Monday, 28 July 2025

तीर्थों का समागम : काशी से रामेश्वरम तक सनातन की सेतु-स्थापना

काशी-रामेश्वरम के बीच आध्यात्मिक नवाचार, योगी आदित्यनाथ ने किया तीर्थ जल का ऐतिहासिक आदान-प्रदान

तीर्थों का समागम : काशी से रामेश्वरम

तक सनातन की सेतु-स्थापना 

श्रावण की तीसरी सोमवारी पर काशी धाम से रामेश्वरम तक बही सनातन एकता की गंगा

सुरेश गांधी

वाराणसी। श्रावण मास की तीसरी सोमवारी केवल एक तिथि नहीं, बल्कि भारत के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पुनरुत्थान का प्रतीक बन गई। जिस प्रकार काशी विश्वनाथ धाम से रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग तक पवित्र तीर्थ जल और रेत का आदान-प्रदान हुआ, वह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि उत्तर से दक्षिण तक फैले भारतवर्ष की सनातन आत्मा को जोड़ने का एक विराट प्रयत्न है।

इस पहल का राजनीतिक से कहीं अधिक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में यह संकल्प ना केवल मूर्त रूप में परिणत हुआ, बल्कि देश को यह संदेश भी मिला कि भारत की शक्ति उसके तीर्थों में, उसके विश्वास में और उसके सांस्कृतिक सेतु में बसती है। जहां काशी को आदि विश्वेश्वर की राजधानी कहा गया है, वहीं रामेश्वरम को स्वयं भगवान श्रीराम की आस्था से जुड़ा, समुद्र किनारे स्थित प्राचीन ज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाता है। 

त्रिवेणी संगम का जल और प्रयाग की पावन रेत, जब रामेश्वरम के अभिषेक हेतु पहुंचती है, तो वह केवल एक तीर्थ सामग्री नहीं होती, वह भारत की सांस्कृतिक एकता का अमृत होती है। और जब रामेश्वरम सेकोडी तीर्थमका जल वापस काशी आता है, तो दक्षिण की भक्ति की गंगा उत्तर के ज्ञान में विलीन हो जाती है। यह परंपरा हमें हमारे प्राचीन भारत की याद दिलाती है दृ जहां तीर्थ यात्राएं केवल मोक्ष का मार्ग नहीं, बल्कि राष्ट्र को जोड़ने वाली अदृश्य डोर थीं। केदारनाथ से रामेश्वरम, द्वारका से पुरी तक फैली यह तीर्थ यात्रा भारत को भारत बनाती थी।

सच कहा जाए तो यह आदान-प्रदान एक अवचेतन सांस्कृतिक पुनर्जागरण की शुरुआत है। राजनीति और प्रशासन की सीमाओं से परे, जब श्रद्धा और परंपरा का हाथ थामकर शासन चलता है, तभी ऐसे ऐतिहासिक क्षण जन्म लेते हैं। काशी के त्रिशूल और रामेश्वरम के रेत कणों ने मिलकर यह सिद्ध कर दिया कि सनातन केवल एक धर्म नहीं, बल्कि भारत की आत्मा है कृ जो युगों-युगों तक जीवित रहेगी, बहती रहेगी, जोड़ती रहेगी।

श्रावण मास की तीसरी सोमवारी पर काशी नगरी एक ऐतिहासिक आध्यात्मिक क्षण की साक्षी बनी। श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग एवं श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग (तमिलनाडु) के मध्य पवित्र तीर्थ जल और रेत के पारस्परिक आदान-प्रदान की परंपरा का विधिवत शुभारंभ किया गया। यह परंपरा सनातन धर्म की दो महान धरोहरों के बीच एकता और सांस्कृतिक समन्वय का सशक्त प्रतीक बन गई।

काशी विश्वनाथ धाम में आयोजित विशेष समारोह में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने त्रिवेणी संगम जल और प्रयागराज की पवित्र रेत को रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग के प्रतिनिधियों दृ सीआरएम अरुणाचलम एवं कोविलूर स्वामी को सौंपा। यह जल एवं रेत श्री रामनाथस्वामी (रामेश्वरम) के अभिषेक में उपयोग की जाएगी। 

बदले में रामेश्वरम से प्राप्त कोडी तीर्थम का पावन जल श्रावण पूर्णिमा पर भगवान विश्वेश्वर के विशेष अभिषेक में प्रयुक्त होगा। यह परंपरा शास्त्रोक्त मान्यता के अनुरूप भारत के उत्तर और दक्षिण भारत के प्रमुख तीर्थों को एक सूत्र में पिरोने का अभिनव प्रयास है।

तीन तीर्थों का त्रिवेणी संगम

काशी, प्रयागराज और रामेश्वरम कृ ये तीनों तीर्थ अब आध्यात्मिक त्रिकोण के रूप में एक दूसरे से जुड़ गए हैं। यह परंपरा धार्मिक पर्यटन और सांस्कृतिक एकता को भी नई दिशा देगी। काशी धाम के त्रिशिखर की छाया में आयोजित इस अनुष्ठान ने सनातन परंपरा को नई ऊंचाई दी है। इस अवसर पर प्रमुख सचिव धर्मार्थ कार्य एवं संस्कृति मुकेश मेश्राम, मंडलायुक्त एस. राजलिंगम, पुलिस आयुक्त मोहित अग्रवाल, जिलाधिकारी सत्येंद्र कुमार, और काशी विश्वनाथ धाम के मुख्य कार्यपालक अधिकारी सहित बड़ी संख्या में अधिकारी एवं श्रद्धालु उपस्थित रहे। यह आयोजन काशी की आध्यात्मिक गरिमा और रामेश्वरम की धर्मपरंपरा को जोड़ते हुए भारत की एकात्म सांस्कृतिक पहचान का जीवंत प्रतीक बन गया है।

No comments:

Post a Comment

धर्म संघ में मुख्यमंत्री ने किया पर्यटन सुविधा केंद्र का निरीक्षण, मंदिर में की पूजा, गौशाला में खिलाया गुड़

धर्म संघ में पर्यटन विकास की नई गाथा , सनातन परंपरा को सशक्त करता मुख्यमंत्री का दौरा धर्म संघ में मुख्यमंत्री ने किया ...