो
गयी
है
सुरेश गांधी
प्रकृति की गोद में
बसा जम्मू-कश्मीर उत्तर भारत का एक
ऐसा राज्य है, जहां पर्यटन
की संभावनाएं बहुत ही प्रबल
हैं। ताजा हालात इसके
चीख-चीख कर गवाही
दे रहे है। 5 अगस्त,
1919 से पहले 30 सालों से चल रहे
आतंकवाद, हिंसा व पत्थरबाजी के
कारण छिन्न-भिन्न हुई जनजीवन अब
पटरी पर दौड़ने लगी
है। नफरत की दुकानें
चलाने वाले जिन लोगों
ने युवाओं को पढ़ाई से
महरूम रखा, उनके हाथों
में पत्थर थमाए, वहां अब विकास
की नई इबारत लिखी
जा रही है। कभी
अलगाववादियों के गढ़ रहे
लाल चौक का स्वरूप
अब बिल्कुल बदल गया है।
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के
तहत यहां के घंटा
घर को एफिल टॉवर
का लुक दिया गया
है। अब देर रात
तक यहां सैलानियों सहित
स्थानीय लोगों का हुजूम उमड़
रहा है। तिरंगे के
प्रति लोगों में सम्मान बढ़ा
है। आतंकवाद के दौर में
दूर हो गई फिल्म
इंडस्ट्री तथा सिनेमा संस्कृति
दोबारा लौट आई है।
नाइट लाइफ सड़कों पर
लौट आई है। डल
झील देर रात तक
आबाद रहती है। मैदानों
में देर रात तक
लोग खेल का रोमांच
लेते देखे जा सकते
हैं। पहली बार विदेशी
निवेश भी हुआ है
और 500 करोड़ रुपये के
प्रोजेक्ट पर काम अंतिम
दौर में है।
कश्मीरी पंडितों के स्थायी पुनर्वास
की दिशा में सरकार
लगातार प्रयासरत है। इस समुदाय
के सरकारी कर्मचारियों को आवास निर्माण
के लिए श्रीनगर में
सस्ती दर पर जमीन
मुहैया करवाई जा रही है।
इसके साथ ही डोमिसाइल
कानून के तहत उन्हें
बाया भी जा रहा
है। अब तक 45787 परिवार
इससे लाभान्वित भी हुए हैं।
श्रीनगर में मॉल समेत
दक्षिणी व उत्तरी कश्मीर
में सिनेमा हॉल खोले गए
हैं। प्रदेश की भौगोलिक स्थिति
के मद्देनजर टनल बनाकर यात्रा
को सुगम करने के
साथ ही 8.45 किमी की काजीगुंड-बनिहाल सुरंग भी बनाया गया
है। इससे न केवल
जम्मू से श्रीनगर के
बीच दूरी कम हुई,
बल्कि हर मौसम में
यह टनल सुचारु यातायात
में सहायक बनी है। औद्योगिकीकरण
की दिशा में भी
तेजी से काम चल
रहा है। कनेक्टिविटी, इंफ्रास्ट्रक्चर,
पर्यावरण के संरक्षण, बागवानी
व कृषि, औद्योगिकीकरण, पर्यटन, ऊर्जा पहले की तलना
में बेहतर है। बदले हालात
की वजह से रिकॉर्ड
सैलानी भी पहुंचने शुरू
हुए हैं। 2022 में 1.88 करोड़ पर्यटक कश्मीर
पहुंचे। 2023 - 2024 में यह संख्या
डबल हो गयी।
औद्योगिक विकास के साथ ही बिजली ढांचे में सुधार की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। जम्मू कश्मीर अब देश के अन्य राज्यों की तरह कई क्षेत्रों में अग्रणी है। पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बना हैं। कला, संस्कृति व अनेक जातियों के बीच तरह-तरह की बोलियों का संगम बना जम्मू, लद्दाख और कश्मीर अपनी हसीन वादियों के चलते लाखों देशी-विदेशी पर्यटकों की पहली पसंद बने हुए हैं। तवी नदी के खूबसूरत किनारों पर स्थित जम्मू का कटरा एक ऐसा है तीर्थस्थल है जहां हर साल लाखों-करोड़ों श्रद्धालु मां वैष्णो देवी दर्शन को पहुंचते है। अनगिनत मंदिरों के चलते इसे मंदिरों की नगरी भी कहा जाता है।
इन्हीं खूबियों के बीच श्रीनगर की डल झील प्रकृति का ऐसा अद्भूत नजारा है, जो सैलानियों के लिए विभिन्न प्रकार के मनोरंजन के साधन तो हैं ही दुकानें भी शिकारों पर ही लगी होती हैं, जो मात्र खरीददारी तक ही सीमित नहीं है, बल्कि एक रोमांचित कर देने वाला खेल भी हैं। यहां का कायाकिंग (एक प्रकार का नौका विहार), केनोइंग (डोंगी), पानी पर सर्फिंग करना तथा ऐंगलिंग (मछली पकड़ना), डल झील के मुख्य आकर्षण का केन्द्र है। खास बात यह है कि सैलानी डल झील में ही मौजूद हाउसबोटों में रहकर खूबसूरत चांदनी रात का आनंद उठा सकते हैं। तभी तो पर्यटक कैमरे के माध्यम से यहां की इस बिहंगम नजारे को कैद करना नहीं भूलते।
बता दें, ब्रिटिश
हुकूमत की समाप्ति के
साथ ही जम्मू और
कश्मीर भी आजाद हुआ।
शुरू में इसके शासक
महाराज हरीसिंह ने फैसला किया
कि वह भारत या
पाकिस्तान में सम्मिलित न
होकर स्वतंत्र रहेंगे, लेकिन 20 अक्टूबर, 1947 को पाकिस्तान समर्थक
आजाद कश्मीर सेना ने राज्य
पर आक्रमण कर दिया, जिससे
महाराज हरीसिंह ने राज्य को
भारत में मिलाने का
फैसला लिया। उस विलय पत्र
पर 26 अक्टूबर, 1947 को पण्डित जवाहरलाल
नेहरू और महाराज हरीसिंह
ने हस्ताक्षर किये। इस विलय पत्र
के अनुसार- राज्य केवल तीन विषयों-
रक्षा, विदेशी मामले और संचार -पर
अपना अधिकार नहीं रखेगा, बाकी
सभी पर उसका नियंत्रण
होगा। उस समय भारत
सरकार ने आश्वासन दिया
कि इस राज्य के
लोग अपने स्वयं के
संविधान द्वारा राज्य पर भारतीय संघ
के अधिकार क्षेत्र को निर्धारित करेंगे।
जब तक राज्य विधान
सभा द्वारा भारत सरकार के
फैसले पर मुहर नहीं
लगाया जायेगा, तब तक भारत
का संविधान राज्य के सम्बंध में
केवल अंतरिम व्यवस्था कर सकता है।
इसी क्रम में भारतीय
संविधान में श्अनुच्छेद 370श्
जोड़ा गया, जिसमें बताया
गया कि जम्मू-कश्मीर
से सम्बंधित राज्य उपबंध केवल अस्थायी है,
स्थायी नहीं।
घाटी के जलालुद्दीन ने कहा 370 हटाने से हमारी पहचान छीन गई है, लेकिन रोजाना होने वाली हड़ताल और पत्थरबाजी अब नहीं होती है। इससे जिंदगी आसान हुई है। होटल व्यवसाय रेस्टोरेंट संचालक और फेरी वाले खुश नजर आएं। उनका कहना है कि 15 साल से इतना अच्छा माहौल कभी नहीं था। आय भी बढ़ी है। अब सब कुछ अच्छा चल रहा है। बस इसी तरह अमन बना रहे। खास बात यह है कि डल झील की पानी में नाव भी खूबसूरती से सरक रही है। पर्यटक इन सुनहरे पलों को अपने कमरे में कैद कर रहे हैं। पोलो ग्राउंड में बच्चे फुटबॉल खेल रहे है। पार्कों में चहल-पहल बढ़ी है। अब 30 साल बाद 2021 में कश्मीर में सिनेमा हॉल खुला है। श्रीनगर में मल्टीप्लेक्स बना है। पुलवामा, सोफिया, बारामूला और हंदवाड़ा में थिएटर खुले हैं। पर्यटक विजय नाथ की मानें तो काफी कुछ बदल गया है। फिर भी यहां आने से पहले मन में डर था, पता नहीं कैसा माहौल होगा। जब परिवार के साथ यहां पहुंचे तो बड़ा अचरज हुआ। यहां दर रात तक बच्चों को खेलते देखा। विश्वास नहीं हुआ अब सब बदल चुका है।
डल झील
डल झील, श्रीनगर का गहना या कश्मीर के मुकुट के नाम से लोकप्रिय तो इसके पीछे उसकी यही नजारे चार चांद लगाते है। डल झील, कश्मीर में दूसरी सबसे बड़ी झील है। यह सुरम्य झील 26 वर्ग किमी. के बड़े क्षेत्र में फैली हुई है जो श्रीनगर आने वाले पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र है। डल झील, जम्मू और कश्मीर राज्य के श्रीनगर शहर में स्थित 17 किमी क्षेत्र में फैली हुई झील है। तीन दिशाओं से पहाड़ियों से घिरी डल झील जम्मू-कश्मीर की दूसरी सबसे बड़ी झील है। पांच मील लम्बी और ढाई मील चौड़ी डल झील श्रीनगर की ही नहीं बल्कि पूरे भारत की सबसे खूबसूरत झीलों में से एक है। मुख्य रूप से इस झील में मछली पकड़ने का काम होता है। डल झील में सोतों से तो जल आता है साथ ही कश्मीर घाटी की अनेक झीलें आकर इसमें जुड़ती हैं। झील के चार जलाशय हैं गगरीबल, लोकुट डल, बोड डल तथा नागिन। इसके अलावा लोकुट डल के मध्य में रूप लंक द्वीप स्थित है तथा बोड डल जलधारा के मध्य में सोना लंक स्थित है जो इस झील की खूबसूरती को ओर अधिक बढ़ाते हैं। इस झील को यहां पर शिकारा यानि लकड़ी की नाव और हाउसबोट के लिए काफी जाना जाता है। हाउसबोट से डल झील की प्यारी सी सैर की जाती है जबकि शिकारा से डल झील और हाउसबोट तक आने जाने की सवारी की जाती है। डल झील, कांंजवे के कारण चार प्रमुख बेसिन में बंट जाता है जिन्हे लोकुट डाल, गागरीवाल, बोद डाल और नागिन के नाम से जाना जाता है। डल झील की असमान प्राकृतिक सुंदरता और प्राकृतिक परिवेश ही इसे पर्यटकों की पहली पसंद और आर्दश गंतव्य स्थल बना देता है। पर्यटक यहां के हाउसबोट या शिकारा पर बैठ कर सूर्योदय का आंनद ले सकते हैं। पर्यटक यहां आकर पानी में खेले जाने वाले गेम्स का भी मजा उठा सकते हैं जिनका आयोजन यहां अक्सर किया जाता है।
स्विमिंग, वॉटर
सर्फिंग, कायाकिंग, ऐंगलिंग और कैनोइंग, डल
झील के प्रमुख वॉटर
गेम्स हैं। डल झील
का प्रमुख आकर्षण केन्द्र तैरते हुए बगीचे हैं।
पौराणिक मुगल किलों में
यहां की संस्कृति तथा
इतिहास के दर्शन होते
हैं। डल झील के
पास ही मुगलों के
सुंदर एवं प्रसिद्ध पुष्प
वाटिका से डल झील
की आकृति और उभरकर सामने
आती है। कश्मीर के
प्रसिद्ध विश्वविद्यालय झील के तट
पर स्थित है। शिकारे के
माध्यम से सैलानी नेहरू
पार्क, कानुटुर खाना, चारचीनारी, कुछ द्वीप जो
यहाँ पर स्थित हैं,
उन्हें देख सकते हैं।
श्रद्घालुओं के लिए हजरतबल
तीर्थस्थल के दर्शन करे
बिना उनकी यात्रा अधूरी
रह जाती है। शिकारे
के माध्यम से श्रद्धालु इस
तीर्थस्थल के दर्शन कर
सकते हैं। दुनिया भर
में यह झील विशेष
रूप से शिकारों या
हाऊस बोट के लिए
जानी जाती है। डल
झील के आस-पास
की प्राकृतिक सुंदरता अधिक संख्या में
लोगों को अपनी ओर
आकर्षित करती है। वनस्पति
डल झील की खूबसूरती
को और निखार देती
है। कमल के फूल,
पानी में बहती कुमुदनी,
झील की सुंदरता में
चार चांद लगा देती
है।
हाउसबोट
हाउसबोट एक तरह की
लग्जरी में तब्दील हो
चुके हैं। कुछ लोग
दूर-दूर से केवल
हाउसबोट में रहने का
लुत्फ उठाने के लिए ही
कश्मीर आते हैं। हाउसबोट
में ठहरना सचमुच अपने आपमें एक
अनोखा अनुभव है भी। पर
इसकी शुरुआत वास्तव में लग्जरी नहीं,
बल्कि मजबूरी में हुई थी।
कश्मीर में हाउसबोट का
प्रचलन डोगरा राजाओं के काल में
तब शुरू हुआ था,
जब उन्होंने किसी बाहरी व्यक्ति
द्वारा कश्मीर में स्थायी संपत्ति
खरीदने और घर बनाने
पर प्रतिबंध लगा दिया था।
उस समय कई अंग्रेजों
और अन्य लोगों ने
बडी नाव पर लकडी
के केबिन बना कर यहां
रहना शुरू कर दिया।
फिर तो डल झील,
नागिन झील और झेलम
पर हाउसबोट में रहने का
चलन हो गया। बाद
में स्थानीय लोग भी हाउसबोट
में रहने लगे। आज
भी झेलम नदी पर
स्थानीय लोगों के हाउसबोट तैरते
देखे जा सकते हैं।
शुरुआती दौर में बने
हाउसबोट बहुत छोटे होते
थे, उनमें इतनी सुविधाएं भी
नहीं थीं, लेकिन अब
वे लग्जरी का रूप ले
चुके हैं। सभी सुविधाओं
से लैस आधुनिक हाउसबोट
किसी छोटे होटल के
समान हैं। डबल बेड
वाले कमरे, अटैच बाथ, वॉर्डरोब,
टीवी, डाइनिंग हॉल, खुली डैक
आदि सब पानी पर
खडे हाउसबोट में होता है।
लकडी के बने हाउसबोट
देखने में भी बेहद
सुंदर लगते हैं। अपने
आकार एवं सुविधाओं के
आधार पर ये विभिन्न
दर्जे के होते हैं।
शहर के मध्य बहती
झेलम नदी पर बने
पुराने लकडी के पुल
भी पर्यटकों के लिए एक
आकर्षण है। कई मस्जिदें
और अन्य भवन इस
नदी के निकट ही
स्थित है।
पटनीटाप
जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर 108 किमी की दूरी
पर स्थित यह विश्वप्रसिद्ध स्थल
वर्षभर ठंडा रहता है,
क्योंकि 2024 मीटर की ऊंचाई
पर स्थित होने के कारण
यह प्राकृतिक सौंदर्य से लदा हुआ
है। अब तो सर्दियों
में यहां पर स्कीइंग
का आनंद भी उठाया
जा सकता है और
स्की उपकरण पर्यटन विभाग के पास उपलब्ध
हैं। छुट्टियां मनाने वालों के लिए यह
अति उत्तम स्थान है, जहां सरकारी
के अतिरिक्त प्राइवेट आवास की भी
सुविधा है। वर्ष के
किसी भी मौसम में
आप वहां जा सकते
हैं। पटनीटॉप या पटनी टॉप,
जम्मू और कश्मीर के
उधमपुर जिले में स्थित
एक सुंदर हिल रिसॉर्ट है।
इस स्थान को वास्तविक रूप
से ‘पाटन दा तालाब’
नाम से जाना जाता
था जिसका अर्थ है ‘राजकुमारी
का तालाब’। एक कहावत
के अनुसार घने जंगलों बीच
स्थिति इस तालाब का
उपयोग राजकुमारी प्रतिदिन नहाने के लिए करती
थीं। हालांकि कुछ सालों बाद
इसका नाम ‘पाटन का
तालाब’ से बदलकर पटनीटॉप
हो गया। पटनीटॉप जम्मू
से 112 किलोमीटर दूर जम्मू और
कश्मीर में स्थिर सुंदर
पठार है जो समुद्र
सतह से 2024 मीटर की ऊंचाई
पर स्थित है। सर्दियों में
यहां आप स्नोफॉल का
भी मजा ले सकते
है।
अनंतनाग
अनंतनाग जिला जिसे जम्मू और कश्मीर की व्यापारिक राजधानी कहा जाता है, कश्मीर घाटी के दक्षिणी पश्चिमी भाग में स्थित है। यह क्षेत्र कश्मीर घाटी के विकसित क्षेत्रों में से एक है। ईसा पूर्व 5000 में यह क्षेत्र बाजार से भरा शहर बन गया और इसे जल्दी विकसित होने वाले शहर का शीर्षक प्राप्त हुआ। यह शहर विभिन्न शहरों जैसे श्रीनगर, कारगिल, पुलवामा, डोडा और किश्तवाड़ से घिरा हुआ है। इस जिले का नाम एक लोकप्रिय लोकगीत के आधार पर पड़ा, जिसके अनुसार भगवान शिव ने अमरनाथ की गुफा के रास्ते पर जाते हुए सभी कीमती वस्तुओं का त्याग कर दिया। वह स्थान जहां उन्होंने अनेक सांप गिराए उसे अनंतनाग कहा जाता है। वर्तमान में अनंतनाग तीन तहसीलों गुल गुलाब गढ़, डोडा और बुधाल से जुड़ा हुआ है। यह स्थान अपने अनेक धार्मिक स्थलों के कारण पर्यटकों में लोकप्रिय है, जो हिंदू और मुस्लिम दोनों के लिए धार्मिक महत्व के हैं।
अनंतनाग
जिले के कुछ प्रमुख
धार्मिक स्थलों में हजरत बाबा
रेशी, गोस्वामी गुंड आश्रम, शालीग्राम
मंदिर, नीला नाग मंदिर,
आदि आते हैं। इस
क्षेत्र के परिसर में
सात मंदिर आते हैं जिसके
अंतर्गत हनुमान मंदिर, शिव मंदिर, सीता
मंदिर और गणेश मंदिर
आते हैं। मंदिरों तथा
धार्मिक स्थलों के अलावा पर्यटक
यहाँ कई झरनों जैसे
सलाग नाग, मलिक नाग
और नाग बल भी
देख सकते हैं। अनंतनाग
की यात्रा के दौरान पर्यटक
मार्तंड सूर्य मंदिर भी देख सकते
हैं जो गंतव्य से
9 किलोमीटर की दूरी पर
स्थित है। इस मंदिर
का निर्माण भगवान सूर्य के सम्मान में
राजा ललितादित्य ने करवाया था।
इस मंदिर की स्थापत्य कला
से कश्मीरी हिंदुओं की कलाकारी प्रदर्शित
होती है। वर्तमान में
मार्तंड सूर्य मंदिर जीर्ण अवस्था में है। फिर
भी पर्यटक बर्फ से ढंके
पहाड़ों के बीच खड़े
इस मंदिर के अवशेष देख
सकते हैं। इस मंदिर
के अलावा पर्यटक 15 वीं शताब्दी में
बने शेख जेनुद्दीन के
ऐश्मुकम धार्मिक स्थल को भी
देख सकते हैं। ऐसा
माना जाता है कि
शेख जेनुद्दीन ने अपना पूरा
जीवन अल्लाह को समर्पित कर
दिया। उन्होंने स्वयं को गुफा तक
सीमित कर लिया और
लोगों को अल्लाह के
बारे में उपदेश दिए।
गुलमर्ग
गुलमर्ग जम्मू और कश्मीर का
एक खूबसूरत हिल स्टेशन है।
इसकी सुंदरता के कारण इसे
धरती का स्वर्ग भी
कहा जाता है। यह
देश के प्रमुख पर्यटक
स्थलों में से एक
हैं। फूलों के प्रदेश के
नाम से मशहूर यह
स्थान बारामूला जिले में स्थित
है। यहां के हरे
भरे ढलान सैलानियों को
अपनी ओर खींचते हैं।
समुद्र तल से 2730 मी.
की ऊंचाई पर बसे गुलमर्ग
में सर्दी के मौसम के
दौरान यहां बड़ी संख्या
में पर्यटक आते हैं। गुलमर्ग
की स्थापना अंग्रेजों ने 1927 में अपने शासनकाल
के दौरान की थी। गुलमर्ग
का असली नाम गौरीमर्ग
था जो यहां के
चरवाहों ने इसे दिया
था। 16वीं शताब्दी में
सुल्तान युसुफ शाह ने इसका
नाम गुलमर्ग रखा। आज यह
सिर्फ पहाड़ों का शहर नहीं
है, बल्कि यहां विश्व का
सबसे बड़ा गोल्फ कोर्स
और देश का प्रमुख
स्की रिजॉर्ट है।
नगीन झील
इस झील को
अंगुली में हीरे की
तरह कहा जाता है,
जो शहर से 8 किमी
की दूरी पर है।
हालांकि यह डल झील
का ही एक हिस्सा
है लेकिन अपनी खूबसूरती के
लिए प्रसिद्ध है। इस तक
पहुंचने के लिए सबसे
छोटा रास्ता हजरत बल की
ओर से है। इसके
नीले पानी तथा चारों
ओर अंगूठी की तरह दिखने
वाले पेड़ों के झुंड के
कारण इसका नाम नगीन
पड़ा है। इसमें वॉटर
स्कीइंग तथा तैराकी की
सुविधाएं भी उपलब्ध हैं।
लद्दाख
तीनों रंगों की धरती लद्दाख
अपने आप में अनेक
रहस्यों को समेटे हुए
है। आकाश से इस
पर अगर एक नजर
दौड़ाई जाए तो मिट्टी
रंग की जमीन में
सफेद चादर बर्फ की
देख आनंदित हुए बिना नहीं
रहा जा सकता। जबकि
घाटी में सफेद बर्फ
से ढंके इन पहाड़ों
की परछाइयां भी भयानक और
खूबसूरत काली जमीन को
प्रस्तुत करती हैं। आदमी
धरती की ओर लौटता
है तो उसे यह
धरती और भी खूबसूरत
नजर आने लगती है,
जहां फूलों की घाटियों के
साथ-साथ लामाओं की
कतारें देख लगता है
जैसे आदमी किसी परीलोक
में आ गया हो।
लद्दाख आरंभ से ही
इतिहास के पृष्ठों में
रहस्यों से भरी भूमि
के रूप में जाना
जाता रहा है। कहा
जाता है कि एक
चीनी यात्री फाह्यान द्वारा 399 एडी में इस
प्रदेश की यात्रा करने
से पहले तक यह
धरती रहस्यों की धरती थी
और इसे दर्रों की
भूमि के रूप में
भी जाना जाता है।
तभी इसका नाम ‘ला’
और ‘द्दागस’ के मिश्रण से
लद्दाख पड़ा है, जो
समुद्र तल से 3,500 मीटर
की ऊंचाई पर स्थित और
करीब 97,000 वर्ग किमी के
क्षेत्रफल में फैला होने
के कारण राज्य का
सबसे बड़ा जिला है।
यह एक ओर पाकिस्तान
तो दूसरी ओर चीन से
घिरा हुआ है। लद्दाख
के पर्वत पर्वतारोहण करने वालों के
मध्य काफी लोकप्रिय हैं।
लेह
लेह अपने बौद्ध
मंदिरों तथा मठों के
लिए प्रसिद्ध है। जो पूरे
लेह में स्थान-स्थान
पर बहुतायत में दिखते हैं।
असल में ये बौद्ध
मंदिर पुराने धार्मिक दस्तावेजों तथा चित्रों को
सुरक्षित रखने के स्थान
हैं, जो आज भी
अपनी ओर सबको आकर्षित
करते हैं। लेह महल
का निर्माण सिगें नामग्यान ने 16वीं शताब्दी
में करवाया था। यह महल
शहर के बीचोबीच खड़ा
हर आने-जाने वाले
को अपनी ओर आकर्षित
करता तो है ही,
साथ ही में अपनी
कला और भगवान बुद्ध
के जीवन को जीवंत
रूप से चित्रित करती
पेंटिंग्स इसकी खासियत है।
लेह शहर जो एक
घाटी में स्थित है
इसके कारण और खूबसूरत
नजर आता है, जो
कस्बे तथा लेह महल
पर अपना प्रभाव छोड़ता
है। यह पवित्र राजा
का प्रभाव भी दिखाता है।
इस मठ में भगवान
बुद्ध की एक मूर्ति,
दीवार की पेंटिंग्स, पुराने
दस्तावेज तथा अन्य ऐतिहासिक
और धार्मिक वस्तुएं रखी गई हैं।
लेह मस्जिद का निर्माण 17वीं
सदी में देलदन नामग्याल
ने किया था, जो
उनकी मुस्लिम मां के प्रति
एक श्रद्धांजलि थी। तुर्क और
ईरानी कलाकृति को अपने आप
में समेटने वाली यह मस्जिद
आज भी मुख्य बाजार
में यथावत अपने स्थान पर
है। लेह कस्बे से
17 किमी दूर स्टाक में
स्थित इस संग्रहालय में
कीमती पत्थर, थंका (लद्दाखी चित्र), पुराने सिक्के, शाही मुकुट तथा
अन्य शाही वस्तुएं रखी
गई हैं। यह संग्रहालय
सुबह 7 से शाम 6 बजे
तक खुला रहता है।
लेह महल के पास
ही स्थित यह गोम्पा भगवान
बुद्ध की डबल स्टोरी
मूर्ति के लिए जाना
जाता है जिसमें भगवान
बुद्ध को बैठी हुई
मुद्रा में दिखाया गया
है। यह भी शाही
मठ है। इसके अतिरिक्त
लेह के आसपास आलचरी
गोम्पा, चोगमलसार, हेमिस गोम्पा, लामायारू, लीकिर गोम्पा, फियांग गोम्पा, शंकर गोम्पा, शे
मठ तथा महल, स्पीतुक
मठ, स्तकना बौद्ध मंदिर, थिकसे मठ तथा हेमिस
नेशनल पार्क भी देखने योग्य
हैं जिनको देखने के लिए ही
लोग इस कस्बे में
आते हैं, जो लेह
कस्बे से 2 से 60 किमी
की दूरी तक हैं।
यह जगह प्रकृति के
प्रेमियों के अलावा साहसिक
गतिविधियों में लिप्त उत्साही
लोगों के दिल में
एक खास मुकाम रखती
है। प्रसिद्ध मुगल सम्राट जहाँगीर,
भी हमेशा इस जगह के
कसीदे कहते थे। बादशाह
का मानना था की यदि
धरती पर कहीं स्वर्ग
है तो वो यहीं
है। कश्मीर दुनिया की सबसे खूबसूरत
जगहों में से एक
है साथ ही यहाँ
के शानदार पर्वत श्रृंखला, क्रिस्टल स्पष्ट धारा, मंदिर, ग्लेशियर, और उद्यान इस
जगह की भव्यता में
चार चाँद लगाते हैं।
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