कामों के लिए याद की जाएंगी शीला दीक्षित

सुरेश गांधी

यह अलग
बात है शीला
दीक्षित का निधन
ऐसे समय हुआ
है, जब कांग्रेस
अपने सबसे बुरे
दौर से गुजर
रही है। दिल्ली
विधानसभा चुनाव के मुहाने
पर है। पार्टी
को उम्मीद थी
कि शीला 1998 का
इतिहास दोहराते हुए कांग्रेस
को सत्ता तक
पहुंचाएंगी। लेकिन चुनाव से
पहले ही शीला
सबकी आंखें नम
कर चली गईं।
विकास के बूते
ही वो 1998 से
2013 तक तीन बार
दिल्ली की मुख्यमंत्री
रहीं। इस दौर
में दिल्ली में
कई मॉडर्न सुविधाओं
में इजाफा हुआ।
शीला दीक्षित को
दिल्ली की तस्वीर
बदलने के लिए
किए गए कार्यों
के लिए हमेशा
याद किया जाएगा।
देश की राजधानी
दिल्ली में ट्रैफिक
सिस्टम सुधारने, प्रदूषण नियंत्रण
और कल्चरल मेल-मिलाप के लिए
उनके काम हमेशा
याद किए जाएंगे।
बता दें, शीला
दीक्षित की 2012 की सर्दियों
में दूसरी एंजियाप्लास्टी
हुई थी और
उनका परिवार चाहता
था कि वह
राजनीति छोड़ दें
लेकिन तब 16 दिसम्बर
सामूहिक बलात्कार की बर्बर
घटना हुई जिसके
बाद उन्होंने मन
बनाया कि वह
‘‘मैदान छोड़कर नहीं भागेंगी।’’ दीक्षित द्वारा थकान और
सांस लेने में
परेशानी की शिकायत
करने के बाद
चिकित्सकों ने इस
बात की पुष्टि
की कि उनकी
दाहिनी धमनी में
90 प्रतिशत रुकावट है और
वह एंजियाप्लास्टी की
प्रक्रिया से गुजरीं।
विधानसभा 2017 के चुनाव
से पहले तत्कालीन
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी
की वाराणसी में
रोड शो आयोजित
था। रोड शो
के दौरान ही
सोनिया गांधी की तबीयत
बिगड़ गई। जनता
की भीड़ सड़क
किनारे खड़ी थी।
डाक्टरों के लाख
कोशिश के बाद
भी रोड शो
करने की हिम्मत
सोनिया गांधी को नहीं
हुई तो शीला
दीक्षित जनता के
बीच जाने का
निर्णय लिया। रोड शो
की कमान संभाली
और उसे तय
स्थान तक पहुंचाया।

डीजल और पेट्रोल
से चलने वाली
गाड़ियों की जगह
सीएनजी से चलने
वाली बसें और
ऑटो ने दिल्ली
को क्लीन एनर्जी
के रास्ते पर
आगे बढ़ाया। 2009 में
शीला दीक्षित ने
दिल्ली में लो-फ्लोर बसों की
शुरुआत की। 2010 में शीला
दीक्षित की सरकार
ने दिल्ली में
पहली बार सीएनजी
हाइब्रिड बसों की
शुरुआत की। प्रदूषण
मुक्त बसों की
ये सुविधा भारत
के किसी शहर
में पहली बार
मिली थी। दिल्ली
की अवैध कॉलोनियों
में विकास के
प्रस्ताव को पहली
बार शीला दीक्षित
की सरकार ने
मंजूरी दी थी।
लीक से हटकर
शीला दीक्षित ने
सरकारी फंड को
अवैध कॉलोनियों में
विकास के लिए
खर्च करने की
वैधानिक व्यवस्था की। इसके
बाद से अवैध
कॉलोनियों में रह
रहे लोगों को
भी नालियों-सीवर,
पीने के पानी
जैसी मूलभूत सुविधाएं
मुहैया हो सकीं।
सड़कों और फ्लाईओवर्स
का जाल बनाकर
शीला दीक्षित के
काल में दिल्ली
सरकार ने परिवहन
और यातायात की
सुविधाओं का विकास
किया। शहर के
बाहर से बाइपास
निकालकर बाहर से
आने वाली गाड़ियों
को सुविधा दी
तो इससे राजधानी
दिल्ली में ट्रैफिक
जाम की समस्या
कम हुई। खास
बात यह है
कि 15 साल के
कार्यकाल में 5 साल केंद्र
में बीजेपी सरकार
के साथ मिलकर
शीला दीक्षित ने
काम किया। शीला
दीक्षित कांग्रेस की सीएम
थीं और तब
केंद्र में बीजेपी
की अटल सरकार
थी। शीला दीक्षित
ने बेहतर सामंजस्य
स्थापित कर मेट्रो,
हाईवे, बिजली समेत तमाम
ऐसे प्रोजेक्ट पास
कराए जिससे दिल्लीवालों
की जिंदगी में
बड़े बदलाव आए।

शीला दीक्षित
का जीवन कई
राज्यों में बीता।
उनका जन्म पंजाब
के कपूरथला में
31 मार्च 1938 को हुआ
था। लेकिन उनकी
पढ़ाई-लिखाई दिल्ली
में हुई। दिल्ली
के जीसस एंड
मैरी स्कूल से
उन्होंने शुरुआती शिक्षा ली।
इसके बाद मिरांडा
हाउस से उन्होंने
मास्टर्स ऑफ आर्ट्स
की डिग्री हासिल
की। शीला दीक्षित
युवावस्था से ही
राजनीति में रुचि
लेने लगी थीं।
उनकी शादी उन्नाव
के रहने वाले
कांग्रेस नेता उमाशंकर
दीक्षित के आईएएस
बेटे विनोद दीक्षित
से हुई। विनोद
से उनकी मुलाकात
दिल्ली यूनिवर्सिटी में इतिहास
की पढ़ाई करने
के दौरान हुई
थी। उन्हें ’यूपी
की बहू’ भी कहा
जाता है। शीला
दीक्षित ने राजनीति
के गुर अपने
ससुर से सीखे
थे। उमाशंकर दीक्षित
कानपुर कांग्रेस में सचिव
थे। पार्टी में
धीरे-धीरे उनकी
सक्रियता बढ़ती गई
और वे पूर्व
पीएम जवाहरलाल नेहरू
के करीबियों में
शामिल हो गए।
जब इंदिरा गांधी
प्रधानमंत्री रहीं तो
उमाशंकर दीक्षित देश के
गृहमंत्री थे। ससुर
के साथ-साथ
शीला भी राजनीति
में उतर गईं।
एक रोज ट्रेन
में सफर के
दौरान उनके पति
की हार्ट अटैक
से मौत हो
गई थी। 1991 में
ससुर की मौत
के बाद शीला
ने उनकी विरासत
को पूरी तरह
संभाल लिया। उनके
दो बच्चे संदीप
और लतिका हैं।
शीला दीक्षित जल्द
ही गांधी परिवार
के भरोसेमंद साथियों
में शुमार हो
गईं। इसका उन्हें
इनाम भी मिला।
वह 1984 में कन्नौज
से लोकसभा चुनाव
लड़ीं और संसद
पहुंच गईं। राजीव
गांधी कैबिनेट में
उन्हें संसदीय कार्यमंत्री के
रूप में जगह
मिली। बाद में
वह प्रधानमंत्री कार्यालय
में राज्यमंत्री भी
बनीं। राजीव गांधी
के निधन के
बाद सोनिया गांधी
ने भी उनके
ऊपर पूरा भरोसा
जताया।
1998 में उन्हें
दिल्ली प्रदेश कांग्रेस का
चीफ बनाया गया।
तब भी कांग्रेस
की हालत बेहद
पतली थी। कांग्रेस
के टिकट पर
वह पूर्वी दिल्ली
से चुनाव मैदान
में उतरीं, लेकिन
बीजेपी के लाल
बिहारी तिवारी ने उन्हें
शिकस्त दी। बाद
में दिल्ली में
हुए विधानसभा चुनावों
में उन्होंने जोरदार
जीत हासिल की
और वह मुख्यमंत्री
बन गईं। 2013 में
उन्हें आप पार्टी
के संयोजक अरविंद
केजरीवाल के हाथों
शिकस्त मिली। हार के
बाद वे राजनीति
में एक तरह
से दरकिनार कर
दी गईं। बाद
में उन्हें केरल
का राज्यपाल बनाया
गया। लेकिन 2014 में
नरेंद्र मोदी सरकार
के सत्ता में
आने के बाद
उन्होंने इस्तीफा दे दिया
और दिल्ली लौट
आईं। इसके बाद
उन्होंने दमदार वापसी की
और पूर्व कांग्रेस
चीफ राहुल गांधी
ने भरोसा जताते
हुए उन्हें दिल्ली
प्रदेश कांग्रेस की कमान
सौंपी।
2019 लोकसभा चुनावों में
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल चाहते
थे कि कांग्रेस
और आप का
गठबंधन हो जाए।
लेकिन शीला दीक्षित
ने इसका खुलकर
विरोध किया और
आखिरकार उनकी ही
मानी गई। शीला
दीक्षित का फिल्म
से भी लगाव
था। उन्होंने शाहरुख
खान की फिल्म
“दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे“ कई बार देखी
थी। शीला ने
ये फिल्म इतनी
ज्यादा बार देखी
थी कि घरवालों
को ये कहना
पड़ा था कि
अब इस फिल्म
को अब मत
देखें। ये फिल्म
साल 1995 में रिलीज
हुई थी। ’सिटीजन
दिल्ली- माई टाइम,
माई लाइफ़’ नाम की
किताब में शीला
दीक्षित ने अपने
राजनीतिक जीवन से
जुड़े कई वाकिये
का जिक्र किया
है। इस किताब
में लिखा है
कि उनके पति
विनोद दीक्षित ने
उन्हें डीटीसी में प्रपोज
किया था। इस
किताब में शीला
कपूर से शीला
दीक्षित बनने की
रोचक घटना का
जिक्र है।
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