Saturday, 20 July 2019

अपनी पहचान व संस्कृति आमजन तक पहुंचाने के लिए सिंधी समाज संकल्पित


अपनी पहचान संस्कृति आमजन तक पहुंचाने के लिए सिंधी समाज संकल्पित
21 जुलाई को नागरी नाटक मंडली पिपलानीकटरा में नाटक के जरिए आमजन को किया जायेगा जागरुक
सुरेश गांधी
वाराणसी। सिंधी समाज अपने इतिहास, पहचान और संस्कृति को बढावा देने के लिए संकल्पित है। इसके लिए समाज की ओर से जगह- कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे है। इसी कड़ी में 21 जुलाई को सायं साढ़े पांच से शहर नागरी नाटक मंडली, पिपलानी कटरा में समाज के परम पूज्य संत कंवर राम साहब जी के चरित्र का जीवंत नाटक मंचन किया जायेगा। इसमें छत्तीसगढ़ के राजानंद गांव के चालीस कलाकारों द्वारा संत कंवर राम जी से जुड़ी यादों को नाटक के जरिए आमजन तक पहुंचाने का प्रयास होगा। 
इसकी जानकारी सिन्धी युवा समिति के अनिल बजाज, सचिव सुनील वाध्या, संस्था के संस्थापक चंदन रुपानी, विजय राजवानी, मनोज लखवानी, धर्मेंद्र सेहता, दीलिप आहुजा, कमल हरचानी, रामचंन्द्र, सुमित विशन ने पत्रकारों को दी। पत्रकारवार्ता में बताया गया कि नाटक मंचन से पूर्वसिन्धीयत संस्कृति में समाज का योगदानविषयक संगोष्ठी होगी। इसमें समाज के कार्यप्रणाली इतिहास की जानकारी दी जायेगी। कार्यक्रम की अध्यक्षता शिव शांति आश्रम के साई मोहन लाल, मुख्य अतिथि राज्यमंत्री नीलकंठ तिवारी, विशिष्ट अतिथि राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग के सदस्य कौशलेन्द्र सिंह सिन्धी अकादमी के उपाध्यक्ष नानकचंद्र लखमानी, संचालक सिन्धी अकादमी के सदस्य लीला राम सचदेवा करेंगे।
इस अवसर पर अकादमी के सरल ज्ञापते, भजनलाल, खेत्रपाल, नरेश बजाज, विजय पुरसवानी, चंद्रप्रकाश गंगवानी हेमंत भोजवानी भी शामिल होंगे। समाज के पदाधिकारियों ने बताया कि वाराणसी में समाज का पहला कार्यक्रम है। उन्होंने कहा कि, सरकार से अपील की जायेगी कि अबसरकार स्कूल और महाविद्यालयों में सिंधी समाज के गौरव पूर्ण इतिहास को जोडे। सिंधी समाज का इतिहास आमजन तक पहुंचे इसके लिए लगातार प्रयास किए जा रहे है। उन्होंने कहा युवाओं को चाहिए कि पढ़ लिखकर स्वयं भी आगे बढ़े और समाज का विकास करें। भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद सिंधी समाज यहां सिर्फ मातृ भाषा लेकर आया और आज अपने बलबूते पर आगे बढ़ा है।
उन्होंने कहा सिंधी समाज का इतिहास गौरवशाली रहा है।सिंधू घाटी की सभ्यताविश्व की सभ्यताओं में से एक सबसे प्राचीन और उच्च कोटि की सभ्यता मानी गई है। ऐसी पावन सभ्यता के निवासियों को भारत की आजादी के पश्चात सिंध प्रदेश छोडकर अलग-अलग देशों में जाकर रहना पडा, जिससे उनकी सभ्यता, संस्कृति, भाषा एवं कला को गहरा आघात पहुंचा है। आज जरूरत है उनकी सभ्यता और संस्कृति के संवर्धन की। कार्यक्रम का मुख्य मकसद सिंधी भाषा की मदद से देश की सबसे पावरफुल सरकारी संस्था भारतीय प्रशासनिक सेवा में प्रवेश करने, राजनीति के क्षेत्र में हिस्सेदारी संस्कृति के लिए जागरूकता पैदा करना है।
सिंधी समाज ने अपनी पहचान मेहनत ईमानदारी से बनाई हैं। समाज में अमर शहीद हेमू कालाणी जैसे योद्धा हुए है। समाज के युवाओं को चाहिए कि हेमू के आदर्शों पर चल आगे बढ़े। इसके लिए सिन्धी भाषा से अधिक से अधिक युवाओं को जोड़ना होगा। हम आपस में जो भी बातें करें सिन्धी भाषा में करें। सिन्धी भाषा और कला के प्रति युवाओं के जोश को और बढ़ाना होगा। क्योंकि सिंधियत की पहचान हमारी भाषा है। सिन्धी भाषा हमें हमारे इतिहास से जोड़ती है। हमें इसे आने वाली पीढ़ी में स्थानान्तरित करते रहना है। भाषा के महत्व को बनाए रखने के लिए समाज की ओर से समय- समय पर सिन्धी भाषा में कार्यक्रम आयोजित किए जाते रहे है। इसमें युवाओं की सहभागिता अधिक से अधिक हो, इसका प्रयास होना चाहिए। इसलिए हमें अपनी भाषा के विस्तार के लिए खुद आगे आना होगा। आज का युवा आधुनिक तकनीकि के प्रयोग से सिन्धी भाषा की गरिमा को पुनः स्थापित करेगा।
उन्होंने कहा कि नृत्य सिंधी संस्कृति की प्रमुख लोक कला है। आज के आधुनिक युग की दौड मे पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव की वजह से यह कला विलुप्त होती जा रही है। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर नाटक का आयोजन किया जा रहा है। विश्व की सनातन, श्रेष्ठतम सिंधू सभ्यता संस्कृति की ऐतिहासिक धरोहर से अपनी युवा पीढी को अवगत कराने के लिए और सिंधी लोक कला को जीवित रखने के लिए पारंपारिक वेशभूषा में विश्व प्रसिद्ध सिंधी समाज के नृत्य स्पर्धा का आयोजन नाटक के जरिए किया जाता है। सांस्कृतिक राजधानी काशी में यह कार्यक्रम आयोजित करना गौरव की बात है।
समाज के इतिहास को बताते हुए पदाधिकारियों ने कहा कि ईसवी सन 712 में जब पहली बार अरब भारत में दाखिल हुए तो उनके आक्रमण को सबसे पहले सिंध के निवासियों को ही क्षेलना पड़ा। तब से लेकर अब तक सिंधी अपने आत्म सम्मान और अधिकारों के प्रति जो विस्मृत हुए तो जागने का नाम ही नहीं ले रहे हैं। 1250 सालों की गुलामी और आजादी के बाद अंग्रेजो द्वारा कुत्सित षड्यंत्र के तहत हुए विभाजन के दर्द ने इस समाज की आत्मा तक को भी गुलाम बना दिया है। आजादी के बाद अपने अस्तित्व को बचाने की कवायद में हम ऐसे मशगूल हो गए कि हम यह भी भूल गए कि हमें इस आजाद भारत में उतना ही हक हासिल है जितना किसी और भाषाई समूह को मिला हुआ है। विभाजन के बाद हमें अपने अस्तित्व को बचाने का संघर्ष करना हमारी सबसे बड़ी जरूरत थी। पर अब जब हम हर तरह से संपन्न हैं तब भी क्यों हमने इस आजाद भारत में एक दूसरे दर्जे के नागरिक का दर्जा स्वीकार किया हुआ है। जबकि इस देश की आजादी के लिए सिंधी समाज को ही सबसे बड़ी कुरबानी देनी पड़ी थी।
इतनी बड़ी कुरबानी देने के बावजूद समाज राजनीति के क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है। आज जब हर भाषाई समूह, अल्पसंख्यक जातियां अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग अपने प्रभुत्व को बढ़ाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं तो हम क्या आगे आएं। माना सिन्धी समाज का भारत की जनसंख्या का एक फीसदी है परन्तु भारत की अर्थव्यवस्था में 8 फीसदी से भी अधिक का योगदान हमारा समाज करता हैं। केवल सिंधी ही एकमात्र ऐसा भाषाइ समूह है जिसके पास अपना प्रांत होने के बावजूद भी बिना किसी सरकारी मदद के आज यह समाज आथिर्क रूप से स्वावलंबी है। इन्हीं मसलों को लेकर सिंधी समाज के लोगों को जागरूक करने के लिए समिति का गठन हुआ है। 

1 comment:

  1. हिंदी भाषा मे सिंधी कार्यक्रम की बृहद व्याख्या ,शब्दो का चयन अत्यंत प्रभावकारी लगा।शुभकामनाएं।
    रमेश लालवानी।वाराणसी।

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