निजी घरानों को लाभ पहुंचाने के लिए गढ़ा गया निजीकरण दस्तावेज
6500 करोड़ में सौदा! एक
लाख
करोड़
की
संपत्ति
बेचने
की
साजिश
का
आरोप
संघर्ष समिति
ने
पावर
कॉरपोरेशन
का
ऐलान,
निरस्त
न
हुआ
आरएफपी
तो
नियामक
आयोग
पर
मौन
प्रदर्शन
निजीकरण दस्तावेज़
को
बताया
लूट
का
खेल,
कहा
निजी
घरानों
की
मिलीभगत
से
रचा
गया
‘मेगा
घोटाला’
पूर्वांचल-दक्षिणांचल
निगम
की
संपत्ति
औने-पौने
दाम
पर
बेचने
की
तैयारी
समिति ने
कहा,
समझौते
का
उल्लंघन
कर
निगमों
को
बेचा
जा
रहा
सुरेश गांधी
वाराणसी. उत्तर प्रदेश में बिजली निगमों
के निजीकरण को लेकर बवाल
गहराता जा रहा है।
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश ने विद्युत नियामक
आयोग से मांग की
है कि पावर कॉरपोरेशन
द्वारा पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल
विद्युत वितरण निगम के निजीकरण
हेतु भेजे गए आरएफपी
(रिक्वेस्ट फॉर प्रपोज़ल) दस्तावेज
को निरस्त किया जाए। समिति
का आरोप है कि
यह दस्तावेज निजी घरानों की
मिलीभगत से तैयार किया
गया है और इसे
मंजूरी मिली तो प्रदेशभर
के बिजली कर्मी नियामक आयोग के दफ्तर
पर मौन प्रदर्शन करने
को मजबूर होंगे।
संघर्ष समिति ने आयोग के
अध्यक्ष अरविंद कुमार को याद दिलाया
कि 5 अक्टूबर 2020 को जब वे
उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन के
अध्यक्ष थे, तब एक
लिखित समझौते में यह वचन
दिया गया था कि
बिजली कर्मियों को विश्वास में
लिए बिना किसी भी
क्षेत्र में निजीकरण नहीं
होगा। समिति का कहना है
कि मौजूदा दस्तावेज उस समझौते का
सीधा उल्लंघन है। समिति ने
आरोप लगाया कि पूर्वांचल व
दक्षिणांचल निगमों के निजीकरण का
यह प्रस्ताव अवैध ढंग से
नियुक्त ट्रांजैक्शन कंसल्टेंट ग्रांट थॉर्टन द्वारा तैयार किया गया है,
जो निजी घरानों के
हित साधने के लिए रचा
गया है। आरएफपी दस्तावेज़
को समिति ने “मेगा घोटाले
का दस्तावेज़” बताते हुए कहा कि
इसकी आड़ में एक
लाख करोड़ रुपये की
परिसंपत्तियों को मात्र 6500 करोड़
रुपये के रिज़र्व प्राइस
पर बेचने की साजिश रची
गई है।
विधुत
कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति उप्र,वाराणासी मीडिया
सचिव प्रभारी अंकुर
पाण्डेय ने आगरा का
उदाहरण देते हुए कहा
कि जिस तरह एटी
एंड सी हानियां अधिक
दिखाकर शहर की बिजली
व्यवस्था टोरेंट पावर को सौंप
दी गई थी, उसी
प्रकार अब पूर्वांचल और
दक्षिणांचल निगमों को बेचा जा
रहा है। समिति के
अनुसार, टोरेंट पावर हर साल
800 करोड़ रुपये का मुनाफा कमा
रही है, जबकि पावर
कॉरपोरेशन को करीब 1000 करोड़
रुपये का घाटा झेलना
पड़ रहा है। संघर्ष
समिति ने आरोप लगाया
कि निदेशक वित्त निधि नारंग निजीकरण
में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।
समिति का कहना है
कि नारंग ने निजीकरण से
संबंधित 10 से अधिक फाइलों
की छायाप्रतियां अपने पास रख
ली हैं, जिससे गोपनीय
दस्तावेज बाहर जाने का
खतरा है। समिति लंबे
समय से उनके कमरे
को सील करने की
मांग करती रही है।
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने कहा कि
यदि आयोग ने इस
दस्तावेज को निरस्त नहीं
किया तो आंदोलन की
राह अपनानी पड़ेगी। मौन प्रदर्शन की
शुरुआत नियामक आयोग कार्यालय से
होगी। समिति के पदाधिकारियों ने
अवकाश के दिन बैठक
कर सभी जिलों और
परियोजनाओं में जनसंपर्क अभियान
चलाने का निर्णय लिया
है, ताकि जनता को
निजीकरण के नाम पर
होने वाले “घोटाले और लूट” की
सच्चाई से अवगत कराया
जा सके।
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