Thursday, 1 August 2019

अनाथों के नाथ है काशी के बाबा विश्वनाथ


अनाथों के नाथ है काशी के बाबा विश्वनाथ
वैसे तो ये पूरा जगत शिवमय है। क्योंकि शिव ही इस जगत के आधार हैं। लेकिन काशी के कण-कण में देवत्व की बात कही जाती है। यहां बाबा विश्वनाथ के चमत्कार की ढेरों कहानियां भरी पड़ी हैं। मान्यता है कि जब पृथ्वी का निर्माण हुआ था तब प्रकाश की पहली किरण काशी की ही धरती पर पड़ी थी। तभी से काशी ज्ञान तथा आध्यात्म का केंद्र माना जाता है। धर्मग्रन्थों और पुराणों में भी काशी को मोक्ष की नगरी कहा गया है, जो अनंतकाल से बाबा विश्वनाथ के भक्तों के जयकारों से गूंजती आयी है। कहते हे सावन में यहां आकर भोले भंडारी के दर्शन कर जिसने भी रूद्राभिषेक कर लिया, उसकी सभी मुरादें हो जाती हैं। जीवन धन्य हो जाता है। गंगा में स्नान करने मात्र से सभी पाप धुल जाते हैं। उसके लिए मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं। यहां आने भर से ही भक्तों की पीड़ा दूर हो जाती है। तन-मन को असीम शांति मिलती है। क्योंकि यहां स्वयं भगवान शिव विराजते हैं 
सुरेश गांधी
तीनों लोकों में न्यारी, धर्म एवं आस्था से जुड़ा शिव की नगरी काशी पतित पावनी मां गंगा के तट पर देवादिदेव महादेव की त्रिशूल पर बसी है। यहां साक्षात बाबा भोलेनाथ मां पार्वती के साथ वास करते हैं, जिन्हें बाबा विश्वनाथ के नाम से जाना जाता है। इन्हें आनन्दवन, आनन्दकानन, अविमुक्त क्षेत्र तथा काशी आदि अनेक नामों से भी स्मरण किया जाता है। शास्त्रों की मानें तो पूरे दुनिया में काशी मात्र एक स्थल है जहां सावन में शिव के साथ मां पार्वती उदयमान रहते हैं और सबको दर्शन देते हैं। यही कारण है की द्वादश ज्योतिर्लिंगों में काशी के बाबा विश्वनाथ प्रधान माने गए हैं। देश भर के भक्त मां गंगा का जल लेकर बाबा विश्वनाथ का जलाभिषेक करते हैं। 
सावन के महीनों में तो एक लोटा जल चढ़ा देने मात्र से मिल जाता है मां पार्वती संग बाबा विश्वनाथ का भी आर्शीवाद। कहते है सावन में भोलेनाथ के यहां जो अपनी इच्छा लेकर आता है, वो खाली हाथ नहीं लौटता। इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में सातवां स्थान रखता है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में काशी विश्वेश्वर (विश्वनाथ) लिंग एक मात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जिसके दर्शन मात्र से शेष 11 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का पुण्य भी प्राप्त होता है। इस ज्योर्तिलिंग की दर्शन गंगा स्नान के साथ ही रोजाना सुबह 4 से 6 बजे के बीच दर्शन-पूजन एवं सायंकाल होने वाली गंगा आरती में शरीक होने मात्र से ही श्रद्धालुओं की हर मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। यहां जीवन और मौत के चक्र को खत्म कर मोक्ष प्रदान होता है।
इतना ही नहीं, कहते हैं महादेव अपने इस दर पर किसी भी भक्त खाली नहीं लौटने देते हैं। काशी क्षेत्र में कदम रखते ही शिव की शक्ति का, उनकी ख्याति का एहसास होता है। मंदिर का शिखर देवाधिदेव की महिमा का बखान करता है, जहां अपने भव्य रूप में महादेव भक्तों का कल्याण करते हैं। यही वजह है कि उम्मीदों की खाली झोली लिए श्रद्धालु सुबह से ही बाबा विश्वनाथ के दर्शनों के लिए उमड़ने लगते हैं। यहां आने वाले हर श्रद्धालु के मन में ये अटूट विश्वास होता है कि अब उनकी सारी मुशीबतों का अंत हो जाएगा। यहां कोई अपने पापों के प्रायश्चित के लिए आता है, तो कोई अपने सुहाग की लंबी आयु की मन्नत लेकर बाबा की आराधना करता है, तो कोई अपने नौनिहाल को भगवान के दरबार में इस उम्मीद के साथ लेकर आता कि भगवान से उसे लंबे और निरोगी जीवन का आशीर्वाद मिल सके। देश दुनिया की सीमा से परे हर रोज हजारों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। 
मंदिर में सबसे पहले भक्तों की भेंट भगवान के प्रिय वाहन नंदी से होती है, जिन्हें देखकर ऐसा लगता है मानो नंदी भगवान के हर भक्त की अगुवायी कर रहे हों। मंदिर के अंदर पहुंच कर एक अलग ही दुनिया में होने का एहसास होता है, जिस तरफ भी नजर पड़ती है भगवान के चमत्कार का कोई कोई रूप नजर आता है। भगवान के अद्भुत रूप के श्रृंगार का साक्षी बनने का मौका कोई भी भक्त गवाना नहीं चाहता। यहां देवों के देव महादेव का सबसे पहले पंचामृत स्नान कराया जाता है। स्नान के बाद बारी आती है उनके भव्य और अलौकिक श्रृंगार की। शिवलिंग पर चदंन से ऊं अंकित किया जाता है और फिर बेलपत्र अर्पित किया जाता है। शिव भक्ति में डूबे भक्त अपने आराध्य का यह अलौकिक रूप देखते ही रह जाते हैं। उन्हें इस बात का एहसास होने लगता है कि यह जीवन धन्य हो गया। बाबा की पूजा के बाद मंदिर के पुजारी भगवान के हर रूप की आराधना करते हैं, जिसे देखना अपने आप में सौभाग्य की बात है। जाते जाते भक्त भगवान के वाहन नंदी जी से अपनी मन्नतें भगवान तक पहुंचाने की सिफारिश करना नहीं भूलते, क्योंकि भक्तों का मानना है कि उनके आराध्य तक उनकी हर गुहार नंदी जी ही पहुंचाते हैं।
मंदिर की बनावट और मंदिर की दीवारों पर की गई शिल्पकारी शिव भक्ति का उत्कृष्ठ नमूना है। कहते हैं सृष्टि की रचना के समय भी यह शिवलिंग मौजूद था। ऋग्वेद में भी इसके महत्व का बखान किया गया है। पतित पावनी मां गंगा साक्षात बाबा विश्वनाथ से चंद कदम की दूरी पर बहती हैं। सोमवार का दिन बाबा को बहुत प्रिय है। काशी में मां गंगा के जल से भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करने से जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिल जाती है। काशी शिव भक्तों की वो मंजिल है जो सदियों से यहां मोक्ष की तलाश में आते रहे हैं। कहते हैं अगर भक्तों के जीवन में ग्रह दशा के कारण परेशानी रही है, ग्रहों की चाल ने जीना दूभर कर दिया है तो यहां आकर दर्शन करने के बाद यदि रुद्राभिषेक करा दिया जाए तो भक्तों को ग्रह बाधा से मुक्ति मिल जाती है। स्कंध पुराण में 15000 श्लोको में काशी विश्वनाथ का गुणगान मिलता है। इससे सिद्ध होता है कि यह मंदिर हजारो वर्ष पुराना है। जो प्रलयकाल में भी लोप नहीं हो सका। कहते है काशी पर जब कोई आपदा आनी होती है तो उस समय भगवान शंकर इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं। सृष्टि काल आने पर इसे नीचे उतार देते हैं। इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने सृष्टि उत्पन्न करने का कामना से तपस्या करके आशुतोष को प्रसन्न किया था और फिर उनके शयन करने पर उनके नाभि-कमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए, जिन्होने सृष्टि की रचना की। अगस्त्य मुनि ने भी विश्वेश्वर की बड़ी आराधना की थी और इन्हीं की अर्चना से श्रीवशिष्ठजी तीनों लोकों में पुजित हुए तथा राजर्षि विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाये।
दो रुपों में होता है बाबा का दर्शन
काशी ही एक ऐसा तीर्थस्थल है जहां महादेव के दो रूपों का दर्शन होता है। खासियत यह है कि महादेव के दोनों रुपों को बाबा विश्वनाथ के नाम से पुकारा जाता है। पहला दिव्य मंदिर मां गंगा किनारे स्थापित है तो दुसरा काशी हिन्दू विश्व विद्यालय परिसर में। मान्यता है कि अगर कोई भक्त बाबा विश्वनाथ के दरबार में हाजिरी लगाता है तो उसे जन्म-जन्मांतर के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। बाबा का आशीर्वाद अपने भक्तों के लिए मोक्ष का द्वार खोल देता है। ऐसी मान्यता है कि एक भक्त को भगवान शिव ने सपने में दर्शन देकर कहा था कि गंगा स्नान के बाद उसे दो शिवलिंग मिलेंगे और जब वो उन दोनों शिवलिंगों को जोड़कर उन्हें स्थापित करेगा तो शिव और शक्ति के दिव्य शिवलिंग की स्थापना होगी और तभी से भगवान शिव यहां मां पार्वती के साथ विराजमान हैं। एक दूसरी मान्यता है कि मां भगवती ने खुद महादेव को यहां स्थापित किया था। सोमवार को चढ़ाए गए जल का पुण्य विशेष फलदायी होता है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय परिसर में मौजूद काशी विश्वनाथ मंदिर कहने को नया है, लेकिन इस मंदिर का भी महत्व उतना ही है जितना पुराने काशी विश्वनाथ का। 
नए विश्वनाथ मंदिर के बाबत कहा जाता है कि एक बार पंडित मदन मोहल मालवीय जी ने बाबा विश्वनाथ की उपासना की, तभी शाम के समय उन्हें एक विशालकाय मूर्ति के दर्शन हुए, जिसने उन्हें बाबा विश्वनाथ की स्थापना का आदेश दिया। मालवीय जी ने उस आदेश को भोले बाबा की आज्ञा समझकर मंदिर का निर्माण कार्य आरंभ करवाया। लेकिन बीमारी के चलते वो इसे पूरा करा सके। तब मालवीय जी की मंशा जानकर उद्योगपति युगल किशोर बिरला ने इस मंदिर के निर्माण कार्य को पूरा करवाया। मंदिर में लगी देवी-देवताओं की भव्य मूर्तियों का दर्शन कर लोग जहां अपने आप को कृतार्थ करते हैं, वहीं मंदिर के आस-पास आम कुंजों की हरियाली एवं मोरों की आवाज से भक्त भावविभोर हो जाते हैं। इस भव्य मंदिर के शिखर की सर्वोच्चता के साथ ही यहां का आध्यात्मिक, धार्मिक, पर्यावरणीय माहौल दुनियाभर के श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। विश्वविद्यालय के प्रांगण में होने के कारण खासकर युवा पीढ़ी के लिए यह मंदिर विशेष आकर्षण का केंद्र बन चुका है।
मां पार्वती संग विराजते है बाबा विश्वनाथ
वैसे तो काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिग के संबंध में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथानुसार जब भगवान शंकर पार्वती जी से विवाह करने के बाद कैलाश पर्वत रहने लगे तब पार्वती जी इस बात से नाराज रहने लगीं। उन्होंने अपने मन की इच्छा भगवान शिव के सम्मुख रख दी। अपनी प्रिया की यह बात सुनकर भगवान शिव कैलाश पर्वत को छोड़ कर देवी पार्वती के साथ काशी नगरी में आकर रहने लगे। इस तरह से काशी नगरी में आने के बाद भगवान शिव यहां ज्योतिर्लिग के रूप में स्थापित हो गए। तभी से काशी नगरी में विश्वनाथ ज्योतिर्लिग ही भगवान शिव का निवास स्थान बन गया। माना यह भी जाता है कि काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिग किसी मनुष्य की पूजा, तपस्या से प्रकट नहीं हुआ, बल्कि यहां निराकार परमेश्वर ही शिव बनकर विश्वनाथ के रूप में साक्षात प्रकट हुए।
बाबा विश्वनाथ की होती है पांच आरती
खास बात यह है कि यहां बाबा विश्वनाथ की पांच बार आरती होती है। पुजारियों का कहना है कि आरती शब्द का अर्थ है, व्यापक और तल्लीन हो जाना। भगवान शिव ब्रह्मांड के पालनहार हैं। इन पांच आरतियों में शामिल होने वाला भक्त सौभाग्यशाली होता है। कहा जाता है कि उसे पापों से भी मुक्ति मिल जाती है। साथ ही विश्व में वास्तविक ऊर्जा का संचार होता है। सबसे पहले मंगला आरती भोर में दो बजे से तीन बजे तक होती है। इसेब्रह्म मुहूर्तकी आरती भी कहते हैं। माना जाता है कि इस समय यक्ष, गंदर्भ, नारद, ब्रह्मा, विष्णु सभी देवी-देवता मौजूद रहते हैं। इस दौरान देवगण गायन और वादन भी प्रस्तुत करते हैं। कोई वीणा बजाता है तो कोई राग गाता है। 
मंगला आरती में बाबा विश्वनाथ से पूरे ब्रह्मांड के कल्याण और मंगल की प्रार्थना की जाती है। बाबा का ये स्वरुप मंगलकारी होता है। मंगला आरती के बाबा पुनः औघड़दानी बनकर महाश्मशान मणिकर्णिका चले जाते हैं। दुसरी आरती को मध्याह्न की भोग आरती होती है, जो दोपहर साढ़े 11 से 12 बजे तक होती है। इस आरती के दौरान बाबा विश्वनाथ को पंचामृत से स्नान कराया जाता है, ताकि श्रृष्टि अन्न, धन्य और परोपकार से फलती-फूलती रहे। इसके बाद भव्य श्रृंगार होता है। उन्हें फल, फूल, मेवा, दही, मिष्ठान, दूध और भांग का भोग लगाया जाता है। भगवान भोग ग्रहण करने के लिए खुद इस आरती में शामिल होते हैं। तीसरी आरती को सप्तऋषि आरती कहते है, यह सांय पौने 7 से साढ़े 7 बजे तक होती है। इस आरती के समय सप्त ऋषि मंडल और सप्त ऋषियों का समूह मौजूद रहता है। इस दौरान सभी बाबा का गुणानवाद करते हैं। साथ ही डमरू और घंटे की ध्वनि से पूरा परिसर गूंज उठता है। मृदंग की झंकृत ताल से निबद्ध होकर बाबा विश्वनाथ को पद्यात्मक आरती समर्पित की जाती है। 
ऐसा कहा जाता है कि महादेव को संगीत काफी प्रिय है। चौथी आरती को श्रृंगार आरती कहा जाता है जो रात नौ बजे से 10 बजे तक होती है। इस आरती में बाबा विश्वनाथ राज वेश धारण करते हैं। साथ ही राजा के रूप में आरती में शामिल होते हैं। इसमें राजोपचार पूजन होता है। बाबा विश्वनाथ श्रृष्टि के राजा हैं। उन्हें सोने का मुकुट पहनाया जाता है। बाबा स्वर्ण आभूषण धारण करते हैं। साथ ही हीरा जणित छत्र और चांदी का नाग लगाकर महाराज की तरह अलंकरण होता है। पांचवीं आरती शयन आरती होती है, जो रात साढ़े 10 से 11 बजे तक होती है। बाबा विश्वनाथ सारे संसार के लोकपाल हैं। दुनिया में मनुष्य, प्राणी, पशु-पक्षी सभी को जगाना और सुलाना उन्हीं के हाथ में है। काशी में भक्त महादेव को शयन कराते हैं। इसके लिए वे गान भी करते हैं। शयन आरती में बाबा को सभी के जीवन में सुखमय निद्रा के लिए समर्पित किया जाता है।
देवाधिदेव महादेव है बाबा विश्वनाथ
बाबा विश्वनाथ को देवाधिदेव महादेव इसलिए कहा गया है कि वे देवता, दैत्य, मनुष्य, नाग, किन्नर, गंधर्व पशु-पक्षी एवं समस्त वनस्पति जगत के भी स्वामी हैं। शिव की अराधना से संपूर्ण सृष्टि में अनुशासन, समन्वय और प्रेम भक्ति का संचार होने लगता है। इसीलिए, स्तुति गान कहता है- मैं आपकी अनंत शक्ति को भला क्या समझ सकता हूं। अतः में हे शिव, आप जिस रूप में भी हों उसी रूप को मेरा आपको प्रणाम। शिव शब्द का अर्थ हैकल्याण करने वाला शिव ही शंकर हैं। शिव केका अर्थ है कल्याण औरका अर्थ है करने वाला। शिव, अद्वैत, कल्याण- ये सारे शब्द एक ही अर्थ के बोधक हैं। शिव ही ब्रह्मा हैं, ब्रह्मा ही शिव हैं। ब्रह्मा जगत के जन्मादि के कारण हैं। मान्यता यह भी है कि जिस प्रकार भगवान शिव के त्रिशूल, डमरू आदि सभी वस्तुओं तथा शिव का संबंध नौ ग्रहों से जोडा गया है, उसी प्रकार भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों का संबंध बारह चन्द्र राशियों से जोडा गया है, जो इस प्रकार है-मेष राशि का संबंध श्रीसोमनाथ ज्योतिर्लिंग, वृष राशि का श्रीशैल ज्योतिर्लिंग, मिथुन राशि का श्रीमहाकाल ज्योतिर्लिंग, कर्क राशि का श्रीऊँकारेश्वर अथवा अमलेश्वर ज्योतिर्लिंग, सिंह राशि का श्रीवैद्यनाथधाम ज्योतिर्लिंग, कन्या राशि का श्रीभीमशंकर ज्योतिर्लिंग, तुला राशि का श्रीरामेश्वर ज्योतिर्लिंग, वृश्चिक राशि का श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिंग, धनु राशि का श्रीविश्वनाथ ज्योतिर्लिंग, मकर राशि का श्रीत्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग, कुम्भ राशि का श्रीकेदारनाथधाम से मीन राशि का संबंध श्रीघुश्मेश्वर अथवा श्रीगिरीश्नेश्वर ज्योतिर्लिंग से है।
तारक-मंत्र से मृत आत्मा का करते है उद्धार
सर्वतीर्थमयी एवं सर्वसंतापहारिणी मोक्षदायिनी काशी की महिमा ऐसी है कि यहां प्राणत्याग करने से ही मुक्ति मिल जाती है। भगवान भोलानाथ मरते हुए प्राणी के कान में तारक-मंत्र का उपदेश करते हैं, जिससे वह जन्म-मृत्यु के काल चक्र से छुटकारा पा जाता है, चाहे मृत-प्राणी कोई भी क्यों हो। बाबा को इसीलिए ताड़केश्वर भी कहते हैं। मतस्यपुराण का मत है कि जप, ध्यान और ज्ञान से रहित एवंम दुखों परिपीड़ित जनों के लिये काशीपुरी ही एकमात्र गति है। अकाल मृत्यु से मरा मनुष्य बिना शिव अराधना के मुक्ति नहीं पा सकता।
तांत्रिकों के लिए सिद्धस्थल है बाबा का दरबार
विश्वनाथ दरबार में गर्भ गृह का शिखर है। इसमें ऊपर की ओर गुंबद श्री यंत्र से मंडित है। तांत्रिक सिद्धि के लिए ये उपयुक्त स्थान है। इसे श्री यंत्र-तंत्र साधना के लिए प्रमुख माना जाता है। बाबा विश्वनाथ के दरबार में तंत्र की दृष्टि से चार प्रमुख द्वार इस प्रकार हैं - 1. शांति द्वार। 2. कला द्वार। 3. प्रतिष्ठा द्वार। 4. निवृत्ति द्वार। इन चारों द्वारों का तंत्र में अलग ही स्थान है। पूरी दुनिया में ऐसा कोई जगह नहीं है जहां शिवशक्ति एक साथ विराजमान हों और तंत्र द्वार भी हो। बाबा का ज्योतिर्लिंग गर्भगृह में ईशान कोण में मौजूद है। इस कोण का मतलब होता है, संपूर्ण विद्या और हर कला से परिपूर्ण दरबार। तंत्र की 10 महा विद्याओं का अद्भुत दरबार, जहां भगवान शंकर का नाम ही ईशान है। मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण मुख पर है और बाबा विश्वनाथ का मुख अघोर की ओर है। इससे मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवेश करता है। इसीलिए सबसे पहले बाबा के अघोर रूप का दर्शन होता है। 
यहां से प्रवेश करते ही पूर्व कृत पाप-ताप विनष्ट हो जाते हैं। भौगोलिक दृष्टि से बाबा को त्रिकंटक विराजते यानि त्रिशूल पर विराजमान माना जाता है। मैदागिन क्षेत्र जहां कभी मंदाकिनी नदी और गौदोलिया क्षेत्र जहां गोदावरी नदी बहती थी। इन दोनों के बीच में ज्ञानवापी में बाबा स्वयं विराजते हैं। मैदागिन-गौदौलिया के बीच में ज्ञानवापी से नीचे है, जो त्रिशूल की तरह ग्राफ पर बनता है। इसीलिए कहा जाता है कि काशी में कभी प्रलय नहीं सकता। कहते हैं बाबा विश्वनाथ काशी में गुरु और राजा के रूप में विराजमान है। वह दिनभर गुरु रूप में काशी में भ्रमण करते हैं। रात्रि नौ बजे जब बाबा का श्रृंगार आरती किया जाता है तो वह राज वेश में होते हैं। इसीलिए शिव को राजराजेश्वर भी कहते हैं। बाबा विश्वनाथ और मां भगवती काशी में प्रतिज्ञाबद्ध हैं। मां भगवती अन्नपूर्णा के रूप में हर काशी में रहने वालों को पेट भरती हैं।

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