Wednesday, 13 August 2025

अमेरिकी टैरिफ से कारपेट इंडस्ट्री में पसरा सन्नाटा, निर्यात पर ब्रेक

आत्मनिर्भरता और नए बाजार की तलाश बनेगी संजीवनी

अमेरिकी टैरिफ से कारपेट इंडस्ट्री में पसरा सन्नाटा, निर्यात पर ब्रेक 

यूरोप-एशिया में नए बाजार और सरकारी राहत ही बचा सकते हैं उद्योग

निर्यात घटने से हजारों परिवारों की रोज़ी पर संकट, सरकार को तत्काल रणनीति बनानी होगी

निर्यात में संभावित गिरावट से सरकार को भी राजस्व का भारी नुकसान

लागत दक्षता, प्रीमियम ब्रांडिंग और नए बाजारों में विस्तार से चुनौती को अवसर में बदलने की बनानी होगी पैठ

सुरेश गांधी

वाराणसी. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा भारतीय कालीन वस्त्र उत्पादों पर 50 फीसदी तक टैरिफ लगाने की घोषणा ने कालीन उद्योग की नींव हिला दी है। दुनिया के सबसे बड़े कालीन निर्यात केंद्र वाराणसी समेत मिर्जापुर, भदोही, जौनपुर, आगरा सहित जयपुर, पानीपत, दिल्ली जम्मू-कश्मीर के कारोबारियों में सिर्फ सन्नाटा जैसा माहौल है, बल्कि लाखों बुनकरों की रोज़ी-रोटी पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।

अमेरिका, जो अब तक भारतीय कालीनों का सबसे बड़ा खरीदार रहा है, के इस फैसले से निर्यात में तेज़ गिरावट की आशंका है। या यूं कहे अमेरिकी टैरिफ ने भारत के कालीन उद्योग के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है, क्या हम अपनी ताकत पर नए रास्ते बना पाएंगे, या वैश्विक व्यापार की राजनीति हमारे सुनहरे धागों को उधेड़ देगी? निर्यातकों के अनुसार, अमेरिका द्वारा भारतीय वस्त्र एवं कालीन उत्पादों पर शुल्क बढ़ाने के फैसले ने निर्यात उद्योग को झटका दिया है।

अनुमान है कि इसका भारत की जीडीपी पर 0.2 से 0.3 प्रतिशत तक का असर पड़ेगा। हालांकि, विशेषज्ञों और उद्यमियों का मानना है कि सही रणनीति अपनाकर इस चुनौती को अवसर में बदला जा सकता है। यह सिर्फ व्यापार का मामला नहीं, बल्कि रोज़गार, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और सांस्कृतिक पहचान की भी लड़ाई है. हालांकि अमेरिकी टैरिफ भारतीय टेक्सटाइल और कालीन उद्योग के लिए चुनौती है, लेकिन यह संकट लागत दक्षता, नवाचार और प्रीमियम ब्रांडिंग के जरिए अवसर में बदला जा सकता है। सही रणनीति के साथ भारत सिर्फ अमेरिकी बाजार में अपनी हिस्सेदारी बचा सकता है, बल्कि पाकिस्तान-बांग्लादेश जैसे प्रतिस्पर्धियों को भी मात दे सकता है। यह सिर्फ व्यापार का मामला नहीं, बल्कि रोज़गार, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और सांस्कृतिक पहचान की भी लड़ाई है।

निर्यातकों में मायूसी, आर्डर घटने लगे

कालीन निर्यातकों के अनुसार, टैरिफ बढ़ने के साथ अमेरिकी खरीदार पहले ही वैकल्पिक स्रोतों की तलाश करने लगे हैं। पिछले एक हफ्ते में ही ऑर्डरों की संख्या 20-25 फीसदी तक घट चुकी है। उद्योग जगत का अनुमान है कि अगले छह महीने में निर्यात में 30-40 फीसदी की गिरावट सकती है, जिससे हज़ारों परिवार बेरोज़गारी की मार झेल सकते हैं। 

सरकार को भी होगा झटका

कालीन उद्योग सालाना अरबों रुपये का विदेशी मुद्रा राजस्व देता है। निर्यात में गिरावट से केवल उद्योग बल्कि केंद्र और राज्य सरकारों को भी जीएसटी निर्यात शुल्क से होने वाली आय में भारी कमी आएगी। विशेषज्ञों का कहना है कि यह सिर्फ उद्योग का नहीं, बल्कि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का भी संकट है।

अब आत्मनिर्भरता और नए बाजार की चुनौती

व्यापार विशेषज्ञ मानते हैं कि यह समय आत्मनिर्भर भारत की दिशा में ठोस कदम बढ़ाने का है। घरेलू मांग को बढ़ाने, यूरोप, मिडिल ईस्ट, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीकी देशों में नए बाजार तलाशने की पहल तुरंत करनी होगी। इसके साथ ही, -कॉमर्स और ऑनलाइन निर्यात प्लेटफॉर्म को बढ़ावा देना जरूरी है, ताकि अमेरिकी बाजार पर निर्भरता कम हो सके।

सरकार से पैकेज और नीति बदलाव की मांग

कालीन निर्यातक संघ ने केंद्र सरकार से विशेष आर्थिक पैकेज, ब्याज दर में छूट, निर्यात सब्सिडी और वैश्विक प्रदर्शनियों में भारतीय उत्पादों के प्रचार के लिए मदद की मांग की है। उनका कहना है कि अगर तुरंत कदम नहीं उठाए गए तो कालीन उद्योग, जिसे कभीपूर्व का सुनहरा धागाकहा जाता था, अपनी चमक खो सकता है।

बुनकरों में बढ़ी बेचैनी

भदोही के बुनकर सनवारुल मियां कहते हैं, “हमारे लिए यह रोज़ी-रोटी का सवाल है। अगर अमेरिकी बाजार बंद हो गया तो हमारे पास मशीन है, पूंजी, ही कोई दूसरा विकल्प।

बाजार हिस्सेदारी पर खतरा

भारतीय टेक्सटाइल उद्योग में 4.5 करोड़ से अधिक लोग सीधे और करीब 6 करोड़ लोग अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं। बनारसी साड़ी, कश्मीरी कालीन, चंदेरी, खादी जैसे उत्पाद विश्वभर में भारतीय हस्तकला की पहचान हैं। अमेरिकी टैरिफ वृद्धि के बाद पाकिस्तान, बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देशों को अप्रत्यक्ष लाभ मिल रहा है, क्योंकि उन्हें अमेरिकी बाजार में शुल्क छूट या कम दर का फायदा है। विशेषज्ञों का मानना है कि खाड़ी देश (यूएई, सऊदी अरब, कतर, ओमान), यूरोप, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे बाजार भारतीय उत्पादों के लिए बड़े अवसर हैं। इन देशों में भारतीय प्रवासी समुदाय और उच्च क्रय-शक्ति वाले ग्राहक मौजूद हैं। फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (एफटीए) और सीईपीए जैसे समझौतों से भी नए बाजार में पैठ बनाने का मौका मिल सकता है।

रणनीति का रोडमैप

लागत दक्षता : सस्ती बिजली-गैस आपूर्ति, ऑटोमेशन और आधुनिक मशीनरी, क्लस्टर-आधारित थोक कच्चा माल खरीद व्यवस्था से 8 से 12 फीसदी लागत में कमी।

प्रीमियम ब्रांडिंग : जीआई टैग, ऑर्गेनिक कॉटन, प्राकृतिक रंगाई औरहैंडक्राफ्टेडपहचान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रमोट करना।

बाजार विस्तार : एमाजॉन ग्लोबल, इट्सी जैसे -प्लेटफॉर्म पर भारतीय ब्रांड स्टोर, अंतरराष्ट्रीय मेलों (हेमटेक्स्टाइल जर्मनी, इंडेक्सदुबई) में सक्रिय भागीदारी।

सरकार और उद्योग जगत की भूमिका

सीईपीसी के चेयरमैन कुलदीप राज वाट्ठल का कहना है किहर उद्योग की जरूरत के मुताबिक नीतिगत सहारा और नए बाजारों में प्रवेश की राह आसान बनाने से टैरिफ के असर को कम किया जा सकता है।सांसद विनोद बिन्द ने आश्वासन दिया है कि उद्यमियों को लॉजिस्टिक सपोर्ट, उत्पादन लागत घटाने और वैकल्पिक बाजार तलाशने में हरसंभव मदद दी जाएगी।

भारत-अमेरिका व्यापार : एक नजर में

आंकड़ा                                                 विवरण

भारत का कुल निर्यात (2024)            775 अरब डॉलर

अमेरिका को निर्यात                            118 अरब डॉलर (कुल का 15 फीसदी)

अमेरिका से आयात                             54 अरब डॉलर

मुख्य निर्यात उत्पाद                             टेक्सटाइल, कालीन, जेम्स-एंड-ज्वैलरी, ऑर्गेनिक केमिकल्स, फार्मा

मुख्य आयात उत्पाद                           मशीनरी, एविएशन पार्ट्स, इलेक्ट्रॉनिक आइटम, एलएनजी

टैरिफ वृद्धि का प्रभाव                         जीडीपी पर 0.2से.3 फीसदी तक असर, टेक्सटाइल-कालीन पर सीधा दबाव

पिछले वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत का कुल कालीन निर्यात लगभग ₹13,500 करोड़ रहा, जिसमें से अकेले अमेरिका को ₹5,400 करोड़ (लगभग 28 फीसदी) का निर्यात हुआ। उद्योग से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि इस टैरिफ से ऑर्डर घट सकते हैं और छोटे कारीगर सबसे अधिक प्रभावित होंगे। भदोही के निर्यातक ओपी गुप्ता ने कहा, अमेरिका में बढ़े दाम वहां के खरीदारों को महंगे लगेंगे, जिससे बिक्री घटने का खतरा है। इससे लाखों कारीगरों की रोजी-रोटी प्रभावित होगी। केवल कालीन ही नहीं, बल्कि वस्त्र (टेक्सटाइल्स), रेडीमेड गारमेंट्स, चमड़ा (लेदर प्रोडक्ट्स) और हस्तशिल्प (हैंडीक्रैफ्टस) के निर्यात पर भी सीधा असर पड़ेगा।

वर्ष 2023-24 में वस्त्र और रेडीमेड गारमेंट्स का निर्यातः ₹2.1 लाख करोड़ (अमेरिका को 32 फीसदी)

चमड़ा उत्पादों का निर्यात : ₹34,000 करोड़ (अमेरिका को 25 फीसदी

हस्तशिल्प का निर्यात : ₹25,000 करोड़ (अमेरिका को 35 फीसदी)

विशेषज्ञ मानते हैं कि यह टैरिफ अगर लंबे समय तक लागू रहा तो भारत के पारंपरिक निर्यात सेक्टर को वैकल्पिक बाजार तलाशने होंगे, वरना उत्पादन और रोजगार दोनों पर नकारात्मक असर पड़ेगा। वहीं, केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय ने संकेत दिए हैं कि अमेरिका के साथ कूटनीतिक स्तर पर इस मुद्दे को उठाया जाएगा।

कालीन उद्योग का निर्यात परिदृश्य (2024-25 अनुमान)

उत्पाद श्रेणी                           कुल निर्यात मूल्य (यूएसडी मिलियन)             

अमेरिका में हिस्सेदारी        अमेरिका को निर्यात (यूएसडी मिलियन)

हैंडमेड कारपेट                    1,740                    45 फीसदी            783

हैंडलूम और टेक्सटाइल     2,250                    38 फीसदी            855

फ्लोर कवरिंग (अन्य)          640                         42           फीसदी  268

कुल                                        4,630     41 फीसदी औसत              1,906

ये आंकड़े ईपीसीएच (इक्सपोर्ट प्रामेशन कौंसिल फार हैंडीक्रैफ्टस) और वाणिज्य मंत्रालय के 2024-25 के अनुमानों पर आधारित हैं।

2023-24 में सिर्फ भदोही से 16,500 करोड़ रुपये का निर्यात हुआ, जिसमें अमेरिका का हिस्सा लगभग 12,800 करोड़ रुपये था।

कोविड के बाद संभल रहा उद्योग फिर संकट में

कोविड-19 महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद अंतरराष्ट्रीय व्यापार पहले ही मंदी के दौर से गुजर रहा है। पिछले दो साल में निर्यात में कुछ सुधार आया था, लेकिन अमेरिकी टैरिफ लागू होते ही लागत बढ़ जाएगी और भारतीय निर्यातकों की प्रतिस्पर्धा क्षमता घटेगी।

 

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