प्रसादम तिरुपति भगवान की कृपा का है साक्षात प्रतिरूप
आंध्र
प्रदेश
के
विश्व
प्रसिद्ध
तिरुपति
बालाजी
मंदिर
के
प्रसाद
को
लेकर
बवाल
मचा
हुआ
है.
मुख्यमंत्री
चंद्रूबाबू
नायडू
से
लेकर
पूर्व
राष्ट्रपति
रामनाथ
कोविंद
व
देश
के
साधु-संतों
ने
चिंता
व्यक्त
की
है।
हर
कोई
इस
पूरे
प्रकरण
की
उच्चस्तरीय
जांच
कराकर
दोषियों
को
सजा
देने
की
मांग
कर
रहा
है।
खासकर
तब
जब
प्राथमिक
जांच
में
साफ
हो
गया
है
कि
मंदिर
के
प्रसादम
में
बीफ
फैट,
फिश
ऑयल
की
मिलावट
की
गयी
है।
खास
बात
यह
है
कि
प्रसादम
को
लेकर
आका्रेश
की
ज्वाला
1857 में
भी
उस
समय
दहकी
थी
जब
ब्रतानियां
सरकार
ने
भी
कुछ
इसी
तरह
के
घृणित
कृत
कर
हिन्दुओं
की
भावनाओं
को
आहत
करने
का
काम
किया
था।
हालांकि
वर्तमान
में
सिर्फ
लड्डू
ही
नहीं
देखा
जाएं
अधिकांश
खाद्य
सामाग्रियों
में
मिलावट
की
बात
सामने
आती
रही
है।
लेकिन
मामला
करोड़ों
आस्थावानों
से
जुड़ा
है
तो
इसमें
सरकार
को
गंभीरता
दिखानी
ही
होगी।
क्योंकि
यह
ऐसा
घृणित
कृत
है,
जिसे
माफ
नहीं
किया
जा
सकता,
यह
दुर्भावनापूर्ण
है
और
इस
प्रक्रिया
में
शामिल
लोगों
के
लालच
की
पराकाष्ठा
है.
इसलिए,
उन्हें
कड़ी
सजा
मिलनी
ही
चाहिए.
उनकी
सारी
संपत्ति
जब्त
कर
ली
जानी
चाहिए
और
जो
भी
इस
प्रक्रिया
में
दूर-दूर
तक
शामिल
है,
उसे
जेल
में
डाल
दिया
जाना
चाहिए
सुरेश गांधी
आंध्र प्रदेश के तिरुपति मंदिर के प्रसाद में निर्माण में बीफ फैट, फिश ऑयल के इस्तेमाल का खुलासा हुआ है। तिरुपति मंदिर में प्रसाद के तौर पर मिलने वाले लड्डुओं में इनकी मौजूदगी की पुष्टि हुई है। तिरुपति मंदिर के प्रसाद के निर्माण में बीफ फैट और मछली के तेल के इस्तेमाल पर आंध्र की चंद्रबाबू नायडू सरकार ने पिछली सरकार को निशाने पर लिया था। अब जांच रिपोर्ट में पुष्टि के बाद विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने इस मामले में कार्रवाई की मांग की है, हालांकि पहले सत्ता में रही वाईएसआर कांग्रेस के नेता ने आरोपों से इनकार किया है। नायडू के शुरुआती आरोपों के बाद अब विहिप ने कहा है कि तिरुपति लड्डू बनाने में पशु चर्बी का इस्तेमाल गंभीर मामला है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू को इस मामले में लिप्त लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। तिरुपति बालाजी मंदिर में रोज़ाना करीब 50,000 से एक लाख लोग दर्शन करते हैं। विशेष मौकों पर यह संख्या एक लाख से ज़्यादा हो जाती है। इससे देशभर के आस्थावनों में रोष है।
भला क्यों नहीं
तिरुपति के प्रसिद्ध लड्डू
प्रसादम का इतिहास बहुत
समृद्ध और प्राचीन है.
लड्डू प्रसाद तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर की पारंपरिक रीतियों
और भक्ति-पूजा से जुड़ा
हुआ है. इसकी मान्यता
लड्डू गोपाल से भी जुड़ी
है। देश का सबसे
धनी मंदिर तिरुपति बालाजी के गर्भगृह में
स्थापित ईश प्रतिमा को
भगवान वेंकटेश, वेंकटेश्वर और तिरुपति स्वामी
व तिरुपति बालाजी के नाम से
जाना जाता है. मंदिर
के विषय में अब
तक तीन बातें प्रसिद्ध
रही हैं. पहली, यह
भारत सबसे धनी मंदिरों
में से एक है.
दूसरी, यहां साल भर
में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की
संख्या करोड़ों में होती है
तो चढ़ावे की धनराशि भी
इससे कम नहीं होती.
तीसरी और सबसे अहम
बात जो प्रसिद्ध रही
है, वह है मंदिर
का प्रसाद- लड्डू. आध्यात्म का प्रतीक, अद्भुद
स्वाद और तिरुपति भगवान
की कृपा का साक्षात
प्रतिरूप.
बता दें, तिरुपति
के प्रसिद्ध लड्डू प्रसादम का इतिहास बहुत
समृद्ध और प्राचीन है.
लड्डू प्रसाद तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर की पारंपरिक रीतियों
और भक्ति पूजा से जुड़ा
हुआ है. तिरुपति बालाजी
के मंदिर में लड्डू को
विशेष प्रसाद के रूप में
उन्हें अर्पित किया जाता है
और इसे श्रद्धालु बहुत
श्रद्धा और विश्वास के
साथ ग्रहण करते हैं. दरअसल,
भगवान विष्णु के सभी मंदिरों
में पंचमेवा प्रसाद का बहुत महत्व
है. ये पंचमेवा पांच
तत्वों, पांच इंद्रियों और
पंच भूतों का प्रतीक होते
हैं. इन्हें मिलाकर प्रसाद बनाया जाता है और
इस तरह लड्डू ही
प्रसाद में चढ़ने लगे,
जिसे बेसन, घी, चीनी, काजू,
किशमिश मिलाकर बनाया जाता है. इस
लड्डू की लोकप्रियता और
धार्मिक महत्व ने इसे तिरुपति
मंदिर की पहचान का
एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना दिया. माना
जाता है कि तिरुपति
के लड्डू प्रसादम की शुरुआत 18वीं
शताब्दी में हुई. हालांकि,
लड्डू को कब विशेष
प्रसाद के रूप में
अपनाया गया इस बारे
में कोई स्पष्ट डॉक्यूमेंटेशन
नहीं मिलता है. वैसे लोगों
की अपार श्रद्धा और
इसका प्रसादम के रूप में
वितरण सदियों पुरानी परंपरा है. सबसे खास
बात ये है कि
सैकड़ों साल से ये
मंदिर प्रांगण में होने वाले
धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा रहा
है और दैनिक पूजा
के बाद श्रद्धालुओं के
बीच बड़े पैमाने पर
इसका वितरण किया जाता रहा
है. इसे बनाने की
प्रक्रिया और सामग्री में
सदियों से कोई बदलाव
नहीं आया है और
इसी ने लोगों के
बीच इसके अद्वितीय स्वाद
और पहचान को बनाए रखा
है. बीते दशकों में
इस लड्डू ने तिरुपति के
विशेष नैवेद्य नाम से लोगों
के बीच अलग ही
पैठ बना ली है.
तिरुपति के लड्डू को
2009 में जीआई टैग भी
मिला था. यानी तिरुपति
लड्डू को एक विशिष्ट
पहचान प्राप्त है। इसे केवल
तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर में ही तैयार
किया जा सकता है.
यह टैग इस बात
को तय करता है
कि तिरुपति लड्डू की विशिष्टता और
गुणवत्ता संरक्षित रहे. इन लड्डुओं
को खास सामग्री जैसे
बेसन (चने का आटा),
चीनी, घी, काजू, किशमिश,
इलायची, और अन्य ड्राई
फ्रूट्स के साथ मिलाकर
बनाया जाता है. इसे
खास तौर पर मंदिर
की रसोई में पारंपरिक
विधान से तैयार किया
जाता है, जिसे “पोटू“
कहा जाता है. हर
दिन बड़ी संख्या में
लड्डू तैयार किए जाते हैं.
ये आकार में बड़े,
सुगंगंधित और विशेष स्वाद
वाले होते हैं.लड्डू
की प्रासंगिकता और इसके महत्व
की बात करें तो
भारतीय समाज में लड्डू
शुभ और पवित्रता का
प्रतीक है. लड्डू छोटे-छोटे कतरों या
घी में भुने चूर्ण
को इकट्ठा करके बनाया जाता
है, इसलिए इसे एकता और
संगठन का प्रतीक भी
माना जाता है. इसके
साथ ही तिरुपति के
लड्ड बहुत ही शुभ
और पवित्र माने जाते हैं.
ऐसा माना जाता
है कि इस प्रसादम
को ग्रहण करने से भगवान
वेंकटेश्वर की कृपा प्राप्त
होती है और यह
उनके आशीर्वाद का पतीक है.
तिरुपति लड्डू न केवल स्वादिष्ट
प्रसादम है, बल्कि इसके
पीछे एक धार्मिक और
सांस्कृतिक महत्व भी है. इसे
ग्रहण करने के पीछे
यह विश्वास जुड़ा हुआ है
कि भगवान बालाजी के प्रसाद के
रूप में इसे प्राप्त
करने से सभी मनोकामनाएं
पूरी होती हैं. तिरुपति
बालाजी मंदिर में प्रसाद का
धार्मिक महत्व होने के साथ
ही इससे कई लोककथाएं
भी जुड़ी हुए हैं,
जो इसे और भी
खास बनाती हैं. प्रसाद में
लड्डू को अपनए जाने
के पीछे जो कारण
है, वह द्वापर युग
में भगवान कृष्ण के बालपन की
लीला से जुड़ा हुआ
है. कहते हैं कि
एक बार बाबा नंद
और मां यशोदा भगवान
विष्णु की पूजा कर
रही थीं. नटखट कन्हैया
पास ही खेल रहे
थे. इस बीच नंद
बाबा ने लड्डुओं का
थाल उठाया और भगवान विष्णु
का भोग के लिए
आह्वान किया. जब उन्होंने आंखें
खोलीं तो देखा पूजा
की चौकी पर कन्हैया
बैठे हैं और मजे
से लड्डू खा रहे हैं.
पहले तो नंद बाबा
और यशोदा उन्हें देख मुस्कुराए, फिर
उन्हें याद आया कि
भोग के लड्ड तो
कान्हा खा गया. तब
यशोदा जी ने दोबारा
लड्डू बनाए. नंद बाबा ने
फिर से भोग लगाया,
लेकिन इस बार भी
कान्हा लड्डू खा गए. इस
तरह बार-बार हुआ.
नंद बाबा ने गुस्से
में डांटते हुए कहा, कान्हा,
थोड़ा ठहर जा, भोग
लगा लेने दे, फिर
तू प्रसाद लेना. तब कान्हा ने
तोतली आवाज में कहा
कि, बाबा, बार-बार आप
ही तो मुझे भोग
के लिए बुला रहे
हो और ऐसा कहते
ही श्रीकृष्ण ने नंद बाबा
और यशोदा माता को चतुर्भुज
स्वरूप में दर्शन दिए
और कहा कि आपने
मेरे लिए बहुत स्वादिष्ट
लड्ड बनाए हैं. अब
से ये लड्डू का
भोग भी मेरे लिए
माखन की तरह प्रिय
होगा. तब से ही
बाल कृष्ण को माखन-मिश्री
और चतुर्भुज श्रीकृष्ण को लड्डुओं का
भोग लगाया जाने लगा.
यहां जिक्र करना
जरुरी है कि तिरुपति
मंदिर में श्रीकृष्ण का
ही चतुर्भुज स्वरूप स्थापित है जो भगवान
विष्णु का ही सनातन
स्वरूप है. तिरुपति का
अर्थ है तीनों लोकों
का स्वामी. यहां वह वेंकटेश
श्रीनिवास के रूप में
अपनी पत्नी पद्मा और भार्गवी के
साथ विराजते हैं. पद्मा और
भार्गवी देवी लक्ष्मी के
ही अवतार हैं और श्रीनिवास
वेंकटेश खुद महाविष्णु हैं.
तिरुपति में लड्डू को
भोग और प्रसाद के
रूप में स्वीकार किए
जाने की और भी
कथाएं हैं. भगवान वेंकटेश्वर
(बालाजी) और देवी लक्ष्मी
के बीच एक बार
यह विवाद हुआ कि किसे
अधिक भोग अर्पित किया
जाता है. भगवान वेंकटेश्वर
का मानना था कि उन्हें
सबसे अधिक भोग मिलता
है, जबकि लक्ष्मी माता
ने कहा कि आपको
लगने वाले भोग में
मेरा भी भाग है,
क्योंकि वह धन की
देवी हैं और उके
बिना कोई भी भोग
संभव नहीं है. इस
विवाद को सुलझाने के
लिए दोनों ने एक भक्त
की परीक्षा ली. पहले वह
अपने एक धनी भक्त
के घर गए, जिसने
विभिन्न पकवानों को बनाकर उन्हें
भोग लगाया, लेकिन लक्ष्मी को तृप्ति नहीं
हुई. इसके बाद वह
अपने एक सच्चे भक्त
के घर गए. वहां
उस भक्त ने अपने
घर बचे हुए आटे,
कुछ फल-मेवे को
मिलाकर लड्डू बनाकर खिलाया. इससे तुरंत भगवान
बालाजी तृप्त हो गए. इसके
बाद उन्होंने लड्डू को अपने प्रिय
भोग की मान्यता दी.एक और कथा
के अनुसार, एक समय जब
तिरुमला की पहाड़ियों पर
भगवान वेंकटेश्वर की मूर्ति स्थापित
की जा रही थी,
तब मंदिर के पुजारी इस
उधेड़बुन में थे कि
प्रभुको प्रसाद में क्या अर्पित
करें, तभी एक बूढ़ी
मां हाथ में लड्डू
का थाल लेकर उधर
आईं और उन्होंने प्रथम
नैवेद्य चढ़ाने की मांग की.
जब पुजारियों ने इसे भोग
लगाकर प्रसाद रूप में ग्रहण
किया तो इसके दिव्य
स्वाद से वह दंग
रह गए. उन्होंने बूढ़ी
माई से कुछ पूछना
चाहा तो देखा कि
वो गायब थीं. तब
माना गया कि खुद
देवी लक्ष्मी ने प्रसाद का
संकेत देने के लिए
सहायता की थी. एक
किवदंती यह भी है
कि भगवान बालाजी ने खुद ही
पुजारियों को लड्डू बनाने
की विधि सिखाई थी.
कहा जाता है कि
उसी समय से लड्डू
को भगवान वेंकटेश्वर का विशेष प्रसादम
माना जाने लगा, और
इसे भक्तों के बीच बांटने
की परंपरा शुरू हुई. एक
प्रसिद्ध कथा है कि
जब भगवान वेंकटेश्वर ने देवी पद्मावती
से विवाह किया, तो उन्हें विवाह
के लिए धन की
जरूरत थी. इसके लिए
उन्होंने धन के देवता
कुबेर ससे कर्ज लिया
था. मान्यता है कि आज
भी भगवान वेंकटेश्वर उस कर्ज को
चुकाने के लिए धरती
पर मौजूद हैं. इसलिए प्रभु
तिरुपति बालाजी भक्तों से दान ले
रहे हैं और अपनी
हुंडी (गुल्लक) भर रहे हैं.
लड्डू प्रसादम को इस कर्ज
से जोड़कर देखा जाता है,
क्योंकि यह भगवान के
भक्तों को उनके आशीर्वाद
के रूप में दिया
जाता है,
और बदले में भक्त
अपनी श्रद्धा के अनुसार दान
करते हैं, जिससे भगवान
वेंकटेश्वर कर्ज चुका सकेंगे.
पंचगव्य विधि के जरिए श्रद्धालु कर सकते है क्षमा याचना
तिरूमला के प्रसाद में
जानवरों की चर्बी मिलने
के बाद इससे आहत
आस्थावानों में मचा विवाद
थमने का नाम नहीं
ले रहा है। मिलावट
भी ऐसी-वैसी नहीं,
इस लड्डू में मिला है-
बीफ फैट, फिश ऑयल
और एनिमल टैलो. ये जानकारियां सामने
आने के बाद देशभर
में फैले तिरुपति के
श्रद्धालुओं में आक्रोश है।
लगातार पवित्र लड्डू में मिलावट के
दोषियों पर कार्रवाई की
मांग की जा रही
है. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी बीएचयू के
एक कार्यक्रम में चिंता जता
चुके है। ऐसे में
काशी विद्वत कर्मकांड परिषद ने श्रद्धालुओं को
अभक्ष्य ग्रहण करने के प्रायश्चित
कराने की बात कही
है। उनका कहना है
कि श्रद्धालु विद्वतजनों से परामर्श लेकर
अभक्ष्य ग्रहण करने का प्रायश्चित
कर सकते हैं। काशी
विद्वत कर्मकांड परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष
और श्री काशी विश्वनाथ
मंदिर न्यास के पूर्व अध्यक्ष
आचार्य अशोक द्विवेदी का
कहना है कि काशी
के विद्वतजनों से परामर्श लेकर
श्रद्धालु पंचगव्य के जरिए अभक्ष्य
ग्रहण करने का प्रायश्चित
कर पाएंगे. उनका कहना है
कि अभक्ष्य प्रसाद खिलाकर जो पाप हुआ
जिन्हें इसकी ग्लानि मन
में है उनको प्रायश्चित
करना चाहिए. काशी विद्वत कर्मकांड
परिषद श्रद्धालुओं के प्रायश्चित करने
में मदद करेगा. जिन
भक्तों को ग्लानि है
उन्हें प्रायश्चित करवाया जाएगा. उन्होंने कहा कि प्रायश्चित
के आदि देवता नारायण
हैं, तिरुपति साक्षात नारायण हैं. भगवान या
शालिग्राम को स्थापित करके
सर्वप्रायश्चित का विधान हो.
जिन्होंने भी प्रसाद खाया
है वह मंत्र से
अभिमंत्रित करके तत्काल पंचगव्य
प्राशन करें. इसके लिए गायत्री
मंत्र से गोमूत्र, गंधक
द्वारा इति मंत्र से
गोमय, आपियायश्वसमेति मंत्र से गो दुग्ध,
दधिकराग्रे मंत्र से गो दधि,
एजोसि मंत्र से गोघृत, देवस्यत्वा
मंत्र से गंगाजल अथवा
क्षेत्रीय कोई नदी का
जल को अभिमंत्रित करें।
इसके साथ ही कुशा
का त्रिकुश बनाकर कुशा की जड़
से पांचों को मिलाना है।
इसके बाद यत्वगस्तिगतम पापं...
इस श्लोक से 12 बार ऊं कहकर
पंचगव्य का प्राशन करें।
कर्मकांड परिषद जल्द ही प्रायश्चित
हवन के लिए पत्र
जारी करेगा।
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