आतंक पर एक्शन से ‘सियासी लूटेरों’ में ‘बारुदी बौखलाहट’
यह
सच
है
कि
पहले
वाली
कश्मीर
अब
नहीं
है।
इंसानों
की
खून
पीते
आतंकियों
ने
वादी
की
फिजाओं
में
नफरत
का
जहर
घोल
दिया
है।
वहां
के
युवा
डाक्टर,
इंजिनियर,
आइएएस,
आइपीएस
बनने
के
बजाए
हाथों
में
गन
थाम
रहे
है।
अपने
ही
भाईयों,
जवानों
की
सीना
छलनी
कर
रहे
है।
लेकिन
इन
सबके
लिए
कोई
और
नहीं
बल्कि
कश्मीर
के
चंद
सियासतदान
ही
जिम्मेदार
है,
जो
अपनी
नेतागिरी
चटकाने
के
लिए
कश्मीर
की
इतनी
दुर्गति
कर
चुके
है
कि
आज
वो
टूरिज्म
प्लेस
नहीं
आंतकियों
का
शहर
जाने
जाना
लगा
है।
और
अब
जब
मोदी
सरकार
कश्मीर
में
शांति
बहाली
के
लिए
जवानों
की
दस
हजार
तैनाती
की
है
तो
आतंकियों
की
पनाहगार
महबूबा
एवं
अब्दुला
जैसे
लुटेरे
नेताओं
में
खलबली
मच
गयी
है।
उन्हें
डर
लग
रहा
है
कि
अब
उनकी
सियासी
दुकान
में
ताला
लग
जायेगा।
ऐसे
में
बड़ा
सवाल
तो
यही
है
क्या
अब
कश्मीर
के
सियासी
लूटेरों
के
खिलाफ
‘सर्जिकल
स्ट्राइक‘
करने
का
वक्त
आ
गया
है?
सुरेश गांधी
फिरहाल, सालों साल
से भाजपा का
डर दिखाकर कश्मीरियों
पर राज करने
वाले लूटेरे नेता
कश्मीर में शांति
की बहाली किसी
भी दशा में
होने नहीं देना
चाहते। अपनी भ्रष्टाचार
रुपी दुकान चलाने
के लिए समय
समय पर युवाओं
के जज्बातों को
भड़काते रहते है।
जबकि खुद अपने
बच्चों को मुंबई,
दिल्ली, अमेरिका, सउदी अरब
में पढ़ाते है,
ठहराते है जिससे
आतंकी की साया
उनके लाडलों पर
ना पड़े। अफसरों
के सहारे करोड़ों
अरबों की संपत्ति
बनाएं इन नेताओं
की कोठिया घाटी
में नहीं बल्कि
सात समुंदर पार
भी है। अफसोस
इस बात का
है कि धारा
370 व 35ए की
आड़ में ये
नेता खुद तो
मालामाल हो रहे
है, लेकिन कश्मीरी
दिन ब दिन
कंगाल होता जा
रहा है। इन्हें
पता है जिसदिन
कश्मीरी पूछने लग जायेंगे
कि नेताओं के
बच्चे लंदन में
घाटी के बच्चे
जहन्नूम में क्यों?
इनके पैरों तले
जमीन खिसक जायेगी।
यही वजह है
कि कश्मीरी लुटेरे
नेता घाटी में
शांति बहाली होने
नहीं देना चाहते।
सरकार जब आतंकियों को चून चून कर उन्हें ठेकाने लगा रही है, शांति बहाली के लिए दस हजार अतिरिक्त जवानों की तैनाती की है इनके पेट में दर्द होने लगा है। जवानों की तैनाती से महबूबा-अब्दुल्ला को लगी मिर्ची है। जबकि केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि अतिरिक्त केंद्रीय बलों की तैनाती से कश्मीर में आतंकी नेटवर्क को ध्वस्त करने का अभियान मजबूत होगा। साथ ही राज्य में कानून-व्यवस्था को चाक-चौबंद बनाए रखने में मदद मिलेगी। बताया जा रहा है कि 15 अगस्त तक श्रीनगर में 15, पुलवामा और सोपोर में 10-10, बाकी 10 जिलों में 5-5 कंपनियां तैनात होंगी।
सरकार जब आतंकियों को चून चून कर उन्हें ठेकाने लगा रही है, शांति बहाली के लिए दस हजार अतिरिक्त जवानों की तैनाती की है इनके पेट में दर्द होने लगा है। जवानों की तैनाती से महबूबा-अब्दुल्ला को लगी मिर्ची है। जबकि केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि अतिरिक्त केंद्रीय बलों की तैनाती से कश्मीर में आतंकी नेटवर्क को ध्वस्त करने का अभियान मजबूत होगा। साथ ही राज्य में कानून-व्यवस्था को चाक-चौबंद बनाए रखने में मदद मिलेगी। बताया जा रहा है कि 15 अगस्त तक श्रीनगर में 15, पुलवामा और सोपोर में 10-10, बाकी 10 जिलों में 5-5 कंपनियां तैनात होंगी।
कश्मीरियों को यह
कहकर भड़का रहे
है कि उन्हें
खदेड़ने की तैयारी
है। अब इन्हें
कौन समझाएं कि
मोदी सरकार कश्मीरियों
को नहीं बल्कि
कश्मीर को लूटने
वाले नेताओं और
उनके संरक्षण में
पल बढ़ रहे
आतंकियों को खदेड़ने
की तैयारी में
है। अब वो
पहले वाली सरकार
नहीं है जो
तुम्हारे हां में
हां मिलाती रहेगी।
यह सरकार 130 करोड़
हिन्दुस्तानियों की है
जो चाहता है
कि कश्मीर फिर
से स्वर्ग बने,
जिसे निहारने वो
घाटी में जाना
चाहता है। यह
तभी संभव है
जब कश्मीर गोलियों
की तड़तडाहट से
शांत हो। इन
देशद्रोहियों की गद्दारी
को इससे भी
समझा जा सकता
है कि जिस
सेना पर पूरा
देश अपने बीच
पाकर गर्व करता
है इन्हें सेना
की तैनाती से
डर लगता है।
बता दें, महबूबा
पूरी तरह आतंकियों
की पनहगार है।
जवानों की तैनाती से उनकी चूले हिल गयी है। यही वजह है कि महबूबा मुफ्ती ने धमकी दी है कि 35ए और धारा 370 हटाने का मतलब बारूद को हाथ लगाने के बराबर है। जो हाथ 35ए के साथ छेड़छाड़ करने के लिए उठेंगे, वो हाथ ही नहीं वो सारा जिस्म जल के राख हो जाएगा। महबूबा का आतंकियों का लगाव इससे भी समझा सकता है कि ’वो तब और दुखी हो जाती है जब कोई आतंकी जवानों के हाथों मारा जाता है। महबूबा उसके जनाजे में जाती है। आतंकियों के परिजनों से मिलने उनके घर जाती है। पुलिस को सुधर जाने की धमकी देती है। पथराव की घटना को दुभार्ग्यपूण बताते हुए आतंकियों को ना मारे जाने की वकालत करती है। अमर अब्दुल्ला कश्मीर के लोगों को भाजपा का डर दिखाते है। सवाल यह है कि क्या कश्मीर में मोदी नीति से बेचैन है महबूबा? क्या महबूबा के लिए जवान ’’हत्यारे’’ और आतंकी प्यारे है? क्या धारा 370 के खात्मे से पाकिस्तान का छल होगा छलनी? क्या 35ए की आड़ में कश्मीरियों को लूटने वाले नेताओं की दुकान बंद करेगी मोदी सरकार? क्या अलगाववादी कानून सिखाता है कश्मीरियो को भारत से अलग रखना?
जवानों की तैनाती से उनकी चूले हिल गयी है। यही वजह है कि महबूबा मुफ्ती ने धमकी दी है कि 35ए और धारा 370 हटाने का मतलब बारूद को हाथ लगाने के बराबर है। जो हाथ 35ए के साथ छेड़छाड़ करने के लिए उठेंगे, वो हाथ ही नहीं वो सारा जिस्म जल के राख हो जाएगा। महबूबा का आतंकियों का लगाव इससे भी समझा सकता है कि ’वो तब और दुखी हो जाती है जब कोई आतंकी जवानों के हाथों मारा जाता है। महबूबा उसके जनाजे में जाती है। आतंकियों के परिजनों से मिलने उनके घर जाती है। पुलिस को सुधर जाने की धमकी देती है। पथराव की घटना को दुभार्ग्यपूण बताते हुए आतंकियों को ना मारे जाने की वकालत करती है। अमर अब्दुल्ला कश्मीर के लोगों को भाजपा का डर दिखाते है। सवाल यह है कि क्या कश्मीर में मोदी नीति से बेचैन है महबूबा? क्या महबूबा के लिए जवान ’’हत्यारे’’ और आतंकी प्यारे है? क्या धारा 370 के खात्मे से पाकिस्तान का छल होगा छलनी? क्या 35ए की आड़ में कश्मीरियों को लूटने वाले नेताओं की दुकान बंद करेगी मोदी सरकार? क्या अलगाववादी कानून सिखाता है कश्मीरियो को भारत से अलग रखना?
नेताओं की इन्हीं
क्रियाकलापो को देखते
हुए राज्यपाल सत्यपाल
मलिक को ना
चाहते हुए भी
कहना पड़ा, आतंकियों
जवानों की नहीं,
भ्रष्टाचारी नेताओं, अफसरों की
हत्या करो? वह
ऐसे लोगों को
निशाना बनाएं जो भ्रष्टाचारी
हैं और जम्मू
कश्मीर को लूट
रहे हैं। सत्यपाल
मलिक ने कहा,
‘आतंकी आम नागरिकों
को मारते हैं।
पुलिस के जवानों
को मारते हैं।
एसपीओ को मारते
हैं। अरे भाई
अपने ही लोगों
को क्यों मारते
हो। उन्हें मारो,
जिन्होंने तुम्हारे मुल्क को
लूटा है। जिन्होंने
कश्मीर की सारी
दौलत लूटी है।
आपने क्या इनमें
से किसी को
मारा है। ये
फितूर में अपनी
जान गंवा रहे
हैं। इससे कुछ
नहीं निकलना। बंदूक
से कुछ नहीं
निकलेगा। लिट्टे भी कुछ
नहीं कर पाया
बंदूक के दम
पर। इससे पहले
भी सत्यपाल मलिक
घाटी में भ्रष्टाचार
का मुद्दा उठा
चुके हैं। वे
मानते है कि
कश्मीर की सबसे
बड़ी समस्या भ्रष्टाचार
है। कश्मीर में
जितना रुपया लगा
है, अगर उतना
रुपया विकास के
काम में लग
गया होता, तो
कश्मीर सोने का
होता। यहां नेताओं
के पास इतना
धन है, जिसकी
कोई सीमा नहीं
है। इनके बड़े
बड़े मकान हैं।
कई करोड़ के
कालीन हैं। लेकिन
जो गरीब कश्मीरी
है, जो अमरनाथ
यात्रा में टट्टू
लेकर जाता है
उसके शरीर पर
स्वेटर भी नहीं
है। राज्यपाल की
इस सोच में
दम है।
जम्मू कश्मीर में
आतंकियों की कमर
तोड़ने के लिए
मोदी सरकार लगातार
कार्रवाई कर रही
है। घाटी में
इसी सिलसिले में
राष्ट्रीय जांच एजेंसी
(एनआइए) की कार्रवाई
जारी है। उत्तर
कश्मीर के बारामूला
में टेटर फंडीग
के मामले में
एनआइए ने कई
व्यापारियों के घर
छापेमारी की है।
बता दें कि
जमात-उद-दावा,
दुखतारन-ए-मिल्लत,
लश्कर-ए-तैयबा,
हिजबुल मुजाहिदीन और जम्मू-कश्मीर के दूसरे
अलगाववादी समूहों के खिलाफ
फंड जुटाने को
लेकर 2017 में मामला
दर्ज किया गया
था। इस संबंध
में एनआइए ने
13 आरोपियों के खिलाफ
आरोप पत्र दाखिल
किया था। जिसमें
अलगाववादी नेता, हवाला कारोबारी
और पत्थरबाज शामिल
हैं। हाल ही
में एनआईए ने
दावा किया था
कि कश्मीर घाटी
में आतंकी और
अलगाववादी गतिविधियां बढ़ाने के
लिए पाकिस्तान से
टेरर फंडिंग होती
रही है।
एनआइए ने हुर्रियत कॉन्फ्रेंस और कई अन्य अलगाववादी नेताओं से पूछताछ के बाद ही एनआइए ने यह दावा किया था। इसके अलावा मोदी सरकार के 15 अगस्त से पहले जम्मू-कश्मीर में 10 हजार अतिरिक्त जवानों की तैनाती के आदेश के बाद खलबली मच गई है। कयास लगाए जा रहे हैं कि 35 ए को हटाने की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। लोकसभा 2019 चुनाव के घोषणापत्र में भी बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 35 ए और 370 को खत्म करने की प्रतिबद्धता जाहिर की थी। तर्क है कि ये अनुच्छेद राज्य के एकीकरण में बाधा बनने के अलावा जम्मू-कश्मीर के विकास में भी रुकावट बने हुए हैं। सूत्रों के मुताबिक, इस योजना के लिए हर छोटी से छोटी चीज पर ध्यान दिया जा रहा है। यानी कानून एवं व्यवस्था कैसे काम करेगी। खुलकर सामने आने वाले और अंडर ग्राउंड रहने वाले अलगावादी कैडरों की प्रतिक्रिया क्या होगी और विभिन्न राजनीतिक पार्टियों इस पर क्या बोलेंगी. इन सब बिंदुओं पर भी काम किया जा रहा है। अनुच्छेद 35 ए को हटाए जाने के बाद कानून-व्यवस्था के मुद्दे से निपटने के लिए ऑपरेशन को नाम भी दे दिया गया है।
एनआइए ने हुर्रियत कॉन्फ्रेंस और कई अन्य अलगाववादी नेताओं से पूछताछ के बाद ही एनआइए ने यह दावा किया था। इसके अलावा मोदी सरकार के 15 अगस्त से पहले जम्मू-कश्मीर में 10 हजार अतिरिक्त जवानों की तैनाती के आदेश के बाद खलबली मच गई है। कयास लगाए जा रहे हैं कि 35 ए को हटाने की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। लोकसभा 2019 चुनाव के घोषणापत्र में भी बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 35 ए और 370 को खत्म करने की प्रतिबद्धता जाहिर की थी। तर्क है कि ये अनुच्छेद राज्य के एकीकरण में बाधा बनने के अलावा जम्मू-कश्मीर के विकास में भी रुकावट बने हुए हैं। सूत्रों के मुताबिक, इस योजना के लिए हर छोटी से छोटी चीज पर ध्यान दिया जा रहा है। यानी कानून एवं व्यवस्था कैसे काम करेगी। खुलकर सामने आने वाले और अंडर ग्राउंड रहने वाले अलगावादी कैडरों की प्रतिक्रिया क्या होगी और विभिन्न राजनीतिक पार्टियों इस पर क्या बोलेंगी. इन सब बिंदुओं पर भी काम किया जा रहा है। अनुच्छेद 35 ए को हटाए जाने के बाद कानून-व्यवस्था के मुद्दे से निपटने के लिए ऑपरेशन को नाम भी दे दिया गया है।
अकसर पूछा
जाता है कि
कश्मीर को लेकर
भारत की रणनीति
क्या है ? हमारी
सरकार किन मुद्दों
को लेकर कश्मीर
का हल निकालना
चाहती है ? ये
सवाल देश में
विपक्ष भी पूछता
है...और अमेरिका
जाकर पाकिस्तान के
प्रधानमंत्री इमरान ख़ान भी
यही बात करते
है। इसका जवाब
सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन
रावत ने दे
दिया है। उन्होंने
कश्मीर को लेकर
वो बात कही
है...जिससे पाकिस्तान
की सेना के
रावलपिंडी मुख्यालय में हलचल
होने लगी है।
उन्होंने साफ लहजों
में कहा है
भारत अब कश्मीर
नहीं बल्कि पूरे
कश्मीर की बात
करेगा, जो कलतक
उनके हिस्से में
था। बलूचिस्तान, पीओके
बालाकोब् आदि कश्मीर
की वो ज़मीन
है, जिसपर 1948 के
बाद से पाकिस्तान
का क़ब्ज़ा है।
बता दें, वर्ष
2014 के बाद से
नरेंद्र मोदी सरकार
ने कश्मीर को
लेकर आक्रामक नीति
अपनाई हुई है,
और अब प्रधानमंत्री
मोदी के दूसरे
कार्यकाल में ये
आक्रामक नीति, एक नये
पराक्रम की दिशा
में बढ़ती हुई
नज़र आ रही
है। दुनिया ने
उरी में हुए
आतंकी हमले के
बाद भारत की
सर्जिकल स्ट्राइक देखी है
और पुलवामा हमले
के बाद बालाकोट
में हुई एयर
स्ट्राइक भी देखी
है। इसलिये अब
भविष्य के लिये
भारत की नज़रें
नियंत्रण रेखा के
पार देख रही
हैं।
गौरतलब है कि
कश्मीर से जुड़ी
समस्या की जड़
सन 1947 में है।
1947 में ब्रिटेन ने भारत
से आपना शासन
हटाने और भारत
के 30 करोड़ लोगों
को आज़ादी देने
का फैसला किया
था। उस समय
मध्य और दक्षिण
भारत में हिंदुओं
की आबादी बहुसंख्यक
थी। जबकि पूर्व
और उत्तर पश्चिम
भारत में मुस्लिम
जनसंख्या ज्यादा थी। ब्रिटेन
ने धार्मिक आधार
पर अखंड भारत
को मुस्लिम जनसंख्या
वाले, पाकिस्तान और
हिंदू जनसंख्या वाले
भारत में बांटने
का फैसला किया।
भारत की रियासतों
में से सिर्फ
जम्मू कश्मीर ही
एक ऐसी रियासत
थी। जिसकी बहुसंख्यक
मुस्लिम जनसंख्या पर हिंदू
शासक महाराजा हरि
सिंह का नियंत्रण
था। और यही
बात पाकिस्तान के
गले नहीं उतर
रही थी। जबकि
जम्मू कश्मीर का
भारत में बने
रहना भारत की
सर्वधर्म समाज वाली
छवि से मेल
खाता था। 26 अक्टूबर
1947 को कश्मीर के महाराजा
हरि सिंह ने
अपनी रियासत का
भारत में विलय
करने के लिए
विलय-पत्र पर
दस्तखत किए थे।
यानी कश्मीर का
भारत में विलय
उसी तरह हुआ
जैसे बाकी रियासतों
का हुआ था।
जो कि पूरी
तरह से कानूनी
और मान्यता प्राप्त
था।
हालांकि, इसके लिए
कुछ शर्तें भी
थीं। जम्मू कश्मीर
सिर्फ रक्षा, विदेशी
मामले और दूरसंचार
के मामलों में
ही भारत सरकार
के हस्तक्षेप के
लिए राज़ी हुआ।
इससे पहले 22 अक्टूबर
1947 को पाकिस्तान के कबाइली
हमलावरों ने पाकिस्तानी
सरकार की मदद
से कश्मीर पर
हमला कर दिया।
इनके साथ पाकिस्तान
की सेना भी
थी। और पाकिस्तान
समर्थित हमलावरों से मुकाबले
के लिए भारतीय
सेना कश्मीर भेजी
गई। इसके बाद
1 जनवरी 1948 को भारत,
कश्मीर विवाद का हल
ढूंढने के लिए
सुरक्षा परिषद में चला
गया। 1 जनवरी 1949 को दोनों
देशों के बीच
सीज़फायर लाइन अस्तित्व
में आई। यानी
इस दौरान 16 महीनों
तक दोनों देशों
के बीच युद्ध
चलता रहा। लेकिन
तब तक पाकिस्तान
कश्मीर के एक
बड़े हिस्से पर
कब्ज़ा कर चुका
था। जिसे आज
अधिकृत कश्मीर यानी पीओके
के नाम से
जाना जाता है।
वर्षों पहले जब भारतीय सेना ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को अपनी सीमा से खदेड़ दिया था। उस वक्त उनके पास मौका था, कि वो पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर में घुसकर आखिरी प्रहार कर सकते थे। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। पाकिस्तानी घुसपैठिए जम्मू-कश्मीर के लेह, श्रीनगर और बड़गाम तक आ गए थे। लेकिन भारतीय सेना ने 16 महीनों के युद्ध के बाद उन्हें पीछे धकेल दिया। और जिस इलाके तक भारतीय सेना जा पहुंची थी, वही इलाका आज भारत और पाकिस्तान के बीच है। ठीक इसी तरह 1962 में भारत और चीन के बीच हुए युद्ध के दौरान चीन के पास लद्दाख एक बड़ा हिस्सा था। पर आज भी चीन का कब्ज़ा है। इसके बाद 1963 में चीन और पाकिस्तान के बीच हुए एक समझौते के दौरान पाकिस्तान ने 5180 वर्ग किलोमीटर का इलाका गैरकानूनी ढंग से चीन को सौंप दिया। 1970 में पाकिस्तान में गिलगित और बाल्टिस्तान को मिलाकर एक राज्य बना दिया। जिसका एक बड़ा हिस्सा 1963 से ही चीन के कब्ज़े में है। य़ानी चीन और पाकिस्तान ने मिल-जुलकर कश्मीर की समस्या रची है।
वर्षों पहले जब भारतीय सेना ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को अपनी सीमा से खदेड़ दिया था। उस वक्त उनके पास मौका था, कि वो पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर में घुसकर आखिरी प्रहार कर सकते थे। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। पाकिस्तानी घुसपैठिए जम्मू-कश्मीर के लेह, श्रीनगर और बड़गाम तक आ गए थे। लेकिन भारतीय सेना ने 16 महीनों के युद्ध के बाद उन्हें पीछे धकेल दिया। और जिस इलाके तक भारतीय सेना जा पहुंची थी, वही इलाका आज भारत और पाकिस्तान के बीच है। ठीक इसी तरह 1962 में भारत और चीन के बीच हुए युद्ध के दौरान चीन के पास लद्दाख एक बड़ा हिस्सा था। पर आज भी चीन का कब्ज़ा है। इसके बाद 1963 में चीन और पाकिस्तान के बीच हुए एक समझौते के दौरान पाकिस्तान ने 5180 वर्ग किलोमीटर का इलाका गैरकानूनी ढंग से चीन को सौंप दिया। 1970 में पाकिस्तान में गिलगित और बाल्टिस्तान को मिलाकर एक राज्य बना दिया। जिसका एक बड़ा हिस्सा 1963 से ही चीन के कब्ज़े में है। य़ानी चीन और पाकिस्तान ने मिल-जुलकर कश्मीर की समस्या रची है।
कश्मीर की समस्या
आज भारत की
एकता और अखंडता
के लिए बहुत
बड़ा घाव है।
कई विद्वानों ने
ये बात स्वीकार
की है कि
कश्मीर समस्या की वजह
देश के पहले
प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल
नेहरू की गलत
नीतियां थीं। अगर
हम इस बात
पर गौर करें
कि कश्मीर की
समस्या क्यों लगातार उलझती
गई तो इसके
लिए तत्कालीन भारत
सरकार के 3 प्रमुख
फैसले ज़िम्मेदार थे।
पहला गलत फैसला...
वर्ष 1947 में जब
पाकिस्तान ने भारत
पर हमला किया
तो भारत ने
कश्मीर की रक्षा
के लिए सही
समय पर सेना
को नहीं भेजा।
दूसरा गलत फैसला...
भारत कश्मीर के
मुद्दे को खुद
अपनी तरफ से
संयुक्त राष्ट्र संघ में
ले गया। और
तीसरा गलत फैसला
था... कश्मीर में
जनमत संग्रह कराने
के लिए तैयार
हो जाना और
उसका ऐलान करना।
ये तीनों गलत
फैसले तत्कालीन प्रधानमंत्री
नेहरू ने लिए
थे। लेकिन इन
तीनों गलत फैसलों
के पीछे जो
सलाह थी, वो
भारत के पहले
गवर्नर जनरल लॉर्ड
माउंटबेटन की थी।
कश्मीर को लेकर
भारत और पाकिस्तान
के बीच हुए
पहले युद्ध में
लॉर्ड माउंटबेटन की
भूमिका इसलिए भी संदिग्ध
है क्योंकि उस
वक्त भारत और
पाकिस्तान दोनों देशों की
सेनाओं के कमांडर
इन चीफ़ अंग्रेज़
थे। लॉर्ड माउंटबेटन
दोनों ही सेनाओं
के कमांडर इन
चीफ़ के संपर्क
में थे। यानी
युद्ध का परिणाम
क्या होगा ये
तय करना, लॉर्ड
माउंटबेटन के हाथ
में ही था।
आज़ादी से पहले
वर्ष 1941 के आंकड़ों
के मुताबिक जम्मू
और कश्मीर में
मुसलमानों की आबादी
72.4 प्रतिशत थी जबकि
हिंदुओं की आबादी
25 प्रतिशत थी। कश्मीर
की रियासत, भारत
और पाकिस्तान के
बीच में थी।
एक तरफ कश्मीर
पर पाकिस्तान के
हमले और कब्ज़े
का भय था
और दूसरी तरफ
महाराजा हरि सिंह
की महात्वाकांक्षा थी।
वे कश्मीर को
एक अलग देश
बनाने का ख्वाब
देख रहे थे।
लेकिन अक्टूबर 1947 में
पाकिस्तान की मदद
से काबायलियों ने
कश्मीर पर हमला
बोल दिया। हरि
सिंह ने भारत
से मदद की
अपील की। भारत
सरकार ने विलय
की शर्त रखी।
हरि सिंह ने
इस शर्त को
मान लिया और
विलय पत्र पर
हस्ताक्षर कर दिए।
लेकिन ये विलय
भी शर्तों के
साथ किया गया
था। जम्मू कश्मीर
सिर्फ रक्षा, विदेशी
मामले और दूरसंचार
के मामलों में
ही भारत सरकार
के हस्तक्षेप के
लिए राज़ी हुआ।
कश्मीर में एक
पक्ष, कश्मीर के
नेता शेख अब्दुल्ला
का भी था।
शेख अब्दुल्ला जम्मू
कश्मीर के लोकप्रिय
नेता थे। खास
तौर पर उन्हें
जम्मू कश्मीर के
मुसलमानों का समर्थन
हासिल था। मार्च
1948 में महाराजा हरि सिंह
ने शेख अब्दुल्ला
को कश्मीर का
प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया।
उस वक्त भारत
के संविधान का
एक मसौदा तैयार
हो रहा था।
शेख अब्दुल्ला को
भी संविधान का
प्रारूप तैयार कर रही
इस संविधान सभा
में शामिल किया
गया। संविधान सभा
में कश्मीर पर
लंबी बहस हुई।
जिसके बाद ये
निष्कर्ष निकाला गया कि
संविधान के धारा
370 के तहत जम्मू
कश्मीर अलग राज्य
दिया जाएगा। सवाल
ये है कि
370 की ज़रूरत क्यों पड़ी?
इसकी एक
बड़ी वजह थी
नेहरू और शेख
अब्दुल्ला बहुत अच्छे
दोस्त थे। शेख
अब्दुल्ला पर नेहरू
का अच्छा प्रभाव
था। लोग ये
भी कहते थे
कि कश्मीर घाटी
में शेख अब्दुल्ला,
पंडित नेहरू के
आदमी हैं। जबकि
अंबेडकर जी कश्मीर
को विशेष राज्य
का दर्जा दिए
जाने के पक्ष
में नहीं थे।
नेहरू सरकार से
उनके इस्तीफे की
एक वजह ये
भी मानी जाती
है। अगर नेहरू
ने सरदार पटेल
को भरोसे में
लेकर फैसले लिए
होते तो आज
कश्मीर भारत के
लिए समस्या नहीं
होता। नेहरू और
शेख अब्दुल्ला की
दोस्ती ने कश्मीर
समस्या को और
उलझा दिया। कश्मीर
समस्या की वजह
से भारत में
बहुत बड़ा आंदोलन
खड़ा हुआ, जिसका
नेतृत्व श्यामा प्रसाद मुखर्जी
ने किया। उनका
नारा था, कि
एक देश में
दो विधान, दो
निशान और दो
प्रधान नहीं चलेंगे।
नेहरु के न
मानने पर मुखर्जी
ने देश की
एकता और अखंडता
के लिए संघर्ष
करने का संकल्प
लिया। नेहरू सरकार
से इस्तीफ़ा देकर
डॉक्टर मुखर्जी ने 1951 में
भारतीय जनसंघ की स्थापना
की थी। वर्ष
1953 में उन्होंने भारत में
पूर्ण विलय के
लिए प्रजा परिषद्
के आंदोलन का
समर्थन किया। 11 मई 1953 को
कश्मीर में श्यामा
प्रसाद मुखर्जी ने बिना
परमिट के प्रवेश
किया। जिसके बाद
उन्हें गिरफ्तार कर लिया
गया। उस ज़माने
में जम्मू-कश्मीर
में प्रवेश करने
के लिए देश
के बाकी हिस्सों
के लोगों को
इजाज़त लेनी पड़ती
थी। इसी को
परमिट सिस्टम कहते
थे। 23 जून 1953 को हिरासत
में ही श्यामा
प्रसाद मुखर्जी की रहस्यमय
परिस्थितियों में मृत्यु
हो गई थी।
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