श्रद्धा और भक्ति का ज्वार, “हर-हर महादेव” से गूंजा काशी विश्वनाथ धाम
श्रावण मास के पहले दिन काशी में पुष्पवर्षा से हुआ बाबा विश्वनाथ का अभिनव अभिषेक
तीन शिखरों
से
पुष्पवर्षा,
हरि-हर
परंपरा
के
साथ
गूंजा
"हर-हर
महादेव",
श्रद्धालुओं
को
मिली
"श्रावण
स्वागत
भेंट"
सुरेश गांधी
वाराणसी. श्रावण मास का आरंभ
काशी में इस बार
परंपरा और नवाचार के
एक अद्भुत संगम के रूप
में हुआ। देवाधिदेव महादेव
के परम धाम श्री
काशी विश्वनाथ मंदिर में श्रद्धा, सौंदर्य
और शिव तत्व की
त्रैतीय अवधारणा पर आधारित त्रिशिखर
पुष्पवर्षा ने श्रद्धालुओं को
अभिभूत कर दिया। सुबह
मंगला आरती के पश्चात
जैसे ही मंदिर के
तीन प्रमुख शिखरों—भगवान विश्वनाथ, दंडपाणि और वैकुण्ठेश्वर—से
एक साथ पुष्पवर्षा शुरू
हुई, पूरा धाम “हर-हर महादेव” के
घोष से गूंज उठा।
पुष्पवर्षा से सजे त्रिशिखर दर्शन
के लिए हजारों श्रद्धालु
उपस्थित रहे। जब पुष्पों
की वर्षा हुई तो श्रद्धालुओं
की आँखें भावविभोर हो उठीं। हर
ओर “हर-हर महादेव”
और “जय काशी विश्वनाथ”
के जयघोष गूंजने लगे। श्रद्धालुओं ने
इस आयोजन को "अभूतपूर्व" और "आत्मिक अनुभव" बताया।
1. तीन
शिखरों से पुष्पवर्षा – भगवान
विश्वनाथ, दंडपाणि और वैकुण्ठेश्वर के
ऊपर से श्रद्धालुओं पर
पुष्पवर्षा कर शिखर पूजन।
2. हरि-हर परंपरा की
अभिव्यक्ति – गर्भगृह से बद्रीनारायण मंदिर
तक हरि-हर साधना
को पुष्पवर्षा के माध्यम से
जीवंत किया गया।
3. मां
अन्नपूर्णा को पुष्प थाल
समर्पण – तीन पुष्प थालों
को माँ अन्नपूर्णा को
अर्पित कर उन्हें "श्रावण
स्वागत भेंट" के रूप में
भक्तों में वितरित किया
गया।
श्रद्धालुओं को मिला अभिनव स्वागत भेंट प्रसाद
अभूतपूर्व पुष्पवर्षा और भक्तों को
मिले "श्रावण स्वागत भेंट" ने पूरे आयोजन
को और विशेष बना
दिया। इन पुष्प थालों
में अर्पित फूलों को अक्षत प्रसाद
के साथ दिनभर श्रद्धालुओं
में वितरित किया गया। मंदिर
परिसर में आये श्रद्धालुओं
के स्वागत में सीईओ विश्व
भूषण मिश्रा, डिप्टी कलेक्टर शंभु शरण, तहसीलदार
मिनी एल. शेखर भी
सम्मिलित रहे।
त्रैतीय तत्व का सुंदर प्रतिरूप
मंदिर न्यास के मुख्य कार्यपालक
अधिकारी विश्व भूषण मिश्रा ने
बताया कि यह आयोजन
शिव तत्व में निहित
त्रैतीय दर्शन का जीवंत प्रतिरूप
था। त्रिदेव, त्रिशूल, त्रिपुण्ड, त्रिलोक जैसे सिद्धांत इस
पूरे आयोजन में गहरे समाहित
रहे। यह काशी की
उसी सनातन परंपरा का विस्तार है
जो नवीनता में भी आध्यात्मिक
मूल को नहीं भूलती।
काशी बनी धर्म और नवाचार की प्रयोगशाला
श्रावण के प्रथम दिन
का यह अनूठा आयोजन
यह दर्शाता है कि काशी
न केवल आस्था की
जीवंत नगरी है, बल्कि
धार्मिक नवाचारों की अग्रदूत भी
है। यहां की परंपराएं
केवल जीवित नहीं, बल्कि विकसित हो रही हैं।
> "सनातन परंपरा तभी जीवित रह
सकती है जब उसमें
समयानुकूल प्रस्तुति और पवित्र नवीनता
जुड़ी हो। काशी इस
दिशा में आदर्श है।"
— स्वामी विष्णु तीर्थ, दशाश्वमेध पीठ
No comments:
Post a Comment