Monday, 25 February 2019

‘राष्ट्रीय युद्ध स्मारक’ बनेगा देशवासियों का सबसे बड़ा ‘तीर्थ’


राष्ट्रीय युद्ध स्मारक बनेगा देशवासियों का सबसे बड़ा तीर्थ
इंडिया गेट से कुछ ही दूर बनेनेशनल वॉर मेमोरियल को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश को समर्पित किया। यह मेमोरियल देश के उन शहीदों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है, जिनके लिए राष्ट्र सर्वोपरि है। ये वहीं शहीद है जिनकी शहादत पर सवा सौ करोड़ देशवासी सुरक्षित है। ऐसे शहीदों के शौर्य को सलाम है जिनके अदम्य शौर्य और कुर्बानियों की बदौलत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र चमक-दमक रहा है। लेकिन बड़ा सवाल तो यही है देश की सियासत में सर्वाधिक सत्ता में रहे राजनेताओं को अपना परिवार तो याद रहा लेकिन शहिदों के परिवार, उनकी भावनाएं क्यों नहीं याद रहे? इसका जवाब देश का हर नागरिक जानना चाहता है
सुरेश गांधी
हमें नहीं भूलना चाहिए कि ये वही जवान है जो चाहे दुश्मन का वार हो या प्रकृति की मार सबसे पहले हमारी सुरक्षा खातिर अपने प्राणों की आहुति देकर बचाते है। जवानों की इससे बड़ी कुर्बानी और क्या हो सकती है कि जब हम घरों में चैन की नींद सोते है वे हमारी सुरक्षा के लिए सीमा पर पहरा देते है। ऐसे वीर सपूत जो हमें सुरक्षित बनाएं रखने के लिए अपने प्राणों की कुर्बानी दे दी, लेकिन हम उनके लिए कुछ नहीं कर सके। अफसोस इस बात का है कि देश की सत्ता पर सर्वाधिक काबिज रही कांग्रेस ने अपने पूर्वजों की खातिर सैकड़ों मेमोरियल, स्मारक बनवाएं लेकिन वीर जवानों की खतिर कुछ भी नहीं। जबकि शहादत देने वाले सैनिक परिवारों एवं उनके अफसर लगातार इसकी डिमांड करते रहे। हवाला भी दी कि जब दुनिया के हर देश में शहीद मेमोरियल है तो भारत में क्यों नहीं? फिरहाल देर से ही सही अब उनकी मांग पूरी हो चुकी है। इंडिया गेट से कुछ ही दूरी पर बने नेशनल वार मेमोरियल को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र को समर्पित कर दी है। 
बता दें, आजादी के बाद युद्ध में मारे गए सैनिकों के सम्मान में इस युद्ध स्मारक निर्माण किया गया है, वो भी साल भर के अंदर। अब तक 15 अगस्त और 26 जनवरी पर शहीदों को सिर्फ नमन ही किया जाता रहा है। इससे बड़ी बिडंबना और क्या हो सकती है कि भारत में अब तक कोई नेशनल वॉर मेमोरियल नहीं था। बीते दशकों में एक-दो बार प्रयास हुए लेकिन कुछ ठोस हो नहीं पाया। ऐसे में सवाल तो यही है आखिर शहीदों के साथ ये बर्ताव क्यों किया गया? देश के लिए खुद को समर्पित करने वाले महानायकों के साथ इस तरह का अन्याय क्यों किया गया? वो कौन सी वजहें थीं, जिसकी वजह से किसी का ध्यान शहीदों के लिए स्मारक पर नहीं गया? एक ऐसा मेमोरियल, जहां राष्ट्र की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले वीर जवानों की शौर्य-गाथाओं को संजो कर रखा जा सके। बता दें कि मन की बात में मोदी ने कहा था कि इतने सालों तक देश में एक वॉर मेमोरियल का नहीं होने से उन्हें काफी दुख हुआ। शायद यही वजह रही कि जब इस मेमोरियल को मोदी राष्ट्र को समर्पित कर रहे थे तो उन्होंने सवाल खड़ा किया कि बोफोर्स से लेकर हेलीकॉप्टर तक, सारी जांच का एक ही परिवार तक पहुंचना, बहुत कुछ कह जाता है। ये ऐसा परिवार है जो देश को शक्तिशाली बनाने में काफी अनियमितता की। अब यही लोग पाकिस्तान की हां में हां मिलाते हुए पूरी ताकत लगा रहे हैं कि भारत में राफेल विमान ही ना पाए। लेकिन उन्हें करारा झटका तब लगेगा जब अगले कुछ ही महीनों में देश का पहला राफेल, भारत के आसमान में उड़ान भरेगा। जो इनकी सारी कोशिशों और साजिशों को ध्वस्त कर देगा।
गौरतलब है किचक्रव्यूह की संरचना से प्रेरणा लेते हुए बनाए गए राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में चार वृत्ताकार परिसर हैं। इसमें एक ऊंचा स्मृति स्तंभ भी है। जिसके तले में अखंड ज्योति दीप्तमान रहेगी। इंडिया गेट परिसर में पत्थर से बने यह स्मारक 40 एकड़ में है। इस स्मारक में 1971 के भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए जवानों की याद में इंडिया गेट के नीचे 1972 में प्रज्ज्वलित की गई अमर जवान ज्योति भी इसी तरह दीप्तमान रहेगी। इसके निर्माण में कुल 176 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। माना जा रहा है कि यह स्मारक मोदी सरकार के अहम प्रोजेक्ट्स में से एक है। यह स्मारक अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई में जान न्यौछावर करने वाले सैनिक, आजादी के बाद 1962 में भारत-चीन से युद्ध, 1965 में भारत-पाक युद्ध, 1971 में बांग्लादेश निर्माण, 1999 में कारगिल समेत अन्य ऑपरेशन में शहीद हुए जवानों के सम्मान में बनाया गया है। 
खास बात ये है कि इस स्मारक में भारत की किसी एक सेना नहीं बल्कि तीनों सेना के शहीद जवानों को श्रद्धाजंलि अर्पित की गई है। थल सेना, वायु सेना और जल सेना के शहीद जवानों की याद में स्मारक का निर्माण वाकई अद्भुत और सहरानीय है। इस इमारत में लगीं ईंटों पर शहीद जवानों के नाम और पद को भी लिखा गया है। इस स्मारक में एक त्याग का चक्र बनाया गया है, जिसमें 16 दीवारें स्थापित हैं. इन्हीं 16 दीवारों पर 25,942 शहीदों के नाम लिखे गए हैं। नाम, रैंक और रेजिमेंट का उल्लेख किया गया है। इस स्मारक को इंडिया गेट के पास इसलिए बनाया है ताकि देश शहादत को कभी भूले ना। 
बता दें कि ब्रिटिश सरकार ने पहले विश्व युद्ध और अफगान कैंपेन के दौरान शहीद हुए 84 हजार भारतीय जवानों की याद में इंडिया गेट का निर्माण कराया था। बीते साल फरवरी में मेमोरियल के निर्माण का काम शुरू हुआ और इस साल फरवरी तक रिकॉर्ड टाइम में इसे बना लिया गया। मेमोरियल में चार चक्र बनाए गए हैं। अमर चक्र, वीरता चक्र, त्याग चक्र औऱ रक्षक चक्र। मुख्य काम्पलेक्स के पीछे परम योद्धा स्थल भी बनाया गया है। इस पर कई अवॉर्ड विजेताओं के नाम हैं। 1962 के भारत-चीन युद्ध, भारत-पाकिस्तान के 1965, 1971 के युद्ध, श्रीलंका में इंडियन पीस कीपिंग फोर्स के ऑपरेशन और कारगिल युद्ध के शहीदों को मेमोरियल में खास सम्मान दिया गया है। 
मोदी सेना को ताकतवर बना रहे है। देश की सेना को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में वे लगातार काम कर रहे हैं। उन्होंने रक्षा उत्पादन के पूरे इको-सिस्टम में बदलाव की शुरुआत की है। यही वजह है कि आज पूरी दुनिया में भारतीय सेना को सम्मान मिल रहा है। दुनिया के बड़े-बड़े देश भारत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहते हैं। 2016 में देश के इंटरनेशनल फ्लीट रिव्यू में 50 देशों की नौसेनाओं ने हिस्सा लिया था। लेकिन पहले की सरकारों ने देश के वीर बेटे-बेटियों के साथ सैनिकों और राष्ट्र की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ किया। 
यहां तक कि सेना के लिए बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं खरीदी गईं। साल 2009 में सेना ने 1 लाख 86 हजार बुलेट प्रूफ जैकेट की मांग की थी। 2009 से लेकर 2014 तक पांच साल बीत गए, लेकिन सेना के लिए बुलेटप्रूफ जैकेट नहीं खरीदी गई। मोदी ने साढ़े चार वर्षों में 2 लाख 30 हजार से ज्यादा बुलेट प्रूफ जैकेट खरीदी है। लेकिन मोदी सरकार ने हाल ही में 2 लाख 30 हजार से ज्यादा बुलेट प्रूफ जैकेट खरीदीं है। सके अलावा सेना के लिए एक नहीं बल्कि तीन सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल बनाने का फैसला मोदी सरकार ने लिया है। 
सेना के लिए अत्याधुनिक राइफलों को खरीदने और भारत में बनाने का काम भी मोदी सरकार ने ही शुरु किया है। हाल ही में सरकार ने 72 हजार आधुनिक राइफल की खरीद का ऑर्डर दिया है। साथ ही 25 हजार करोड़ रुपए का एम्यूनीशन यानि गोला-बारूद और गोलियां मिशन मोड में खरीदी है। उल्लेखनीय है कि इस तरह का स्मारक बनाने को लेकर पहली पहल 1970 में की गई थी। जिसके बाद 2012 में ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स ने इंडिया गेट के पास जगह को फाइनल किया था। 2012 के बाद से ही शहरी मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और गृह मंत्रालय मिलकर इस प्रोजेक्ट को अंजाम देने में जुटे थे। लेकिन कांग्रेसी सरकारों की अनदेखी के चलते इसे मूर्त रुप नहीं दिया जा सका। मोदी ने साल 2014 में राष्ट्रीय समर स्मारक बनाने के लिए प्रक्रिया शुरु की और आज तय समय से पहले ही इसका लोकार्पण हो गया।

1 comment:

  1. सुरेश गाँधी जी आपका लेख पढ़कर मुझे अचछा लगा किनतु सब से पहले आप अपने नाम के आगे से गाँधी का टाइटिल हटा दे क्यो कि एक तो शहीद हुए देश के बटवारे में दुसरी शहीद हुई देश को बचाने में तीसरे शहीद हुए शान्ति को स्थापित करने के लिये,मै चहता हूँ कि ये तीनों नाम आप स्वंय लिख कर हो सके तो देश को बताए,धन्यवाद चन्द्र कुमार

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