Saturday, 12 July 2025

सावन और शिव : श्रद्धा, तप और भक्ति की अविरल धारा

सावन और शिव : श्रद्धा, तप और भक्ति की अविरल धारा 

श्रावण मास केवल धार्मिक आयोजनों का समय नहीं है, यह अपने भीतर झांकने का भी अवसर है। शिव की भक्ति हमें संयम सिखाती है- व्रत, उपवास, ब्रह्मचर्य आदि। उनका तप हमें ध्यान और मौन का महत्व समझाता है। उनकी वेशभूषा - भस्म, जटाजूट, व्याघ्रचर्म. यह सब त्याग और वैराग्य के प्रतीक हैं। और उनका परिवार - नंदी, नाग, भूत, गण, यह समरसता और समावेशिता का बोध कराता है। जब समाज में तनाव, हिंसा और वैमनस्य बढ़ रहा हो, तब शिव का यह स्वरूप हमें सिखाता है कि सहिष्णुता और समत्व ही सच्चे समाधान हैं। आज सावन केवल आस्था का पर्व नहीं, बल्कि भारतीय जीवनशैली का दर्पण है। इसमें धर्म है, दर्शन है, पर्यावरण है, लोक परंपरा है और आत्मचिंतन भी। इस सावन सोमवार पर हम केवल शिवालय में जल चढ़ाने तक सीमित रहें, बल्कि शिव के सिद्धांतों को आत्मसात करें - सहजता, सरलता, सहिष्णुता और सत्य को. वैसे भी श्रावण की यह वर्षा केवल जल नहीं लाती, यह आत्मा को शुद्ध करती है। शिव केवल पूज्य नहीं, वे प्रेरणा हैं, जीवन को सरल और सच्चा बनाने की प्रेरणा. हर-हर महादेव की गूंज में घुला होता है हर कष्ट का समाधान. “नमः शिवायका स्वर जब सावन के बादलों के संग गूंजता है, तब भारत की आत्मा शिवमय हो जाती है 

सुरेश गांधी

शिव का प्रिय मास सावन भक्ति ही नहीं जलाभिषेक बन जाता है लोककल्याण का माध्यम. सूर्य, चंद्र और अग्नि से जुड़ी त्रिनेत्री महिमा और वर्षा ऋतु का अद्भुत योग. श्रावण मास वह महीना जब धरती पर भक्ति की वर्षा होती है। जब हर-हर महादेव और बम-बम भोले की गूंज से वातावरण गुंजायमान हो उठता है। यह केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि सनातन आस्था का जीवंत प्रवाह है। सावन, वह मास है जो स्वयं देवाधिदेव महादेव को प्रिय है। पुराणों के अनुसार सोमवार का दिन शिव की पूजा के लिए श्रेष्ठ माना गया है। किंतु महाशिवरात्रि के बाद श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार का विशेष महत्व है। इस मास में व्रत, उपवास, रुद्राभिषेक, शिव कवच पाठ और महामृत्युंजय जप जैसे कर्म साधकों के जीवन को अध्यात्मिक ऊर्जा से भर देते हैं। मतलब साफ है श्रावण मास का प्रत्येक सोमवार भारतवर्ष में केवल व्रत-उपवास या धार्मिक परंपरा का दिन नहीं होता, यह आत्मशुद्धि, श्रद्धा और शिवत्व के चिंतन का पर्व होता है। देवों के देव महादेव की आराधना का यह विशेष मास जितना पौराणिक है, उतना ही सांस्कृतिक, सामाजिक और दार्शनिक भी है। सावन के सोमवारों में जो जनमानस उमड़ता है, वह केवल भक्तिभाव का ही प्रतीक नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति की जड़ों से जुड़ने की परंपरा का विस्तार है। श्रावण सोमवार शिव की आराधना का समय है, परंतु इसका प्रभाव एक व्रत या पूजा से आगे जाता है। यह जीवन के हर क्षेत्र में संतुलन, शांति और साधना का आह्वान करता है।

महादेव का स्वरूप हमें सिखाता है कि त्याग में महानता है, सहजता में दिव्यता है और सृजन-संहार दोनों ही जीवन का हिस्सा हैं। सावन का सोमवार केवल एक दिन नहीं, बल्कि आत्मानुशासन, भक्ति और प्रकृति से जुड़ाव का समग्र पर्व है। और इस पर्व के केंद्र में हैं भोलेनाथ, जिनके दर्शन में भारतीय संस्कृति की सहजता, समरसता और सनातनता झलकती है। इस सावन सोमवार पर आवश्यकता है कि हम केवल अभिषेक और पूजन तक सीमित रहें, बल्कि शिव के आदर्शों को अपने जीवन में उतारें कृ संयम, करुणा, साहस और समता को अपनाएं। यही सच्चा शिवत्व है। यही श्रावण का सार है। सावन मास की शुरुआत सूर्य के कर्क राशि में प्रवेश के साथ होती है। भगवान शंकर के त्रिनेत्रों में दाहिने सूर्य, बाएं चंद्रमा और मध्य में अग्नि का वास है। जब सूर्य कर्क में प्रवेश करता है तो वर्षा ऋतु का आगमन होता है। यह वर्षा शिव के उष्ण शरीर को शीतलता प्रदान करती है। यही कारण है कि इस मास में जलाभिषेक का विशेष महत्व है. यह भोलेनाथ को सुकून और भक्त को पुण्य का वरदान देता है। शास्त्रों में जल को पंचतत्वों में श्रेष्ठ माना गया है। जल में भगवान विष्णु का वास बताया गया है, और इसेनारभी कहा गया है। इसलिए ही विष्णु कोनारायणकहा जाता है। जब यही जल श्रद्धा और मंत्रों के साथ शिवलिंग पर चढ़ता है, तो वह साधक के लिए महाऔषधि का कार्य करता है। शिवपुराण में उल्लेख है कि सावन में शिव को जल अर्पण करने से समस्त रोग, शोक, कष्ट और दरिद्रता का नाश होता है। शिव का जलाभिषेक लोक और परलोक दोनों का कल्याण करता है।

सावन केवल पूजा-अर्चना का समय नहीं, बल्कि संयम, साधना और आत्मनियंत्रण का अभ्यास भी है। जो लोग सामान्य दिनों में मांसाहार करते हैं, वे भी सावन में उसका त्याग कर देते हैं। यह त्याग केवल शरीर को शुद्ध करने का माध्यम नहीं, बल्कि आत्मा को शिव के समीप लाने का मार्ग भी है। वह देव जो आडंबर नहीं, केवल भाव का भूखा है - वही शिव है। जो भक्तों की सरल पुकार पर तुरंत प्रसन्न होते हैं, वह भोलेनाथ हैं। सावन के सोमवार व्रत, विशेष रूप से कन्याओं द्वारा योग्य वर की प्राप्ति हेतु किए जाते हैं। गृहस्थ जीवन, आर्थिक समृद्धि और मानसिक शांति की कामना रखने वाले श्रद्धालु भी इस मास में शिव आराधना से कष्टों से मुक्ति पाते हैं। श्रावण मास सनातन परंपरा का वह अनुपम उत्सव है, जिसमें भक्ति, भोग नहीं - त्याग है. उपासना है, विलास नहीं। यह महीना केवल पूजा-पाठ का नहीं, बल्कि भीतर के शिव को जागृत करने का अवसर है। हर शिव भक्त के लिए सावन एक नया संकल्प है - अपने भीतर के अज्ञान, क्रोध, मोह, अहंकार का विष पीकर सच्चे शिवत्व की ओर अग्रसर होने का। भगवान शिव भारतीय दर्शन में एकमात्र ऐसे देवता हैं जो आडंबर से परे हैं - जो श्मशान में निवास करते हैं, रुद्र रूप में अर्घ्य स्वीकारते हैं, जिनके गले में विष है और सिर पर गंगा बह रही है। उनकी पूजा में कोई कठोर नियम नहीं, कोई राजसी विधान नहीं। केवल जल अर्पित कर भी शिव प्रसन्न हो जाते हैं। यह भारतीय आध्यात्मिकता का सबसे लोकतांत्रिक स्वरूप है। श्रावण मास में सोमवार को व्रत रखकर जल, बेलपत्र, दूध धतूरा अर्पित कर भक्त जन भावपूर्वक भोलेनाथ की उपासना करते हैं।

श्रावण मास वर्षा ऋतु का वह कालखंड है जब धरती हरीतिमा से भर जाती है, नदियां उफनती हैं और आकाश मेघों से घिरा होता है। यह प्राकृतिक परिवेश शिवत्व का ही प्रतीक है - उर्वरता, संहार और सृजन तीनों तत्वों का समन्वय। सावन में कांवड़ यात्रा से लेकर शिवालयों की गूंज तक, हर दृश्य श्रद्धा का जीवंत चित्र बन जाता है। इस मास में धर्म केवल आस्था नहीं रहता, वह उत्सव बन जाता है - घर-घर, गली-गली और गांव-गांव। श्रावण मास का सबसे बड़ा सामाजिक-धार्मिक उत्सवकांवड़ यात्राहै। करोड़ों शिवभक्त - ग्रामीण से लेकर शहरी, युवा से लेकर वृद्ध - अपने कंधों पर गंगाजल की कांवड़ लेकर सैकड़ों किमी की पदयात्रा पर निकलते हैं। यह यात्रा केवल आस्था नहीं, त्याग, तपस्या और संयम का प्रतीक है। इसमें समाज की समरसता भी है - हर जाति, वर्ग, क्षेत्र और भाषा के लोग एक ही शिवनाम में संगठित हो जाते हैं। इस वर्ष भी लाखों कांवड़िए हरिद्वार, वाराणसी, प्रयागराज, देवघर, उज्जैन, नासिक जैसे तीर्थों में जुटे हैं। यह दृश्य एक जीवंत भारत का प्रमाण है - जहां शिवत्व केवल मंदिर तक सीमित नहीं, वह जीवन दर्शन है। शिव भारतीय संस्कृति के आदि स्रोत हैं। वे केवल देव नहीं, चेतना हैं। योगियों के वे आराध्य हैं, संतों के वे पथप्रदर्शक हैं और गृहस्थों के लिए वे आदर्श हैं। शिव का तांडव जहां ब्रह्मांडीय विनाश का प्रतीक है, वहीं उनका ध्यानस्थ स्वरूप गहन समाधि का बोध कराता है।

श्रावण मास में यह दोनों ही भाव विशेष रूप से जागृत होते हैं - एक ओर भक्त रुद्राभिषेक करते हैं, तो दूसरी ओर ध्यान और जप में लीन रहते हैं। सावन का प्रभाव केवल धार्मिक नहीं, सामाजिक भी है। इस मास में मेलों, जलाभिषेक, सामूहिक पूजा और भंडारों के आयोजन से सामाजिक समरसता बढ़ती है। जाति, वर्ग, संप्रदाय और क्षेत्रीय भेदभाव समाप्त हो जाता है। कांवड़ियों की सेवा में लगे युवा, महिलाएं और स्थानीय समाज यह दर्शाते हैं कि शिव का स्वरूप केवल पूज्य नहीं, प्रेरणा भी है। आज जब समाज में कट्टरता, तनाव और विघटन की प्रवृत्तियां बढ़ रही हैं, तब सावन और शिव भक्ति एक साधन बन सकते हैं पुनर्संयोजन का - भावात्मक एकता और आध्यात्मिक ऊर्जा का। शिव की उपासना बेलपत्र, गंगा जल, आक, धतूरा, भस्म और मिट्टी से की जाती है। ये सब प्रकृति के सहज उपादान हैं। सावन में शिव की पूजा के बहाने पर्यावरण से सीधा जुड़ाव होता है। वृक्षों का संरक्षण, जल का महत्व और मिट्टी की शुद्धता कृ सबका संदेश निहित है इस आराधना में। आज जब पर्यावरणीय संकट विकराल होता जा रहा है, सावन और शिव की परंपरा हमें याद दिलाती है कि धर्म और प्रकृति विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हैं। सावन की फुहारों के साथ जब भक्तजनहर हर महादेवका जयघोष करते हैं, तो वह केवल एक धार्मिक उद्घोष नहीं होता, वह भारतीय लोकजीवन की आत्मा का उद्घाटन होता है।

लोकदेवता से लेकर ब्रह्मांडीय चेतना तक

शिव एक ऐसे देवता हैं जिनकी उपासना एक माला, एक लोटा जल और एक बेलपत्र से भी हो सकती है। वे जितने महान हैं, उतने ही सरल। यही कारण है कि वह हर वर्ग, हर आयु और हर विचार के आराध्य हैं। किसान, मजदूर, व्यापारी, संत, गृहस्थ दृ सभी के मन में शिव के प्रति अगाध श्रद्धा है। उनका गले में विष, सिर पर गंगा, त्रिनेत्र और तीसरी आंख में ब्रह्मांडीय सत्य का संकेत, यह बताता है कि शिव केवल पूजनीय देव नहीं, बल्कि एक दर्शन हैं। और यही दर्शन सावन में जनमानस के माध्यम से पुनर्जीवित होता है।

तप, त्याग और तत्व का पर्व

श्रावण का महीना शिव को विशेष प्रिय है। शास्त्रों में वर्णन है कि समुद्र मंथन के दौरान जब हलाहल विष निकला, तब भगवान शिव ने उसे पी लिया और तब से श्रावण मास को शिव की कृपा का काल माना गया। इस मास में सोमवार का विशेष महत्व है। व्रत, रुद्राभिषेक, शिव चालीसा, महामृत्युंजय जप, जलाभिषेक दृ ये सब आत्मशुद्धि और भक्ति के भाव का प्रतीक हैं। बनारस, उज्जैन, देवघर, अमरकंटक, बैद्यनाथधाम जैसे शिवधामों में इन सोमवारों को लाखों की संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं। मंदिरों में रात्रि जागरण से लेकर अलसुबह की मंगला आरती तक वातावरण शिवमय हो उठता है।

सावन और प्रकृति पूजन

सावन वर्षा ऋतु का समय है। खेतों में हरियाली लहलहाने लगती है, नदियाँ अपनी पुरानी चाल में बहने लगती हैं, तालाब, पोखरे पुनः जीवंत हो उठते हैं। यह काल केवल भक्ति का नहीं, कृषि और प्रकृति से जुड़ाव का भी है। शिव की पूजा में जिन वस्तुओं का प्रयोग होता है, बेलपत्र, आक, धतूरा, गंगाजल, मिट्टी, भस्म - ये सभी सीधे प्रकृति से जुड़े हैं। इस पूजा में रासायनिक भोग या कृत्रिम वस्तुएं नहीं होतीं, जिससे यह संदेश स्वतः निकलता है कि भक्ति का मूल प्रकृति में निहित है।

कांवड़ यात्रा : शिवभक्ति की जनक्रांति

श्रावण मास की विशेष परंपरा है कांवड़ यात्रा, जिसमें श्रद्धालु गंगाजल लेने के लिए हरिद्वार, गंगोत्री, प्रयागराज, वाराणसी जैसे पवित्र तीर्थों से जल भरकर पैदल अपने निकटतम शिव मंदिर तक जाते हैं। यह केवल एक यात्रा नहीं, तपस्या और श्रद्धा का अद्भुत संगम है। वर्षों से यह परंपरा केवल जीवित है, बल्कि विशाल होती जा रही है। इसमें कोई जाति-वर्ग का भेद नहीं, कोई बड़ा-छोटा नहीं - सब एकसमानभोले के भक्तबनकर आगे बढ़ते हैं। गांवों में स्वागत, रात्रि विश्राम की व्यवस्था, जल सेवा दृ यह सब समाज की सामूहिक चेतना को मजबूत करता है।

पशु पक्षियों में भी होता है नव चेतना का संचार

श्रावण का सम्पूर्ण मास मनुष्यों में ही नही अपितु पशु पक्षियों में भी एक नव चेतना का संचार करता है। इस मौसम में प्रकृति अपने पुरे यौवन पर होती है। रिमझिम फुहारे साधारण व्यक्ति को भी कवि हृदय बना देती है। सावन में मौसम का परिवर्तन होने लगता है। प्रकृति हरियाली और फूलो से धरती का श्रुंगार कर देती है, परन्तु धार्मिक परिदृश्य से सावन मास भगवान शिव को ही समर्पित रहता है। मान्यता है कि शिव आराधना से इस मास में विशेष फल प्राप्त होता है। इस महीने में हमारे 8 ज्योतिर्लिंगों की विशेष पूजा, अर्चना और अनुष्ठान की बड़ी प्राचीन एवं पौराणिक परम्परा रही है। रुद्राभिषेक के साथ साथ महामृत्युंजय का पाठ तथा काल सर्प दोष निवारण की विशेष पूजा का महत्वपूर्ण समय रहता है। यह वह मास है जब कहा जाता है जो मांगोगे वही मिलेगा। भोलेनाथ सबका भला करते है।

सावन की मान्यता

हिंदू धर्म में सावन का महीना काफी पवित्र माना जाता है। इसे धर्म-कर्म का माह भी कहा जाता है। सावन महीने का धार्मिक महत्व काफी ज्यादा है। यही ववह है कि बारह महीनों में से सावन का महीना विशेष पहचान रखता है। इस दौरान व्रत, दान पूजा-पाठ करना अति उत्तम माना जाता है। इससे कई गुणा फल भी प्राप्त होता है। इस महीने में ही पार्वती ने शिव की घोर तपस्या की थी और शिव ने उन्हें दर्शन भी इसी माह में दिए थे। तब से भक्तों का विश्वास है कि इस महीने में शिवजी की तपस्या और पूजा पाठ से शिवजी जल्द प्रसन्न होते हैं और जीवन सफल बनाते हैं। ऐसी मान्यता है कि प्रबोधनी एकादशी (सावन के प्रारंभ) से सृष्टि के पालन कर्ता भगवान विष्णु सारी जिम्मेदारियों से मुक्त होकर अपने दिव्य भवन पाताललोक में विश्राम करने के लिए निकल जाते हैं। वे अपना सारा कार्यभार महादेव को सौंप देते है। भगवान शिव पार्वती के साथ पृथ्वी लोक पर विराजमान रहकर पृथ्वी वासियों के दुःख-दर्द को समझते है। उनकी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं, इसलिए सावन का महीना खास होता है।

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