ट्रंप टैरिफ से हैंडमेड कालीन उद्योग पर संकट,
प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप की गुहार
मांग की
अनदेखी
किया
गया
तो
छीन
सकता
है
लाखों
बुनकरों
की
आजीविका
सुरेश गांधी
वाराणसी. भारत के हैंडमेड
कालीन उद्योग पर एक बार
फिर संकट के बादल
मंडरा रहे हैं। अमेरिका
द्वारा भारतीय हस्तनिर्मित कालीनों पर लगाए गए
अतिरिक्त 5 फीसदी टैरिफ से यह परंपरागत
और श्रम-प्रधान उद्योग
बुरी तरह प्रभावित हुआ
है। देशभर के कालीन उत्पादक
क्षेत्रों, भदोही, वाराणसी, मिर्जापुर, शाहजहांपुर, पानीपत, आगरा, जयपुर, और श्रीनगर में
काम करने वाले लाखों
ग्रामीण बुनकरों और शिल्पकारों की
आजीविका पर इसका सीधा
असर पड़ा है।
❝ऑर्डर रद्द, कीमतें घटीं, उत्पादन ठप❞
कालीन निर्यातकों और कारीगरों का कहना है कि अमेरिका के इस नए शुल्क के चलते अंतरराष्ट्रीय खरीदारों ने पुराने ऑर्डर या तो रद्द कर दिए हैं या कीमतों में भारी कटौती की मांग करने लगे हैं। कई ऑर्डर री-निगोशिएशन के कारण समय पर पूरे नहीं हो पा रहे हैं। इससे भारत के परंपरागत कालीन क्लस्टर में 30 फीसदी से अधिक कारोबार में गिरावट आई है।
भारत के पारंपरिक उद्योग पर सीधा प्रहार
टर्की, चीन और पाकिस्तान
जैसे देशों से मशीन से
बने सस्ते कालीनों का आयात पहले
ही चुनौती बना हुआ है।
अब अमेरिका द्वारा लगाया गया यह नया
टैरिफ भारतीय कालीनों की प्रतिस्पर्धा-क्षमता
को और कमजोर कर
रहा है। ज्ञात हो
कि अमेरिका भारत के हैंडमेड
कारपेट एक्सपोर्ट का 60 फीसदी तक का बाजार
है।
निर्यात नहीं, संस्कृति और रोजगार का भी नुकसान
प्रधानमंत्री से विशेष राहत पैकेज की मांग
भारतीय हैंडमेड कारपेट इंडस्ट्री के प्रतिनिधियों ने
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस
संकट पर तत्काल हस्तक्षेप
करने और एक विशेष
राहत पैकेज की घोषणा करने
की अपील की है।
उनका कहना है कि
यदि सरकार तुरंत कदम नहीं उठाती,
तो यह उद्योग अस्थायी
नहीं, बल्कि स्थायी क्षति की ओर बढ़
जाएगा.
ट्रेड प्रमोशन काउंसिल के चेयरमैन की चेतावनी
भारतीय कालीन निर्यात संवर्धन परिषद के चेयरमैन श्री कुलदीप राज वाटर ने कहा, “यदि समय रहते नीति-निर्माण स्तर पर हस्तक्षेप नहीं हुआ, तो भारत की एक ऐतिहासिक कला और लाखों परिवारों की आजीविका समाप्त हो सकती है।“ उन्होंने निर्यातकों और कारीगर संगठनों की तरफ से प्रधानमंत्री से अपील की है कि वह इस संकट में हस्तक्षेप करें और कालीन व टेक्सटाइल उद्योग के लिए विशेष राहत पैकेज घोषित करें। साथ ही अमेरिका के साथ राजनयिक स्तर पर व्यापार संतुलन की पहल की जाए।
उनका कहना है
कि यह संकट केवल
आर्थिक नहीं बल्कि भारत
की सांस्कृतिक हस्तकला विरासत और पारंपरिक रोजगार
की रीढ़ पर चोट
है। यदि समय रहते
हस्तक्षेप नहीं हुआ तो
आने वाले महीनों में
बेरोजगारी और घाटे का
बड़ा विस्फोट हो सकता है।
उनका कहना है कि
भारत के हैंडमेड कालीन
उद्योग पर एक बार
फिर संकट के बादल
मंडरा रहे हैं। अमेरिका
द्वारा भारतीय हस्तनिर्मित कालीनों पर लगाए गए
अतिरिक्त 5 फीसदी टैरिफ से यह परंपरागत
और श्रम-प्रधान उद्योग
बुरी तरह प्रभावित हुआ
है।
खरीदारों ने पुराने ऑर्डर या तो रद्द कर दिए हैं या
कीमतों में भारी कटौती की मांग करने लगे हैं
सीईपीसी के प्रशासनिक सदस्य
वासिफ अंसारी व असलम महबूब
का कहना है कि
अमेरिका के इस नए
शुल्क के चलते अंतरराष्ट्रीय
खरीदारों ने पुराने ऑर्डर
या तो रद्द कर
दिए हैं या कीमतों
में भारी कटौती की
मांग करने लगे हैं।
कई ऑर्डर री-निगोशिएशन के
कारण समय पर पूरे
नहीं हो पा रहे
हैं। इससे भारत के
परंपरागत कालीन क्लस्टर में 30 फीसदी से अधिक कारोबार
में गिरावट आई है। उनका
कहना है कि टर्की,
चीन और पाकिस्तान जैसे
देशों से मशीन से
बने सस्ते कालीनों का आयात पहले
ही चुनौती बना हुआ है।
अब अमेरिका द्वारा लगाया गया यह नया
टैरिफ भारतीय कालीनों की प्रतिस्पर्धा-क्षमता
को और कमजोर कर
रहा है। अमेरिका भारत
के हैंडमेड कारपेट एक्सपोर्ट का 60 फीसदी तक का बाजार
है, इसका असर भी
दिखने लगा है.
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