छठ की तैयारी में जुटे पुरबिया, जमकर
हो रही ’कोसी’ की खरीदारी
बाजार में
सूप
और
डलिया
सहित
फल-फूल
आदि
की
दुकानें
सज
चुके
हैं
90 रुपये से 100 रुपये
के
बीच
सूप
बिक
रहा
है
बहंगिया बहंगी
लचकत
जाए...,
केलवा
के
पात
पर
उगेलन
सुरुजमल
झांके
झुके...
उग
हे
सूरज
देव...
जोड़े-जोड़े
फलवा
सुरुज
देव...
सहित
अन्य
लोकगीतों
के
धून
गूंजने
लगे
है
सुरेश गांधी
वाराणसी। दिवाली की पूजा-पाठ
व जश्न के बाद
अब छठ पूजा की
तैयारी तेज हो गयी
है। वाराणसी सहित पूरे पूर्वांचल
में बड़ी संख्या में
लोग छठ मनाते हैं।
लोग घरों के आसपास
की सफाई में जुटे
है, तो प्रशासन घाटों
की। घाटों को आकर्षक विद्युत
झालरों के साथ ही
जगह-जगह तोरण द्वार
बनाए जा रहे हैं.
लाल बहादुर शास्त्री घाट पर रंग रोगन का कार्य किया जा रहा है। छठ व्रतियों में किसी प्रकार
की परेशानियों का सामना न
करना पड़े, इसे लेकर
जिलाधिकारी एस राजलिंगम ने
छठ पूजा समितियां को
आवश्यक दिशा निर्देश दिया
हैं. साथ ही बाजारों
में ’कोसी’ की जमकर खरीदारी
की जा रही है.
बहंगिया बहंगी लचकत जाए..., केलवा
के पात पर उगेलन
सुरुजमल झांके झुके... उग हे सूरज
देव... जोड़े-जोड़े फलवा
सुरुज देव... पहिले पहिल हम कइनी
छठ बरतिया... सहित अन्य लोकगीतों
के धून गूंजने लगे
है।
पूर्वांचल का सबसे बड़ा
महापर्व छठ 5 नवंबर से
शुरू होगा। चार दिनों तक
चलने वाले इस पर्व
की शुरूआत नहाय-खाय के
साथ हो रही है।
पहले दिन व्रती इस
दिन व्रती महिलाएं चने की दाल,
लौकी और भात प्रसाद
में ग्रहण करेंगी। दूसरे दिन 6 नवंबर को खरना होगा।
इस दिन गुड़ की
खीर और रोटी का
प्रसाद ग्रहण किया जाएगा। इसी
के साथ लगातार 36 घंटे
का निर्जला व्रत प्रारंभ होगा।
7 नवंबर को अस्तगामी सूर्य
देव को अर्घ्य दिया
जाएगा और 8 नवंबर को
उदयगामी सूर्यदेव को अर्घ्य दिया
जाएगा। इसी के साथ
व्रत पूर्ण होगा। व्रत के लिए
खासकर ठेकुआ का प्रसाद बनाया
जाता है। इस दौरान
छठी मैया और भगवान
सूर्यदेव की विशेष पूजा
अर्चना की जाती है.
घर की महिलाएं इस
दौरान संतान की खुशहाली और
लंबी उम्र की कामना
के लिए व्रत रखती
हैं.
लक्ष्मी यादव ने बताया
कि यह पर्व सूर्य
देव और छठी मैया
को समर्पित चार दिवसीय उत्सव
है. इस पर्व में
महिलाएं संतान के कल्याण के
लिए व्रत रखती हैं
और सूर्य देव को अर्घ्य
देती हैं. इस पर्व
में 36 घंटे का निर्जला
व्रत रखा जाता है.
5 नवंबर को नहाय-खाय
से अनुष्ठान शुरू होगा. व्रती
प्रातः स्नान-ध्यान कर भगवान सूर्य
को अर्घ देकर उनसे
शक्ति की कामना करेंगे.
इसके बाद घरों में
पूजा-अर्चना कर कद्दू की
सब्जी, अरवा चावल का
भात व चना दाल
तैयार कर इसे भगवान
को अर्पित करने के बाद
स्वयं ग्रहण करेंगे. फिर इसे प्रसाद
स्वरूप वितरित करेंगे. दूसरे दिन यानी 6 नवंबर
को बुधवार को खरना अनुष्ठान
होगा. दिन भर उपवास
रह कर सूर्यास्त के
बाद व्रती भगवान की पूजा-अर्चना
कर खीर, रोटी, केला
का नैवेद्य देने के बाद
स्वयं इसे ग्रहण करेंगे.
फिर इसे प्रसाद स्वरूप
वितरित किया जायेगा. इसके
साथ ही व्रतियों का
36 घंटे का निर्जला उपवास
शुरू हो जायेगा. तीसरे
दिन गुरुवार को व्रती छठ
घाट पर अस्ताचलगामी भगवान
सूर्य को अर्घ देंगे.
इससे पूर्व प्रातः स्नान-ध्यान के बाद प्रसाद
बनाने की तैयारी शुरू
करेंगे. दोपहर तक प्रसाद तैयार
कर डाला भरेंगे. इसके
बाद परिजनों व सगे-संबंधियों
के साथ लोकगीत गाते
हुए छठ घाट जायेंगे.
व्रती आठ नवंबर को
उदयाचलगामी भगवान भास्कर को अर्घ देंगे.
इसके बाद हवन कर
सबके लिए मंगलकामना करेंगे.
प्रसाद वितरण के बाद व्रती
घर आकर पारण करेंगे.
दउरा, सूप की खरीदारी शुरू
महापर्व को लेकर व्रतियों
व उनके परिजनों ने
खरीदारी शुरू कर दी
है. कपड़ा से लेकर
दउरा, सूप, मिट्टी के
बर्तन, अनाज, चूल्हा, कांसे के बर्तन सहित
अन्य पूजन सामग्री की
खरीदारी हो रही है.
लोग अपनी जरूरत के
हिसाब से खरीदारी कर
रहे हैं. बाजार में
सूप 90 से 100 रुपये पीस बिक रहा
है. सूप दुमका व
उसके आसपास के इलाकों से
मंगाया गया है. मालूम
हो कि इस इलाके
में बांस के बहुतायत
होने व अच्छी कारीगरी
के कारण सूप मंगाया
जाता है. सूप विक्रेता
सुमित होरो ने बताया
कि इसके अलावा खूंटी,
मुरहू, तोरपा सहित अन्य इलाकों
से भी सूप सहित
अन्य सामान मंगाये जाते हैं.
सामग्री का नाम व कीमत (रुपये में)
सामग्री कीमत
सूप 90 से 100
मीडियम
सूप 50 से
60
छोटा
सूप 35 से
40
गोल
सूप 200 से 220
पंखा 35 से 40
टोकरी
प्लेन 110 से
120
बड़ी
टोकरी 150 से
160
छोटी
टोकरी 100 से
120
बड़ा
दउरा 500 से
550
मीडियम
दउरा 330 से
350
छोटा
दउरा 260 से
280
मिट्टी
का चूल्हा 100 से
250
लोहा
व चदरा का
चूल्हा
प्लेट के साथ 350 से
500
नारियल
छालटा 25 से
40 पीस
’कोसी’ का एक विशेष महत्व
’छठ’ पूजा में
’कोसी’ का विशेष महत्व
है. इस पर्व पर
’कोसी भरने’ की परंपरा को
बहुत ही महत्वपूर्ण माना
जाता है. मान्यता है
कि अगर कोई मनोकामना
पूरी नहीं हो रही
है या असाध्य रोग
है तो ’कोसी’ भरने
का संकल्प लिया जाता है,
जिससे मनोकामनाएं पूरी होने के
साथ ही कष्टों से
मुक्ति भी मिलती है.
इसलिए हर साल ’छठ’
पर्व पर ’कोसी’ भरकर
छठी मैया के प्रति
आभार व्यक्त किया जाता है.
कहते है सूर्य भगवान
या छठी मैया जिनकी
मनोकामनाओं को पूरा कर
देती हैं. वह लोग
मिट्टी से बने हाथी
पर अर्घ्य देते हैं. ’कोसी’
सिर्फ वही लोग भरते
हैं, जिनकी मनोकामना पूरी होती है,
हर कोई इस प्रक्रिया
का फॉलो नहीं करता
है. इसीलिए बाजार में कोसी की
जमकर खरीदारी की जाती है.
कोई एक ’कोसी’ खरीदता
है तो कोई अनेक
कोसी को खरीदकर अपने
घर ले जाता है.
इस बार भी कोसी
की काफी डिमांड है.
इसके दाम 400 रुपये से शुरू होकर
600 रुपये के बीच है.
साधारण वाली कोसी 400 रुपये
की है, जबकि रंगीन
’कोसी’ की कीमत 600 रुपये
है. पिछले साल की तुलना
में इस बार कोसी
की मांग काफी ज्यादा
है.“ ’कोसी’ भगवान गणेश की प्रतिमा
की तरह होती हैं,
लेकिन इनमें 4 पैर होते हैं.
साथ ही प्रतिमा के
ऊपर दीपक लगाए जाते
हैं. बाजारों में कोसी की
कीमत उसके डिजाइन और
रंगों पर निर्भर करती
है.
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