राखी के धागों में आस्था, अटूट प्रेम और शुभ योग का संगम
रक्षाबंधन पर
सर्वार्थ
सिद्धि
योग,
सौभाग्य
योग
और
अभिजीत
मुहूर्त
जैसे
शुभ
संयोग
एक
साथ
बन
रहे
हैं
ज्योतिषाचार्यों
के
अनुसार,
यह
वर्ष
भाई-बहन
के
रिश्ते
में
मजबूती,
आर्थिक
सुख
और
परिवार
की
समृद्धि
का
संकेत
देता
है
रक्षाबंधन पर
भद्रा
काल
का
प्रभाव
नहीं
रहेगा,
जिससे
बहनें
बिना
किसी
बाधा
के
पूरे
मुहूर्त
में
राखी
बांध
सकेंगी
सुरेश गांधी
वाराणसी. श्रावण मास के शुक्ल
पक्ष की पूर्णिमा तिथि
पर मनाया जाने वाला रक्षाबंधन
का पावन पर्व इस
बार 9 अगस्त, शनिवार को मनाया जाएगा।
इस दिन बहनें अपने
भाइयों की कलाई पर
राखी बांधकर उनकी लंबी उम्र
और सुख-समृद्धि की
कामना करेंगी, जबकि भाई जीवनभर
बहन की रक्षा का
संकल्प लेंगे। रक्षाबंधन पर भद्रा काल
का प्रभाव नहीं रहेगा, जिससे
बहनें बिना किसी बाधा
के पूरे मुहूर्त में
राखी बांध सकेंगी। 9 अगस्त
को सर्वार्थ सिद्धि योग, सौभाग्य योग
और अभिजीत मुहूर्त जैसे तीन शुभ
संयोग बन रहे हैं।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, यह
समय भाई-बहन के
रिश्तों को और प्रगाढ़
बनाने, आर्थिक समृद्धि और पारिवारिक सुख,
विश्वास और जिम्मेदारी निभाने
के लिए अत्यंत अनुकूल
है। राखी के इन
धागों में आस्था, इतिहास
और प्रेम की गांठें बंधी
होती हैं। इस बार
का शुभ योग और
भद्रा रहित मुहूर्त इसे
और भी मंगलमय बना
रहा है। वाराणसी में
यह दिन गंगा की
लहरों, मंदिरों की घंटियों और
राखी के रंग-बिरंगे
धागों के साथ रिश्तों
की मिठास में डूब जाता
है।
तिथि और शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा
तिथि 8 अगस्त को दोपहर 2ः12
बजे प्रारंभ होकर 9 अगस्त को दोपहर 1ः24
बजे समाप्त होगी। उदयातिथि के अनुसार पर्व
का उत्सव 9 अगस्त को ही मनाया
जाएगा। राखी बांधने का
मुख्य मुहूर्त - सुबह 5ः47 बजे से
दोपहर 1ः24 बजे तक
(कुल 7 घंटे 37 मिनट), ब्रह्म मुहूर्त - सुबह 4ः22 से 5ः02
बजे तक, अभिजीत मुहूर्त
- दोपहर 12ः17 से 12ः53
बजे तक, सौभाग्य मुहूर्त
- 9 अगस्त सुबह 4ः08 बजे से
10 अगस्त तड़के 2ः15 बजे तक
व सर्वार्थ सिद्धि योग - 9 अगस्त सुबह 5ः47 से दोपहर
2ः23 बजे तक है.
खास यह है कि
इस बार रक्षाबंधन पर
भद्रा काल का प्रभाव
नहीं रहेगा, जिससे बहनें बिना किसी बाधा
के पूरे मुहूर्त में
राखी बांध सकेंगी।
पौराणिक महत्व
रक्षाबंधन का उल्लेख महाभारत,
पुराणों और प्राचीन इतिहास
में मिलता है. द्रौपदी द्वारा
श्रीकृष्ण की उंगली पर
वस्त्र का टुकड़ा बांधना,
आजीवन सुरक्षा का प्रतीक बन
गया। असुरों पर विजय के
लिए इंद्राणी ने इंद्र की
कलाई पर रक्षा सूत्र
बांधा। रक्षाबंधन के दिन सुभद्रा
ने बलराम को राखी बांधकर
सुरक्षा और प्रेम का
संदेश दिया। रानी कर्णावती ने
मुगल बादशाह हुमायूँ को राखी भेजकर
चित्तौड़ की रक्षा का
अनुरोध किया, जिसे हुमायूँ ने
सम्मानपूर्वक स्वीकार किया। यह पर्व समय
के साथ भाई-बहन
के रिश्ते से आगे बढ़कर
सामाजिक एकता और सहयोग
का प्रतीक बना।
काशी की विशेष परंपराएं
वाराणसी में रक्षाबंधन का
दिन धार्मिक अनुष्ठानों के साथ गंगा
स्नान से शुरू होता
है। सुबह से ही
दशाश्वमेध, अस्सी और पंचगंगा घाट
पर महिलाओं और परिवारों की
भीड़ उमड़ती है। बहनें राखी
और पूजा की थाली
लेकर पहले काशी विश्वनाथ
मंदिर में जाकर भगवान
शिव से भाई की
दीर्घायु की प्रार्थना करती
हैं। कई घरों में
राखी बांधने से पहले गंगा
जल से भाई का
तिलक करने की परंपरा
है। पुराने मोहल्लों जैसे मैदागिन, ठठेरी
बाजार और गोडौलिया में
आज भी ‘हाथ से
बनी राखियां’ विशेष पसंद की जाती
हैं। शहर के पंडित
परिवार इस दिन रक्षा
सूत्र का विशेष पूजन
करते हैं और फिर
भाइयों की कलाई पर
बांधते हैं, जिसे पूरे
वर्ष शुभ माना जाता
है।
सांस्कृतिक महत्व
भारत के विभिन्न
राज्यों में रक्षाबंधन की
परंपराएं अलग-अलग रूप
में मनाई जाती हैं.
उत्तर भारत में बहनें
भाइयों को तिलक कर
राखी बांधती हैं, मिठाई खिलाती
हैं। राजस्थान और हरियाणा में
‘लूण पूजा’ की जाती है,
जिसमें भाई-बहन एक-दूसरे की आरती करते
हैं। नेपाल में इसे ‘जनै
पूर्णिमा’ के रूप में
मनाया जाता है, जहां
यज्ञोपवीत धारण करने की
भी परंपरा है।
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