‘ई-वे बिल’ मुक्त हो कारपेट इंडस्ट्री संजय
इस एक्ट से चाहे वह कारपेट इंडस्ट्री हो या साड़ी या फिर टेक्सटाइल हो ट्रांसपोटेशन में लगे माल परिवहन मालिक सभी की नींद हराम
सुरेश गांधी
भदोही। नए आदेश के तहत ’पचास हजार से अधिक माल परिवहन में ई-वे बिल अनिवार्य है। इसके लिए अस्थाई जीएसटी रजिस्ट्रेशन के लि
ए आपको जीएसटी पोर्टल में जाकर रजिस्ट्रेशन संबधित सभी औपचारिकताएं पूरी करनी होगी। आप माल स्वयं अपने साथ लेकर चलते है तो ई-वे बिल की जरूरत नहीं पड़ेगी, लेकिन अस्थाई जीएसटी नंबर लेना होगा। ई-वे बिल को लेकर सेल्स टैक्स डिपार्टमेंट सख्त हो गया है। उधर इस एक्ट के तहत धरपकड़ में तेजी आने से ट्रांसपोर्टर 50 हजार रुपए से कम का भी माल ई- वे बिल के बगैर लाने व ले जाने के लिए तैयार नहीं हैं। ऐसे में आम जरुरत वाले सामाग्रियों के व्यापारियों की नींद हराम हो गई है। माना जा रहा है कि ट्रांसपोटेश ठप होने से चींजों के दाम में वृद्धि हो सकती है। खासकर उन कारोबारियों को ज्यादा दिक्कत झेलनी पड़ रही है जो अपने ही माल को एक गोदाम की जगह दूसरे गोदाम पर भेज रहे हैं।
रास्ते में उनकी भी जांच हो रही है और रजिस्ट्रेशन न होने पर जुर्माना ठोकी जा रही है। जबकि दोनों गोदाम जीएसटी में रजिस्टर्ड हैं, फिर भी जुर्माना लगाने से व्यापारियों का पारा सातवे आसमान पर पहुंच गया है। कालीन और साड़ी कारोबारियों के लिए ई-वे बिल तो पूरी तरह आफत बन गयी है। क्योंकि उनकी तो पूरी बुनाई से लेकर फिनिशिंग तक बाहर होती है। सीइपीसी के प्रशासनिक सदस्य एवं कालीन निर्यातक संजय गुप्ता की मानें तो कुटीर उद्योग के लिए ई-वे बिल आफत बन गया है। इस बिल से इंडस्ट्री की कमर टूट जायेगी। क्योंकि प्राविधान के मुताबिक 50,000 रुपये से अधिक का माल सड़क के रास्ते ले जाने व ले आने के लिए ई-वे बिल की जरुरत होगी। जबकि कालीन हो या साड़ी दोनों का निर्माण या यूं कहे बुनाई ग्रामीण अंचलों में बेहद गरीब तबका बुनकर करता है। और बुनाई के बाद इसे फैक्ट्री या यूं कहे निर्यातक के पास ले जाता है। इस दौरान अगर वे ई-वे बिल के घनचक्कर में पड़ेंगे तो पकड़े जाने पर उनकी पूरी मेहनताना ही अफसरों के पाॅकेट की भेट चढ़ जायेगा। वे चाहते है कि कम से कम कुटीर उद्योग को इससे मुक्त रखा जाएं। ई-वे बिल का वर्तमान प्रारूप तर्कसंगत नहीं है और व्यापार विरोधी है। व्यापारियों को इससे व्यवहारिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। इसकी सीमा 50 हजार रुपये से बढ़ाकर कम से कम डेढ़ लाख रुपये करना चाहिये। जिन वस्तुओं पर जीएसटी नहीं है उसपर भी ई-वे बिल लगाने की अनिवार्यता का कोई औचित्य नहीं है। बेशक, कालीन हो या साड़ी या अन्य इससे जुड़ी वस्तुएं सभी का निर्माण किसी के फैक्ट्री में नहीं होती। इसका निर्माण से लेकर फिनिशिंग तक ग्रामीण अंचलों या शहरी इलाकों के निचले आबादी के गरीब तबकों के बुनकर करते है। वे कालीन या साड़ी कंपनियों के फैक्ट्री से आर्डर लेते है। उनसे राॅ मैटेरियल लेते है और निर्माण कार्य पूरा करने के बाद फैक्ट्री पहुंचाते हैं। इस दौरान अगर रास्ते में उन्हें ई बिल के नाम पूछताछ की गई और ई’वे बिल रजिस्ट्रेशन न होने की दशा में उनके खिलाफ कार्रवाई की गयी तो लेने के देने पड़ जायेंगे। मतलब साफ है गरीब तबके के इस बुनकर की जितनी हाड़तोड़ मेहनत के बाद मजदूरी मिलनी है वह अफसरों की जेब में चला जायेगा। क्योंकि बुनकरों का कोई रजिस्ट्रशन नहीं होता है। गुड्स एंड सर्विस टैक्स यानी जीएसटी के तहत राज्य के भीतर सामान की आवाजाही के लिए ई-वे बिल लागू होने के बाद बुनकरों में जबरदस्त खौफ है। इसके चलते कालीनों के निर्माण अब तक सामान्य से करीब 30 से 35 प्रतिशत कम हुई है। उनके मुताबिक करीब 80 प्रतिशत कालीनों की बुनाई बाहर ही होती है। इसके चलते व ेअब बुनकर ई-वे बिल की चपेट में आ जायेंगे। नई व्यवस्था के कारण छोटे छोटे बुनकरों के सामने सबसे बड़ी समस्या आ गयी है।
इस एक्ट से चाहे वह कारपेट इंडस्ट्री हो या साड़ी या फिर टेक्सटाइल हो ट्रांसपोटेशन में लगे माल परिवहन मालिक सभी की नींद हराम
सुरेश गांधी
भदोही। नए आदेश के तहत ’पचास हजार से अधिक माल परिवहन में ई-वे बिल अनिवार्य है। इसके लिए अस्थाई जीएसटी रजिस्ट्रेशन के लि

रास्ते में उनकी भी जांच हो रही है और रजिस्ट्रेशन न होने पर जुर्माना ठोकी जा रही है। जबकि दोनों गोदाम जीएसटी में रजिस्टर्ड हैं, फिर भी जुर्माना लगाने से व्यापारियों का पारा सातवे आसमान पर पहुंच गया है। कालीन और साड़ी कारोबारियों के लिए ई-वे बिल तो पूरी तरह आफत बन गयी है। क्योंकि उनकी तो पूरी बुनाई से लेकर फिनिशिंग तक बाहर होती है। सीइपीसी के प्रशासनिक सदस्य एवं कालीन निर्यातक संजय गुप्ता की मानें तो कुटीर उद्योग के लिए ई-वे बिल आफत बन गया है। इस बिल से इंडस्ट्री की कमर टूट जायेगी। क्योंकि प्राविधान के मुताबिक 50,000 रुपये से अधिक का माल सड़क के रास्ते ले जाने व ले आने के लिए ई-वे बिल की जरुरत होगी। जबकि कालीन हो या साड़ी दोनों का निर्माण या यूं कहे बुनाई ग्रामीण अंचलों में बेहद गरीब तबका बुनकर करता है। और बुनाई के बाद इसे फैक्ट्री या यूं कहे निर्यातक के पास ले जाता है। इस दौरान अगर वे ई-वे बिल के घनचक्कर में पड़ेंगे तो पकड़े जाने पर उनकी पूरी मेहनताना ही अफसरों के पाॅकेट की भेट चढ़ जायेगा। वे चाहते है कि कम से कम कुटीर उद्योग को इससे मुक्त रखा जाएं। ई-वे बिल का वर्तमान प्रारूप तर्कसंगत नहीं है और व्यापार विरोधी है। व्यापारियों को इससे व्यवहारिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। इसकी सीमा 50 हजार रुपये से बढ़ाकर कम से कम डेढ़ लाख रुपये करना चाहिये। जिन वस्तुओं पर जीएसटी नहीं है उसपर भी ई-वे बिल लगाने की अनिवार्यता का कोई औचित्य नहीं है। बेशक, कालीन हो या साड़ी या अन्य इससे जुड़ी वस्तुएं सभी का निर्माण किसी के फैक्ट्री में नहीं होती। इसका निर्माण से लेकर फिनिशिंग तक ग्रामीण अंचलों या शहरी इलाकों के निचले आबादी के गरीब तबकों के बुनकर करते है। वे कालीन या साड़ी कंपनियों के फैक्ट्री से आर्डर लेते है। उनसे राॅ मैटेरियल लेते है और निर्माण कार्य पूरा करने के बाद फैक्ट्री पहुंचाते हैं। इस दौरान अगर रास्ते में उन्हें ई बिल के नाम पूछताछ की गई और ई’वे बिल रजिस्ट्रेशन न होने की दशा में उनके खिलाफ कार्रवाई की गयी तो लेने के देने पड़ जायेंगे। मतलब साफ है गरीब तबके के इस बुनकर की जितनी हाड़तोड़ मेहनत के बाद मजदूरी मिलनी है वह अफसरों की जेब में चला जायेगा। क्योंकि बुनकरों का कोई रजिस्ट्रशन नहीं होता है। गुड्स एंड सर्विस टैक्स यानी जीएसटी के तहत राज्य के भीतर सामान की आवाजाही के लिए ई-वे बिल लागू होने के बाद बुनकरों में जबरदस्त खौफ है। इसके चलते कालीनों के निर्माण अब तक सामान्य से करीब 30 से 35 प्रतिशत कम हुई है। उनके मुताबिक करीब 80 प्रतिशत कालीनों की बुनाई बाहर ही होती है। इसके चलते व ेअब बुनकर ई-वे बिल की चपेट में आ जायेंगे। नई व्यवस्था के कारण छोटे छोटे बुनकरों के सामने सबसे बड़ी समस्या आ गयी है।
No comments:
Post a Comment