विकास से जीतेंगे आजमगढ़वासियों का दिल : निरहूआ

सुरेश गांधी
लोकसभा चुनाव 2019 में
आजमगढ़ सीट सबसे
दिलचस्प रही। इस
सीट पर मुख्यमंत्री
रहे अखिलेश यादव
से भोजपुरी सिने
सटार दिनेश लाल
यादव उर्फ निरहुआ
का मुकाबला था।
निरहुआ ने अपने
दमदार प्रचार प्रसार
व सोहरत के
जरिए देशभर का
ध्यान अपनी ओर
आकर्षित किया। लेकिन इस
सीट से 2014 में
जीते सपा मुखिया
मुलायम सिंह यादव
से भी अधिक
वोट पाकर भी
निरहुआ जीत नहीं
पाए। सीनियर रिपोर्टर
सुरेश गांधी से
बातचीत में निरहुआ
ने आजमगढ़ को
संदेश दिया है
कि आप हम
पर भरोसा रखिए,
आगे भी यही
जज़्बा कायम रहेगा।
मैंने हमेशा कहा
है कि यह
हक और विकास
के बीच की
लड़ाई है। इसके
लिए निरहुआ हारकर
भी आपके साथ
रहकर आपके मन
को जीतने का
प्रयास करेगा। जन-हित
के मुद्दों पर
निरहुआ आपके साथ
कंधा से कंधा
मिलाकर चलेगा। आपने जिस
तरह तमाम मुश्किलों,
धमकियों आदि का
सामना करते हुए
निरहुआ का साथ
निभाया है उससे
बहुतों को प्रेरणा
मिली है। आपको
अपनी यह भूमिका
आने वाले समय
में भी निभानी
है। क्योंकि संघर्ष
ही एक दिन
जीत का कारण
बनेगा। निरहुआ का मानना
है कि जिस
तरह हार के
बाद भी स्मृति
ईरानी पांच साल
तक अमेठीवासियों के
कंधा से कंधा
मिलाकर चली। उनके
हर दुःख-सूख
का साथी बनी,
विकास कराई, वैसे
ही वे आजमगढ़
के साथ रहकर
विकास के जरिए
उनका दिल जीतने
का काम करेंगे।
निरहुआ ने कहा
आजमगढ़ से मेरा
हारना दुर्भाग्यपूर्ण था
लेकिन आजमगढ़ में
हमारा संघर्ष अभी
खत्म नहीं हुआ
है। लोकसभा सीट
जीतने के बाद
ही यह संघर्ष
खत्म होगा। यहां
की जनता की
मुझसे बहुत उम्मीदें
हैं जिन पर
खरा उतरने की
वह कोशिश करेंगे।
मौजूदा सांसद अखिलेश से
आजमगढ़ के लोग
कोई उम्मीद नहीं
रखते। एक सवाल
के जवाब में
निरहुआ ने कहा
कि अखिलेश ने
सैफई को स्वर्ग
बनाया लेकिन अपने
पिता के संसदीय
क्षेत्र में मुख्यमंत्री
रहते कोई काम
नहीं किया। जहां
तक विकास का
सवाल है तो
आजमगढ़ की जनता
से जान चुकी
है ये लोग
जीतते तो हैं
लेकिन अपने संसदीय
क्षेत्र में आते
नहीं। उन्होंने कहा
’’आजमगढ़ में लोग
चुनाव जीतने के
लिये आते हैं
और जीतकर निकल
जाते हैं। ऐसे
थोड़े ही चलेगा।
हम लोगों का
सपना है कि
हमारा आजमगढ़ भी
बने-संवरे ताकि
दुनिया देखे। अब जो
लोग खाली जीतने
आते हैं, उन्हें
तो भगाना ही
पड़ेगा।’’ तमसा नदी
के दियारा व
उसके आसपास गांवों
के लोगों का
बरसात में आवाजाही
रुक जाती है।
यह समस्या सालों
से है, लेकिन
किसी ने ध्या
नही नहीं दिया।
अब वे प्रधानमंत्री
व मुख्यमंत्री से
मिलकर पुल बनवाने
का काम करेंगे।
यह पूछे
जाने पर कि
फिल्मी हस्तियां अक्सर अपने
कॅरियर और राजनीति
के बीच तालमेल
नहीं बैठा पाती
है, भोजपुरी स्टार
ने कहा ’’तालमेल
नहीं बैठा पाते
हैं, क्योंकि वे
फिल्म जगत का
मोह नहीं छोड़
पाते, मैं पूरी
तरह यहीं रहूंगा।
एक-दो अच्छी
फिल्में बनानी होंगी तो
यहीं बना लूंगा।
मेरी कोशिश होगी
कि आजमगढ़ को
फिल्म निर्माण का
गढ़ बनाऊं।’’ उन्होंने कहा कि
पूर्वांचल उनका घर
है और वह
यहां की मूल
समस्याओं से वाकिफ
हैं। उनका दर्शक
वर्ग गरीब तबका
है। उसे कहीं
ना कहीं जाति,
धर्म के नाम
पर सिर्फ इस्तेमाल
किया जाता है।
जब उसको सम्मान
देने की बात
आती है तो
हर पार्टी पीछे
हट जाती है।
लेकिन अब वह
इस खाई को
पाटेंगे, उनका हक
दिलाकर रहेंगे। उन्होंने कहा
कि भाजपा एकमात्र
ऐसी पार्टी है
जिसमें लोकतंत्र बाकी है।
इसके साधारण कार्यकर्ता
में भी अगर
क्षमता है तो
वह देश का
प्रधानमंत्री बन सकता
है। सपा बसपा
का गठबंधन न
होता तो अखिलेश
को जमानत बचानी
मुश्किल हो जाती।
पितातुल्य मुलायम सिंह यादव
ने भी जीत
के बाद आजमगढ़
के लिए कुछ
नहीं किया। आजमगढ़
में किसानों की
समस्यायें, बेरोजगारी और विकास
का अभाव हैं।
सड़क से
लेकर बिजली, पानी,
शिक्षा जैसी समस्याएं
सुरसा की मुंह
की तरह बाएं
खड़े है। कैंसर
से कराह रहे
लोगों को मुंबई
का चक्कर लगाना
पड़ता है। मेडिकल
व इंजिनियरिंग कालेज
के अभाव में
छात्रों को बड़े
शहरों की ओर
रुख करना पड़ता
है। लेकिन सत्ता
की चाह में
बाप-बेटे यहां
से चुनाव तो
जीते लेकिन किया
कुछ नहीं। यहां
के युवाओं को
पढ़ाई के बाद
सिविल सेवा की
तैयारी के लिए
प्रयागराज, दिल्ली, लखनऊ जाना
पड़ता है। या
यूं कहे उच्च
शिक्षा के लिए
किसी न किसी
बड़े शहर में
जाना पड़ता है।
आजमगढ़ में रहकर
पढ़ने के लिए
पूर्वांचल विश्व विद्यालय, जौनपुर
का सहारा लेना
पड़ता है। इंजिनियरिंग
व मेडिकल पढ़ाई
का भी यही
हाल है। जो
सक्षम है उनकी
कोशिश यही रहती
है कि उनके
बच्चे आजमगढ़ से
बाहर किसी इंजिनियरिंग
व मेडिकल कालेज
की डिग्री हासिल
करें। पढ़ाई के
बाद रोजगार के
लिए भी न
कल कारखाने है,
न उद्योग है,
न व्यवसाय। यह
अलग बात है
कि कागजों में
आजमगढ़ की विकासरुपी
फसल खूब लहलहा
रही है। विकास
के दावे करती
अखिलेश यादव की
लम्बी फेहरिस्त है,
पर असल तस्वीर
इससे इतर है।


गौरतलब है निरहुआ
की भोजपुरी फिल्म
‘निरहुआ रिक्शावाला‘ यूपी-बिहार
के साथ पश्चिम
बंगाल में काफी
हिट रही थी।
इस फिल्म में
उनके एक-एक
डायलॉग पर धुआंधार
तालियाँ बजती थी-
खासकर ‘जे ना
गरीब संगे करी
इन्साफ हो, रहेला
निरहुआ बस ओकरे
खिलाफ हो।‘ फिरहाल, पिछले
दो दशक में
उजाड़ हो चले
आजमगढ़ के उद्योग-धंधों को नया
जीवन देकर बेरोजगार
हो रहे युवाओं
को मुख्य धारा
में वापस लाने
की चुनौती से
लड़ निरहुआ को
बड़ा मुकाम बनाना
होगा। हालांकि युवाओं
को भरोसा है
कि आने वाले
दिनों में आजमगड़
के विकास को
रफ्तार मिलेगी। उन्हें यहां
की हर दर्द
व पीड़ा का
एहसास है। जल्द
ही आजमगढ़ की
रंगत बदलती हुई
दिखेगी। युवाओं का भरोसा
अगर हकीकत में
बदल तो एक
बार फिर आजमगढ़
में बंद पड़े
कारखानों में कल-कल की
आवाज गूंजेगी। निरहुआ
को एक साथ
शिक्षा, स्वास्थ्य, विकास के
साथ युवाओं के
रोजगार पर भी
ध्यान देना होगा
और आजमग़ के
हर सुख-दुख
में साथ खड़ा
होना होगा।
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